Friday, 19 February 2010

डॉ.बच्चन सिंह का साहित्य

डॉ.बच्चन सिंह का साहित्य :**********
                        डॉ.बच्चन सिंह हिंदी के उन समीक्षकों में रहे जिन्हें उतनी सफलता साहित्य कि दुनिया में  नहीं मिली ,जितनी मिलनी चाहिए थी. आज बच्चन सिंह जी हमारे बीच नहीं रहे,लेकिन उनका काम हमारे सामने है.आश्चर्य होता है कि उनसे कही कम मेहनतवाले लोग साहित्य जगत में जिस तरह जाने -पहचाने जा रहे हैं,वो सब बड़ा अजीब है. निश्चित ही बच्चन सिंह जी साहित्यिक षड्यंत्रों और गुटबाजी का शिकार हुवे हैं.
      मै यंहा डॉ.बच्चन सिंह कि पुस्तकों क़ी सूची दे रहा हूँ,जिसका फायदा शोध छात्र उठा सकेंगें .साथ ही साथ आप उनकी समग्र रचना धर्मिता से परिचित भी हो सकेंगे . 
      डॉ.बच्चन सिंह का साहित्य ; 
  1.     हिंदी पत्रकारिता के नए प्रतिमान  
  2.     रीति कालीन कवियों क़ी प्रेम व्यंजना
  3.    उपन्यास का काव्य शास्त्र  
  4.    साहित्य का समाज शास्त्र  
  5.    आचार्य शुक्ल का इतिहास पढ़ते हुवे 
  6.    आधुनिक हिंदी आलोचना के बीजशब्द 
  7.    हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास  
  8.   क्रन्तिकारी कवि निराला 
  9.   बिहारी का नया मूल्यांकन 
  10.   कविता का शुक्ल पक्ष  
  11.   पांचाली (उपन्यास )
  12.   सूतो वा सूतपुत्रो वा (उपन्यास )
  13.  हिंदी नाटक 
  14.  निराला का काव्य 
  15.  साहित्यिक निबंध:आधुनिक दृष्टि कोण 
  16.  आधुनिक हिंदी साहित्य का इतिहास 
  17.  निराला काव्य शब्दकोष 
  18.  समकालीन हिंदी साहित्य :आलोचना क़ी चुनौती  
  19. आलोचक और आलोचना  
  20. कथाकार जैनेन्द्र  
  21. कई चेहरों के बाद (कहानी संग्रह )
  22.  लहरें और कगार (उपन्यास ) 
  23. भारतीय और पाश्चात्य काव्य शास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन 
  24.  महाभारत क़ी कथा (अनुवाद -बुद्ध देव बसू क़ी किताब का ) 
  25. नागरी प्रचारणी पत्रिका का संपादन  
  २६.  भारत में जाती प्रथा और दलित ब्राह्मण वाद  
                         इतना बड़ा लेखन  और समीक्षा का काम करने के बाद भी, डॉ.बच्चन सिंह इस तरह उपेक्षित क्यों हैं ?

Thursday, 18 February 2010

नयनो से नयनो की बातें ,

नयनो से नयनो की बातें ,
काजल से गहराती रातें,
तिल आखों पे नूर बडाता ,
आखों आखों में तू इतराता ,
मुस्कान तेरी कितनी व्याकुल है ,
आन तेरी मन का कातिल है ,
चेहरे पे तेरी दुविधा रहती है ,
दिल में प्यास छिपी मरती है ,
चंचल चितवन से सपने झरते ,
उलझे दिल से ख्वाब ठहरते ;
आखों में तेरे प्यार की गंगा ,
फिर क्या सोचे और क्यूँ रुकना ,
क्यूँ खुद के अरमानो से लड़ना ,
प्यार के लम्हे कितने मिलतें है ,
हम उनमे भी क्यूँ रुकते है ,
मोहब्बत भी पूजा है यारों ,
ये भी भाव अजूबा है प्यारो /


Wednesday, 17 February 2010

दहेज एक समस्या

वर्तमान समय मे भी दहेज बड़ी समस्या के रूप मे हमारे सामने है । यह समस्या केवल अशिक्षित के परिवालो की नहीं है, बल्कि पढ़े लिखे लोगो की भी यही समस्या है। क्योकि समाज को दीखाने के चक्कर मे हम यह भूल जाते है की हम पढ़े लिखे है। उस वक़्त बस यही ख्याल रहता है की हम कितना समाज को दिखाए ,की हमें कितना मिला है और हमने कितना खर्च किया है। मुझे यह बात अब तक नहीं समझ आयी की हम ऐसा क्यों करते है ।
सबसे बड़ी तकलीफ की बात ये लगती है की जो जितना शिक्षित है वो उतना ही डिमांड करता है । जो गुरु हमे सिखाते है की दहेज लेना और देना दोनों ही बुरी बात है वो भी दहेज लेने और देने मे भी पीछे नहीं हटते।
जो जितना पढ़ा लिखा है वो उतना ही डिमांड करता है। पढने लिखने का क्या मतलब फिर ... जब हम आज भी इतनी छोटी सोच rakhte है। apni सोच को badhao na की apni income को...kam se kam शिक्षित लोगो se to ये umid की ja sakti है।

Tuesday, 16 February 2010

अगस्त ऋषि का आश्रम :एक सुखद अनुभूति

अगस्त ऋषि का आश्रम :एक सुखद अनुभूति********************
        मैं जिस महाविद्यालय में काम करता हूँ,वँही के बाटनी विभाग के अध्यक्ष डॉ.विरेंद्र मिश्र जी मेरे प्रति एक सहज आत्मियता रखते हैं. एक दिन अचानक उन्होंने कहा कि-''चलो अगस्त ऋषि के  आश्रम घूम आते हैं. '' इस पर मेरा पहला सवाल था कि ''अगस्त ऋषि कौन थे ?''मेरी बात के जवाब में उन्होंने जवाब दिया कि-
        १-अगस्त ऋषि दुनियां के सबसे बड़े वैज्ञानिक थे .
       २-अगस्त ऋषि वो थे जिन्होंने पूरे समुद्र को एक घोट में पी लिया था.
       ३-अगस्त ऋषि से मिलने महादेव खुद उनके पास जाते थे .  
       ४-अगस्त ऋषि राम के सहायक भी रहे .
        ५-अगस्त ऋषि के आश्रम में शेर,हिरन,सांप और नेवले  एक साथ रहते थे,पर कोई किसी पर हमला नहीं करता था. 
        ६-उत्तर के विन्ध्य पर्वत का घमंड चूर कर,उसे बढ़ने से रोकने के लिए ही अगस्त ऋषि वापस उत्तर दिशा में नहीं गए.
        ७-महाराष्ट्र का इगतपुरी नामक स्थान  वास्तव में अगस्तपुरी है.अपभ्रंस के कारण अगस्तपुरी से अगतपुरी और अगतपुरी से इगतपुरी  हो गया है . 
                      डॉ.साहब क़ी बातें सुनने के बाद,मुझे भी लगा क़ी मुझे भी अगस्त ऋषि के आश्रम जाना चाहिए. पूरी तैयारी हो  गई. १४ फरवरी क़ी सुबह ५.३४  क़ी लोकल ट्रेन से  मैं,डॉ.वीरेंद्र मिश्र जी और महाविद्यालय के ही श्री कुलकर्णी सर हम लोग कसारा स्टेशन पहुंचे .करीब ७.०० बजे कसारा से हमने  अकोले के लिए बस पकड़ी. इस जगह का मानचित्र आप इस मैप लिंक  पे क्लिक कर के प्राप्त कर सकते हैं.http://maps.google.com/maps/ms?hl=en&ie=UTF8&oe=UTF8&msa=0&msid=108595931755292321391.00047fb79336248d0fe36&
 ll=19.534554,73.787613&spn=0.245259,0.617294&z=११
                                                     कसारा-घोटी-राजुर -अकोले इस तरह बस से लगभग ३.३० घंटे क़ी यात्रा कर के हम अकोले बस स्टॉप पे आ गए. पूरा रास्ता पहाड़ी है.आस-पास का वातावरण मोहक है.वंहा पहुँच कर हमने वहां क़ी मशहूर भेल खाई.और चाय -नाश्ते के बाद  पैदल ही आश्रम क़ी तरफ चल पड़े.हम प्रवरा नदी पे बने पूल को पार कर १० मिनट में आश्रम पर पहुँच गए. 
                आश्रम को अब मंदिर का रूप दे दिया गया है. पास ही शिव जी का मंदिर भी है.इमली के कई पेड़ आश्रम के पास हैं. आस-पास गन्ने,आलू,टमाटर,बाजरी और केले के खेत भी दिखे .आश्रम के आस-पास बस्ती भी आ गई  है. पास में ही एक गुफा का रास्ता है,जिसके  बारे में कहा जाता है क़ी राम और सीता इसी गुफा से अगस्त ऋषि के पास आये थे.उस गुफा के बगल में पानी के दो कुण्ड भी हैं,जिनमे  अब कृतिम रूप से पानी छोड़ा जाता है. 
           आश्रम के अंदर मुख्य स्थल पे अगस्त ऋषि क़ी जागृत समाधि है. जंहा अब उनकी मूर्ति भी स्थापित कर दी गई है. उसी के आस-पास  अगस्त ऋषि से सम्बन्धित कई बातों का उल्लेख चित्रों के माध्यम से किया गया है.आस-पास काफी शांति है. उस स्थल पे जाकर एक आंतरिक सुख क़ी अनुभूति हुई,जिसे शब्दों में ,कह पाना मुश्किल है.
          वंहा से वापस आने का मन तो नहीं कर रहा था,लेकिन कसारा के लिए अंतिम बस शाम ४.०० बजे क़ी थी.हम लोग वापस अकोले बस स्टॉप पे आ गए.चाय-नास्ता किया.फिर ४.०० बजे क़ी बस से वापस हो लिए.मन में कई सवाल थे,लेकिन चित्त शांत था.मानों हमने कोई  बहुत ही मूल्यवान वस्तु प्राप्त कर ली हो. 
आप को भी मौका मिले तो इस आश्रम में एक बार अवस्य जाएँ .अकोले में कई होटल और लाज  हैं,जंहा आप रुक भी सकते है.

Saturday, 13 February 2010

बात जिद की नहीं है यार मेरे ,

बात जिद की नहीं है यार मेरे ,
वो अहसास है दिल के खास मेरे ;
जो रग रग में बसता खूं में बहता ,
वो प्यार है तेरा दिलदार मेरे ,
प्यार तेरा खुशियाँ हैं मेरी ,
साथ तेरा दुनिया है मेरी ,
प्यार मेरा ही जिद है मेरी ,
कैसे त्यागूँ तू सांसे है मेरी ,
कैसे ना मांगू साथ तेरा ,
कैसे ना चाहूँ प्यार तेरा ,
मेरे आखों की दृष्टि तू है ,
मेरे जीवन की सृष्टी तू है ,;
बात जिद की नहीं है प्यार मेरे ,
तुझसे मेरी खुशियाँ हैं दिलदार मेरे /

,वेलेंटाइन वही है

जो याद आता है तन्हाई में,वेलेंटाइन वही है
 जो चुराता है नीदें मेरी,वेलेंटाइन वही है .

 दूर हो के भी जो पास रहे,वेलेंटाइन वही है
 जो लगे सब से प्यारा हमेशा,वेलेंटाइन वही है .

जिसे मैं कहता अपना खुदा,वेलेंटाइन वही है
 सजाता जिसके लिए सपने,वेलेंटाइन वही है .

जिसकी आँखों में डूब जाऊं,वेलेंटाइन वही है
 जिसकी जुल्फों तले सो जाऊं,वेलेंटाइन वही है .

 जिसका साथ चाहूं जिन्दगी भर,वेलेंटाइन वही है
 जो बने हमसफ़र हर राह में,वेलेंटाइन वही है  .

जिसकी खुसबू हो साँसों में ,वेलेंटाइन वही है
 जो गीतों सी मीठी हो,वेलेंटाइन वही है .

 जो हो सौन्दर्य की परिभाषा,वेलेंटाइन वही है
 जो लगे मुझे मेरी राधा सी ,वेलेंटाइन वही है

Friday, 12 February 2010

उससे क्यों ये हाल छुपायें ?

इस दुनिया की हम क्यों माने?
गुनाह इश्क को क्यों जाने ?  

 दिल की बातो को आखिर ,
 क्यों कर सब से हम छुपायें ?

अपनी मर्जी से अपना  जीवन ,
 बोलो क्यों ना जी पायें ?

लगी लगी है दिलमे जो ,
 आखिर उसको क्यों न बुझाएँ ?

 जिसको प्यार किया है मैंने ,
उससे क्यों ये हाल छुपायें ?
  

ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...