उज्बेकिस्तान में हिंदी के वैश्विक प्रचार- प्रसार को लेकर ऐसा बहुत कुछ हो रहा है जो हमें खुश कर सके । हिंदी के वैश्विक रूप के संदर्भ में ये दरअसल हमारे देखे हुए ख्वाब हैं जिसे उज़्बेकिस्तान और भारत के लोग मिलकर साकार कर रहे हैं । हिंदी उज़्बेकी के रिश्ते का नयापन और उनकी भाषायी कशीदाकारी का यह जाल एक ऐसे ताने-बाने को बुन रहा है जो दोनों देशों के हित में है । दोनों तरफ के साहित्यिक विद्वान जिस तरह आदान-प्रदान के कार्य में अनुवाद के माध्यम से लगे हुए हैं, उसमें यह निश्चित कर पाना बड़ा मुश्किल सा लगता है कि कौन किसका ज्यादा मुरीद है । ऐसा लगता है कि एक दूसरे की भाषा के जादू में सम्मोहित होने की हद तक काम हो रहा है । यह फैलाव और प्रभाव निश्चित तौर पर भविष्य में एक नई दिशा का आगाज होगा । पसर जानेवाली मुस्कान की तरह हिंदी उज़्बेकियों के दिल को छू रही है और भाषा के स्तर पर इन दोनों ही देश में अभी एक-दूसरे को आजमाने की बहुत गुंजाइश है । इन दोनों देश के लोगों के बीच की स्वभावगत उदारता और किरदार का बड़प्पन इन्हें बेहतरीन की तलाश में एक साथ लाया है ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
सहायक प्राध्यापक – हिन्दी विभाग
के.एम.अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण, महाराष्ट्र ।
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