उनके साथ चलना चाहता था
कुछ देर तक इसीलिए
ज़रूरी हर काम
कुछ समेटकर ,
कुछ छोड़कर चल दिया ।
फ़िर उनसे मासूम सा सवाल किया -
आप भी चल रही हैं ?
वो मेरी आंखो की शोधार्थी,
मुस्कुराती हुई बोली –
ज़रूरी हर काम कर लिया या फ़िर
मुझे देखकर
बस, सब छोड़कर आ गए ।
बात तो सच थी ।
काश मैं उसके लिए
ज़िंदगी भर के लिए
बस उसे देखकर
सबकुछ छोडकर जा पाता ।
bilkul sahi hai sir ji. kisi ke liye sab kuch chod dena aasan nahi hota.
ReplyDelete....my self purnima pandey