Wednesday, 19 March 2025

आचार्य श्रीराम शर्मा (1911-1990)

  आचार्य श्रीराम शर्मा (1911-1990) भारतीय संत, योगी और समाज सुधारक थे, जिनकी जीवन यात्रा ने भारतीय समाज के अनेक पहलुओं में बदलाव की लहर पैदा की। वे हिंदू धर्म के महान प्रवर्तक और आदर्शवादी थे। उन्होंने जीवन के विभिन्न पहलुओं को सरलता, शांति और परमात्मा के प्रति भक्ति की दृष्टि से समझने की कोशिश की। आचार्य राम शर्मा का योगदान न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से था, बल्कि उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों और सामाजिक असमानताओं को दूर करने के लिए भी निरंतर प्रयास किए। इस लेख में हम आचार्य श्री राम शर्मा के जीवन, उनके कार्यों और उनके योगदान को विस्तार से जानेंगे।

1. प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

आचार्य श्री राम शर्मा का जन्म २० सितम्बर १९११ को उत्तर प्रदेश के आलमनगर नामक स्थान में हुआ था। उनका प्रारंभिक जीवन बेहद साधारण था, लेकिन उन्होंने बचपन से ही अपनी बुद्धिमत्ता और आध्यात्मिक जागरूकता को दिखाया। उनके माता-पिता एक सामान्य किसान परिवार से थे, लेकिन उनके अंदर से जो अद्वितीय ज्ञान और समझ का स्रोत निकला, वह उनके जीवन के मार्ग को प्रबुद्ध कर गया।

आचार्य श्री राम शर्मा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने घर के पास के स्कूल से प्राप्त की थी। वे अत्यधिक जिज्ञासु थे और हमेशा नई चीजों को जानने के लिए प्रेरित रहते थे। प्रारंभ में उन्हें धार्मिक पुस्तकों और वेदों का अध्ययन करने का अवसर मिला, जो बाद में उनके जीवन का आधार बने।

2. तात्त्विक और धार्मिक दृष्टिकोण

आचार्य श्री राम शर्मा ने भारतीय धार्मिक परंपराओं को एक नए दृष्टिकोण से देखा। वे वेदों, उपनिषदों, और भगवद गीता के गहरे अध्येता थे, लेकिन उन्होंने इन ग्रंथों को केवल एक धार्मिक काव्य या आदर्श नहीं समझा, बल्कि उन्हें जीवन के वास्तविक संघर्षों और समस्याओं के समाधान के रूप में देखा। उनका मानना था कि धर्म का उद्देश्य केवल पूजा-अर्चना और कर्मकांडों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि समाज में व्याप्त असमानताओं और अन्याय के खिलाफ संघर्ष करना भी उसका अभिन्न हिस्सा होना चाहिए।

उनका तात्त्विक दृष्टिकोण भी सरल और व्यावहारिक था। उन्होंने एक सशक्त समाज की आवश्यकता पर जोर दिया, जहां सभी लोग समान अधिकारों का享वित करें और धार्मिक विश्वास के नाम पर किसी को भी शोषित या उत्पीड़ित न किया जाए। उन्होंने यह सिद्ध किया कि केवल बाहरी धार्मिक दिखावे से आत्मा की शुद्धि नहीं होती, बल्कि अपने कर्मों और आचरण में सत्यता और नैतिकता का पालन करना महत्वपूर्ण है।

3. यज्ञ आंदोलन और आचार्य श्री राम शर्मा का योगदान

आचार्य श्री राम शर्मा ने एक विशाल यज्ञ आंदोलन की शुरुआत की, जो भारतीय समाज के बदलाव की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम था। यज्ञ उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया, और उन्होंने इसके माध्यम से भारतीय संस्कृति के प्राचीन तत्वों को पुनः जीवन्त करने का कार्य किया। यज्ञ को उन्होंने न केवल धार्मिक अनुष्ठान के रूप में देखा, बल्कि समाज के लिए एक शुद्धता और सद्गुण का माध्यम भी माना।

आचार्य श्रीराम शर्मा के यज्ञ आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन लाना था। उन्होंने यह मान्यता दी कि यज्ञों के माध्यम से सामाजिक उत्थान, मानसिक शांति और जीवन में स्थिरता लाई जा सकती है। इसके अलावा, उन्होंने यज्ञों को धार्मिक अनुष्ठान से बाहर निकालकर समाज के हर वर्ग तक पहुँचाने का प्रयास किया। यह आंदोलन आज भी अनेक स्थानों पर जारी है और इसके प्रभाव से समाज में अनेक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले हैं।

4. गायत्री परिवार और इसके उद्देश्यों का प्रचार

आचार्य श्रीराम शर्मा का एक और महत्वपूर्ण कार्य था गायत्री परिवार का गठन। गायत्री मंत्र, जो भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, को उन्होंने साधारण जनमानस तक पहुँचाने के लिए विशेष रूप से प्रचारित किया। उनका मानना था कि गायत्री मंत्र के नियमित जाप से व्यक्ति को मानसिक शांति और आत्मिक उन्नति प्राप्त हो सकती है।

गायत्री परिवार का उद्देश्य था समाज में एकता, शांति और मानवता के सिद्धांतों को फैलाना। उन्होंने यह देखा कि वर्तमान समाज में अधिकतर लोग भौतिकता और तात्कालिक सुखों की ओर बढ़ रहे हैं, जबकि उन्हें अपने आत्मिक विकास पर ध्यान देना चाहिए। गायत्री मंत्र और इसके तात्त्विक उद्देश्य ने भारतीय समाज को एक नए दिशा में प्रेरित किया, जहां आध्यात्मिकता और सामाजिक सुधार एक साथ आगे बढ़े।

5. सामाजिक सुधार और परिवर्तन

आचार्य श्रीराम शर्मा ने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों और असमानताओं को समाप्त करने के लिए निरंतर संघर्ष किया। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों को लेकर कई आंदोलन किए, और यह सुनिश्चित किया कि समाज में हर वर्ग को समान अवसर प्राप्त हो। उनका मानना था कि एक सशक्त और प्रबुद्ध समाज तभी बन सकता है, जब प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिले।

उन्होंने अंधविश्वास, पाखंड और जादू-टोना के खिलाफ भी आवाज उठाई। वे यह मानते थे कि समाज में जो भी धार्मिक कुरीतियाँ फैली हैं, उनका निराकरण केवल शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से ही संभव है। उन्होंने अपने यज्ञ और प्रवचनों के माध्यम से लोगों को यह समझाया कि धर्म का वास्तविक उद्देश्य केवल मुक्ति प्राप्त करना नहीं है, बल्कि समाज के हर व्यक्ति को सम्मान और सुरक्षा देना है।

6. पुस्तकें और लेखन

आचार्य श्रीराम शर्मा का लेखन भी अत्यंत प्रभावशाली था। उन्होंने कई पुस्तकें और लेख लिखे, जिनमें उन्होंने भारतीय संस्कृति, धर्म, और समाज के सुधार के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। उनकी प्रमुख पुस्तकों में "गायत्री महिमा", "साधना के रहस्य", "समाज सुधार" और "यज्ञ के उद्देश्य" जैसी पुस्तकें शामिल हैं। इन पुस्तकों के माध्यम से उन्होंने लोगों को आत्म-सुधार की दिशा में मार्गदर्शन किया और उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास किया।

7. अंतिम समय और धरोहर

आचार्य श्रीराम शर्मा का निधन 1990 में हुआ, लेकिन उनका प्रभाव आज भी भारतीय समाज में गहरा है। उनके द्वारा स्थापित किए गए संगठन, जैसे गायत्री परिवार, आज भी उनके द्वारा किए गए कार्यों और दृष्टिकोण को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके विचारों ने भारतीय समाज को एक नया दृष्टिकोण दिया, जो आज भी लोगों के जीवन में परिवर्तन ला रहा है।

आचार्य श्री राम शर्मा की धरोहर केवल उनके विचारों और उनके द्वारा किए गए कार्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके द्वारा स्थापित किए गए संगठन और उनके अनुयायी उनके जीवन के मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं। उनका जीवन यह सिखाता है कि यदि व्यक्ति अपने उद्देश्य के प्रति सच्चा और समर्पित होता है, तो वह समाज में बड़े बदलाव ला सकता है।

भारतीय ज्ञान परंपरा और उज़्बेकिस्तान: भाग एक

भारतीय ज्ञान परंपरा और उज़्बेकिस्तान: भाग एक 


                    भारतीय ज्ञान परंपरा अपनी प्राचीनता और व्यापकता में अद्वितीय है। यह केवल धार्मिक और आध्यात्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक, साहित्यिक और तकनीकी रूप से भी समृद्ध रही है। आज के वैश्वीकृत समाज में, भारतीय ज्ञान परंपरा की पुनः खोज और प्रचार-प्रसार आवश्यक है ताकि यह भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहे। भारतीय ज्ञान परंपरा हजारों वर्षों से मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है। इसकी जड़ें वेदों, उपनिषदों, पुराणों, आयुर्वेद, गणित, खगोल विज्ञान, साहित्य और दर्शन में गहराई से जुड़ी हैं। यह परंपरा न केवल भारतीय समाज को दिशा देने में सहायक रही है, बल्कि पूरे विश्व पर इसका प्रभाव पड़ा है। दूसरी ओर, उज़्बेकिस्तान ऐतिहासिक रूप से भारत के साथ गहरे सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंधों से जुड़ा रहा है। सिल्क रूट (रेशम मार्ग) के माध्यम से हुए व्यापार, बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार और इस्लामी ज्ञान परंपरा के विकास में इन दोनों सभ्यताओं का योगदान अविस्मरणीय है। 

               भारतीय ज्ञान परंपरा चार वेदों - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद - से जुड़ी है। इसके अलावा, ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद, पुराण, महाकाव्य (रामायण और महाभारत) और अन्य ग्रंथों में विज्ञान, गणित इत्यादि विषयों से संबन्धित ग्रंथ आते हैं । ऋग्वेद विश्व की सबसे प्राचीन ज्ञात साहित्यिक रचना है, जिसमें ऋचाओं के माध्यम से ब्रह्मांड, देवताओं और यज्ञ पर चर्चा की गई है।ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञ संबंधी विस्तार मिलता है, जबकि उपनिषदों में अद्वैतवाद और आत्मा-परमात्मा के गूढ़ तत्वों पर विचार किया गया है। इसी तरह यजुर्वेद में यज्ञों की विधियाँ वर्णित हैं। सामवेद में संगीत और छंद पर विशेष ध्यान दिया गया है। अथर्ववेद में चिकित्सा, तंत्र और जादू-टोने संबंधी ज्ञान मिलता है।, खगोलशास्त्र, चिकित्सा और दर्शन का विस्तृत उल्लेख मिलता है। भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य ने शून्य की खोज, दशमलव प्रणाली, बीजगणित और त्रिकोणमिति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सुश्रुत और चरक संहिता में चिकित्सा और शल्य चिकित्सा के विस्तृत वर्णन मिलते हैं। सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत जैसे भारतीय दर्शन शास्त्रों ने तर्क और ज्ञान परंपरा को समृद्ध किया। वराहमिहिर और आर्यभट्ट ने खगोलीय गणनाओं में योगदान दिया, जिसका प्रभाव मध्य एशिया और इस्लामी विज्ञान पर भी पड़ा। 

Tuesday, 18 March 2025

ताशकंद के इन फूलों में

 

ताशकंद के इन फूलों में केवल मौसम का परिवर्तन नहीं,

बल्कि मानव जीवन का दर्शन छिपा है। फूल यहाँ प्रेम, आशा, स्मृति, परिवर्तन और क्षणभंगुरता के प्रतीक हैं।उनकी बहार दिल के भीतर छिपी सूनी जमीन पर भी रंग और सुवास बिखेर जाती है। जैसे थके पथिक को किसी अनजानी जगह अपना गाँव दिख जाए — वही अपनापन, वही मिठास।फूलों की झूमती डालियाँ — जीवन के उतार-चढ़ाव की छवि,कभी तेज़ हवा में झुकतीं, तो कभी सूर्य की ओर मुख उठातीं।उनमें नश्वरता का भी बिंब है —पलभर की खिलावट, फिर मुरझाना,मानो कहती हों, "क्षणिक जीवन में ही सौंदर्य है।"

हवा में तैरती सुगंध — कोई इत्र नहीं,बल्कि बीते समय की स्मृतियाँ,

जो अनायास ही मन के बंद दरवाजों को खोल देती हैं।हर फूल — एक कविता, हर पंखुड़ी — एक अधूरी प्रेम-कहानी।फूलों की इस बहार में एक सन्देश छुपा है —

रंग भले अलग हों, खुशबू एक-सी होती है,

जैसे जीवन में विभिन्नता के बावजूद,

मूल में प्रेम, शांति और सुंदरता की गूँज होती है।










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डॉ. मनीष कुमार मिश्रा

 




डॉ. मनीष कुमार मिश्रा एक प्रतिष्ठित हिंदी विद्वान, लेखक और विशेषज्ञ हैं, जो वर्तमान में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के हिंदी अध्यक्ष ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में साहित्यिक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। उनका कार्य हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ भारत और उज़्बेकिस्तान के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा एक प्रतिष्ठित हिंदी साहित्यकार और शिक्षाविद् हैं। उनका जन्म 9 फरवरी 1981 को वसंत पंचमी के दिन हुआ था। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. (स्वर्ण पदक सहित) वर्ष 2003 में, बी.एड. वर्ष 2005 में, 'कथाकार अमरकांत: संवेदना और शिल्प' विषय पर पीएच.डी. वर्ष 2009 में, एमबीए (मानव संसाधन) वर्ष 2014 में, और एम.ए. अंग्रेजी वर्ष 2018 में पूर्ण किया है।

वर्तमान में, डॉ. मिश्रा के एम अग्रवाल महाविद्यालय, कल्याण पश्चिम, महाराष्ट्र में हिंदी विभाग में सहायक आचार्य के रूप में कार्यरत हैं, जहाँ वे 14 सितंबर 2010 से सेवा दे रहे हैं। उन्होंने 'भारत में किशोर लड़कियों की तस्करी' और 'हिंदी ब्लॉगिंग' जैसे विषयों पर महत्वपूर्ण शोध परियोजनाएँ पूरी की हैं। इसके अलावा, वे यूजीसी रिसर्च अवार्डी (RA) के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में जनवरी 2014 से जनवरी 2016 तक कार्यरत रहे हैं। 

डॉ. मिश्रा ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में 67 से अधिक शोध आलेख प्रकाशित किए हैं और 150 से अधिक संगोष्ठियों में सहभागिता की है। उन्होंने 10 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का सफल आयोजन भी किया है। उनकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकों में 'अमरकांत को पढ़ते हुए' (2014), 'इस बार तुम्हारे शहर में' (कविता संग्रह, 2018), और 'अक्टूबर उस साल' (कविता संग्रह, 2019) शामिल हैं। 

पूरा नाम: डॉ. मनीष कुमार मिश्रा

जन्म तिथि: 9 फरवरी 1981 (वसंत पंचमी के दिन)

जन्म स्थान: सुलेमपुर , जौनपुर, उत्तर प्रदेश 

शिक्षा:

एम.ए. हिंदी - मुंबई विश्वविद्यालय से, 2003 (स्वर्ण पदक प्राप्तकर्ता)

बी.एड. - 2005 में पूर्ण किया

पीएच.डी. - 2009 में, विषय: ‘कथाकार अमरकांत: संवेदना और शिल्प’

एमबीए (मानव संसाधन) - 2014

एम.ए. अंग्रेजी - 2018

वर्तमान पद:

सहायक आचार्य (हिंदी विभाग), के.एम. अग्रवाल महाविद्यालय, कल्याण पश्चिम, महाराष्ट्र

कार्य आरंभ: 14 सितंबर 2010 से अब तक

अन्य जिम्मेदारियाँ:

यूजीसी रिसर्च अवार्डी के रूप में कार्यकाल: जनवरी 2014 से जनवरी 2016 (काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी)

शोध एवं प्रकाशन:

67+ शोध आलेख राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित

150+ संगोष्ठियों और सम्मेलनों में भागीदारी

10 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन

महत्वपूर्ण पुस्तकें:

अमरकांत को पढ़ते हुए (2014)

इस बार तुम्हारे शहर में (कविता संग्रह, 2018)

अक्टूबर उस साल (कविता संग्रह, 2019)

अन्य कार्य:

'भारत में किशोर लड़कियों की तस्करी' और 'हिंदी ब्लॉगिंग' जैसे विषयों पर रिसर्च परियोजनाएँ पूर्ण कीं।

काव्य, ग़ज़ल लेखन में सक्रिय, यूट्यूब और मंचों पर भी नियमित काव्य-पाठ।

डॉ. मिश्रा का लेखन सामाजिक सरोकारों, मानवीय संवेदनाओं, और वर्तमान यथार्थ को उजागर करने के लिए जाना जाता है।युवा लेखकों और विद्यार्थियों के बीच प्रेरणास्रोत हैं।

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा एक प्रतिष्ठित हिंदी साहित्यकार, कवि और शिक्षाविद् हैं, जिनकी रचनाएँ और साहित्यिक योगदान हिंदी साहित्य जगत में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ और ग़ज़लें निम्नलिखित हैं:

प्रमुख पुस्तकें:

'होश पर मलाल है' (ग़ज़ल संग्रह): यह ग़ज़ल संग्रह डॉ. मिश्रा की नवीनतम कृति है, जिसमें उनकी संवेदनशीलता और समाज के प्रति उनकी दृष्टि का प्रतिबिंब मिलता है ।

'अमरकांत को पढ़ते हुए': यह पुस्तक प्रसिद्ध कथाकार अमरकांत के साहित्य पर केंद्रित है, जिसमें उनकी रचनाओं का विश्लेषण और समीक्षा प्रस्तुत की गई है।

'इस बार तुम्हारे शहर में' (कविता संग्रह): इस संग्रह में डॉ. मिश्रा की कविताएँ शामिल हैं, जो मानवीय संवेदनाओं और समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं।

'अक्टूबर उस साल' (कविता संग्रह): यह कविता संग्रह भी उनकी रचनात्मकता का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें जीवन के विविध रंगों को शब्दों में पिरोया गया है।

प्रमुख ग़ज़लें:

डॉ. मिश्रा की ग़ज़लें उनकी साहित्यिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनकी कुछ प्रसिद्ध ग़ज़लें निम्नलिखित हैं:

'लगा दो मन पर तन का ग्रहण आता हूँ': इस ग़ज़ल में मानवीय भावनाओं की गहराई और जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण किया गया है। 

'लड़ते हैं लेकिन भरोसा बना रहता है': यह ग़ज़ल संबंधों की जटिलता और विश्वास की महत्ता को दर्शाती है।

'बेनाम से कुछ रिश्तों के नाम': इस ग़ज़ल में अनकहे रिश्तों और उनकी गहराई का वर्णन किया गया है।

सम्मान और पुरस्कार:

डॉ. मिश्रा को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें 'संत नामदेव पुरस्कार' और 'अंतरराष्ट्रीय हिंदी सेवी सम्मान 2025' शामिल हैं। 

वर्तमान गतिविधियाँ:

वर्तमान में, डॉ. मिश्रा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) के हिंदी चेयर के तहत ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं, जहाँ वे हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार में योगदान दे रहे हैं। 

उनकी रचनाएँ और साहित्यिक योगदान हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, और वे नए लेखकों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।


 योगदान:

डॉ. मिश्रा ने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। उन्होंने लगभग 30 कहानियों का संपादन किया है, जिनमें दो कविता संग्रह, एक ग़ज़ल संग्रह और एक कहानी संग्रह शामिल हैं। उनके दार्शनिक कार्यों के लिए उन्हें महाराष्ट्र राज्य हिंदी अकादमी द्वारा संत नामदेव पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

उज़्बेकिस्तान में हिंदी का प्रचार-प्रसार:

ताशकंद में अपने पद के दौरान, डॉ. मिश्रा ने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया है। उन्होंने उज्बेकिस्तान में हिंदी की दशा और दिशा पर शोध कार्य किया है और 'लोले कम्यूनिटी' के संदर्भ में हिंदी बोलियों से जुड़े महत्वपूर्ण अध्ययन किए हैं। इसके अलावा, राज कपूर ने शताब्दी वर्ष के इतिहास में एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता का भी आयोजन किया, जिसमें हिंदी सिनेमा की वैश्विक महत्ता पर चर्चा हुई। 



सम्मान और पुरस्कार:

डॉ. मिश्रा को उनकी हिंदी सेवाओं के लिए 16 जनवरी 2025 को ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज द्वारा भारतीय दूतावास, ताशकंद में आयोजित सम्मान समारोह में "अंतरराष्ट्रीय हिंदी सेवी सम्मान 2025" से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें उज़्बेकिस्तान में भारतीय राजदूतावास के शिष्य श्री श्रीनिवास जी द्वारा प्रदान किया गया। 

शोध और प्रकाशन:

डॉ. मिश्रा के शोध आलेख गगनांचल और 'प्रवासी जगत' जैसे प्रतिष्ठित पुस्तकालय प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने 'ताशकंद संवाद' नामक ई-पत्रिका की शुरुआत की है, जो उज्बेकिस्तान में हिंदी से जुड़े अभियान को प्रचारित करने में सहायक है। 

सांस्कृतिक सेतु:

डॉ. मिश्रा का कार्य भारत और उज़्बेकिस्तान के बीच सांस्कृतिक सेतु के रूप में कार्य कर रहा है। वे उज़्बेकिस्तान के साकेतियों के साथ मिलकर भारतीय ज्ञान परंपरा और यूरोप के बीच परिचय पर व्याख्यान देते हैं, जो यूट्यूब पर उपलब्ध हैं। 

निष्कर्ष:

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा का कार्य हिंदी भाषा और साहित्य का प्रचार-प्रसार अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके विद्वान, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक गुरु न केवल भारत में हैं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हिंदी के विकास में सहायक हैं।


डॉ. शमा

आगरा , उत्तर प्रदेश 

future job skills likely to be in high demand

 Here’s a breakdown of future job skills likely to be in high demand:

Technical & Digital Skills

  1. Artificial Intelligence & Machine Learning – Understanding AI, data modeling, algorithm design, and how to leverage AI tools.
  2. Data Analysis & Data Science – Big Data interpretation, data visualization, statistical analysis, and insights extraction.
  3. Cloud Computing – Skills in AWS, Azure, Google Cloud platforms, and cloud infrastructure management.
  4. Cybersecurity – Protecting digital assets, ethical hacking, risk management, and compliance knowledge.
  5. Software Development & Coding – Proficiency in languages like Python, JavaScript, Go, and Rust, plus full-stack development and app creation.
  6. Blockchain & Web3 Technologies – Knowledge of decentralized applications, smart contracts, and crypto ecosystems.

Human-Centered & Creative Skills

  1. Emotional Intelligence & Empathy – Crucial for leadership, collaboration, and customer relations.
  2. Critical Thinking & Problem-Solving – Ability to approach complex problems with innovative solutions.
  3. Creativity & Innovation – Especially in product design, marketing, UX/UI, and content creation.
  4. Communication & Storytelling – Essential for branding, negotiations, presentations, and remote teamwork.

Business & Strategy Skills

  1. Digital Marketing & Growth Hacking – SEO, paid media, social media strategies, and analytics tools.
  2. Project Management (Agile, Scrum, etc.) – Leading cross-functional teams and adapting quickly.
  3. Entrepreneurship & Business Strategy – Skills for building, scaling, and pivoting businesses in a fast-changing world.
  4. Financial Literacy & Tech-Savvy Investment Skills – Understanding fintech, DeFi, and smart investing.

Green & Sustainability Skills

  1. Sustainable Development & Green Energy Knowledge – Renewable energy systems, environmental impact assessment, and sustainable supply chain expertise.

Soft Skills like adaptability, lifelong learning, and cross-cultural competence are also crucial because industries and technologies will keep evolving.

Monday, 17 March 2025

बहार सिर्फ मौसम का नाम नहीं, ताशकंद के लिए यह एक नवजीवन का संदेश है

 बर्फ़ पिघलते ही दबे पाँव हल्की मुस्कान के साथ मौसम ए बहारा इन फूलों के साथ ताशकंद में दस्तक देने लगा है। गुलाबी ठंड और गुनगुनी धूप सुर्खियों से लबरेज़ हैं। ताशकंद की सरज़मी पर बहारों की क़दमबोशी ऐसी है मानो किसी चित्रकार ने हलके गुलाबी, हरियाले और सुनहरे रंगों की नरम तूलिका से क़ुदरत के कैनवास पर जीवन उकेर दिया हो। लंबी सर्दियों की चुप्पी को तोड़ते हुए हवाओं में मख़मली नरमी घुलने लगती है। चिनार और खुमानी के दरख़्तों पर नई कोपलें मुस्कुरा उठती हैं, और बादाम के फूलों की भीनी महक फ़िज़ाओं में घुलकर एक अल्हड़ नशा पैदा कर देती है। ये बदामशोरी किसे न दीवाना बना दें!

शहर की गलियों में चलते हुए ऐसा लगता है, जैसे हर पत्थर, हर इमारत ने सर्द रातों के थकान को छोड़, नई ऊर्जा ओढ़ ली हो। रंग-बिरंगे फूलों से सजे बाग-बगीचे, नीला आसमान, और दूर बर्फ से ढकी पहाड़ियों के पीछे से झाँकती सुनहरी धूप – सब मिलकर एक ऐसी कविता रचते हैं, जिसकी हर पंक्ति जीवन और उमंग से लबरेज़ है।ताशकंद की धरती पर जब बहार की पहली आहट सुनाई देती है, तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे सोई हुई कायनात किसी मीठे स्वप्न से जाग उठी हो। हवा में एक अजीब सी ताजगी घुल जाती है । न सर्दियों की चुभन, न गर्मियों की तपिश — बस एक नर्म, सुरीली ठंडक जो दिल के भीतर तक उतर जाती है।
दरख़्तों की टहनियाँ, जो अब तक नंगेपन का बोझ ढोती थीं, एकाएक हरी चुनर ओढ़ लेती हैं। बादाम, आड़ू और चेरी के फूलों की सफेद और गुलाबी पंखुड़ियाँ हवाओं में तितली बनकर उड़ती हैं। जैसे किसी शायर ने क़लम से हवाओं पर इत्र छिड़क दिया हो।ताशकंद की पथरीली गलियाँ, जिन पर सर्दियों की उदासी जमी थी, अब रंग-बिरंगे फूलों के गलीचों से सजी दिखाई पड़ती हैं।और आसमान? वह तो जैसे खुद अपनी नीली चादर को और भी साफ़ करके ताशकंद पर फैलाता है। दूर की पर्वत श्रृंखलाएँ अपने हिममुकुट के साथ बहार का अभिवादन करती हैं। हर कोना, हर दरख़्त, हर झरोखा एक गीत गाने लगता है — प्रेम का, पुनर्जन्म का, जीवन के पुनः अंकुरित होने का।
बहार सिर्फ मौसम का नाम नहीं, ताशकंद के लिए यह एक नवजीवन का संदेश है – उम्मीदों का, प्रेम का, और नूतन सृजन का प्रतीक। जैसे कोई पुरानी याद नए रंगों में लौट आई हो।बहार ताशकंद में सिर्फ ऋतु नहीं, एक उत्सव है — उम्मीदों का, सौंदर्य का, और मानव आत्मा के पुनरुत्थान का प्रतीक। जैसे प्रकृति खुद अपने गुलदस्ते में रंग भरकर, मानव हृदय को सौंप रही हो।
महान उज़्बेकी कवि अली शेर नवाई की प्रसिद्ध कृति "बहारिस्तान" का यह अंश अकस्मात याद आ गया --
بہار ایلدی، چمن رنگ و بوغا تولدی،
هر شاخه‌دا ینی غنچه تبسم قیلدی.
بلبل نغمه‌سی‌دن گلشن معطر بولدی،
طبیعت‌نین هر رنگی روشن بولدی.
(लिप्यंतरण)
Bahar eldi, chaman rang u bo'ğa toldi,
Har shaxada yangi g'unchha tabassum qildi.
Bulbul nag'masi'dan gulshan muattar bo'ldi,
Tabiatning har rangi ro'shan bo'ldi.
(हिंदी अनुवाद)
बहार आई, चमन रंग और खुशबू से भर गया,
हर शाख पर नई कली मुस्कुराई।
बुलबुल के नग़मे से गुलशन महक उठा,
प्रकृति का हर रंग रोशन हो गया।

ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...