Friday, 2 April 2010

हम दोनों का रिश्ता है बड़ा करीब का;/

हम दोनों का रिश्ता है बड़ा करीब का;
जैसे सेठ से नाता हो गरीब का ;
हम दोनों का रिश्ता है बड़ा करीब का;
,
नित्य नए की चाह है उसकी ,
मुझको केवल आह है उसकी ;
नयी डगर पे वो चलता है ,
मेरा दिल उसकी गलियों में रमता है ;
भूत से उसे लगाव नहीं है ;
भविष्य की मुझे दरकार नहीं है ;
हम दोनों का रिश्ता है बड़ा करीब का;
जैसे भाग्य से नाता गरीब का /
,
जफा की तू प्यारी रही है ,
वफ़ा से मेरी यारी रही है ;
तू कहता है तेरी बेवफाई खेल है नसीब का ;
मै कहता हूँ तुझसे मेरा रिश्ता है करीब का /

दिलदार नहीं सुनता कभी ;

वक़्त नहीं रहता कभी ,
मौका नहीं मिलाता कभी ;
मनाओ भले कितना ,
प्यार नहीं सुनता कभी ;
,

मोहब्बत क्या करे ,
किस्साये आंसूये दिल का ;
दिल नहीं मिलता कभी ,
दिलदार नहीं मिलता कभी /
,
,
वक़्त नहीं रहता कभी ,
मौका नहीं मिलाता कभी ;
मनाओ भले कितना ,
परवरदीगार नहीं सुनता कभी /

Thursday, 1 April 2010

कभी पल में ख्वाब तोड़ जाती है ;

जिंदगी की राह पे चल रहा हूँ ;
जैसे चलाये जिंदगी चल रहा हूँ ;
.

कभी जिंदगी बुला के पास सिने से लगाती है ;
कभी दुत्कार के बातें सुनाती है ;
कभी पथरीले डगरों की राहों में खोये हैं
कभी कातिल जिंदगानी के हिस्सों पे रोये हैं ;
कभी जिंदगी जिंदगी से नाता बताती है ,
कभी ये जिंदगी नहीं मेरी ये गाथा सुनाती है ;
.

जिंदगी की राह पे चल रहा हूँ ;
जैसे चलाये जिंदगी चल रहा हूँ ;

.

जिंदगी कब बदल जाये कह नहीं सकते ,
कितना भी बदले पर हम जिंदगी से कट नहीं सकते ;
जिंदगी इक पल में खुशियों से दामन भरती है ,
जिंदगी इक पल में आखों को सावन करती है ;
कभी जिंदगी सपने दिखाती है ,
कभी पल में ख्वाब तोड़ जाती है ;
.

जिंदगी की राह पे चल रहा हूँ ;
जैसे चलाये जिंदगी चल रहा हूँ /

अगर सच में ऐसा होता तो

मैंने सुना है क़ि-
जब कोई किसी को याद करता है तो,
 आसमान से एक तारा टूट जाता है.
लेकिन अब मुझे इस बात पर,
यंकीं बिलकुल भी नहीं है क्योंकि -
 अगर सच में ऐसा होता तो , 
अब तक सारे तारे टूटकर,
 जमीन पर आ गए होते. 
आखिर इतना तो याद,
मैंने तुम्हे किया ही है .    
 

बोध कथा :१५ -कह दूँगा

 बोध कथा :१५ -कह दूँगा
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                            किसी प्राचीन नगर में टोडरमल नामक एक बड़ा ही अमीर व्यापारी रहता था.सारे नगर वाशी उसकी इज्जत करते थे.वह जंहा भी जाता लोग झुक कर उसका अभिवादन करते.वह सब का अभिवादन स्वीकार करते हुवे कहता,''कह दूँगा .''लोगों को उसकी यह बात बड़ी अजीब लगती क़ी आखिर अभिवादन के बदले में ''कह दूँगा '' कौन  सा  उत्तर होता है ?लेकिन संकोच वश कभी किसी ने इसका कारण नहीं पूछा .
                         एक दिन सुबह-सुबह जब टोडरमल जी नगर के विद्यालय के पास से गुजरे तो ,विद्यालय में नए-नए आये युवा अध्यापक विद्याशंकर ने उन्हें प्रणाम किया.जवाब में आदत के तौर पर टोडरमल जी ने भी कहा क़ि,'' कह दूँगा .'' यह सुनकर विद्याशंकर को बड़ा आश्चर्य हुआ.उनसे रहा नहीं गया और वे टोडरमल के पास जाकर बोले ,''टोडरमल जी ,मैंने आपको ही प्रणाम किया है.फिर आप ''कह दूँगा '' कह कर क्या बताना चाहते हैं ? यह तो अभिवादन का जवाब देने का तरीका नहीं है.'' विद्याशंकर क़ी बात सुनकर टोडरमल मुस्कुराए और बोले ,''मेरे साथ मेरे घर चलो .सब पता चल जाएगा .'' इतना कह कर वे विद्याशंकर का हाथ पकडकर अपने घर क़ी तरफ चल पड़े.
                       घर पहुचने पर टोडरमल विद्याशंकर को अपने घर के तहखाने में ले गए.वंहा पर टोडरमल ने अपना सारा खजाना छुपा कर रखा था. सोना,चाँदी,हीरे,जवाहरात और ढेर सारे पुराने गहने. वह सब विद्याशंकर को दिखाते हुवे टोडरमल बोले,''बेटा इस खजाने को ध्यान से देखो. इसे मैंने अपनी मेहनत से कमाया है. जब तक यह मेरे पास नहीं था,तब कोई भी मेरा आदर नहीं करता था.लेकिन जब से यह सब मेरे पास आया है तब से लोग मेरा आदर सम्मान करने लगे हैं. इसलिए मैं यह मानता हूँ क़ि लोग मेरा नहीं इस संपत्ति का आदर करते हैं.यही कारण है क़ि जब भी कोई मुझे प्रणाम करता है तो मैं कह देता हूँ क़ि ''कह दूँगा ''और यंहा आकर इसी खजाने से कह भी देता हूँ क़ि उसे नगर के किस-किस आदमी ने सलाम कहा है.''
                           टोडरमल क़ि बात सुनकर विद्याशंकर बोला,''आपकी बात सुनकर मुझे यह सीख मिली क़ि जीवन में अधिकांश लोग हमारी नहीं अपितु हमारे पास संचित धन-सम्पदा क़ी इज्जत करते हैं. '' किसी ने लिखा भी है क़ि-----------
                       '' मान-सम्मान और यश,सब है धन क़ी बलिहारी  
                        इसके आगे नतमस्तक ,इस जीवन के सब अधिकारी ''
 

Wednesday, 31 March 2010

पिताजी की सेवानिवृत्ति

पिताजी की सेवानिवृत्ति 
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                  आज ३१ मार्च २०१० को रोज की ही तरह पिताजी अपने स्कूल गए,ठीक उसी तरह जैसे की वे पिछले ३० सालों से जा रहे थे.जितनी मेरी उम्र है,लगभग उतने ही साल पिताजी को नौकरी करते हो गए. एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापक के रूप में ३० साल की नौकरी .
                रोज वे सुबह ६.०० बजे के आस-पास उठते थे.लेकिन आज वे लगभग ४.३० बजे ही उठ गए थे.शायद रात को नीद भी ठीक से नहीं आयी होगी. उठ कर पानी पिए और बाथरूम चले गए.आज ६ बजे ही वे तैयार थे,अपने स्कूल जाने के लिए.स्कूल का आखरी दिन. पापा बड़े असहज नजर आ रहे थे.लेकिन अपनी परेसानी को दिखाना नहीं चाहते थे. इधर-उधर घूमते हुवे ,टी.वी. पर नजर गई. उसे उन्होंने चला दिया. लगभग सभी चैनलों पर कोई ना कोई  बाबा जी धैर्य और शांति का पाठ पढ़ा रहे थे.मैं भी उठ गया था.बिना कुछ बोले मैं भी टी.वी. देखने लगा. 
         पापा ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दिया.जवाब में मैं भी मुस्कुरा दिया. शायद मैं उनके मन की हालत समझ रहा था.माहौल को हल्का-फुल्का करने के लिए मैंने ही कहा,''तो डैड, आजादी मुबारक हो.आज के बाद आप किसी साले के गुलाम नहीं रह जायेंगे.आज तो पार्टी देंगे ना ?'' मेरी बात सुनकर पापा फिर मुस्कुरा दिए.उनकी चुप्पी के पीछे के दर्द,चिंता और परेसानी को मैं अच्छी तरह समझ रहा था. इतने में माँ चाय लेकर आ गयी. पापा ने माँ की तरफ देख कर कहा,'' आज से तुम्हारी माँ को आराम हो जायेगा .इतनी सुबह-सुबह उठकर इनको अब चाय नहीं बनानी पड़ेगी.'' माँ यह बात सुनकर रोने को हुई पर वः जल्दी से किचन में चली गयी. हम दोनों पिता-पुत्र चाय की चुस्कियां इस तरह ले रहे थे जैसे जग-जीवन का सारा दर्शन चाय पीते हुवे ही समझा जा सकता है.एक अजीब सी ख़ामोशी के बीच निरर्थक सा प्रवचन टी.वी. के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था.
                  जब ६.४५ बजे तो पापा ने मेरी तरफ देख कर कहा,'' जाऊं विद्यालय ? समय तो हो गया .'' मैंने भी तुरंत पापा से कहा ,'' जाइए पिताजी,३० साल की गुलामी को आज तोड़ कर चले आइये.''पापा मुस्कुराते हुवे चले गए. लगभग ११.३० बजे वे वापस आये. साथ में स्कूल का चपरासी भी आया था. उसके हाँथ में दो बड़ी थैलियाँ थी. दोनों  सोफे पे साथ ही बैठे.  पापा बोले,''चलो,खुशी-ख़ुशी सब बीत गया.आज से छुट्टी .'' पापा की बात सुन कर साथ आया चपरासी बोला,'' हाँ सर,लेकिन आप कि बहुत याद आएगी.हमसे जो भूल-चूक हुई हो वो ----------'' इतना कहते ही वह फूटकर रोने लगा. पापा कि भी आँखें भर आयीं .
              थोड़ी देर में दोनों ही सहज हो गए. माँ ने उन लोगों को चाय-बिस्किट दिया.फिर पापा के पैर छू कर वह चला गया.उसके जाते ही छोटी भतीजी मानसी पापा के पास जा कर बोली,''बाबा,आज इतना सारा सामान क्या लायें हैं ?'' पापा बोले,'' यही सब मिला है बेटा . एक सफारी का कपडा ,एक छाता,एक टार्च ,यह सोनाटा क़ी घडी ,मोमेंटो ,३ शाल और ढेर सारे हार फूल और हाँ एक पंखा भी है .'' मानसी तुरंत बोली ,'' बाबा मिठाई नहीं है ?''पापा बोले ,''मिठाई तो वन्ही खत्म हो गई,चलो तुम्हारे लिए मिठाई लेकर आते हैं.'' इतना कहकर पापा ने मानसी को गोद में उठा लिया और बाहर निकल पड़े.
                  मैं चुप-चाप यही सोचता रहा क़ि सेवा निवृत्त होने का मतलब क्या है ?.शायद जिम्मेदारियां उतनी ही पर ------------------------------खैर मैं नहीं जानता क़ि अपनी सेवानिवृत्त पे पापा खुश हैं या नहीं,घर के लोग खुश हैं क़ी नहीं पर मैं इतना तो कह सकता हूँ क़ि इतने सालों में किसी बात ने मुझे पहले कभी इतना नहीं उलझाया ,जितनी क़ी इस बात ने.खैर आज मैं अपने पापा को पार्टी दी रहा हूँ .तीस साल क़ी नौकरी के लिए थैंक्स कहने के लिए और इस बात के एहसास दिलाने के लिए क़ि मैं ने तो अभी -अभी अपनी गुलामी शुरू क़ी है,एक कालेज में.और मैं भी ३० साल तो नौकरी करूँगा ही.
 

Tuesday, 30 March 2010

हुश्न

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हुश्न की शहादत ,मै भूलूं भी तो कैसे;
क़त्ल कर मेरा वो रोया भी नहीं है /
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ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...