Monday, 31 August 2015

प्रो. एम एम कालबुर्गी की हत्या

बुद्धिवादी वाम-विचारक और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कन्नड़ विद्वान् प्रो. एम एम कालबुर्गी की हत्या उनके घर पर की गई । इससे जुड़ी खबरों के लिए दिये गए लिंक पर क्लिक करें । 
http://www.firstpost.com/india/kalburgi-murder-rationalists-cold-blooded-killing-shocks-karnatakas-literary-capital-2413920.htm

Wednesday, 26 August 2015

यूजीसी माइनर रिसर्च की ऑन लाइन सबमिशन तारीख 31 अगस्त 2015 तक बढ़ाई गई

यूजीसी माइनर रिसर्च की ऑन लाइन सबमिशन तारीख 31 अगस्त 2015 तक बढ़ाई गई ।
Published on 17/08/2015 

आलेख आमंत्रित हैं ।

IJELLH (International Journal of English Language, Literature & Humanities.) invites scholarly unpublished papers on various issues of arts and culture from Professors, Academicians, Research Scholars for Call for Paper for
We felicitate author/authors for the best work as“Best Paper Award” which is selected by our peer and review committee.
Only electronic submission via email will be accepted for publication. Papers can be submitted in the following email addresses:
Click here to know about the Submission Guidelines

Subscription Fee

Subscription & Processing Fee for Online Publication, Rs. 2000 for Indian Authors & 70 US Dollars for Foreign Authors.
( No extra  fee for co authors.)
For Hard-Copy & Certificate, Rs. 3000 for Indian Authors & 120 US Dollars for Foreign Authors.



IIAS फ़ेलोशिप 2015 के लिए आवेदन करें

AWARD OF FELLOWSHIPS 2015

IAAS फ़ेलोशिप 2015 के लिए आवेदन करें 
http://www.iias.org/content/award-fellowships-2015

Call for Applications: 2015 Human Development Fellowships

IIAS शिमला में 2015 की human development fellowships के लिए आवेदन मांगे गए हैं । आप http://www.iias.org/content/call-applications-2015-human-development-fellowships इस लिंक पर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।


UGC में TRAVEL GRANT के लिए आवेदन करें ।

UGC में TRAVEL GRANT के लिए आवेदन माँगे गए हैं । अधिक जानकारी के लिए UGC की WEBSITE http://www.ugc.ac.in/ugc_notices.aspx पर , इस लिंक पर क्लिक करें ।

Published on 25/08/2015

Tuesday, 25 August 2015

सिर्फ़ होने से बात नहीं होती


यूँ तो बात हो जाती है
आज भी
कभी- कभी 
जब भी
लगा कि
दूरियों के बीच में
संवादहीनता
नहीं बचा सकेगी
उनको
जिनका कि बचे रहना
बेहद ज़रूरी है
भले ही वो हों
कहने को सिर्फ़
सपने ।
तो इन सपनों के लिए ही
हो जाती है
आज भी
तुम्हारी और मेरी
कभी-कभी
हमारी भी
बात तो हो जाती है ।
लेकिन सिर्फ़
होने से बात नहीं होती
उसके लिए
होना पड़ता है
किसी का अपना
किसी का सपना
किसी की आँख का पानी
उसके ओठों की मुस्कान
उसका विश्वास और
उसका सिर्फ़ उसका ।
हाँ तो हमारी बात
यूँ तो आज भी होती है
लेकिन
वो बात ना हो तब भी
तुम्हारी हर बात के लिए
आज भी मेरे पास
सुरक्षित है
एक सुंदर सा सपना ।
तुम चाहोगी तो
तो लौट सकेंगी
वही बातें
इन्द्रधनुष के रंगों वाली
चाँद - सितारों वाली
रुठने - मनाने वाली
मेरे शहर बनारस वाली
तुम्हारे शहर की झील वाली
और तुम्हें भाने वाली
हर वो बात जो तुम्हें
खुश करती थी
आज भी है मेरे पास लेकिन
इन बातों के लिए
शायद तुम्हारे पास
अब वक्त ही नहीं ।
मगर फ़िर भी
आज भी
कभी-कभी
हो जाती है
मेरी-तुम्हारी बात
क्योंकि
मेरे पास जिंदा है
एक सपना
मेरा -तुम्हारा
या फ़िर
शायद हमारा ।
                       मनीष कुमार
                        BHU

आप के आलेखों का स्वागत है ।

VEETHIKA-An International Interdisciplinary Research Journal ( 2454-342X ) 

Vol 1 , No. 2 , July - Sep , 2015
के लिए आप अपने आलेख भेज सकते  हैं । 
अधिक जानकारी के लिए http://www.manuscripts.qtanalytics.com/CurrentArticals.aspx?JID=32 इस लिंक पर क्लिक करें । 
आप सभी का वीथिका परिवार में स्वागत है । 

Monday, 24 August 2015

आरती बाबा विश्वनाथ की


मंत्र से गुंजायमान
हो रहा शंखनाद
बड़ा जोर घंटनाद 
आरती हो रही
बाबा विश्वनाथ की ।
एक सुर ,एक ताल
हर कोई है निहाल
भक्ति में हो के लीन
आरती हो रही
बाबा विश्वनाथ की ।
हाँथ जोड़,आँख मूंद
भीड़ में खड़े-खड़े
भक्ति भाव से डेट
आरती हो रही
बाबा विश्वनाथ की ।
तर-बतर हो के भी
झूम रहा हर कोई
उल्लास का प्रचंड रूप
आरती हो रही
बाबा विश्वनाथ की ।
बोल बम का जयकार
हर हर महादेव का
लगा के नारा
आरती हो रही
बाबा विश्वनाथ की ।
अतुलनीय,अद्वितीय
अदभुद,अविस्मरणीय
दिव्य और भव्य
आरती हो रही
बाबा विश्वनाथ की ।
मनीष कुमार
BHU

बनारस में सांड़


गली,मुहल्ला या कि
सड़कों के बीचों बीच
ऊँची-नीची सीढियाँ 
हो घाट या कि चौक
पूरे अधिकार और
मिज़ाज के साथ
आप को दिख ही जायेंगे
बनारस में सांड़।
हस्ट पुष्ट और
गर्व में चूर
कभी मौन समाधी में लीन
कभी आपस में रगड़ते सींग
लड़ते- झगड़ते
उलझते -सुलझते
आप को दिख ही जायेंगें
बनारस में सांड़।
काले-सफ़ेद
चितकबरे और लाल
ये भोले के दुलारे
भोले के ही दुआरे
उन्हीं के ही सहारे
सांझ कि सकारे
आप को दिख ही जायेंगें
बनारस में सांड़।
जीवन के एक अंग जैसे
दिन के एक रंग जैसे
यहाँ - वहाँ
जहाँ - तहाँ
पूँछों न कहाँ -कहाँ
अपने में मस्त
आप को दिख ही जायेंगें
बनारस में सांड़ ।
न कोई लोक लाज
न ही कोई काम काज
बीच सड़क
करते हैं रति
रोककर शहर की गति
विचरते नंग धड़ंग
आप को दिख ही जायेंगें
बनारस में सांड़ ।
शहर की
पहचान के पूरक
शिव के
सनातन सेवक
आज भी
पूरी गरिमा के साथ
आप को दिख ही जायेंगें
बनारस में सांड़ ।
मनीष कुमार
BHU

बनारसी


न जान न पहचान
आप भले हों
पूरी तरह अनजान
मगर बनारसी
साध ही लेगा
आप से
सीधा संवाद ।
यह बनारस की
ख़ासियत है
बनारस
अपनाता है
हर किसी को
बिना किसी भेद भाव के ।
बनारसी भी
इसी अपनेपन की
संस्कृति से
इसकी जड़ों से जुड़े हैं
सो जोड़ना
इनकी आदत में शामिल है ।
खिलखिलाते
मुस्कुराते
पान चबाते
भाँग छानते
ये मिल जायेंगें
घाट पर,दूकान पर
या कि
सरे राह ।
गरियाते हुए
गुरु- गुरु बुलाते हुए
बड़की -बड़की
बतियाते हुए
और देते हुए चुनौती
हर
आम-ओ-ख़ास को ।
ये बनारसी
बकैती के महागुरु
जहाँ मिलें वहीँ शुरू
हर विषय के ज्ञाता
इन्हें सबकुछ है आता
यह भ्रम ही
इन्हें ब्रह्मा बनाये हुए है ।
लगे रहो गुरु -
ई बनारस है
यहाँ कंठ से लंठ
कोई नहीं
सब को
नीलकंठ का आशीष है
बनारसी आदमी
सब पर बीस है ।
मनीष कुमार
BHU

Sunday, 16 August 2015

बनारस की तरह


आधी रात को
यूँ खिड़की से
तुम्हारा चाँद को देखना 
मुझे वैसे ही लगा
जैसे बनारस के
किसी घाट की सीढियों पर
घंटों बैठकर
गंगा की मौज को निहारना ।
मैं जानता हूँ कि
तुम्हारी ख़ामोशी
किसी तपस्वी की
साधना सी है
ऐसी साधना जो
अब बनारस के
मठों में भी
दुर्लभ है ।
मेरे लिए
तुम जितनी
पवित्र और निर्मल हो
उतनी तो अब
गंगा की धार भी नहीं ।
तुम मेरे विश्वास का
वैसा ही केंद्र हो
जैसा बनारस का विश्वास
बाबा विश्वनाथ पर ।
मैं बनारस की
गलियों सा तंग
गोदलिया सा
भीड़ से भरा
और तुम
बी.एच.यू. कैंपस सी
सुंदर,सुव्यवस्थित और
गरिमापूर्ण ।
मैं इस शहर में
शहर का होकर जीता हूँ
और जीना चाहता हूँ
ऐसे ही
तुम्हारा होकर भी ।
बनारस के संगीत सा
तुम्हारे अंदर
घुलना चाहता हूँ
शाम की लंकेटिंग में
तुम्हारा साथ चाहता हूँ
बनारस की होली सा
तुम्हें हर रंग देना चाहता हूँ
पप्पू की अड़ी पर
चाय की चुसकी के साथ
हर मुद्दे पर
तुमसे बहस करना चाहता हूँ
बोलो
क्या तुम
इस शहर
बनारस की तरह
मुझे प्यार कर सकोगी ?

लंकेटिंग


सुबह शाम
लंका तक तफ़री
लंकेटिंग है ।
सिंहद्वार बी.एच.यू.
के ठीक सामने
भारत रत्न
महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी
कि प्रतिमा को साक्षी रख
जुटते रहे हैं
लंकेटिंग के धुरंधर ।
रामनगर और डी.एल.डबलू से
सुंदरपुर और रविन्द्र्पुरी तक से
आ धमकते हैं
छात्र,छात्राएं और प्राध्यापक गण
और भी चारों ओर से
अहोर - बहोर ।
चाय, चायनीज,मोमोज
आमलेट,चिकन,बिरियानी
यादव होटल,सावन रेस्टोरेंट
ओम साईं गेस्ट हाउस
कामधेनु अपार्टमेंट
हेरिटेज और बी.एच.यू. अस्पताल
और इनके दम पर सजी
दवाओं की अनगिनत दुकानें ।
वैशाली स्वीट्स की
छेने का दही वडा
रविदास गेट पर
केशव ताम्बुल भंडार
पहलवान लस्सी
और इनसब के साथ
युनिवर्सल बुक हॉउस और
मौर्या मैगजीन के साथ
कई बैंकों के ए.टी.एम्. ।
जूते- चप्पल और
कपड़ों की दुकानें
जूस और सब्जी के साथ
किराना और इलेक्ट्रानिक
ज़ेरॉक्स और बाइंडिंग के साथ
मोबाईल रिचार्ज और रिपेअरिंग
शेविंग और कटिंग संग
देशी-विदेशी
शराब और भाँग का इंतजाम ।
लंका पर
यह सारी व्यवस्था
इसे खास बनाती है
और लंकेटिंग
लंकावासियों क़ी
दिनचर्या का अंग ।
छात्रों प्राध्यापकों
कि राजनीति
यहाँ परवान चढ़ती है
इश्कबाज
चायबाज और
सिगरेटबाजों के दमपर
यह लंका रातभर
गुलज़ार रहती है ।
समोसा संग लाँगलता
यहाँ सर्व प्रिय है
सर्फ़िंग संग
नई फिल्मों की डाऊनलोडिंग
रुपए 10 में एक है ।
यह लंका
और यहाँ क़ी लंकेटिंग
मीटिंग,चैटिंग और सेटिंग
और जब कुछ न हो तो
महा बकैती
सिंहद्वार पर धरना - प्रदर्शन
फ़िर
पी.ए.सी.रामनगर
और पुलिस ही पुलिस ।
यह सब
यहाँ आम है
क्योंकि यहाँ
हर कोई ख़ास है
कम से कम
मानता यही है ।
लंकेटिंग
एक शैली विशेष है
जो बड़े विश्वविद्यालयों में
आबाद और बर्बाद
होनेवाले
विशेष रूप से जानते हैं ।
लंकेटिंग
ज्ञान का नहीं
अनुभूति का विषय है
तो आइये कभी
लंका - बी.एच.यू.
और खुद को
समृद्ध होने का
अवसर दें ।
डॉ मनीष कुमार ।
BHU

आज़ादी की पूर्व संध्या पर


सत्तर की हो चली है
थोड़ी गदरा भी गई है
इसे खुली हवा के साथ 
महसूस करता हूँ तो
रोमांचित हो जाता हूँ
आखिर आज़ादी
किसे पसंद नहीं ?
लेकिन जिस तरह के
देश के हालात हैं
लगता है
थोड़ी पथ भ्रष्ट तो नहीं
हमारी आज़ादी ?
सबसे अंतिम व्यक्ति
कि आँखों के आँसू
पोंछने वाला वह सपना
इस नई पूँजीवादी व्यवस्था में
हाशिये पर तो नहीं ?
काँटनेवाले दांत तोड़कर
चाटनेवाली जीभ
छोड़ दी गई है क्योंकि
अब क्रांति
लिजलिजी और बेकार बात है
क्योंकि
यह बाजार के अनुकूल नहीं है
है क्या ?
फ़िर ख़ुद की जरूरतों के बीच
हम कितने बाजारू
कितने आत्मकेंद्रित
और कितने फिरकापरस्त
हो गए
यह हमें एहसास है क्या ?
हमारी संवेदन शून्यता
हमें कितना
अमानवीय बना रही है
कभी राष्ट्र और समाज के
सरोकारों के बीच
हमनें जानना चाहा क्या ?
हम एक राष्ट्र के रूप में
जाति धर्म भाषा और प्रांत
से आगे बढ़कर
इस देश का
कितना हो पायें हैं ?
और कितना हो पायेंगें ?
कभी सोचा हमनें ?
जो रोकती हैं
टोकती हैं
सालती हैं
हमें तोड़ती और बाँटती हैं
उन बातों की राजनीति से
खुद को
अलग कर पाये हम ?
अगर नहीं तो फ़िर
आज़ादी की पूर्व संध्या पर
थोड़ा दुखी हूँ
पर ख़ुश भी हूँ क्योंकि
हाँथों में आयी
थोड़ी गदराई
यह आज़ादी
सुकून तो देती ही है ।
आनेवाली चुनौतियाँ
आनेवाला समय
डरा तो रहा है मगर
मुझे अपनी गहरी और
बहुत गहरी
राष्ट्रिय चेतना और संस्कारों पर
सम्पूर्ण विश्वास है
सनातन शाश्वत
मूल्यों और सिधान्तों पर
गहरी आस्था है ।
हम बचेंगें
हम बढ़ेगें
हम चलेंगें
प्रगति के नए पथ पर
अपने और
अपनों के सपनों के साथ ।
आज़ादी का
यह राष्ट्र पर्व
आप सभी को मुबारक
हमें मुबारक
जय हिंद ।
डॉ मनीष कुमार
BHU

Wednesday, 12 August 2015

अस्सी घाट

अस्सी घाट

ऐसे वैसे
जैसे तैसे
न जाने कैसे कैसे
किस्सों कों
गढ़ना और
खिलखिलाकर हँसना
अस्सी की पहचान है ।

गंगा किनारे का
यह बनारसी घाट
किसी भी
हाट बाजार से
कम नहीं है ।

गंजेड़ी,भंगेड़ी
उठल्ले,नसेड़ी
नंग धड़ंग बच्चे और विदेशी
तफ़रीबाज,अड़ीबाज
अस्सी पर
किसी की
कोई कमी नहीं है ।

सीढ़ी ही सीढ़ी
उपस्थित रहती है
यहाँ हर एक पीढ़ी
चाय-पान-सिगरेट
के साथ
बनारसी बोली एकदम ठेठ ।

पंडा- पुरोहित
साधू -संन्यासी
मंडली जमाये
न जाने किन किन
संस्थाओं के न्यासी ।

भोकालबाज,रंगबाज
साधू संतों का साजबाज
फुरसतियों का रेला
जिनके ठेंगे पर
दुनियाँ का कामकाज ।

बंपर बकैती
एक से एक
नेता और नूती
जी भर के गारी
भोसड़ी/भोसड़ो/भोसडिय़ा
की बहार
यही अस्सी की पहचान ।

होटल पिज़ेरिया
सटे रहें छोरे- छोरियाँ
बम बम भोले का नारा
गंगा का किनारा
सुबह-ए-बनारस
से आग़ाज
अस्सी का अलग है मिज़ाज ।

यह अस्सी घाट
बनारस की पहचान है
मुझे तो लगता है
यह बनारस की जान है ।

जब भी आता हूँ यहाँ
कुछ नया पाता हूँ
नयेपन की ठनक का
यह प्राचीनतम घाट
अस्सी ।

यहाँ मस्ती है मौज है
चहल पहल हररोज है
चाहे भोर हो या संध्या
अस्सी पर आनेवाला
हर कोई भाव बिभोर है ।


             मनीष कुमार
             BHU

Tuesday, 11 August 2015

यह पीला स्वेटर

न जाने
कितने दिनों में
तुमने बुना था
मेरे लिए
यह पीला स्वेटर ।

जो सर्दियों के आते ही
बंद आलमारी से निकल
मेरे बदन पर
आज भी सज जाता है ।

कई बार सोचा कि
अब तो तंग हो गया है
रंग भी
हलका हो गया है
सो कोई दूसरा ले लूँ ।

लेकिन न जाने क्यों
इसके जैसा
या कि
बेहतर इससे
अब तक मिला ही नहीं ।

इधर सालों से
तुम भी नहीं मिली
कहीं से कोई
ख़बर भी नहीं मिली तुम्हारी ।

लेकिन ऐसा बहुत कुछ
तुम छोड़ गई हो
मरे पास
जो मुझे तुमसे
आज भी जोड़े हुए है ।

इतने सालों बाद भी
मैंने संजोया हुआ है
तुम्हें
तुमसे जुड़ी
हर एक बात को
हर एक अहसास को ।

हाँ समय के साथ
इस स्वेटर की तरह
बहुत कुछ तंग
और बेरंग हुआ है
मेरे अंदर भी
मेरे बिना
मेरी ही दुनियाँ में ।


लेकिन
जितना भी
तुम्हें बचा पाया
सच कहूँ तो
उतना ही
बचा भी हूँ ।

अब देखो ना
सर्दियाँ अभी शरू भी नहीं हुईं
लेकिन
अक्टूबर की
गर्मी और उमस के बीच भी
जब अधिक बेचैन होता हूँ
तो ये पुराना स्वेटर
पहनकर सोता हूँ ।

एक जादू सा
होता है ।
सुकून मिलता है
पसीने से
तर बतर होकर भी ।

इस स्वेटर में
महसूस करता हूँ
तुम्हारी उंगलियाँ
तुम्हारी ऊष्मा
और तुम्हारा प्यार ।

अब जब की नहीं हो तुम
तुम्हारा दिया
यह स्वेटर
अब भी
बड़ा आराम देता है
सिर्फ़ सर्दियों में ही नहीं
लगभग
हर मौसम में
उन मौसमों में भी
जो मेरे अंदर होते हैं ।

जहाँ किसी और की नहीं
सिर्फ़ और सिर्फ़
तुम्हारी जरूरत होती है
तुम्हारी ऊष्मा ही
वहाँ प्राण शक्ति होती है ।


न जाने किस जादू से
तुमनें बुना था इसे
न जाने किस
ताने-बाने के साथ
कि यह मेरा साथ
छोड़ना ही नहीं चाहता
या कि मैं
इसे ।
             मनीष कुमार
             B H U

मणिकर्णिका

मणिकर्णिका

मणिकर्णिका घाट को
जाने वाली
गली पर
मुड़ते ही
आश्चर्य
इस बात का
कि
यहाँ किसी को
कोई आश्चर्य नहीं होता
मृत्यु पर भी नहीं ।

गली के दोनों तरफ़
वैसे ही दुकाने सजी हैं
जैसे कि
बनारस के
किसी अन्य घाट पर ।

मिठाई,चाय-नमकीन के बीच
पानवाले भी ।
सब्जी,किराना और
कपड़ों के साथ
कफ़न और लकड़ी भी ।

राम नाम सत्य है
के घोष के साथ
लाशों का आना
नियमित
निश्चित
और निरंतरता के साथ ।

यहाँ लाशों का आना
आश्वस्त करता है
इस मरघट के
व्यापार को
व्यापारी खुश हैं कि
एक और आया ।


गंदगी
सीलन
धुएँ और आँच से सनी
यह मोक्ष दायनी
अपने आप में
विलक्षण है ।

नीचे मिट्टी पर सजी चिता
राजा की चौकी की चिता
ऊपर सबसे ऊपर भी चिता
बस चिता ही चिता
चिंता बस इतनी कि
जलने में अभी
कितना और समय ?

क्योंकि पास की
कचौड़ी गली
खोआ गली
और शुद्ध देशी घी के
विज्ञापन वाली
न जाने कितनी दुकाने
याद हैं
उन सभी को
जो अपने किसी को
जलाकर
मुक्त होने के भाव से
भर चुके हैं
और जल्द से जल्द
सिंधिया घाट पर
गंगा नहा
पवित्र हो
शुद्ध देशी घी वाली
मिठाई चाह रहे हैं ।

यह मणिकर्णिका
बनारस को
महा शमशान बनाती है
मोक्ष देती मुर्दों को
तो पुरे बनारस के
पंडे -पुरोहितों को
आश्वश्त करती
जीवन पर्यंत
जीविकोपार्जन क़ी
निश्चिन्तता के प्रति ।

यहाँ संकट हरने के लिए
संकट मोचन
अन्न की निरंतरता के लिए
माँ अन्नपूर्णा
और देवाधिदेव
महादेव स्वयं
आश्वस्त किये हैं
धर्म के कर्म
और कर्म के रूप में
शाश्वत,सनातन
परंपरा और प्रतिष्ठा के
अनुपालन के प्रति ।

सच कहूँ तो
पालन ही ज़रूरी
धर्म के कर्म से
या फ़िर
कर्म के धर्म से ।

मणिकर्णिका
सजती रहे
सँवरती रहे
और
राम नाम सत्य है
इस गूँज के साथ
पालती रहे
पोसती रहे
और देती रहे
मोक्ष भी ।

जीवन और मरण के
रहस्य को
इतनी सहजता से
कोई और
नहीं समझा सकता
जैसे कि
समझाती है
यह मणिकर्णिका ।

यहाँ मृत्यु
एक उत्सव है
संस्कार है
परिष्कार है
और है
जीवन के लिये
हर रूप में
उत्सवधर्मी होने का संदेश ।

आध्यात्म और दर्शन
यहाँ
डोमों के हाँथ के बाँस से
पिटते रहते हैं
और आश्चर्य
समृद्ध भी होते रहते हैं
और
होते रहेंगे
हमेशा ।
             -- मनीष कुमार
                  B H U

Saturday, 8 August 2015

लड्डू



लड्डू सिर्फ़ मिठाई नहीं
मीठे रिश्तों की सौगात
ढ़ेर सारा दुलार
और प्यार भी है ।

माँ के हाँथों का जादू
आतिथ्य का भोग
श्री गणेश का मोह
और बचपन की याद भी है ।

मुझे लगता है
जैसे प्रेम में पगे
ख़ुशी में रंगे
अपनेपन से भरे
और सादगी से सजे
हर एक रिश्ते को
लड्डू ही कहूँ ।

उस दिन
पहली बार
जब कहा तुम्हें लड्डू तो
तुमने अपनी छरहरी काया को निहारा
और बोली -
मैं लड्डू नहीं हूँ
तुम हो ।

तब से आज तक
मैं लट्टू हूँ
तुम पर
और चाहता हूँ कि
तुम हो जाओ
लड्डू ।

ताकि सोच सकूँ
दुनियाँ को
कुछ और
बेहतर बनकर
जिसकी कि शर्त है
मेरी आँखों में
तुम्हारा
लड्डू हो जाना ।

Thursday, 6 August 2015

जब कहता हूँ तुम्हें चुड़ैल तो

15. जब कहता हूँ तुम्हें चुड़ैल तो

जब कहता हूँ तुम्हें
चुड़ैल तो
यह मानता हूँ कि
तुम हँसोगी
क्योंकि
तुम जानती हो
तुम हो मेरे लिये
दुनियाँ की सबसे सुंदर लड़की
जिसकी आलोचना
किसी भी तारीफ़ से
कहीं जादा अच्छी लगती है ।
जिसकी शिकायत
इनायत सी लगती है
जिसका गुस्सा
प्रेम की किसी भी
कविता कहानी से
अधिक पसंद करता हूँ ।
कभी कभी
तो लगता है कि
जीता हूँ इसीलिये ताकि
तुम्हारी कोई उलाहना
सुन सकूँ
और जी सकूँ
तुम्हें सुनते -देखते
और
बुनता रहूँ
हर आती -जाती
साँस के साथ
एक रिश्ता
अनाम
तुम्हारा और मेरा ।
तुम जानती हो
की तुम हो
मेरे लिये
एक ऐसी पहेली
जिसमें उलझना
सुलझने की शर्त है ।
तुम जितना दिखाती हो
उतना नाराज
दरअसल होती नहीं हो
होती हो
प्रेम में पगी
और चाहती हो
हो तुम्हारा
मनुहार ।
मैं भी
कैसे कह सकता हूँ क़ि
तुम सुंदर नहीं हो
वो भी तब जबकि
तुमसे बेहतर
सुंदरता के लिये
मेरे पास
कोई परिभाषा ही नहीं ।
तुम्हें ताना देकर
बुनता हूँ
प्रेम का
ताना - बाना
और जीता हूँ
तुम्हें
तुम्हारी निजता के साथ ।
तुम तृष्णा की
तृषिता
भावों की
आराध्या
जीवन की
उष्मा और गति ।
और इन सब के साथ
मेरी चुड़ैल भी
क्योंकि
एक जादू सा
असर करता है
तुम्हारा खयाल भी ।
तुम्हारा जादू
मेरे सर चढ़कर बोलता है
और मुझमें
मुझसे अधिक
तुमको बसा देता है ।
मुझमें
यूँ तुम्हारा
रचना बसना
वैसा ही है
जैसे कि
वशीभूत हो जाना ।
अब तुम्हीं कहो
कि मेरा तुम्हें
यूँ चुड़ैल कहना
तुम्हें
परी या गुड़िया कहने से
बेहतर
है कि नहीं ?



What should be included in traning programs of Abroad Hindi Teachers

  Cultural sensitivity and intercultural communication Syllabus design (Beginner, Intermediate, Advanced) Integrating grammar, vocabulary, a...