सिलसिला जब तक चलता रहा
मेरा हौसला तब तक बढ़ता रहा
उसका तो कुछ पता न था ,
मेरे अंदर ही ख़्वाब पलता रहा .
ये उसके प्यार की खुशबू थी,
मैं जिससे हरदम महकता रहा .
उसकी आँखों से जो पी लिए जाम,
ताउम्र मै बस बहकता रहा .
सुना है, मेरे बाद ,कई रातों तक ,
वह चाँद , छत पर सिसकता रहा .
एक दर्जी की तरह जिन्दगी भर ,
मैं फटे रिश्तों को सिलता रहा .
No comments:
Post a Comment
Share Your Views on this..