Thursday, 3 September 2015

अपना दृष्टिकोण बदलना होगा ।

सेमिनारों /संगोष्ठियों को लेकर अब मुझे लगता है कि हमें अपना दृष्टिकोण बदलना होगा । हमें यह समझना होगा कि आयोजक हमारा रिश्तेदार नहीं है जो वो हमारी अगवानी में बिछा पड़ा रहे । यह एक शैक्षणिक कार्य है ना की पारिवारिक समारोह ।
भाग लेना हमारी शैक्षणिक जरुरत भी है और जिम्मेदारी भी । हम मुफ्तखोरी से अपने आप को बचाएं और आयोजकों को भी तो शायद इस तरह के आयोजन अधिक सहज सरल और महत्वपूर्ण बन सकेंगे । 
इधर विदेशों के कुछ आयोजकों द्वारा आयोजित संगोष्ठियों को देखकर दंग रह गया ।
आप बीज वक्ता हों तब भी आप को पंजीकरण करवाना है और आने जाने,रहने खाने का व्यय भी खुद करना है । 
इतनी सादगी से आयोजन होते हैं क़ि क्या कहूं । शायद यही सही तरीका भी हो ।

No comments:

Post a Comment

Share Your Views on this..

डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित

 डॉ मनीष कुमार मिश्रा अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित  दिनांक 16 जनवरी 2025 को ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज ...