अमरकांत और निम्न मध्यमवर्गीय जीवन बोध
अमरकांत ने अपने कथा साहित्य के माध्यम से निम्न मध्यमवर्गीय समाज का चित्रण अधिक किया है। अमरकांत हमेशा अपने परिवेश से जुड़े रहे और वास्तविक जीवन में जो कुछ देखा, समझा उसी को अपने साहित्य का विषय बनाया। इसी संदर्भ में शेखर जोशी लिखते हैं कि, ''आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य की विडम्बना यह रही की घोर पारम्परिक व्यवस्था में रहते हुए भी अनेकों कथाकार आधुनिकता के जोश में महानगर के खण्डित पारिवारिक सम्बन्धों पर झूटी रचनाएँ करने लगे जबकि अमरकांत ने अपनी रचनाओं के लिए वही भूमि चुनी जिसमें वे जी रहे थे। यही उनके जैनुइन होने का रहस्य है।``24 शायद यही कारण है कि अमरकांत निम्न मध्यवमवर्गीय समाज के अंदर व्याप्त लाचारी, परेशानी, तंगी, स्वार्थ, आदर्श, मोहभंग, दीनता और मनोवैज्ञानिक मानसिक स्थितियों को इतनी गंभीरता के साथ चित्रित करने में सफल हुए। व्यंग्य, निरीहता, पीड़ा, शोषण, विसंगतियां, चालाकी, कुटिलता और मूर्खता तथा गवारूपन जैसी अनेकों बातों के चित्रण मे अमरकांत को महारत हासिल है।
अमरकांत 'नई कहानी` के दौर के कथाकार हैं। लेकिन कई मायनों में अमरकांत अपने समकालीन साहित्यकारों से अलग थे। मधुरेश इस संदर्भ में लिखते हैं कि, ''उनके समकालीनों के बीच तब बहुतों को उनकी स्थिति बड़ी दयनीय लगी होगी और यह भी हो सकता है कि बहुतों को वह अपने समय से पीछे छूट जाते भी लगे हों - अपनी कहानियों की विषयवस्तु के चयन में ही नहीं, शिल्प-संचेतना और भाषा शैली की दृष्टि से भी। लेकिन एक तरह से अमरकांत का यह समय से पीछे छूट जाना ही उनका अपने समय से आगे बढ़ जाना था - कम से कम आज इसे प्रमाणित कर सकने में किसी किस्म की कोई दिक्कत पेश नहीं आनी चाहिए। अमरकांत जितनी सादालौही के साथ अपने आस-पास की जिन्दगी पर लिख रहे थे उसकी सादगी में ही उसकी सादी शक्ति छिपी थी।``25 स्पष्ट है कि अमरकांत ने जिस वर्ग विशेष को अपने कथा साहित्य का विषय बनाया, वह उनके परिवेश के सर्वथा अनुकूल था।
अमरकांत के संदर्भ में राजेन्द्र यादव लिखते हैं कि, ''..... अमरकांत टुच्चे, दुष्ट और कमीने लोगों के मनोविज्ञान का मास्टर है। उनकी तर्कपद्धति, मानसिकता और व्यवहार को जितनी गहराई से अमरकांत जानता है, मेरे खयाल से हिन्दी का कोई दूसरा लेखक नहीं जानता।..... निम्न मध्यमवर्गीय दयनीयता, असफलता और असहायता के बीच, उस सबका हिस्सा बनते हुए उसने कहानियाँ लिखी हैं। आर्थिक रूप से विपन्न, आधी आढ़ने - आधी निचोड़ने वाले बुजुर्ग, छोटे क्लर्क या बेकार नवयुवक अमरकांत के प्रिय पात्र हैं; और अभाव किस तरह नैतिकता और संस्कारों को स्तर-स्तर तोड़ता है - उसका सशक्त अध्ययन क्षेत्र है।``26 स्पष्ट है कि अमरकांत ने निम्न मध्यवर्गीय समाज के मनोविज्ञान को बखूबी समझा और उसे अपने साहित्य का विषय भी बनाया।
अमरकांत के उपन्यासों की बात करें तो कई ऐसे पात्र सामने आते हैं जिनके माध्यम से अमरकात ने निम्नमध्यवर्गीय समाज के जीवन को चित्रित करने का प्रयास किया है। 'सूखा पत्ता`, 'सुखजीवी`, 'कँटीली राह के फूल` तथा 'बीच की दीवार` जैसे उपन्यासों में तो इस तरह का चित्रण न के बराबर है। पर 'ग्रामसेविका`, 'सुन्नर पांडे की पतोह`, 'आकाश पक्षी` और 'इन्हीं हथियारों से` उपन्यास इस दृष्टि से महत्वपूर्ण जरूर है। मुख्य पात्र के रूप में न सही पर प्रसंगानुकूल पात्रों का चित्रण उनके पूरे सामाजिक परिवेश को पाठकों के मानस में जीवंत कर देता है।
'ग्राम सेविका` उपन्यास मेें कई ऐसे निम्न मध्यवर्गीय पात्रों का जिक्र है जो अपनी अज्ञानता, रूढियों और अंधविश्वास के कारण दमयंती की बातों पर संदेह करते हुए उसके बारे में अनुचित बातें करते हैं। छकौड़ी की स्त्री, सुमिरनी दाई, भीम पासी, रमैनी, सहुकाइन कुछ ऐसे ही पात्र हैं जो आशंका से करे हैं। लेकिन जंगी अहिर, जमुना कुछ ऐसे पात्र हैं जो दमयंती की बातों पर विश्वास करते हुए उसके पति सहानुभूति का भाव रखते हैं।
इस समाज में व्याप्त अंधविश्वास, रूढ़ियों और अज्ञानता तथा भोलेपन को लेखक ने कई जगह दिखलाया है। जमुना को बच्चा होने पर उसके कमरे की हालत परंपराओं के नाम पर ऐसी कर दी गयी कि बच्ची बिमार हो गई। इसके बाद भी झाड़-फूँक कराने में सबने अधिक दिलचस्पी ली। मिसिराइन और झींगुर सोख टोना-टटका के लिए ही पूरे गाँव में मशहूर थे। इस समाज की आर्थिक विपन्नता का भी वर्णन अमरकांत कई संदर्भो में करते हैं। जैसे कि दमयंती के स्कूल में दोपहर के समय बच्चों को पाउडर का दूध दिया जाता था। ऐसे में, ''....उन लड़कों की मातायें भी, जो अपने लड़कों को स्कूल नहीं भेजती, उनको गिलास या कटोरा पकड़ा देती और उनको ठेल कर कहती, ''जा, दूध ले आ स्कूल से।`` ऐसे ही अनेकों प्रसंग अमरकांत ने इस उपन्यास में चित्रत किये हैं।
'सुन्नर पांडे की पतोह` में दोमितलाल की सिफारिश करते हुए सुन्नर पांडे की पतोह कहती है कि, ''मालिक, दुखिया है, बड़ा सीधा-सादा है। मेहनत खूब करता है। बाप बड़ा ऐबी था, सब फूॅक-ताप गया। सन्तान भूखों मरने लगी। सूखा पड़ा तो यह अपने बड़े भाई के साथ शहर भाग आया। दोनों भाई मेहनत-मजूरी करते थे.... बाद में बड़े भाई ने इसको मारकर बाहर निकाल दिया.... बड़ा कंस है वेो....।``27 दोमितलाल जैसे ही कई अन्य निम्न मध्यमवर्गीय पात्र इस उपन्यास में हैं। सुनरी, दुबे ड्राइवर, बुधिया ऐसे ही पात्र हैं। मुख्य कथा के साथ इनकी कथाओं को जाड़ते हुए अमरकांत ने संक्षेप में ही इनके जीवन का परिचय दे दिया है।
'आकाश पक्षी` उपन्यास की मुख्य कथा तो सामंती परंपराओं वाले राजा साहब से परिवार के पतन और हेमा तथा रवि के प्रेम की है। पर राजा साहब के विचार और निम्न वर्ग पर उनका रोब इस वर्ग की स्थिति को स्पष्ट करता है। हेमा का कहानी कि, ''हमारी रियासत में बड़े लोगों द्वारा गरीब लोगों को मारने-पीटने और सताने की घटनाऍ सदा होती रहती थीं। .... कुछ अन्य लोगों को छोड़कर शेष जनता भयंकर निर्धनता में जीवन व्यतीत करती थी। दोनों जून रोटी का प्रबंध करना उनके लिए कठिन हो जाता था। उसका कोई नहीं था - न ईश्वर और न खुदा। जो कुछ था, वह राजा ही था।``28 हेमा की बात में जिन लोगों का जिक्र है वे इसी दबे-कुचले निम्न मध्यवर्ग की तरफ ही इशारा करते हैं।
'इन्हीं हथियारों से` अमरकांत का नवीनतम और महत्वपूर्ण उपन्यास है। सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय बलिया में ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया था। बलिया को ही केन्द्र में रखकर लिखे गये इस उपन्यास में निम्न मध्यवर्गीय जीवन के कई चित्र प्रस्तुत हुए हैं। साथ ही साथ इस उपन्यास की जो सबसे खास बात है वह यह कि इस उपन्यास के निम्न मध्यवर्गीय और मध्यवर्गीय पात्र उस तरह की निराशा, हताशा और मोहभंग के शिकार नहीं हैं, जैसे की अमरकांत के कथा साहित्य के अधिकांश पात्र हैं। कारण यह है कि इस उपन्यास की पृष्ठभूमि के आजादी का संकल्प है न कि आजादी के बाद का मोहभंग। यहॉ जीवन में भरपूर आशा, विश्वास, उत्तेजना और भविष्य को लेकर सुनहरे सपने हैं।
उपन्यास के निम्न मध्यवर्गीय पात्रों में नफीस, हसीना चूड़ीहारिन, श्यामदासी, ढेला, गोपालराम, किसुनी चाट वाला, धनेसरी, किनरी, फूलनी, छकौड़ी, भोलाराम, चनरा, भीमल-बो भगजोगिनी और रामचरन प्रमुख है। दरअसल उपन्यास में कोई प्रमुख नायक या नायिका नहीं हैं। साथ ही साथ इसकी कोई एक केन्द्रिय कथा भी नहीं है। उपन्यास में कई पात्रों से जुड़ी हुई कथाएँ हैं। प्रेम, राजनीति, डाकू, सन्यासी, वेश्या, दलाल और स्कूल-कॉलेज में पढ़नेवाले भावुक लड़कों का उपन्यास में न केवल जिक्र है अपितु उनसे संबंधित कई छोटी-बड़ी कहानियाँ भी इस उपन्यास में मिलती हैं।
उपन्यास में एक बात और स्पष्ट होती है कि अमरकांत के निम्न मध्यवर्गीय पात्र मध्यवर्गीय पात्रों की तुलना में अधिक कर्मशील और विचारों को लेकर दृढ़ दिखते हैं। इसी संदर्भ में वेदप्रकाश लिखते हैं कि, ''....अमरकांत ने मध्यवर्गीय और निम्नवर्गीय मानसिकता का भेद भी चित्रित किया है। यह भेद व्यक्त नहीं व्यंजित है। अधिकार मध्यवर्गीय पात्र उतने सकर्मक और स्पष्ट रूप से फैसला लेने वाले नहीं हैं जितने निम्नवर्गीय पात्र।``29 स्पष्ट है कि अमरकांत की दृष्टि निम्न मध्यवर्गीय समाज के साथ सिर्फ सहानुभूतिपूरक न होकर एक गहरी वैचारिक दृष्टि के कारण भी था।
अमरकांत के उपन्यासों की अपेक्षा उनकी कहानियों में निम्न मध्यवर्गीय समाज का चित्र अधिक उभर कर आया है। नौकर, जिंदगी और जोंक, दोपहर का भोजन, मूस, हत्यारे, बहादुर, निर्वासित, फर्क, कुहासा, लाखों और 'जाँच और बच्चे` जैसी कहानियों में उनकी संवेदनाएँ, सहानुभूति और इस वर्ग को लेकर उनका वैचारिक दृष्टिकोण एकदम साफ हो जाता है। अमरकांत की ये कहानियाँ बहुत चर्चित भी रही हैं और इनपर समीक्षकों की पर्याप्त समीक्षाएँ लिखी गई हैं।
डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी अमरकांत की कहानियों के संदर्भ में लिखते हैं कि, ''अमरकांत 'कफन` की परम्परा के रचनाकार हैं। ....अमरकांत की कहानियाँ द्वंद्वात्मक दृष्टि से परस्पर विरोधी स्थितियों का समाहार कर पाने की शक्ति से रचित हैं। इसी अर्थ में वे 'कफन` की परम्परा में हैं। यह दृष्टि और शक्ति अमरकांत की अधिकांश कहानियों में सुलभ है।``30 अमरकांत की इस शक्ति का परिचय 'जिंदगी और जोंक` जैसी कहानियोें में स्पष्ट रूप से दिखायी पड़ता है। कहानी का पात्र 'रजुआ` जितना निरीह और जितनीय दयनीय स्थिति में जीता है उतना ही काइयाँ और वर्ग सुलभ व्यावहारिक गुणों से संपन्न है। वह छोटी जातियों के बीच अंधविश्वास, भूत प्रेत और ऐसी बातों का प्रचार करता है। खुद दाढ़ी बढ़ाकर शनीचरी देवी को जल चढ़ाता है, पगली को फुसलाकर अपने पास रखता है और अपनी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
अमरकांत अपने 'रजुआ` जैसे निम्न मध्यवर्गीय पात्रों के साथ तो सहानुभूति दिखलाते हैं पर उनकी परिस्थितियों के प्रति उतने ही निर्मम दिखायी पड़ते हैं। ''यह बात जिम्मेदारी के साथ कही जा सकती है कि जितनी वास्तविक और जटिलता के लिए निम्न और निम्न मध्यवर्गीय पात्रों की करूण स्थिति का चित्रण अमरकांत की कहानियों में मिलता है, उतना समकालीन कथा साहित्य में अन्यत्र दुर्लभ है।``31 शायद यही कारण है कि अमरकांत को निम्न मध्यवर्गीय समाज का कहानीकार माना जाता है।
'मूस` भी अमरकांत की चर्चित कहानियों में से एक है। कहानी का मुख्य पात्र 'मूस` ही है। जो उतना ही निरीह है जितना की 'रजुआ`। बल्कि कुछ संदर्भो में वह 'रजुआ` से भी अधिक दयनीय दिखायी पड़ता है। परबतिया के आगे उसकी एक नहीं चलती। परबतिया हर ढ़ंग से उसको अपने इशारे पर नचाती है। 'मुनरी` के साथ रहकर उसके अंदर के लिए भी तैयार हो जाता है। मुनरी किसी और के साथ घर बसाने के बाद भी मूस के प्रति भी मानव सुलभ रागात्मक भाव को बरकरार रखती है। अमरकांत के निम्न मध्यवर्गीय पात्रों में यहीं 'मानवीय दृष्टि` उनके मध्यवर्गीय पात्रों की अपेक्षा कृत अधिक विस्तृत और स्पष्ट है।
'दोपहर का भोजन` कहानी में अमरकांत ने जीवन में आर्थिक अभावों और उससे पनपती मानसिकता, व्यावहारिक द्वंद्व और यथार्थ से ऑखे मिलाने की जटीलता को दिखलाने का सफल प्रयास किया है। 'नौकर` और 'बहादुर` जैसी कहानियों में निम्न मध्यवर्गीय लोगों के प्रति मध्यवर्गीय मानसिकता स्पष्ट होती है। बात-बात पर गालियाँ देना, मारना-पीटना और हर बात के लिए इस वर्ग को शक की निगाह से देखना जैसे इस वर्ग विशेष के लिए ईश्वर द्वारा तॅय की गयी नियति हो।
'हत्यारे` अमरकांत की कहानियों में एक विशेष स्थान रखती है। इसमें एक ऐसी मानसिकता की तरफ इशारा किया गया है जो धीरे-धीरे अति आत्मकेन्द्रित होती हुई पूरी तरह अमानवीय हो जाती है। कहानी के पात्र 'गोरा` और 'साँवले` ने वेश्या लड़की के साथ शारीरिक सुख पाने के बाद जब पैसे देने की बात आयी तो छुट्टा लगने के नाम पर भाग खड़े हुए। इतना ही नहीं जब उनका पीछा करने वाला व्यक्ति उनके बहुत करीब आ गया तो उसके पेट मे छूरा भोक दिया। यह कहानी एक साथ कई चित्र प्रस्तुत करती है। एक तरफ तो यह शक्तिहीन और अमानवीय समाज का कृरतम देहरा सामने लाती है तो दूसरी तरफ निम्न मध्यवर्गीय समाज की उस वेश्या लड़की की मानसिक अवस्था पर सोचने को मजबूर करती है जो अपना शरीर देने के बाद भी ढगी जाती है। उसकी निरीह स्थिति का आकलन दिमाग को झकझोर के रख देता है।
'निर्वासित` कहानी का गंगू निम्न मध्यवर्गीय समाज का ही प्रतिनिधी है। बनिये के साथ वह पूरी ईमानदारी के साथ काम करता। लेकिन एक दिन जब गंगू ने अपने लिए कुछ पैसे माँग लिए तो बनिया आग बबूला हो गया। उसने गंगू से कहा, ''....इसीलिए कहा गया है कि नीचों के साथ एहसान नहीं करना चाहिए। देख, मैं सब कुछ जानता हूॅ। सच-सच बता, क्या तू सब्जी में पेसे नहीं मारता?.... तू अभी निकल जा यहॉ से।.... अगर तू अधिक टर्र-टर्र करेगा, तो पुलिस बुलाकर तुझे जेल भिजवा दूँगा। भाग यहाँ से....।``32 इस तरह निम्न मध्यवर्गीय समाज का व्यक्ति अपनी पूरी ईमानदारी और निष्ठा के बावजूद आरोप और शोषण का शिकार होता है।
'कुहासा` भी इसी तरह की कहानी है। जहॉ 'दूबर` शहर में आकर अपनी आजीविका चलाना चाहता है। पर शहर के सफेदपोश दलाल ठंडी में ठिकुरकर उसे अपने प्राण त्यागने पड़ते हैं। यहॉ पर भी पात्र के प्रति सहानुभूति और उसकी परिस्थितियों के प्रति लेखक की निर्ममता स्पष्ट रूप से दिखायी पड़ती है।
'फर्क` कहानी समाज में व्याप्त उस मानसिक फर्क को स्पष्ट करती है जहाँ पर सारी सामाजिक नैतिकता और विचार बदल जाते हैं। यह बदलाव की नई तरह की सामाजिक बुराइयों का कारण भी है। मोहल्ले के एक छोटे-मोटे चोर को पकड़कर लोग बहुत मारते हैं। उसकी सारी सफाई, याचना और दुख मोहल्लेवालों को बनावटी लगता है। उसके कर्म को वे माफी के योग्य नहीं समझते। उसे पकड़कर, मारकर वे पुलिस के हवाले कर देते हैं। पर जब पुलिस थाने में 'मुखई डाकू` को देखते है तो उसकी बहादुरी और चरित्र का गुणगान करने लगते हैं। यदी वह फर्क है जो अमरकांत इस कहानी के माध्यम से दिखाना चाहता हैं।
'लाखो` कहानी की मुख्य पात्र भी लाखों नामक स्त्री है। जिसे उसके घरवाले गंगास्थान के बहाने अनजान जगह छोड़कर चले जाते हैं। लाखो दुबारा अपने घर न जाने का निश्चय करते हुए चुनिया की विवाहिता के रूप में नया जीवन शुरू करती है। पर चुनिया की मृत्यु के बाद वह नौसा और उसकी पत्नी के आग्रह पर उनके साथ रहने लगती है। दोनों पति-पत्नी उसकी खूब सेवा करते हैं। पर जब वह बहकावे में आकर जमीन अपने भतीजे नौसा को लिख देती है तो फिर नौसा व उसकी पत्नी का व्यवहार उसके प्रति पूरी तरह बदल जाता है। उसे मारा-पीटा जाने लगता है और अंत में एक दिन उसकी लाश उन्हीं खतों में मिलती है जिन्हें अपना कहने का अधिकार लाखों खो चुकी थी।
'जाँच और बच्चे` अमरकांत की नवीनत रचना है। अभाव ग्रस्त चनरी और चिरकुट की हालत ऐसी हो गई थी कि उन्हें माँगे भीख भी नहीं मिलती थी। अकाल के दिनों में उनकी हालत बड़ी दयनीय थी। वह खुद कहती है कि, ''....अब लोग लाठी लेकर दौड़ा लेते हैं, गाली देत ेहैं, 'हरामी` मर भुक्खे.... तुम्हारे पास पैसा हो तो ले जाओ.... नहीं तो भाग जाओ।``33 चिरकुट इस भुखमरी को सह नहीं पाता और मर जाता है। सरकारी अधिकारी यह जानना चाहते हैं कि चिरकुट कैसे मरा? चनरी कहती है कि, ''मौउवत आ गई थी, मालिक - काल ले गया।``34 इस तरह निम्न मध्यवर्गीय जीवन में निहित विवशता और निरिहता को अमरकांत चिरकुट और चनरी के माध्यम से सामने लाते हैं।
अमरकांत के उपन्यासों और कुछ कहानियों की उपर्युक्त विवेचना के बाद यह स्पष्ट हो जाता है कि अमरकांत ने अपने कथा साहित्य के माध्यम से निम्न मध्यवर्गीय समाज का व्यापक, विस्तृत और गहरा चित्रण किया है। अपने निम्न मध्यवर्गीय समाज के साथ अमरकांत की पूरी सहानुभूति दिखायी पड़ती है। पर इनकी परिस्थितियों के चित्रण में अमरकांत एकदम निर्मम दिखायी पड़ते हैं। उनकी परिस्थितियों के प्रति निर्ममता ही पात्रों के प्रति सहानुभूति को और तीव्र कर देती है। अमरकांत के निम्न मध्यवर्गीय समाज के पात्रों की संवेदना और व्यवहार मध्यवर्गीय पात्रों की अपेक्षा अधिक स्पष्ट और मानवीय है।