Wednesday, 18 September 2024

उज़्बेकिस्तान में एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न ।

 उज़्बेकिस्तान में एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न ।


                    बुधवार, दिनांक 18 सितंबर 2024 को लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद की शुरुआत सुबह 10 बजे हुई । परिसंवाद का मुख्य विषय था "उज़्बेकिस्तान में हिंदी: दशा और दिशा" । इस परिसंवाद के उद्घाटन सत्र में अध्यक्ष के रूप में उज़्बेकिस्तान में भारत सरकार की राजदूत आदरणीय स्मिता पंत जी उपस्थित थी । बीज वक्ता के रूप में वरिष्ठ हिंदी भाषाविद श्री बयोत रहमतोव और मुख्य अतिथि के रुप में ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज से डॉ निलूफर खोजाएवा ऑनलाईन माध्यम से उपस्थित हुई । 

            कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित करके हुई । लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद के कल्चरल डायरेक्टर श्री सीतेश कुमार जी ने स्वागत भाषण देते हुए केंद्र की आगामी योजनाओं की भी चर्चा की । प्रस्ताविकी परिसंवाद संयोजक के रूप में डॉ मनीष कुमार मिश्रा ने प्रस्तुत करते हुए सत्र का संचालन भी किया । मुख्य अतिथि डॉ निलुफर खोजाएवा जी ने आयोजन की सफलता के लिए बधाई देते हुए अपने संस्थान में हिंदी की गतिविधियों की जानकारी दी। बीज वक्ता के रूप में श्री बयोत रहमतोव जी ने विस्तार से उज़्बेकिस्तान में इंडियन डायसपोरा की चर्चा करते हुए भोलानाथ तिवारी के कार्यों को याद किया। इस अवसर पर परिसंवाद में प्रस्तुत शोध आलेखों की पुस्तक का लोकार्पण भी मान्यवर अतिथियों के द्वारा किया गया। इस पुस्तक का सम्पादन डॉ मनीष कुमार मिश्रा एवं  डॉ निलुफ़र खोजाएवा जी ने किया । इस एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के लिए प्राप्त शोध आलेखों में से कुल  30 शोध आलेखों को ISSN JOURNAL ( 2181-1784), 4(22), September 2024, www.oriens.uz के माध्यम से प्रकाशित किया गया है। 

     वरिष्ठ हिन्दी प्राध्यापिका डॉ सादिकोवा मौजूदा काबिलोवना जी की पाठ्यक्रम केंद्रित पुस्तक का भी इस अवसर पर लोकार्पण हुआ । इस कार्यक्रम में ऑन लाईन माध्यम से भारत समेत कई अन्य देशों के हिंदी विद्वान उत्साहपूर्वक जुड़े रहे । अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में आदरणीय स्मिता पंत जी ने लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों की प्रशंसा की । हिंदी के प्रचार प्रसार हेतु ऐसे आयोजनों की सार्थकता पर आप ने विस्तार से चर्चा करते हुए आगामी आयोजनों के लिए हर संभव सहायता का आश्वासन भी दिया। उज़्बेकिस्तान में जनवरी 2025 में हिन्दी ओलम्पियाड़ आयोजित करने की योजना पर भी आप ने प्रकाश डाला । 

            उद्घाटन सत्र के बाद प्रथम और द्वितीय चर्चा सत्र की शुरुआत हुई जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ हिंदी भाषाविद डॉ सादिकोवा मौजूदा काबिलोवना जी ने की । इस सत्र में जिन विद्वानों ने अपने शोध आलेख प्रस्तुत किए उनमें  शाहनाजा ताशतेमीरोवा, कमोला अखमेदोवा, प्रवीण कुमार, नेमातो युरादिल्ला, डॉ. उषा आलोक दुबे , तिलोवमुरोडोवा शम्सिक़मर, निकिता, डा० कमोला रहमतजनोवा, डॉ. हर्षा त्रिवेदी, श्रीमती नेहा राठी, डॉ. राजेश सरकार और प्रो. उल्फ़त मोहीबोवा जी शामिल रहीं । इनमें से कई विद्वान ऑन लाईन माध्यम से संगोष्ठी से जुड़े रहे । ऑन लाईन माध्यम से संगोष्ठी से जुड़े अन्य विद्वानों में डॉ. फ़तहुद दिनोवा इरोदा, युनूसोवा आदोलत, अखमदजान कासीमोव, डॉ सिराजूद्दीन नुर्मातोव, संध्या सिलावट, डॉ.प्रियंका घिल्डियाल समेत अनेकों लोग देश-विदेश से शामिल थे ।            

      दोपहर के भोजन के उपरांत तीसरे चर्चा सत्र की शुरुआत हुई। इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ हिन्दी भाषाविद श्री बयोत रहमतोव जी ने की । इस सत्र में जिन विद्वानों ने अपने शोध आलेख प्रस्तुत किए उनमें अज़ीज़ा योरमातोवा, जियाजोवा बेरनोरा मंसूर्वोना, मोतबार स्मतुलायवा, हिदायेव मिरवाहिद, खुर्रामो शुकरुल्लाह, डॉ. शिल्पा सिंह और डॉ. ठाकुर शिवलोचन शामिल रहे । इस सत्र में भी भारत से कई विद्वान ऑन लाइन माध्यम से प्रपत्र वाचक के रूप में जुड़े । 

             तीसरे सत्र के बाद समापन सत्र की शुरुआत हुई। प्रतिभागियों ने इस आयोजन के संदर्भ में खुलकर अपने विचार प्रकट किए। अंत में लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद के कल्चरल डायरेक्टर श्री सीतेश कुमार जी के हाथों प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र और शोध आलेखों की पुस्तक भेंट की गई । अंत में डॉ मनीष कुमार मिश्रा ने सभी के प्रति आभार ज्ञापित किया और परिसंवाद समाप्ति की घोषणा की । इस तरह यह एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद सम्पन्न हुआ ।
















Saturday, 14 September 2024

उज़्बेकिस्तान में हिंदी

 https://epaper.bhaskarhindi.com/c/75848861




हम अगर कोई भाषा हो पाते

 

हम अगर कोई भाषा हो पाते

 

भाषाओं के इतिहास में

भाषाओं का ही

परिमल, विमल प्रवाह है ।

 

वह

ख़ुद को माँजती

ख़ुद से ही जूझती

तमाम साँचों को

झुठलाती और तोड़ती है ।

 

वह

इस रूप में शुद्ध रही कि

शुद्धताओं के आग्रहों को

धता बताती हुई

बस नदी सी

बहती रही

बिगड़ते हुए बनती रही है

और

बनते हुए बिगड़ती भी है ।

 

दरअसल वह

कुछ होने न होने से परे

रहती है

अपनी शर्तों पर

अपने समय, समाज और संस्कृति की

थाती बनकर ।

 

उसकी अनवरत यात्रा में

शब्द ईंधन हैं

और अर्थ बोध ऊर्जा

हम अगर

कोई भाषा हो पाते

तो हम

बहुद हद तक

मानवीय होते ।

 

                डॉ. मनीष कुमार मिश्रा

                 विजिटिंग प्रोफ़ेसर

                 ICCR हिन्दी चेयर

                 ताशकंद, उज़्बेकिस्तान ।

हिन्दी दिवस की शुभ कामनाएँ


 

संवाद में मुख्य वक्ता के रूप में सहभागी

 शुक्रवार, दिनांक  13 सितंबर 2024 को पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, आईटीएम विश्वविद्यालय, ग्वालियर द्वारा "हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य और रोज़गार की संभावनाएँ" विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय संवाद का आयोजन किया गया। इस संवाद में मुख्य वक्ता के रूप में सहभागी हुआ । अपने वक्तव्य में हिन्दी भाषा के वैश्विक परिदृश्य पर गहनता से प्रकाश डाला। मैंने कहा कि हिन्दी भाषा का न केवल सांस्कृतिक और साहित्यिक महत्व है, बल्कि यह वैश्विक मंच पर अपनी पहचान भी बना रही है। इसके साथ ही, हिन्दी के बढ़ते प्रसार के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभरती रोजगार की नई संभावनाओं के बारे में भी चर्चा की, जैसे कि अनुवाद, पत्रकारिता, लेखन, पर्यटन, और शिक्षा के क्षेत्र में हिन्दी के पेशेवरों की बढ़ती मांग। हिन्दी भाषा के माध्यम से डिजिटल मीडिया, अंतरराष्ट्रीय व्यापार, और सॉफ्ट पावर डिप्लोमेसी में भी अनेक अवसर उपलब्ध हैं। इस आयोजन ने हिन्दी भाषा के महत्व और इसके माध्यम से उपलब्ध विविध रोजगार अवसरों के प्रति नई सोच विकसित करने का अवसर प्रदान किया।





Friday, 30 August 2024

तेरे अंजाम पे रोना आया


 अवध और बनारस क्षेत्र की ठुमरी गायिकाओं के जीवन संघर्ष और संगीत साधना से जुड़ी  " तेरे अंजाम पे रोना आया" यह पुस्तक जल्द ही पाठकों के बीच उपलब्ध होगी । इसमें 09 गायिकाओं पर स्वतंत्र आलेख हैं जिन में गौहर जान, जानकी बाई, रसूलन बाई, सिद्धेश्वरी देवी और बेगम अख्तर शामिल हैं। दिनांक 18 सितंबर 2024 को ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में इस पुस्तक का लोकार्पण संपन्न होगा ।

इस पुस्तक के सभी आलेख वागर्थ, समीचीन, सरस्वती और अनहद लोक जैसी भारत की प्रसिद्ध पत्रिकाओं में समय समय पर प्रकाशित हो चुके हैं।  लेखन के दौरान Madhu Shukla जी,  C L Sharma Kukreti जी, K.C. Maloo जी, Jyoti Sinha जी और Shashikala Rai जी का मार्गदर्शन बड़ा उपयोगी रहा । भूमिका के रूप में आदरणीय Shitlaprasad Dubey  सर का आशीर्वाद प्राप्त हुआ ।

सभी का ह्रदय से आभार। प्रकाशक के रूप में भाई राम कुमार (आर के पब्लिकेशन, मुंबई ) का भी योगदान व सुझाव महत्वपूर्ण रहा ।

सभी के प्रति हम कृतज्ञ हैं ।

Friday, 23 August 2024

राम दरश मिश्र : सौ वसंत की गाथा

 15 अगस्त को हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राम दरश मिश्र जी अपनी जीवन यात्रा के सौ वसंत पूर्ण करेंगे। ऐसे में यह पुस्तक उनके चरणों में एक भेंट स्वरूप प्रस्तुत करने में हमें खुशी है।

आज से ठीक एक साल पहले महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष प्रोफ़ेसर शीतला प्रसाद दुबे जी के मार्गदर्शन और अकादमी के सहयोग से हमने एक राष्ट्रीय परिसंवाद रामदरश जी के साहित्य पर केंद्रित होकर आयोजित किया था। उसी परिसंवाद में प्रस्तुत किए गए शोध आलेखों के संग्रह के रूप में यह पुस्तक आप के सामने है ।



Thursday, 8 August 2024

होश पर मलाल है ग़ज़ल संग्रह

https://www.amazon.in/dp/B0DCK9PXYG?ref=myi_title_dp 













About the Author

This is the first ghazal collection of Dr. Manish Kumar Mishra. His two poetry collections and one story collection have already been published. He has also received the prestigious Sant Namdev Award of Maharashtra State Hindi Sahitya Academy for his poems. This ghazal collection ‘Hosh Par Malaal Hai’ includes a total of 105 ghazals. Through these ghazals, the concepts of life and relationships go beyond words and meaning and express thoughts and feelings in a multidimensional form. Somewhere in these ghazals there is an atmosphere of calm and dark colors and somewhere there is a thirst for love in the collage of memories. A new path keeps alive the hope of a new world of light even in dark times. In today's glittering and pompous times, the simplicity, gentleness and ease with which Manish says ghazals seems to be a reflection of his personality.

Wednesday, 7 August 2024

भारत विभाजन की त्रासदी और भारतीय भाषाओं का साहित्य








बताते हुए हर्ष हो रहा है कि भारत विभाजन की त्रासदी और भारतीय भाषाओं का साहित्य  शीर्षक से यह पुस्तक भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला से प्रकाशित हो रही है । संभवतः एक महीने में यह पुस्तक सभी पाठकों के लिए उपलब्ध हो जाएगी । विभाजन की त्रासदी और भारतीय साहित्य को लेकर  दिनांक 28-29  नवंबर 2023 को भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन मेरे संयोजन में सम्पन्न हुआ था । इस संगोष्ठी में प्रस्तुत शोध आलेखों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने की योजना थी । मैं संस्थान के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ ।  

 

Saturday, 20 July 2024

डॉ मनीष कुमार मिश्रा: संक्षिप्त परिचय

 नाम :  डॉ. मनीष कुमार मिश्रा

जन्म : वसंत पंचमी, 09 फरवरी 1981

शिक्षा : एम ए ( हिन्दी एवं अँग्रेजी), पी.एचडी, एम.बी.ए ( मानव संसाधन )

संप्रति : 

  • विजिटिंग प्रोफेसर ( भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद {ICCR} हिन्दी चेयर ), ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़,  ताशकंद, उज्बेकिस्तान 

  • के एम अग्रवाल महाविद्यालय (मुंबई विद्यापीठ से सम्बद्ध ) कल्याण पश्चिम ,महाराष्ट्र में सहायक आचार्य - हिन्दी विभाग के रूप में दिनांक 14 सितंबर 2010 से कार्यरत 

प्रकाशन :

  • हिंदी और अंग्रेजी की लगभग 35 पुस्तकों का संपादन 

  • अमरकांत को पढ़ते हुए (समीक्षा ) –  हिंदयुग्म, नई दिल्ली से 2014 में प्रकाशित 

  • इस बार तुम्हारे शहर में – (कविता संग्रह), शब्द सृष्टि, नई दिल्ली से 2018 में प्रकाशित 

  • अक्टूबर उस साल – (कविता संग्रह), शब्द सृष्टि, नई दिल्ली से 2019 में प्रकाशित 

  • स्मृतियाँ - (कहानी संग्रह), ज्ञान ज्योति पब्लिकेशंस, दिल्ली से 2021 में प्रकाशित 




पुरस्कार  : 


  • श्याम सुंदर गुप्ता स्वर्ण पदक - वर्ष 2003, मुंबई विद्यापीठ,मुंबई,  महाराष्ट्र  

  • डॉ. लक्ष्मी नारायण लाल राष्ट्रीय सम्मान वर्ष 2020, पल्लव काव्य मंच, रामपुर, उत्तर प्रदेश 

  • अखिल भारतीय राजभाषा हिंदी सेवी सम्मान – 2021,  महात्मा गाँधी राजभाषा हिंदी प्रचार संस्थान, पुणे, महाराष्ट्र 

  • संत नामदेव पुरस्कार 2020-2021, महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी, महाराष्ट्र शासन, मुंबई, महाराष्ट्र 



सम्पर्क :

manishmuntazir@gmail.com

https://onlinehindijournal.blogspot.com

+91   8090100900 (भारत) 

+998  503022454 (ताशकंद)

Monday, 22 April 2024

एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद - उज्बेकिस्तान में हिन्दी : दशा और दिशा


 


































लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र
( भारतीय दूतावास, ताशकंद, उज्बेकिस्तान )
द्वारा आयोजित
एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद
उज्बेकिस्तान में हिन्दी : दशा और दिशा
(शुक्रवार, दिनांक : 18 सितंबर 2024)
कार्यक्रम स्थल : लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र, 5 बुज़ बोजोर सेंट 2 लेन, ताशकंद, उज्बेकिस्तान
लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र :
लाल बहादुर शास्त्रीय भारतीय संस्कृति केंद्र (LBSCIC), ताशकंद में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद(ICCR) का एक केंद्र है । यह केंद्र हिंदी, कथक, तबला और योग में निशुल्क नियमित कक्षाएं आयोजित करता है । केंद्र की स्थापना सन 1995 में हुई थी और सन 2005 में इसका नाम बदलकर लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र कर दिया गया । केंद्र की प्रमुख गतिविधियां इस प्रकार हैं –
हिंदी कत्थक तबला एवं योग कक्षाओं का नियमित संचालन
• सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं कार्यशालाओं का आयोजन
• व्याख्यान सेमिनार और प्रदर्शनियों का आयोजन
• आधिकारिक सांस्कृतिक सहयोग कार्यक्रम का कार्यान्वयन
• भारत, इसकी जीवन शैली और संस्कृति के बारे में जानकारी का प्रसार करना
• भारत सरकार छात्रवृत्ति कार्यक्रमों का प्रशासन करना
लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र और उज्बेकिस्तान के अन्य क्षेत्रों में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करता है और अन्य संस्थाओं के साथ भी सहयोग करता है । यह भारतीय फिल्मों और वृत्त चित्रों को प्रदर्शित करता है । केंद्र हर महीने के आखिरी शुक्रवार को ‘हिंदी मंच’ का आयोजन करता है जो उज़्बेकी नागरिकों को हिंदी में बातचीत करने और विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने के लिए एक मंच प्रदान करता है । लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र, उज़्बेकिस्तान में भारतीय सांस्कृतिक मंडलों के दौरे की व्यवस्था करता है । जिसमें ‘शार्क तरोनालारी’ जैसे स्थानीय त्योहारों में भागीदारी भी शामिल है । सांस्कृतिक केंद्र भारतीय शैक्षिक संस्थानों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आईसीसीआर और भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित विभिन्न छात्रवृत्ति कार्यक्रमों का भी संचालन करता है । केंद्र में एक वाचनालय के अलावा हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू,उज़्बेकी और रूसी भाषा में पुस्तकोंवाला एक पुस्तकालय भी है ।
प्रस्तावना :
एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उज्बेकिस्तान की पहचान नई है । यह एक समृद्ध इस्लामी विरासत वाला मुस्लिम बहुल देश है। ताशकंद, समरकंद, बुखारा और खीवा जैसे उज्बेकिस्तान के प्राचीन शहर अपनी सांस्कृतिक विरासत और व्यापार से जुड़ी गतिविधियों के लिए हमेशा से ही मशहूर रहे । यहां अनेकों जातियों- जनजातियों के बीच सह अस्तित्व की परंपरा ने इस देश में साझी संस्कृति को बढ़ा दिया । सह अस्तित्व और साझी विरासत भारत की भी पहचान है । ईरानी, तुर्की, मुस्लिम, यहूदी और ईसाई समाज ने मिलकर उज़्बेकिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में नया गौरव प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।
हिन्दी प्रचार-प्रसार की दृष्टि से उज़्बेकिस्तान मध्य एशिया में उम्मीदों के प्रकाश का ऐसा अन्तः केंद्र बनकर उभरा है जो हिन्दी जगत की आखों में नाच उठे । भारत और उज़्बेकिस्तान दोनों ही उस सपने से परिचित हैं जो आपसदारी एवं विश्वास के कंधों पर खड़ा हुआ है । अपनी भाषा और संस्कृति के वैश्विक विस्तार में ये दोनों राष्ट्र एक साथ हैं । अपनी भाषा और संस्कृति के माध्यम से मानवीय करुणा,विश्वास और संवेदना का सौंदर्य पूरे विश्व में बिखेरने के लिए ऐसी साझेदारी दोनों राष्ट्रों के हित में है । भाषायी मेलजोल दरअसल ख़ुशबू से भरे वे रंग हैं जो फ़ासलों के गुबार को दरकिनार कर छनकर आती हुई उम्मीद को अपनी कोह में बसा सजाते और सँवारते हैं । इस तरह की भाषायी साझेदारी भविष्य के भारत और उज़्बेकिस्तान के लिए निश्चित ही प्रगति के नए आयाम गढ़ेगी ।
भारतीय साहित्य पर पहली पाठ्य पुस्तक उज़्बेकिस्तान में सन 1991 में प्रोफेसर तमारा खोजाएवा द्वारा तैयार की गई जिसमें रविंद्रनाथ ठाकुर, प्रेमचंद, वृंदावनलाल वर्मा, कृष्ण चंद्र, यशपाल, जैनेंद्र कुमार, अमृता प्रीतम, रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी और नामवर सिंह जैसे साहित्यकारों एवं आलोचकों को शामिल किया गया । कवियों में मैथिलीशरण गुप्त, सुभद्रा कुमारी चौहान, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रा नंदन पंत, हरिवंश राय बच्चन, केदारनाथ सिंह इत्यादि को शामिल किया गया ।उज़्बेकी-हिन्दी शब्दकोश का निर्माण भी यहां की शिक्षकों द्वारा हाल ही में किया गया है । भारत के संदर्भ में साहित्य रचनेवाले उज़्बेकी साहित्यकारों में गफूर गुलाम, हमीद गुलाम, अस्काद मुहतार, हमीद अलीमजान, मिरतेमीर, सईदा जुनुनोवा, एरकीन वहीदोवा और तमारा खोदजाएवा का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है । 7 जुलाई 2015 को देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस पहले उज़्बेकी-हिन्दी शब्दकोश का लोकार्पण किया गया । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी यात्रा के दौरान भारतीय फिल्म और संगीत की उज्बेकिस्तान में लोकप्रियता के साथ-साथ यह भी याद दिलाया कि सन 2012 में उज़्बेक रेडियो ने हिंदी ब्रॉडकास्टिंग के 50 वर्ष पूर्ण किए ।
उज़्बेकिस्तान में हिन्दी की वर्तमान स्थिति एवं भविष्य में इसके व्यापक प्रचार-प्रसार एवं अध्ययन-अध्यापन की स्थितियों कों समझना एवं उसका दस्तावेजीकरण ही इस एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद का उद्देश्य है ।
शोध आलेख प्रस्तुत करने हेतु उप विषय :
• उज़्बेकिस्तान और भारत के सांस्कृतिक संबंध
• उज़्बेकिस्तान और भारत के बीच शैक्षणिक अनुबंध
• उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्ययन – अध्यापन
• उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्ययन – अध्यापन से जुड़े प्रमुख शैक्षणिक केंद्र
• उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्ययन – अध्यापन से जुड़े प्रमुख लोग
• उज़्बेकिस्तान में हिन्दी से जुड़े शोध कार्य
• उज़्बेकिस्तान में हिन्दी पुस्तकों के प्रकाशन का इतिहास
• उज़्बेकिस्तान में अनुवाद के माध्यम से हिन्दी साहित्य का प्रचार प्रसार
• अनुवाद के माध्यम से हिन्दी – उज़्बेकी साहित्य का आदान-प्रदान
• उज़्बेकिस्तान और हिन्दी फिल्में
• उज़्बेकिस्तान में भारतीय कला और संस्कृति से जुड़े महत्वपूर्ण कार्य
• उज़्बेकिस्तान के विद्यार्थियों के लिए भारत में छात्रवृत्ति की योजनाएँ
• उज़्बेकिस्तान और भारत : भविष्य की संभावनाएं
• उज़्बेकिस्तान से निकलनेवाली हिन्दी की पत्रिकाओं का इतिहास
• उज्बेकिस्तान के हिन्दी साहित्यकार
• उज़्बेकिस्तान रेडियो और हिन्दी प्रसारण
• उज़्बेकिस्तान टेलीविज़न और हिन्दी प्रसारण
( उपर्युक्त विषयों के अतिरिक्त भी आप उज़्बेकिस्तान और भारत की कला, संस्कृति और हिन्दी को लेकर किसी विषय पर संयोजक की पूर्व अनुमति से शोध आलेख प्रस्तुत कर सकते हैं । )
शोध आलेख कैसे भेजें :
• शोध आलेख सिर्फ़ हिन्दी भाषा में ही स्वीकार किए जाएंगे
• शोध आलेख कम से कम 1500 शब्दों और अधिकतम 4000 शब्दों में लिखा हो
• शोध आलेख पूर्व में कहीं प्रकाशित या प्रस्तुत न हो
• शोध आलेख मौलिक और सुव्यवस्थित हो
• शोध आलेख यूनिकोड मंगल में 12 फॉन्ट साइज़ में A4 साइज़ पृष्ठ के एक तरफ टंकित हो
• शोध आलेख ईमेल में attached word file के रूप में ही भेजें
• शोध आलेख के अंत में संदर्भ सूची अवश्य दें
• शोध आलेख के प्रारंभ में शोध आलेख का शीर्षक और अंत में अपना नाम, पद, संस्था का नाम, ईमेल और मोबाइल नंबर अवश्य लिखें
• शोध आलेख भेजने की अंतिम तिथि 30 मई 2024 है
• शोध आलेख manishmuntazir@gmail.com पर प्रेषित करें
परिसंवाद में सहभागिता :
• इस परिसंवाद में सहभागी होने के लिए आप को किसी तरह का पंजीकरण शुल्क नहीं देना होगा
• चुने हुए आलेखों को लाल बहादुर शास्त्रीय भारतीय संस्कृति केंद्र (LBSCIC), ताशकंद द्वारा ISBN के साथ पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाएगा

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