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Tuesday, 18 March 2025

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा

 




डॉ. मनीष कुमार मिश्रा एक प्रतिष्ठित हिंदी विद्वान, लेखक और विशेषज्ञ हैं, जो वर्तमान में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के हिंदी अध्यक्ष ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में साहित्यिक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। उनका कार्य हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ भारत और उज़्बेकिस्तान के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा एक प्रतिष्ठित हिंदी साहित्यकार और शिक्षाविद् हैं। उनका जन्म 9 फरवरी 1981 को वसंत पंचमी के दिन हुआ था। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. (स्वर्ण पदक सहित) वर्ष 2003 में, बी.एड. वर्ष 2005 में, 'कथाकार अमरकांत: संवेदना और शिल्प' विषय पर पीएच.डी. वर्ष 2009 में, एमबीए (मानव संसाधन) वर्ष 2014 में, और एम.ए. अंग्रेजी वर्ष 2018 में पूर्ण किया है।

वर्तमान में, डॉ. मिश्रा के एम अग्रवाल महाविद्यालय, कल्याण पश्चिम, महाराष्ट्र में हिंदी विभाग में सहायक आचार्य के रूप में कार्यरत हैं, जहाँ वे 14 सितंबर 2010 से सेवा दे रहे हैं। उन्होंने 'भारत में किशोर लड़कियों की तस्करी' और 'हिंदी ब्लॉगिंग' जैसे विषयों पर महत्वपूर्ण शोध परियोजनाएँ पूरी की हैं। इसके अलावा, वे यूजीसी रिसर्च अवार्डी (RA) के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में जनवरी 2014 से जनवरी 2016 तक कार्यरत रहे हैं। 

डॉ. मिश्रा ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में 67 से अधिक शोध आलेख प्रकाशित किए हैं और 150 से अधिक संगोष्ठियों में सहभागिता की है। उन्होंने 10 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का सफल आयोजन भी किया है। उनकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकों में 'अमरकांत को पढ़ते हुए' (2014), 'इस बार तुम्हारे शहर में' (कविता संग्रह, 2018), और 'अक्टूबर उस साल' (कविता संग्रह, 2019) शामिल हैं। 

पूरा नाम: डॉ. मनीष कुमार मिश्रा

जन्म तिथि: 9 फरवरी 1981 (वसंत पंचमी के दिन)

जन्म स्थान: सुलेमपुर , जौनपुर, उत्तर प्रदेश 

शिक्षा:

एम.ए. हिंदी - मुंबई विश्वविद्यालय से, 2003 (स्वर्ण पदक प्राप्तकर्ता)

बी.एड. - 2005 में पूर्ण किया

पीएच.डी. - 2009 में, विषय: ‘कथाकार अमरकांत: संवेदना और शिल्प’

एमबीए (मानव संसाधन) - 2014

एम.ए. अंग्रेजी - 2018

वर्तमान पद:

सहायक आचार्य (हिंदी विभाग), के.एम. अग्रवाल महाविद्यालय, कल्याण पश्चिम, महाराष्ट्र

कार्य आरंभ: 14 सितंबर 2010 से अब तक

अन्य जिम्मेदारियाँ:

यूजीसी रिसर्च अवार्डी के रूप में कार्यकाल: जनवरी 2014 से जनवरी 2016 (काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी)

शोध एवं प्रकाशन:

67+ शोध आलेख राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित

150+ संगोष्ठियों और सम्मेलनों में भागीदारी

10 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन

महत्वपूर्ण पुस्तकें:

अमरकांत को पढ़ते हुए (2014)

इस बार तुम्हारे शहर में (कविता संग्रह, 2018)

अक्टूबर उस साल (कविता संग्रह, 2019)

अन्य कार्य:

'भारत में किशोर लड़कियों की तस्करी' और 'हिंदी ब्लॉगिंग' जैसे विषयों पर रिसर्च परियोजनाएँ पूर्ण कीं।

काव्य, ग़ज़ल लेखन में सक्रिय, यूट्यूब और मंचों पर भी नियमित काव्य-पाठ।

डॉ. मिश्रा का लेखन सामाजिक सरोकारों, मानवीय संवेदनाओं, और वर्तमान यथार्थ को उजागर करने के लिए जाना जाता है।युवा लेखकों और विद्यार्थियों के बीच प्रेरणास्रोत हैं।

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा एक प्रतिष्ठित हिंदी साहित्यकार, कवि और शिक्षाविद् हैं, जिनकी रचनाएँ और साहित्यिक योगदान हिंदी साहित्य जगत में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ और ग़ज़लें निम्नलिखित हैं:

प्रमुख पुस्तकें:

'होश पर मलाल है' (ग़ज़ल संग्रह): यह ग़ज़ल संग्रह डॉ. मिश्रा की नवीनतम कृति है, जिसमें उनकी संवेदनशीलता और समाज के प्रति उनकी दृष्टि का प्रतिबिंब मिलता है ।

'अमरकांत को पढ़ते हुए': यह पुस्तक प्रसिद्ध कथाकार अमरकांत के साहित्य पर केंद्रित है, जिसमें उनकी रचनाओं का विश्लेषण और समीक्षा प्रस्तुत की गई है।

'इस बार तुम्हारे शहर में' (कविता संग्रह): इस संग्रह में डॉ. मिश्रा की कविताएँ शामिल हैं, जो मानवीय संवेदनाओं और समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं।

'अक्टूबर उस साल' (कविता संग्रह): यह कविता संग्रह भी उनकी रचनात्मकता का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें जीवन के विविध रंगों को शब्दों में पिरोया गया है।

प्रमुख ग़ज़लें:

डॉ. मिश्रा की ग़ज़लें उनकी साहित्यिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनकी कुछ प्रसिद्ध ग़ज़लें निम्नलिखित हैं:

'लगा दो मन पर तन का ग्रहण आता हूँ': इस ग़ज़ल में मानवीय भावनाओं की गहराई और जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण किया गया है। 

'लड़ते हैं लेकिन भरोसा बना रहता है': यह ग़ज़ल संबंधों की जटिलता और विश्वास की महत्ता को दर्शाती है।

'बेनाम से कुछ रिश्तों के नाम': इस ग़ज़ल में अनकहे रिश्तों और उनकी गहराई का वर्णन किया गया है।

सम्मान और पुरस्कार:

डॉ. मिश्रा को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें 'संत नामदेव पुरस्कार' और 'अंतरराष्ट्रीय हिंदी सेवी सम्मान 2025' शामिल हैं। 

वर्तमान गतिविधियाँ:

वर्तमान में, डॉ. मिश्रा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) के हिंदी चेयर के तहत ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं, जहाँ वे हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार में योगदान दे रहे हैं। 

उनकी रचनाएँ और साहित्यिक योगदान हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, और वे नए लेखकों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।


 योगदान:

डॉ. मिश्रा ने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। उन्होंने लगभग 30 कहानियों का संपादन किया है, जिनमें दो कविता संग्रह, एक ग़ज़ल संग्रह और एक कहानी संग्रह शामिल हैं। उनके दार्शनिक कार्यों के लिए उन्हें महाराष्ट्र राज्य हिंदी अकादमी द्वारा संत नामदेव पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

उज़्बेकिस्तान में हिंदी का प्रचार-प्रसार:

ताशकंद में अपने पद के दौरान, डॉ. मिश्रा ने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया है। उन्होंने उज्बेकिस्तान में हिंदी की दशा और दिशा पर शोध कार्य किया है और 'लोले कम्यूनिटी' के संदर्भ में हिंदी बोलियों से जुड़े महत्वपूर्ण अध्ययन किए हैं। इसके अलावा, राज कपूर ने शताब्दी वर्ष के इतिहास में एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता का भी आयोजन किया, जिसमें हिंदी सिनेमा की वैश्विक महत्ता पर चर्चा हुई। 



सम्मान और पुरस्कार:

डॉ. मिश्रा को उनकी हिंदी सेवाओं के लिए 16 जनवरी 2025 को ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज द्वारा भारतीय दूतावास, ताशकंद में आयोजित सम्मान समारोह में "अंतरराष्ट्रीय हिंदी सेवी सम्मान 2025" से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें उज़्बेकिस्तान में भारतीय राजदूतावास के शिष्य श्री श्रीनिवास जी द्वारा प्रदान किया गया। 

शोध और प्रकाशन:

डॉ. मिश्रा के शोध आलेख गगनांचल और 'प्रवासी जगत' जैसे प्रतिष्ठित पुस्तकालय प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने 'ताशकंद संवाद' नामक ई-पत्रिका की शुरुआत की है, जो उज्बेकिस्तान में हिंदी से जुड़े अभियान को प्रचारित करने में सहायक है। 

सांस्कृतिक सेतु:

डॉ. मिश्रा का कार्य भारत और उज़्बेकिस्तान के बीच सांस्कृतिक सेतु के रूप में कार्य कर रहा है। वे उज़्बेकिस्तान के साकेतियों के साथ मिलकर भारतीय ज्ञान परंपरा और यूरोप के बीच परिचय पर व्याख्यान देते हैं, जो यूट्यूब पर उपलब्ध हैं। 

निष्कर्ष:

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा का कार्य हिंदी भाषा और साहित्य का प्रचार-प्रसार अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके विद्वान, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक गुरु न केवल भारत में हैं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हिंदी के विकास में सहायक हैं।


डॉ. शमा

आगरा , उत्तर प्रदेश 

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