ONLINE HINDI JOURNAL
Friday, 4 November 2011
क्या कहे लोग अपने ही थे ,
शब्दों से खेल रहे ,
भावों को तौल रहे ,
लोग वो अपने ही ,
जिंदगी यूँ हम अपनी झेल रहे .
राहों के दरमयान कब सड़के बदल डाली ,
बातों ही बातों में शर्ते बदल डाली ,
क्या कहे लोग अपने ही थे ,
क्यूँ रश्मे बदल डाली .
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