Sunday, 9 August 2009

अभिलाषा-१


मेरा अर्पण और समर्पण

सब कुछ तेरे नाम प्रिये ।

श्वास-श्वास तेरी अभिलाषा,

तू जीवन की प्राण प्रिये ।

अभिलाषा-2


तू जीवन सरिता का सरगम

संस्कृति का सोपान है तू ।

सारी सृष्टि समाहित तुझमे ,

धरा का तू आधार प्रिये ।


-अभिलाषा

Saturday, 8 August 2009

आज तुझे फिर जीने का दिल चाहा है /

आज तुझे फिर जीने का जी चाहा है ;

आज फिर यादों ने दिल ललचाया है ;

बारिश की फुहारों में तन भीगा है ;

तेरी यादों में मन भीगा है ;

भाव मचले हैं कितनी तमन्नाओं के साथ ;

याद आ रहे हैं गुजरे वाकयात /

क्या खूब घटा छाई थी ;

भीगी जुल्फों ने मासुकी फैलाई थी ;

बारिश की बौछारों ने , बहती बहारों ने ,

हमारे तन की आतुरता बडाई थी ;

मन पे मदहोशी छाई थी ;

मखमली बदन के बड़ते अहसास ;

मेरे शरारती हाथों के बड़ते प्रयास ;

लरजते होठों का तपते होठों से गहराता विस्वास ;

बेकाबू जजबातों का ,दो बदनों के बिच मचाया वो उत्पात ;

बारिश का मौसम और वो तूफानी रात ;

आज तुझे फिर जीने का जी चाहा है ;

आज फिर यादों ने दिल मचलाया है /

अभिलाषा-2



तनया तू है मानवता की ,
प्रेम भाव की तेरी काया।
तेरे प्रेम का जोग लिया तो,
जोगी बन वन फिरूं प्रिये ।

दर्द दिया है इतना तो --------------------------



दर्द दिया है इतना तो ,
अब तुम थोड़ा प्यार भी दो ।
आँचल की थोडी हवा सही ,
या बांहों का हार प्रिये ।
अभिलाषा -

Friday, 7 August 2009

मेरी अन्तिम साँस की बेला ----------------------------

मेरी अन्तिम साँस की बेला ,
मत देना तुलसी-गंगाजल ।
अपने ओठों का एक चुम्बन ,
ओठों पे देना मेरे प्रिये ।

इससे पावन जग मे पूरे ,
वस्तु ना दूजी कोई होगी ।
इसमे तेरा प्यार भरा ,
और स्वप्न मेरा साकार प्रिये ।

हम जैसों के खातिर ही ------------------


इंतजार हो मौसम का ,
इतना मुझ मे सब्र कँहा ?
हम जैसों के खातिर ही ,
बेमौसम होती बरसात प्रिये ।
-अभिलाषा

ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...