Sunday, 5 April 2009

माँ जलती रही -------------------------------------------

मैं बोला -'' माँ , दिये की रौशनी जरा जादा करना ,
मैं पढ़ नही पा रहा हूँ । ''
बाप बोला -"अरे ओ , रौशनी कम कर ,
मैं सो नही पा रहा हूँ । "
वह बेचारी रात भर रौशनी कम-जादा करती रही ,
हम दोनों के बीच जीवन भर ,इसी तरह जलती रही ।

(यह कविता मूल रूप में मराठी भाषा में है । मराठी के लोक कवि श्री प्रशांत मोरे जी ने यह कविता सुनाई थी । उसी कविता का यह हिन्दी अनुवाद आप लोगो के लिये प्रस्तुत कर रहा हूँ । )

देखो कितनी गुमसुम माँ ---------------------------------

साथ मेरे है हरदम माँ
हर दर्द पे मेरे मरहम माँ ।

कोई नही है उससे प्यारी ,
सात सुरों की सरगम माँ ।

सुबह-सुबह फूलो पर ,
प्रेम लुटाती शबनम माँ ।

मुझसे जादा मेरी चिंता ,
देखो कितनी गुमसुम माँ ।

घर के अंदर बात-बात पर ,
देखो बनती मुजरिम माँ ।

सब के लिये जादा-जादा ,
पर ख़ुद लेती कम -कम माँ ।

सब की सुनती पर चुप रहती ,
कितना रखती संयम माँ ।

साथ मेरे है हरदम माँ -----------------------------------------------------------------।

Saturday, 4 April 2009

आप लोंगो से निवेदन ------------------------------

आप लोंगो का मैं आभारी हूँ जो आप लोग मेरे ब्लॉग को पढ़ते हैं और कभी-कभी अपनी प्रतिक्रियाओ से अवगत भी कराते हैं । कुछ लोगो को मेरी हिन्दी की शुद्धता को लेकर शिकायत रहती है । लेकिन अगर आप रोज ब्लॉग लिखते हैं तो आप यह समझ सकते हैं कि हिन्दी में ब्लॉग लिखना आसान काम नही है । कभी -कभी अंग्रजी का सही परिवर्तन नही हो पता तो कभी परिवर्तन की प्रक्रिया बीच मे ही रुक जाती है । फ़िर हिन्दी में पहले से लिखा हुआ लेख आप कट -पेस्ट भी तो नही कर पाते । इस लिये यह बहुत जरूरी है कि इन तकनीकी समस्याओं को समझते हुये , हम हिन्दी ब्लागिंग को प्रोत्साहित करे ।
मेरे एक ब्लॉग मित्र ने इस सन्दर्भ मे मुझसे शिकायत की , उनका कहना सही है लेकिन मैं भी तो मजबूर हूँ । हो सकता है कि धीरे -धीरे मैं अपनी हिन्दी टायपिंग मे सुधार ला सकू । मुझे आप लोगो के सहयोग की आवश्यकता है । आशा और विश्वाश है कि आप अपने इस भाई को थोड़ा समय अवस्य दो गे ।
जहा तक मेरे हिन्दी प्रवक्ता होने की बात है तो मैं आप लोगो से विनम्र अनुरोध करना चाहूंगा कि वह एक अलग विषय है । मैं हिन्दी का ब्लॉग लिखकर प्रवक्ता तो बना नही हूँ , हा प्रवक्ता बनकर ब्लॉग लिखने कि कोशिस जरूर कर रहा हूँ । फ़िर आप ही जरा सोचिये कि आप की जानकारी मे हिन्दी के कितने प्रवक्ता हैं जो ब्लागिंग जैसे कार्यो से जुडे हैं ?
आप सभी सुधी पाठक और लेखक हैं .मेरे कहने के तात्पर्य को समझ गये होंगे । अपनी प्रतिक्रिया से अवस्य अवगत कराये ।

Friday, 3 April 2009

गृहस्थी एक बैल गाड़ी है -----------------

गृहस्थी एक बैलगाडी है
बेचार बैल ,कितना अनाड़ी है ।
काम उसी के होते हैं अब ,
जो शुरू से जुगाड़ी है ।
मेरे हांथो मे उनके मेकप का बिल ,
दुशाशन के हाँथ द्रोपती की साड़ी है ।
दुश्मन घर में घुस के मारते हैं ,
किस बात पे चौडी छाती हमारी है ।

तुझसे नजरें मिली तो ------------------------

तुझसे नजरे मिली तो गजब हो गया
प्यार पहली नजर में अजब हो गया ।

नही था जिस मोहब्बत पे यंकी,
ख़ुद उसी का मैं सबब हो गया

नये जमाने की ,यह नई चाल है
हमारे घरो से गायब ,अदब हो गया ।

तेरे आने जाने के बीच मे--------------------

तेरे आने -जाने के बीच मे,क़यामत बीत गयी
मुसीबतें कई थी मगर,मोहब्बत जीत गयी ।

इश्क में मर-मिटना ,सब पुरानी बात है
हीर -रांझे वाली ,चलन से अब प्रीत गयी ।

मिलकर एक साथ ,सभी एक घर मे रहें
बीते दिनों के साथ ,चली यह रीत गयी ।

शर्मिंदा कितना माहताब हुआ ------------------

तेरा चेहरा जब बेनकाब हुआ
शर्मिंदा कितना माहताब हुआ ।

तुने पूछा था मुझसे जो सवाल
पूरा उसी में मेरा जबाब हुआ ।

यार मेरा ,पाकर मोहब्बत का पैगाम
खिल के देखो,हँसी गुलाब हुआ ।

कुछ भी कहो पर अधूरा था
मुझसे मिलके पूरा तेरा शबाब हुआ ।

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