Friday, 10 April 2009

डॉ.रामजी तिवारी ------------------

मुझे इस बात की बेहद खुशी रही की मुझे गुरु के रूप में डॉ.रामजी तिवारी सर का आशीर्वाद मिला । मुंबई विश्विद्यालय और पुणे विश्वविद्यालय से संबद्ध शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो डॉ.रामजी तिवारी के नाम से परिचित ना हो । पूरे देश के हिन्दी समीक्षकों की अगर लिस्ट बनाई जाय तो डॉ.रामजी तिवारी पहले १० समीक्षकों में जरूर गिने जायेंगे । आप का जैसा नाम है वैसा ही आप का स्वभाव भी है । सादगी भरा आपका जीवन और आप की विनम्रता ही वे गुण हैं जो सभी को पसंद आते हैं ।

आज कल की गुट बाजी से दूर आप निरंतर अपने अध्ययन -अध्यापन कार्य में लगे हुए हैं । शोध छात्र के रूप में मैने आप के मार्गदर्शन में ही ph.D का काम पूरा किया। आप के सामने कभी विनम्रता वश कुछ भी नही कह पाया,लेकिन आज अपने ब्लॉग पे आप के प्रति सार्वजनिक रूप से कृतज्ञता ज्ञापित करने का अवसर मैं जरूर लूँगा ।
सर , मैं आप के प्रति आभारी हूँ ।

ऊपर उठना कठिन है जितना ----------

ऊपर उठना कठिन है जितना
गिरना उतना ही आसान
उठाने में विश्वाश का बल
इसमे साहस साथ प्रिये ।

अकर्म पतन का कारण है
कुंठा इसमे कारक है
इसमे केवल दुःख और डर
नही कोई उत्कर्ष प्रिये ।

अंतःकरण शरण की वाणी -------------------------

अन्तःकरण शरण की वाणी
सच्चाई की होती है
जितना सम्भव हो पाये
इसी की मानों बात प्रिये ।

सहज-सरल जीवन की गति
प्रेम अनुभूति से मुमकिन है
मन में बसाओ प्रेम का भाव
फ़िर सब कुछ आसान प्रिये ।

मैं,मेरा का भाव त्यागकर
मन को सच्चा सुख मिलता
आख़िर रोग कहा देता है
सुख रोगी को कभी प्रिये ।

अज्ञान- भरे मन के अंदर
ज्ञान तभी सम्भव है जब ,
विद्या की लाठी लेकर के ,
भाजो इसको नित्य प्रिये ।

हिन्दी की एक और पत्रिका ------------------


हिन्दी की इस पत्रिका का यह ५० वां अंक है । हिन्दी की पूरे देश से कितनी लघु पत्रिका निकलती है ,इस बारे में कोई निश्चित आंकडे नही बताये जा सकते हैं । इसीलिये मेरी यह कोशिस होती है की मैं अपने ब्लॉग के जरिये ऐसी पत्रिकाओ के बारे में आप लोगो को बताता रहूँ ।
यह पत्रिका भाई उमेश सिंह के सम्पादन में मुंबई से निकलती है । इस पत्रिका को प्राप्त करने के लिये आप इस नम्बर पे संपर्क कर सकते हैं। ०९८६९२४०५७२ । पत्र व्यवहार का पता इस प्रकार है
४०१;नर्मदा ,विजय बाग़
मुर्बाद रोड ,कल्याण-पश्चिम
ठाणे , महाराष्ट्र । hindi

अब भी मन में प्रीत है लेकिन -------------------

अब भी मन में प्रीत है लेकिन
पहले जैसा वक्त नही
मैं भी वही हूँ तुम भी वही हो ,
पर नही रही वह कसक प्रिये ।

जीवन के सारे राग -विराग
मेरे तुमसे ही जुडते हैं
पर कोई शिकायत तुमसे हो
निराधार यह बात प्रिये ।

प्रथम प्यार की स्मृतियों में ,
छवि तो बिल्कुल तेरी है
वर्तमान में लेकिन इनका ,
कहा कोई आधार प्रिये ।

इस दुनिया में धर्म देवता
सदियों से हमको बाँट रहे
खंड-खंड पाखण्ड में डूबे
बटे हुवे सब धर्म प्रिये ।

इस पाखंडी धर्म नीति को
प्रेम का रिश्ता तोड़ रहा
ऊपर उठ कर जात-पात से
सभी को यह जोड़े है प्रिये ।

तस्वीरो का खजाना पिकासो ---------

अगर आप अच्छी तस्वीरो के शौखीन हैं तो गूगल की फोटो सेवा के माध्यम से आप पिकासो एल्बम देख और बना सकते हैं । इन तस्वीरो की संख्या बहुत है । ब्लॉग पे इन्हे सीधे up lod किया जा सकता है। इस तरह आप अपने ब्लॉग का सौन्दर्य बढ़ा सकते हैं । आज हर चीज़ का गूगलीकरण हो रहा है । गूगल मानो हमारी आवश्यक्तावो का केन्द्र बिन्दु बन चुका है । मैने भी इस सेवा का लाभ उठा कर आप के लिये कुछ तस्वीरें ब्लॉग पे डाली हैं। आशा है आप को पसंद आयेगी ।

Wednesday, 8 April 2009

तेरी तस्वीर जब देखता हूँ ...................................

तुझे कितना मैं सोचता हूं
तेरी तस्वीर जब देखता हूँ ।
कह न सका कभी जो बात तुमसे ,
वह सब तेरी तस्वीर से कहता हूं ।
जिंदगी खुली किताब की तरह ,
बस तेरे आगे ही खोलता हूं ।
जानबूझकर फरेब खाता हूं
असलियत सब की मगर पहचानता हूं ।
तुम सो जाओ तुम्हे आदत नही ,
मेरा क्या,मैं रात भर जागता हूं ।
(mere blog pay jo tasveer aap dekh rehay hain yah google ki painting seva say hi blog par daali gai hai .ismay mera apna kuch nahi hai .kavitao kay saath tasveer adikh prabhavkari lagti hai.)
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ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...