Thursday, 18 February 2010

नयनो से नयनो की बातें ,

नयनो से नयनो की बातें ,
काजल से गहराती रातें,
तिल आखों पे नूर बडाता ,
आखों आखों में तू इतराता ,
मुस्कान तेरी कितनी व्याकुल है ,
आन तेरी मन का कातिल है ,
चेहरे पे तेरी दुविधा रहती है ,
दिल में प्यास छिपी मरती है ,
चंचल चितवन से सपने झरते ,
उलझे दिल से ख्वाब ठहरते ;
आखों में तेरे प्यार की गंगा ,
फिर क्या सोचे और क्यूँ रुकना ,
क्यूँ खुद के अरमानो से लड़ना ,
प्यार के लम्हे कितने मिलतें है ,
हम उनमे भी क्यूँ रुकते है ,
मोहब्बत भी पूजा है यारों ,
ये भी भाव अजूबा है प्यारो /


Wednesday, 17 February 2010

दहेज एक समस्या

वर्तमान समय मे भी दहेज बड़ी समस्या के रूप मे हमारे सामने है । यह समस्या केवल अशिक्षित के परिवालो की नहीं है, बल्कि पढ़े लिखे लोगो की भी यही समस्या है। क्योकि समाज को दीखाने के चक्कर मे हम यह भूल जाते है की हम पढ़े लिखे है। उस वक़्त बस यही ख्याल रहता है की हम कितना समाज को दिखाए ,की हमें कितना मिला है और हमने कितना खर्च किया है। मुझे यह बात अब तक नहीं समझ आयी की हम ऐसा क्यों करते है ।
सबसे बड़ी तकलीफ की बात ये लगती है की जो जितना शिक्षित है वो उतना ही डिमांड करता है । जो गुरु हमे सिखाते है की दहेज लेना और देना दोनों ही बुरी बात है वो भी दहेज लेने और देने मे भी पीछे नहीं हटते।
जो जितना पढ़ा लिखा है वो उतना ही डिमांड करता है। पढने लिखने का क्या मतलब फिर ... जब हम आज भी इतनी छोटी सोच rakhte है। apni सोच को badhao na की apni income को...kam se kam शिक्षित लोगो se to ये umid की ja sakti है।

Tuesday, 16 February 2010

अगस्त ऋषि का आश्रम :एक सुखद अनुभूति

अगस्त ऋषि का आश्रम :एक सुखद अनुभूति********************
        मैं जिस महाविद्यालय में काम करता हूँ,वँही के बाटनी विभाग के अध्यक्ष डॉ.विरेंद्र मिश्र जी मेरे प्रति एक सहज आत्मियता रखते हैं. एक दिन अचानक उन्होंने कहा कि-''चलो अगस्त ऋषि के  आश्रम घूम आते हैं. '' इस पर मेरा पहला सवाल था कि ''अगस्त ऋषि कौन थे ?''मेरी बात के जवाब में उन्होंने जवाब दिया कि-
        १-अगस्त ऋषि दुनियां के सबसे बड़े वैज्ञानिक थे .
       २-अगस्त ऋषि वो थे जिन्होंने पूरे समुद्र को एक घोट में पी लिया था.
       ३-अगस्त ऋषि से मिलने महादेव खुद उनके पास जाते थे .  
       ४-अगस्त ऋषि राम के सहायक भी रहे .
        ५-अगस्त ऋषि के आश्रम में शेर,हिरन,सांप और नेवले  एक साथ रहते थे,पर कोई किसी पर हमला नहीं करता था. 
        ६-उत्तर के विन्ध्य पर्वत का घमंड चूर कर,उसे बढ़ने से रोकने के लिए ही अगस्त ऋषि वापस उत्तर दिशा में नहीं गए.
        ७-महाराष्ट्र का इगतपुरी नामक स्थान  वास्तव में अगस्तपुरी है.अपभ्रंस के कारण अगस्तपुरी से अगतपुरी और अगतपुरी से इगतपुरी  हो गया है . 
                      डॉ.साहब क़ी बातें सुनने के बाद,मुझे भी लगा क़ी मुझे भी अगस्त ऋषि के आश्रम जाना चाहिए. पूरी तैयारी हो  गई. १४ फरवरी क़ी सुबह ५.३४  क़ी लोकल ट्रेन से  मैं,डॉ.वीरेंद्र मिश्र जी और महाविद्यालय के ही श्री कुलकर्णी सर हम लोग कसारा स्टेशन पहुंचे .करीब ७.०० बजे कसारा से हमने  अकोले के लिए बस पकड़ी. इस जगह का मानचित्र आप इस मैप लिंक  पे क्लिक कर के प्राप्त कर सकते हैं.http://maps.google.com/maps/ms?hl=en&ie=UTF8&oe=UTF8&msa=0&msid=108595931755292321391.00047fb79336248d0fe36&
 ll=19.534554,73.787613&spn=0.245259,0.617294&z=११
                                                     कसारा-घोटी-राजुर -अकोले इस तरह बस से लगभग ३.३० घंटे क़ी यात्रा कर के हम अकोले बस स्टॉप पे आ गए. पूरा रास्ता पहाड़ी है.आस-पास का वातावरण मोहक है.वंहा पहुँच कर हमने वहां क़ी मशहूर भेल खाई.और चाय -नाश्ते के बाद  पैदल ही आश्रम क़ी तरफ चल पड़े.हम प्रवरा नदी पे बने पूल को पार कर १० मिनट में आश्रम पर पहुँच गए. 
                आश्रम को अब मंदिर का रूप दे दिया गया है. पास ही शिव जी का मंदिर भी है.इमली के कई पेड़ आश्रम के पास हैं. आस-पास गन्ने,आलू,टमाटर,बाजरी और केले के खेत भी दिखे .आश्रम के आस-पास बस्ती भी आ गई  है. पास में ही एक गुफा का रास्ता है,जिसके  बारे में कहा जाता है क़ी राम और सीता इसी गुफा से अगस्त ऋषि के पास आये थे.उस गुफा के बगल में पानी के दो कुण्ड भी हैं,जिनमे  अब कृतिम रूप से पानी छोड़ा जाता है. 
           आश्रम के अंदर मुख्य स्थल पे अगस्त ऋषि क़ी जागृत समाधि है. जंहा अब उनकी मूर्ति भी स्थापित कर दी गई है. उसी के आस-पास  अगस्त ऋषि से सम्बन्धित कई बातों का उल्लेख चित्रों के माध्यम से किया गया है.आस-पास काफी शांति है. उस स्थल पे जाकर एक आंतरिक सुख क़ी अनुभूति हुई,जिसे शब्दों में ,कह पाना मुश्किल है.
          वंहा से वापस आने का मन तो नहीं कर रहा था,लेकिन कसारा के लिए अंतिम बस शाम ४.०० बजे क़ी थी.हम लोग वापस अकोले बस स्टॉप पे आ गए.चाय-नास्ता किया.फिर ४.०० बजे क़ी बस से वापस हो लिए.मन में कई सवाल थे,लेकिन चित्त शांत था.मानों हमने कोई  बहुत ही मूल्यवान वस्तु प्राप्त कर ली हो. 
आप को भी मौका मिले तो इस आश्रम में एक बार अवस्य जाएँ .अकोले में कई होटल और लाज  हैं,जंहा आप रुक भी सकते है.

Saturday, 13 February 2010

बात जिद की नहीं है यार मेरे ,

बात जिद की नहीं है यार मेरे ,
वो अहसास है दिल के खास मेरे ;
जो रग रग में बसता खूं में बहता ,
वो प्यार है तेरा दिलदार मेरे ,
प्यार तेरा खुशियाँ हैं मेरी ,
साथ तेरा दुनिया है मेरी ,
प्यार मेरा ही जिद है मेरी ,
कैसे त्यागूँ तू सांसे है मेरी ,
कैसे ना मांगू साथ तेरा ,
कैसे ना चाहूँ प्यार तेरा ,
मेरे आखों की दृष्टि तू है ,
मेरे जीवन की सृष्टी तू है ,;
बात जिद की नहीं है प्यार मेरे ,
तुझसे मेरी खुशियाँ हैं दिलदार मेरे /

,वेलेंटाइन वही है

जो याद आता है तन्हाई में,वेलेंटाइन वही है
 जो चुराता है नीदें मेरी,वेलेंटाइन वही है .

 दूर हो के भी जो पास रहे,वेलेंटाइन वही है
 जो लगे सब से प्यारा हमेशा,वेलेंटाइन वही है .

जिसे मैं कहता अपना खुदा,वेलेंटाइन वही है
 सजाता जिसके लिए सपने,वेलेंटाइन वही है .

जिसकी आँखों में डूब जाऊं,वेलेंटाइन वही है
 जिसकी जुल्फों तले सो जाऊं,वेलेंटाइन वही है .

 जिसका साथ चाहूं जिन्दगी भर,वेलेंटाइन वही है
 जो बने हमसफ़र हर राह में,वेलेंटाइन वही है  .

जिसकी खुसबू हो साँसों में ,वेलेंटाइन वही है
 जो गीतों सी मीठी हो,वेलेंटाइन वही है .

 जो हो सौन्दर्य की परिभाषा,वेलेंटाइन वही है
 जो लगे मुझे मेरी राधा सी ,वेलेंटाइन वही है

Friday, 12 February 2010

उससे क्यों ये हाल छुपायें ?

इस दुनिया की हम क्यों माने?
गुनाह इश्क को क्यों जाने ?  

 दिल की बातो को आखिर ,
 क्यों कर सब से हम छुपायें ?

अपनी मर्जी से अपना  जीवन ,
 बोलो क्यों ना जी पायें ?

लगी लगी है दिलमे जो ,
 आखिर उसको क्यों न बुझाएँ ?

 जिसको प्यार किया है मैंने ,
उससे क्यों ये हाल छुपायें ?
  

हिंदी में संचालन का शौख/part 2

अपने पहले पोस्ट --- हिंदी में संचालन का शौख/part 1  के माध्यम से कुछ उम्दा  काव्य पंक्तियाँ और शेर पहुचाने की जो जिम्मेदारी मैंने ली थी ,उसी कड़ी में कुछ और शेर और काव्य पंक्तियाँ यंहा दे रहा हूँ. आशा और विश्वाश है की आप को ये पसंद आएँगी .
सच की राह पे बेशक चलना ,पर इसमें नुकसान बहुत है 
 उन राहों पे ही चलना मुश्किल,जो राहें आसन बहुत हैं.
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 मेरा दुःख ये है की मैं अपने साथियों जैसा नहीं हूँ,
 मैं बहादुर तो हूँ लेकिन,हारे हुए लश्कर में हूँ . 
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 हमे खबर है की हम हैं चिरागे-आखिरी -शब्,
 हमारे बाद अँधेरा नहीं उजाला है. 
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 किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते,
 जब सवाल ही गलत थे तो जवाब क्या देते .  
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 बीते मौसम जो साथ लाती हैं  
वो हवाएं कंहा से आती हैं 
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 कोई सनम तो हो ,कोई अपना खुदा तो हो 
 इस दौरे बेकसी में ,कोई अपना आसरा तो हो 
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 क्यों न महके गुलाब आँखों में,
 हम ने रखे हैं ख़्वाब आँखों में .
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 हम तेरी जुल्फों के साए को घटा कहते हैं
 इतने प्यासे हैं की क्या कहना था ?क्या कहते हैं ?
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 मेरी ख्वाइश है की फिर से फ़रिश्ता हो जाऊं 
 माँ से इस तरह लिपट जाऊं की बच्चा हो जाऊं 
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 आदमी खोखले हैं पूस के बदल की तरह ,
 सहर मुझे लगते हैं आज भी जंगल की तरह .
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 जिन्दगी यूं भी जली ,जली मीलों तक 
 चांदनी चार कदम,धूप चली मीलों तक 
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 कोई ऐसा जंहा नहीं होता 
 दोस्त-दुश्मन कंहा नहीं होता 
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 आगे भी ये सिलसिला जारी रखूँगा .आप को ये संकलित शेर कैसे लगे ?
 

उर्दू के प्रख्यात शायर श्री अफसर दकनी जी

उर्दू के  प्रख्यात शायर श्री अफसर दकनी जी की गजलों की पुस्तक ''मिट्टी की महक '' को पढने का अवसर मिला .यह पुस्तक पढ़ कर मैंने यह महसूस किया कि दरअसल अफसर दकनी जी जिस मिट्टी की महक की बात कर रहे हैं,उस मिट्टी के इतने रंग हैं की पूरी की पूरी इंसानियत का वजूद उनमे तलाशा जा सकता है. भारतीयता की जो महक दकनी जी की नज्मों में है ,वह किसी को भी अपना कायल बना सकता है. 
          
   बात जब उर्दू की होती है तो अक्सर लोंगो को यह भ्रम होने लगता है कि बात किसी ऐसी भाषा की हो रही है जो हिंदी से अलग है ,जबकि मेरा यह मानना है कि हिंदी और उर्दू की संस्कृति गंगा-जमुनी संस्कृति है .जिसका  संगम स्थान यही हमारा महान भारत देश है. अगर हम भाषा विज्ञानं की दृष्टि से देखे तो भी यह बात साबित हो जाती है. जिन दो भाषाओँ की क्रिया एक ही तरह से काम करती है ,उन्हें दो नहीं एक ही भाषा के दो रूप समझने चाहिए. हिंदी और उर्दू की क्रिया पद्धति भी एक जैसी ही हैं ,इसलिए इन्हें भी एक ही भाषा के दो रूप मानना चाहिए. हिन्दुस्तानी जितनी संस्कृत निष्ठ होती गयी वह उतनी ही हिंदी हो गयी और इसी हिन्दुस्तानी में जितना अरबी और फारसी के शब्द आते गए वह उतना ही उर्दू हो गई.अंग्रेजों ने इस देश में भाषा को लेकर जो जहर बोया ,वही सारी विवाद की जड़ है. इसलिए हमे हिंदी-उर्दू का कोई भेद किये बिना ,दोनों को एक ही समझना चाहिए,तथा इन भाषाओँ में जो भी अच्छा लिखा जा रहा है,उसकी खुल के तारीफ भी करनी चाहिए. 
                 जंहा तक बात गजलों की है तो ,यह तो साफ़ है की इस देश की फिजा गजलों को बहुत पसंद आयी. हमारे यहाँ गजलों का एक लम्बा इतिहास है,जो की बहुत ही समृद्ध है. ग़ज़ल प्राचीन गीत -काव्य की एक ऐसी विधा है,जिसकी प्रकृति सामान्य रूप से प्रेम परक होती है. जो अपने सीमित स्वरूप तथा एक ही तुक की पुनरावृत्ति के कारण पूर्व के अन्य काव्य रूपों से भिन्न होती है.ग़ज़ल मूलरूप से एक आत्म निष्ठ या व्यक्तिपरक काव्य विधा है.ग़ज़ल का शायर वही ब्यान करता है जो उसके दिल पे बीती हो.इसीलिए तो कहा जाता है क़ि ''उधार के इश्क पे शायरी नहीं  होती.'' किसी का शेर है क़ि-
              हमपर दुःख का पर्वत टूटा,फिर हमने शेर दो-चार लिखे 
              उनपे भला क्या बीती होगी,जिसने शेर हजार लिखे . 
 उर्दू कविता क़ि सबसे अधिक लोकप्रिय विधा ग़ज़ल है.भारत में इसकी परम्परा लगभग चार सदियों से चली आ रही है. ''वली''दकनी इसका जनक  माना जाता है.ग़ज़ल की जब शुरुआत हुई तो वह हुश्न और इश्क तक ही सीमित था,लेकिन समय के साथ -साथ इसका  दायरा भी बढ़ता गया. आज जीवन का कोई ऐसा विषय नहीं है जिसपर सफलता पूर्वक ग़ज़ल ना कही जा रही हो.
                                                                                         आज हम देखते हैं की कई भारती भाषाओँ में ग़ज़लें सफलता पूर्वक लिखी जा रही है. हिंदी,मराठी,गुजराती,भोजपुरी,सिन्धी,पंजाबी,कश्मीरी,नेपाली,संस्कृत,
 बंगाली,उड़िया,राजस्थानी और डोगरी जैसी भाषाओँ में भी ग़ज़ल लिखी और सराही जा रही है . मुझे ख़ुशी है की अफसर दकनी जी ने अपनी नज्मों को हिंदी में प्रकाशित कराया,हम जैसे लोग इस कारण ही इनकी नज्मों को पढने का आनंद ले पा रहे हैं.
 दकनी जी अपनी गजलों के माध्यम से अपना भोगा हुआ यथार्थ ही चित्रित करते हैं. यही कारण है की उनकी गजलों में इतनी गहराई और विश्वसनीयता है. आप की ग़ज़लें संवेदना के स्तर पे हर आदमी को झकझोर देती हैं .अपनी वालिदा मोहतरमा को अपनी जिन्दगी का सरमाया समझने वाले दकनी जी माँ नाम से अपनी एक नज्म शुरू करते हुए लिखते हैं क़ि-
        ''तेरे साए में मुझ को राहत है माँ 
        तेरे पाँव के नीचे जन्नत है माँ''
 अपनी माँ के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति रखने वाले दकनी जी को भारतीय सभ्यता और संस्कृति विरासत में मिली है .वे माता के चरणों में ही स्वर्ग देखते हैं .आप क़ि गजलों से यह भी साफ़ मालूम पड़ता है क़ि आप एक खुद्दार व्यक्ति हैं .चंद शेर देखें --
          उधर साथ उनके जमाना रहा 
          मै मजबूर तन्हा था तनहा रहा .
       *****************************
        पहुँच पाई मुझ तक न -दुनिया कभी 
         मेरा कद था ऊँचा सो ऊँचा रहा.
 ************************************
 अपने दुश्मन को भी दुश्मन नहीं समझा मैंने 
 जिन्दगी तू भी तो वाकिफ मेरे हालात से है .
मुझको दुनिया क़ी तवज्जो क़ी जरूरत क्या है 
 तू जो आगाह इलाही मेरे हालात से है .
 ******************************************
      दकनी जी ने जिन्दगी के अनुभवों को जिस खूबसुरती के साथ शब्दों में पिरोया है,वो हर किसी के बस क़ी बात नहीं है. आप क़ी अधिकाँश रचनाएँ प्रेम और इश्क से सम्बंधित हैं.लेकिन उनकी तासीर दार्शनिक है,स्पस्ट है क़ि आप का सोचने -समझने का तरीका बड़ा ऊंचा है.प्रेम क्या है ? इसे तो वो भी नहीं बता सकता जो खुद प्रेम करता है. यह अनुभूति का विषय है.लेकिन इस दुनिया में हर कोई इतना खुशनसीब नहीं होता क़ि उसे प्रेम मिले.प्रेम इश्वर का आशीष है.प्रेम ही इश्वर है,और ईश्वर ही प्रेम है. प्रेम वासना से कंही आगे अपने आप को परे करते हुए दूसरों के लिए जीने का नाम है.प्रेम इंसानियत का आधार है.इसलिए प्रेम के भाव से भरा हुआ व्यक्ति उदार,करुनामय ,शांत चित्त,व्यापक सोचवाला और कर्तव्य परायण होता है.दकनी जी के हृदय में प्रेम का भाव है ,जो इस बात का प्रमाण है क़ि वे अपने विचारों में संकुचित नहीं हो सकते.
                  मेरी शुभ कामनाये दकनी जी के साथ हैं. आप लोंगो को भी यह पुस्तक जरूर पसंद आएगी ,इसका मुझे विश्वाश है.
 

त्योहारों का ये देश पुराना /

अलसाया मौसम ,पुरजोर वसंत ,
अरमानो की जोरा-जोरी है ,
बासन्ती मन है बहका तन है ,
अहसासों ने मांग सजोई है ;
तेरी आखों में उगता सपना ,
सांसों संग सिने का उठना गिरना ,
बता रही अभिलाषा तेरी ,
तेरे चेहरे की रंगत बड़ना ,
त्योहारों का ये देश पुराना ,
डे मनाना पश्चिम में लोंगों ने अब है जाना ,
होली मना रहे हम सदियों से,
valentine लोंगों ने अब है जाना ,
अपनो संग रंगों में रंगित होना ,
अबीर गुलाल और पानी से तन भिगोना ,
उज्जवलित काम है ,उन्मुक्त मांग है ,
फिर भी सीमाओं से हंसती शाम है ,
अपनो के कोलाहल में ,रंग लगाते गालों को छूना ,
आखों आखों में प्यार फेकना ,
नीला पीला लाल वो चेहरा साथ ही उसपे हंसी थिठोला,
मौका तकना रंगों से उसका तन भिगोना ,
खुल के हसना प्रीतम का अहसास समझना ,
पल भर का शरमाना फिर मस्ती में रमना ,
होली का अदभुत नजराना ,
त्योहारों का ये देश पुराना ,
डे को पश्चिम ने अब सिखा मनाना /

Wednesday, 10 February 2010

मेरे नाल पर

अगर  आप मेरे आलेख मेरे नाल पर भी पढना चाहते हैं तो इस लिंक पे क्लिक कर के पढ़ सकते हैं http://knol.google.com/k/manish-mishra/-/1v5yjwuiqni1h/25#एडिट 
       यह एक ऐसी व्यवस्था है जंहा आप कम शब्दों में अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का मौका पायेंगे .इसका कवर पजे इस प्रकार है.---
     आप भी  आइये  और  इसे  ज्वाइन कीजिये .

हिंदी में संचालन का शौख/part 1

यदि आप  हिंदी में  संचालन का शौख रखते हैं तो आप को निम्नलिखित  शेरों  एवं काव्य पंक्तियों से  काफी मदद  मिलेगी . ये  मेरे लिखे हुए नहीं हैं .इन्हें  तो मै बस  संचालकों की सुविधा  के लिए दे रहा हूँ .
 १- खुदी को  कर बुलंद इतना,
    की हर तकदीर से पहले,
    खुदा बन्दे से खुद पूछे ,
    बता तेरी रजा क्या है .

२- ज़माने को जन्हा तक पहुंचना था,वो पहुँचता रहा
    मेरा कद  ऊँचा था सो ऊँचा ही रहा .
 ३-कुछ लोग थे जो वक्त के सांचे में बदल गए
    कुछ लोग थे जो वक्त के सांचे बदल गए .
४-प्यास तो रेगिस्तान को भी लगती है ,
  लेकिन हर नदी सागर से ही मिलती है.
 ५- जालिम का कोई धर्म या ईमान नहीं होता,
     जालिम कोई भी हिन्दू या मुसलमान नहीं होता .
६-बचपन से सुनते आया था ,की वो घर सलमान का है
   लेकिन दंगो के बाद ये जाना की ,वो मुसलमान का घर है .
 ७-कौन कहता है की आसमान में सुराग हो नहीं सकता,
    एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों .
 ८-खाली बोतल ,टूटी चूड़ी ,कपडे फटे पुराने से
    हम ने सुना है हुए बारामत,मंदिर के तहखाने से .
 ९-इस शहर में सब से झुक के मिलना ,उनकी मजबूरी है
    क्योंकि इस शहर में कोई उनके बराबर का नहीं है.
 १०-अपनी ही आहुति दे कर,स्वयं प्रकाशित होना सीखो
     यश-अपयश जो भी मिल जाए,सब को हंस के लेना सीखो .
११-मेहर बाँ हो के बुला लो,चाहो जिस वक्त
   मैं गया वक्त नहीं,जो लौट के आ भी न सकूँ .

अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष

          अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष डॉ. मनीष कुमार मिश्रा प्रभारी – हिन्दी विभाग के एम अग्रवाल कॉलेज , कल्याण पश्चिम महार...