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ढरकता पल्लू आखों में नाज था , बड़ी मासूमियत से उसने पूछा हाल था ;
उछल पड़ी धड़कन ,सांसे बहक गयी ;मरने नहीं दिया अब जीना मुहाल था /
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Wednesday, 24 March 2010
ढरकता पल्लू आखों में नाज था /
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हाल -चाल,
हिंदी शायरी

नहीं रहे मार्कंडेय
नहीं रहे मार्कंडेय
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हिंदी नई कहानी आन्दोलन के प्रमुख कथाकारों में से एक मार्कण्डेय जी अब हम लोगों के बीच नहीं रहे.इलाहाबाद में रहते हुवे वे आर्थिक तंगी और बिमारी से कई सालों से जूझ रहे थे.आदर्श कुक्कुट गृह जैसी मशहूर कहानियाँ लिखने वाले मार्कंडेय हिंदी साहित्य से लगातार जुड़े रहे.
८० से अधिक उम्र के इस लेखक ने अपनी अंतिम सांस दिल्ली के राजू गाँधी केंसर अस्पताल में ली. मार्कंडेय को कई पुरस्कारों से समय-समय पर सम्मानित भी किया गया.जैसे क़ि- राहुल सांस्कृत्यायन अवार्ड १९९३
प्रयाग गौरव सम्मान
हिंदी गौरव सम्मान २००३
साहित्य भूषण अवार्ड 2009. प्रमुख है. आप क़ि जो रचनाएं अधिक प्रसिद्ध हुई उनमे से प्रमुख
पान कां फूल , महुवा का पेड़ , भूदान , कहानी की बात और अग्निबीज विशेष उल्लेखनी हैं. हंसा जाए अकेला और गुलरा के बाबा के अलावां उन्होंने कथा नामक पत्रिका का सम्पादन भी उन्होंने किया.
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हिंदी नई कहानी आन्दोलन के प्रमुख कथाकारों में से एक मार्कण्डेय जी अब हम लोगों के बीच नहीं रहे.इलाहाबाद में रहते हुवे वे आर्थिक तंगी और बिमारी से कई सालों से जूझ रहे थे.आदर्श कुक्कुट गृह जैसी मशहूर कहानियाँ लिखने वाले मार्कंडेय हिंदी साहित्य से लगातार जुड़े रहे.
८० से अधिक उम्र के इस लेखक ने अपनी अंतिम सांस दिल्ली के राजू गाँधी केंसर अस्पताल में ली. मार्कंडेय को कई पुरस्कारों से समय-समय पर सम्मानित भी किया गया.जैसे क़ि- राहुल सांस्कृत्यायन अवार्ड १९९३
प्रयाग गौरव सम्मान
हिंदी गौरव सम्मान २००३
साहित्य भूषण अवार्ड 2009. प्रमुख है. आप क़ि जो रचनाएं अधिक प्रसिद्ध हुई उनमे से प्रमुख
पान कां फूल , महुवा का पेड़ , भूदान , कहानी की बात और अग्निबीज विशेष उल्लेखनी हैं. हंसा जाए अकेला और गुलरा के बाबा के अलावां उन्होंने कथा नामक पत्रिका का सम्पादन भी उन्होंने किया.
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hindi story writer maarkandey
बोध कथा १० : आदमी
बोध कथा १० : आदमी
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एक बहुत ही दानी और अमीर व्यापारी के बारे में सुन कर गरीब ब्राह्मण रामानंद ने सोचा क़ि वह भी क्यों ना व्यापारी के पास जा कर कुछ स्वर्ण मुद्राएँ मांग लाये.अपने मन की बात जब रामानंद ने अपनी धर्म पत्नी से कही तो उन्होंने भी इसके लिए हाँ कर दिया .
फिर क्या था ? सुबह -सबेरे ब्राह्मण देवता चना-चबैना-गंगजल लेकर नगर क़ी तरफ निकल पड़े.लम्बी पद यात्रा कर के जब वे व्यापारी के पास पहुंचे तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना ना था. उन्होंने व्यापारी को अपनी सब ग्रह दशा बता दी. व्यापारी ने बड़े ही अनमने भाव से उनकी बात सुनी.अंत में बोला'' ठीक है ब्राह्मण ,कल आ जाना.आज कोई आदमी नहीं है.'' इतना कह कर वह व्यापारी घर के अंदर चला गया. ब्राह्मण सोचने लगा क़ि कुछ बड़ा सा दान मिलने वाला है.एक दिन इन्तजार सही.नगर में इधर-उधर घूम कर भूखे पेट जैसे-तैसे उन्होंने रात बिताई.सुबह जब फिर व्यापारी के पास गए तो व्यापारी ने वही टका सा जवाब दिया. ''कल आना,आज आदमी नहीं है.''
इस तरह लगभग एक महीना बीत गया. ब्राह्मण रोज व्यापारी के पास जाता और व्यापारी वही रटा-रटाया जवाब देता क़ि,''कल आना,आदमी नहीं है .'' इस बार भी जब ब्राह्मण को वही जवाब मिला तो ,उससे रहा नहीं गया.ब्राह्मण ने हाँथ जोडकर विनम्रता पूर्वक कहा,''हे सेठ श्री,गलती आप की नहीं है. आप के पास आदमी नहीं है ,और मैं तो आप को ही आदमी समझ कर आ गया था.बड़ी भूल हुई,अब नहीं आऊंगा .''इतना कह कर ब्राह्मण तो चला गया पर व्यापारी को काटो तो खून नहीं.वह अपने व्यवहार पर अंदर ही अंदर जीवन भर शर्मिंदा होता रहा.
हमे जीवन में किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए.रहीम ने लिखा भी है क़ि------
'' रहिमन वे नर मर चुके,जो कुछ मांगन जांहि
उनसे पहले वो मुवें,जिन मुख निकसत नाहिं ''
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एक बहुत ही दानी और अमीर व्यापारी के बारे में सुन कर गरीब ब्राह्मण रामानंद ने सोचा क़ि वह भी क्यों ना व्यापारी के पास जा कर कुछ स्वर्ण मुद्राएँ मांग लाये.अपने मन की बात जब रामानंद ने अपनी धर्म पत्नी से कही तो उन्होंने भी इसके लिए हाँ कर दिया .
फिर क्या था ? सुबह -सबेरे ब्राह्मण देवता चना-चबैना-गंगजल लेकर नगर क़ी तरफ निकल पड़े.लम्बी पद यात्रा कर के जब वे व्यापारी के पास पहुंचे तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना ना था. उन्होंने व्यापारी को अपनी सब ग्रह दशा बता दी. व्यापारी ने बड़े ही अनमने भाव से उनकी बात सुनी.अंत में बोला'' ठीक है ब्राह्मण ,कल आ जाना.आज कोई आदमी नहीं है.'' इतना कह कर वह व्यापारी घर के अंदर चला गया. ब्राह्मण सोचने लगा क़ि कुछ बड़ा सा दान मिलने वाला है.एक दिन इन्तजार सही.नगर में इधर-उधर घूम कर भूखे पेट जैसे-तैसे उन्होंने रात बिताई.सुबह जब फिर व्यापारी के पास गए तो व्यापारी ने वही टका सा जवाब दिया. ''कल आना,आज आदमी नहीं है.''
इस तरह लगभग एक महीना बीत गया. ब्राह्मण रोज व्यापारी के पास जाता और व्यापारी वही रटा-रटाया जवाब देता क़ि,''कल आना,आदमी नहीं है .'' इस बार भी जब ब्राह्मण को वही जवाब मिला तो ,उससे रहा नहीं गया.ब्राह्मण ने हाँथ जोडकर विनम्रता पूर्वक कहा,''हे सेठ श्री,गलती आप की नहीं है. आप के पास आदमी नहीं है ,और मैं तो आप को ही आदमी समझ कर आ गया था.बड़ी भूल हुई,अब नहीं आऊंगा .''इतना कह कर ब्राह्मण तो चला गया पर व्यापारी को काटो तो खून नहीं.वह अपने व्यवहार पर अंदर ही अंदर जीवन भर शर्मिंदा होता रहा.
हमे जीवन में किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए.रहीम ने लिखा भी है क़ि------
'' रहिमन वे नर मर चुके,जो कुछ मांगन जांहि
उनसे पहले वो मुवें,जिन मुख निकसत नाहिं ''
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बोध कथा १० : आदमी
Tuesday, 23 March 2010
मोहब्बत भरी मेरी निगाहें ना देखो तुम ,
मोहब्बत भरी मेरी निगाहें ना देखो तुम ,
प्यार से भरी मेरी आहें ना देखो तुम ;
इश्क की राहें आसां नहीं होती ,
चाहते मंजिल बदनाम है होती ;
कीचड़ में खिले कमल ,काटों में गुलाब है ;
हुस्न हो बेपरदा ,मेरा नहीं ये ख्वाब है '
काटों की ये पगडण्डी ,
दिल तडपे है रातों में ;
आंसूं आखों से पिघले है ,
तू बढ जा अपनी राहों में ;
सरल सही से भावों को लेकर;
तू खुश रह अपनी पनाहों में;
कठिनाई को चुनना कैसा ,
बदनामी का संग करना कैसा ;
अच्छाई का दामन हो तुम ;
सच्चाई का आंगन हो तुम ;
कीचड़ की पगडण्डी पे चलना कैसा ,
काटों की राहों में बसना कैसा ;
मोहब्बत भरी मेरी निगाहें ना देखो तुम ,
प्यार से भरी मेरी आहें ना देखो तुम ;
प्यार से भरी मेरी आहें ना देखो तुम ;
इश्क की राहें आसां नहीं होती ,
चाहते मंजिल बदनाम है होती ;
कीचड़ में खिले कमल ,काटों में गुलाब है ;
हुस्न हो बेपरदा ,मेरा नहीं ये ख्वाब है '
काटों की ये पगडण्डी ,
दिल तडपे है रातों में ;
आंसूं आखों से पिघले है ,
तू बढ जा अपनी राहों में ;
सरल सही से भावों को लेकर;
तू खुश रह अपनी पनाहों में;
कठिनाई को चुनना कैसा ,
बदनामी का संग करना कैसा ;
अच्छाई का दामन हो तुम ;
सच्चाई का आंगन हो तुम ;
कीचड़ की पगडण्डी पे चलना कैसा ,
काटों की राहों में बसना कैसा ;
मोहब्बत भरी मेरी निगाहें ना देखो तुम ,
प्यार से भरी मेरी आहें ना देखो तुम ;
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Monday, 22 March 2010
बोध कथा ९ : दोस्ती
बोध कथा ९ : दोस्ती
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एक दिन जब तबेले में सुबह-सुबह ताज़ा दूध निकाला जा रहा था,तभी दूध क़ी नजर सामने पड़े पानी से लबा-लब भरी बाल्टी पर गयी.पानी को देखते ही दूध ने इतरा कर कहा ,''कहो दोस्त ,क्या हाल है ?''. पानी का ध्यान दूध क़ी तरफ गया.उसने भी विनम्रता पूर्वक कहा,''ठीक हूँ दोस्त.बस तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था. अभी थोड़ी देर में ये लोग हम दोनों को मिलाकर एक कर देंगे.मै भी तुम्हारे ही रंग में रंग कर,तुम्हारा ही अंश बन जाऊँगा .'' दूध क़ी बात सुनकर पानी बोला,''हाँ भाई,तुम्हारी तो मजा ही मजा है. हो तो मामूली पानी लेकिन मेरे साथ मिलकर मेरे ही भाव में बिकते हो.तुम्हे अपने इस दोस्त का एहसान मानना चाहिए .'' यह बात सुनकर पानी थोडा संकोच में पड़ गया,लेकिन उसने तुरंत जवाब दिया कि,''मैं तुम्हारी बात मानता हूँ.तुम मुझे अपने में शामिल कर मेरा मूल्य बढ़ा देते हो.मै भी वचन देता हूँ क़ि जब भी तुम पर कोई खतरा आएगा ,पहले उस खतरे का सामना मै करूँगा.मेरे जीते जी कोई तुम्हारा बाल भी बाका नहीं कर सकेगा.''
इतने में तबेलेवाला वंहा आया और उसने दूध और पानी को मिलाकर एक ही कर दिया.थोड़ी देर में एक गाडी आयी और उसमे दूध को रख दिया गया. दूध को बेचने के लिए बाजार भेजा जा रहा था. बाजार में पूरा दूध थोडा-थोडा कर बेच भी दिया गया.लेकिन जंहा भी दूध गया ,वंहा उसे गर्म करने के लिए खरीदार ने गैस पे रख दिया. जब आग क़ि आंच दूध ने महसूस क़ी तो वह चिल्ला पड़ा,''अरे यह क्या ? इस तरह तो ये लोग हमे जला कर मार डालेंगे .अब हम क्या करें ?'' दूध क़ी बात को सुनकर उसमे मिले पानी ने कहा,''चिंता मत करो मित्र.जब तक मै तुम्हारे साथ हूँ ,तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगा.अगर जलना ही है तो पहले मैं जलूँगा.''
यह कहकर पानी जलने लगता है. वह वाष्प बनने लगता है. अपने दोस्त क़ी यह हालत देखकर दूध का मन विचलित हो जाता है.वह पानी को अपने से दूर जाने से रोकने के लिए ,अपने मलाई क़ी एक मोटी परत पूरे बर्तन के ऊपर फैला देता है. परिणामस्वरूप पानी वाष्प के रूप में बाहर नहीं जा पाता और दूध में उबाल आ जाता है.उबाल को देख कर खारीदार भी गैस बंद कर देता है. इसतरह दूध और पानी सच्ची दोस्ती क़ी एक मिसाल सामने रखते हैं.वे अपने प्राणों क़ी भी परवाह नहीं करते.ऐसी दोस्ती के लिए ही किसी ने लिखा है क़ि-----
'' हर रिश्ते से बड़ा है,दोस्ती का रिश्ता
मत तोडना कभी,दोस्ती का रिश्ता ''
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एक दिन जब तबेले में सुबह-सुबह ताज़ा दूध निकाला जा रहा था,तभी दूध क़ी नजर सामने पड़े पानी से लबा-लब भरी बाल्टी पर गयी.पानी को देखते ही दूध ने इतरा कर कहा ,''कहो दोस्त ,क्या हाल है ?''. पानी का ध्यान दूध क़ी तरफ गया.उसने भी विनम्रता पूर्वक कहा,''ठीक हूँ दोस्त.बस तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था. अभी थोड़ी देर में ये लोग हम दोनों को मिलाकर एक कर देंगे.मै भी तुम्हारे ही रंग में रंग कर,तुम्हारा ही अंश बन जाऊँगा .'' दूध क़ी बात सुनकर पानी बोला,''हाँ भाई,तुम्हारी तो मजा ही मजा है. हो तो मामूली पानी लेकिन मेरे साथ मिलकर मेरे ही भाव में बिकते हो.तुम्हे अपने इस दोस्त का एहसान मानना चाहिए .'' यह बात सुनकर पानी थोडा संकोच में पड़ गया,लेकिन उसने तुरंत जवाब दिया कि,''मैं तुम्हारी बात मानता हूँ.तुम मुझे अपने में शामिल कर मेरा मूल्य बढ़ा देते हो.मै भी वचन देता हूँ क़ि जब भी तुम पर कोई खतरा आएगा ,पहले उस खतरे का सामना मै करूँगा.मेरे जीते जी कोई तुम्हारा बाल भी बाका नहीं कर सकेगा.''

यह कहकर पानी जलने लगता है. वह वाष्प बनने लगता है. अपने दोस्त क़ी यह हालत देखकर दूध का मन विचलित हो जाता है.वह पानी को अपने से दूर जाने से रोकने के लिए ,अपने मलाई क़ी एक मोटी परत पूरे बर्तन के ऊपर फैला देता है. परिणामस्वरूप पानी वाष्प के रूप में बाहर नहीं जा पाता और दूध में उबाल आ जाता है.उबाल को देख कर खारीदार भी गैस बंद कर देता है. इसतरह दूध और पानी सच्ची दोस्ती क़ी एक मिसाल सामने रखते हैं.वे अपने प्राणों क़ी भी परवाह नहीं करते.ऐसी दोस्ती के लिए ही किसी ने लिखा है क़ि-----
'' हर रिश्ते से बड़ा है,दोस्ती का रिश्ता
मत तोडना कभी,दोस्ती का रिश्ता ''
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बोध कथा ९ : दोस्ती
Sunday, 21 March 2010
झुझलाया हुआ था ,अलसाया हुआ था ;
झुझलाया हुआ था ,
अलसाया हुआ था ;
तल्खी थी बातों में ,
शरमाया हुआ था ;
बयां हो रहा था कल रात का किस्सा ,
नहीं चाहता था वो ,
मैं जानू तूफानी रात का किस्सा ;
उलझे हुए बाल तूफान साथ लाये थे ,
गरदन के वो निशा,
निशानी खास लाये थे ;
आखों की लाली बन रही थी रात का दर्पण ,
बदन की भगिमा बता रही थी प्यार का अर्पण ;
लौट आया मै ,
अपनी मोहब्बत का कर दर्शन ;
नहीं चाहता बन जाऊं उसकी प्यास की अड़चन ;
झुझलाया हुआ था ,
अलसाया हुआ था ;
तल्खी थी बातों में ,
तल्खी थी बातों में ,
शरमाया हुआ था ;
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हिंदी पोएट्री जिंदगी

बोध कथा ८ :कछुए और खरगोश क़ी आगे क़ी कहानी
बोध कथा ८ :कछुए और खरगोश क़ी आगे क़ी कहानी
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आप में से शायद ही कोई हो जिसे कछुए और खरगोश क़ी कहानी मालूम ना हो .लेकिन वह कहानी जंहा ख़त्म होती है ,वँही से मैं यह नई कहानी शुरू कर रहा हूँ.आशा है आप लोंगों को पसंद आएगी .
--------------तो जैसा क़ी आप जानते हैं क़ि कछुए और खरगोश क़ी दौड़ में कछुआ विजयी होता है.यह बात जब जंगल में फैलती है तब खरगोश का बड़ा मजाक उड़ाया जाता है. हर कोई खरगोश को ताने देने लगता है. बेचारा खरगोश बहुत दुखी होता है. उसे समझ में नहीं आता क़ि वह क्या करे? अंत में वह निर्णय लेता है क़ि वह शांतिपूर्वक अपनी हार का कारण समझने क़ी कोशिस करेगा.बहुत चिन्तन-मनन करने के बाद उसे यह बात समझ में आ गयी क़ि ,''शत्रु या प्रतिस्पर्धी को कभी भी कमजोर नहीं समझना चाहिए .साथ ही साथ अति आत्मविश्वाश से भी हमे नुकसान उठाना पड़ता है.''इस बात को अच्छी तरह समझ कर वह फिर से कछुए से शर्त लगाने क़ी योजना बनता है. इसी संदर्भ में बात करने के लिए वह कछुए के घर जाता है. कछुआ उसका ह्रदय से स्वागत करता है. थोड़े अल्पाहार के बाद कछुए ने खरगोश से पूछा -''कहो मित्र कैसे आना हुआ ?'



एक बार फिर दौड़ शुरू हुई. नदी तट तक तो खरगोश आगे रहा ,पर वह नदी पार नहीं कर सकता था.नदी का प्रवाह तेज था और नदी गहरी थी.परिणामस्वरूप वह वँही रुक गया.जब क़ि कछुआ आसानी से नदी पार कर,आम के पेड तक पहुँच गया.और इस तरह इस बार की दौड़ कछुआ जीत गया.इस जीत से वह खुश हुआ .उधर खरगोश अपनी हार से निराश था.वह समझ गया था क़ि कछुए ने चालाकी से काम लिया है.
बहुत दिनों बाद दोनों फिर मिले और अपनी हार-जीत पर बातें करने लगे.बहुत लम्बी चर्चा के बाद दोनों इस निष्कर्ष पर पहुंचे क़ि,
''हर व्यक्ति क़ि क्षमता अलग-अलग होती है.अगर हम परस्पर सहयोग और सहकारिता क़ी नीति पर चलते हुए कार्य करें,तभी हम आगे बढ़ सकते हैं.सच्ची शक्ति इस आपसी सहयोग में ही है.आपसी प्रतिस्पर्धा में नहीं.एकता ही हमे अलौकिक शक्ति प्रदान कर सकती है.इसलिए हमे एक होकर काम करना चाहिए.''
अपनी इसी बात को जंगल में सभी को समझाने के लिए दोनों एक बार फिर से नदी के उस पार तक दौड़ लगाते हैं. इस बार जब तक जमीन पर दौड़ना था,तब तक कछुआ ,खरगोश क़ी पीठ पर बैठा रहा.और जब नदी पार करने क़ी बात आयी तो खरगोश ,कछुए क़ी पीठ पर बैठ गया. इसतरह परस्पर सहयोग से दोनों ने दौड़ पूरी क़ी और दोनों ही संयुक्त विजेता घोषित किये गए.सारा जंगल उनकी बुद्धिमानी क़ी चर्चा कर रहा था.दोनों का ही सम्मान जंगल में बढ़ गया था.
इस तरह इस नई कहानी से हमे सीख मिलती है क़ि ताकत जोड़ने से बढती है ,और आपसी सहयोग से नामुमकिन कार्य भी मुमकिन हो जाता है. इसलिए हमे हर किसी क़ि क्षमता के अनुरूप उसका सम्मान करना चाहिए.किसी को भी कमजोर नहीं समझना चाहिए.किसी ने लिखा भी है क़ि
'' हाँथ पकडकर एक-दूजे का,
आगे ही आगे बढो .
एकता क़ी शक्ति के दम पर,
मुमकिन सब तुम काम करो ''
डॉ.मनीष कुमार मिश्रा
( i do not have any type of copy right on the photos of this post.i have got them as a mail. )
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