Sunday, 8 May 2022

डॉ. मनीष मिश्रा का प्रथम कहानी संग्रह ‘स्मृतियाँ


 












पुस्तक समीक्षा

डॉ. मनीष मिश्रा के कहानी संग्रह ‘स्मृतियाँ ’ में कुल 11 कहानियाँ हैं। इस संग्रह की कहानियों को पढ़कर कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि यह डॉ. मनीष मिश्रा का पहला कहानी संग्रह है। इस संग्रह की सभी कहानियाँ कथ्य एवं शिल्प की दृष्टि से परिपक्व हैं। कथ्य का विस्तार एवं शैलीगत विविधता ने कहानीकार की छाप मानसपटल पर छोड़ने में सफलता अर्जित की है। इस कहानी संग्रह में संकलित कहानियों मेंजहरा, ‘फोटोरानी, ‘माँ, ‘लॉकडाउन यादव का बाप, ‘स्मृतियाँआदि कहानियों में आत्मकथ्य अर्थात्मैंकी उपस्थिति कहानी के प्रारंभ से ही पाठक को अपने साथ जोड़ते चलती है। इन कहानियों में समाज के अछूते एवं विस्मृत कर दिए गए मुद्दों पर गंभीर चिंतन मिलता है। ऑनर-किलिंग, सेरोगेसी, कोरोना महामारी, सरकारी तंत्र, संयुक्त परिवार का महत्व, निष्छल प्रेम, सामाजिक जागरुकता, तकनीकी महत्व, दुनियादारी आदि सब विषय के रूप में समाने आता है। राजनीति का देश, समाज, ग्राम, परिवार और व्यक्ति पर प्रभाव को भी इन कहानियों में देखा जा सकता है।

नैतिकता की बदली हुई परिभाषा जो आज के समाज में परिलक्षित हो रही है उसका एक संकेत उनकी कहानीनकलधामके मास्टर साहब के इस आत्मकथ्य से मिल जाता है ‘‘उन्हें जाने क्यों लगा कि उनके मुँह के सारे दाँत गिर गए हैं और सिर्फ़ जीभ हर जगह घूम रही है। क्या अब काटने का कोई काम वो नहीं कर सकेंगे ? तो क्या सिर्फ़ चाटना भर ही जीवन में रह जायेगा?’’ आज विमर्शों का जो दौर चल पड़ा है उसके अनुयायियों को इस कहानी संग्रह की कहानियों में ग्रामीण विमर्श, भाषा विमर्श, लोक विमर्श आदि एक-दूसरे के साथ गुँथे हुए एक ही स्थान पर मिल जाएँगे।जहरा, ‘माँऔरफोटोरानी, ‘स्मृतियाँकहानी स्त्रीविमर्ष के जीवंत दस्तावेज माने जा सकते हैं।

कहानीककार की कहानियाँ हर वर्ग और हर उम्र और हर स्तर के पाठको के लिए हैं। यदिवो पहली मुलाकात, ‘वो लड़की, ‘संकोच  जैसी कहानियाँ युवा पाठकों को पसंद आएँगी तोमाँ, ‘स्मृतियाँ, ‘लॉकडाउन यादव का बापजैसे कहानियाँ प्रौढ़ पाठकों को भी रुचिकर लगेंगी।जहराकहानी में बाबूजी द्वारा कहानी की नायिका जहरा की विपत्ति के समय उसको ढाढस बँधाते हुए कहना कि ‘‘तु बिलकुल चिंता मत कर, पूरा गाँव तेरे साथ है। सब तेरी तारीफ़ कर रहे हैं। आराम से घर जा, कोई जरूरत हो तो राम निहोर से कहलवा देना। निहोर तुम्हारे टोले के सबसे जिम्मेदार और सम्मानित आदमी हैं। मेरे भरोसे के हैं, उन्हें मैंने कह दिया है कि तुम्हारा ध्यान रखें। तुम जाओ, सब ठीक हो जायेगा।’’हमारे देश के गाँवों में आज भी जीवित भाईचारे एवं सद्भावना का साक्षी है।

कहानीकार डॉ. मनीष मिश्रा की कहानियों में एक और महत्वपूर्ण बात दृष्टिगोचर होती है वह यह कि उन्होंने अपनी कहानियों के पात्रों के माध्यम से जिस बात को स्थापित करने का प्रयास किया है उस बात को कोरे तर्क, जिरह या साक्ष्य के द्वारा रखने की बजाय उसके पीछे छिपे दर्शन को पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास किया है, जिसके कारण पाठक इन कहानियों से केवल प्रभावित होता है बल्कि इन कहानियों के साथ स्वयं को जोड़ पाता है जिसके कारण उसे अपने जीवन की परिस्थितियों एवं गतिविधियों को समझने में सुविधा होती ही है, कहानीकार के मंतव्य को समझने में भी आसानी रहती है। डॉ. मनीष मिश्रा की कहानियों की यह विशेषता कहानीकला की उस चिरप्रासंगिकता की ओर इशारा करती है जिसने कहानी विधा को आज भी महत्वपूर्ण और प्रासंगिक बनाकर रखा है। इस संग्रह की कहानीवो लड़कीमें कहानीकार का यह कथन कि ‘‘मन तो किया कहूँ कि बनारस में गंगा है जो मारने का नहीं तारने का काम करती हैं, जिंदा ही नहीं मुर्दों को भी। मारने का काम तो वो निगाहें करती हैं जो गहरी बहुत गहरी होती हैं। इतनी गहरी कि डूबनेवाला बस डूबता  ही जाता है और कमाल यह कि डूबनेवाला उबरना भी नहीं चाहता। बस उतरना चाहता है गहरे और गहरे ............’’ कहानीकार के इसी दर्शन की व्याख्या करता है। इस कथन के माध्यम से कहानीकार ने जिस निष्छल प्रेम की ओर संकेत किया है वह अपने शालीन तरीके से पाठक को गुदगुदा भी देता है। 

उनकी कहानीफोटोरानीका प्रारंभिक कथन ‘‘हर नाम के पीछे एक इतिहास, एक भूगोल होता है। हर नाम से जुड़ी एक कहानी भी होती है। मुंशी जानकी नारायण के पुत्र का नाम कबीर था। वे कहते, मैं कबीर साहित्य का बड़ा आलोचक बनना चाहता था। किसी कारण से यह हो नहीं पाया तो मैंनेकबीरका बाप बनने का निर्णय लिया।’’ उनकी कहानीलॉकडाउन यादव का बापभी कहानीकार के इसी कथन का स्वयं-समर्थक है।

संग्रह की कहानियों में कथ्य में चित्रित परिवेश के अनुकूल भाषिक शब्दावली का प्रयोग किया जाना डॉ. मनीष मिश्रा की कहानीकला के प्रति चैतन्यता एवं उनकी सूक्ष्म दृष्टि का परिचायक है। इस संग्रह की कहानीफोटोरानीमें नामकरण के संदर्भ में जो संवाद प्रस्तुत किए गए हैं वे इतने रोचक है कि कहानी की गंभीरता में ज़ज्ब पाठक बिना ठहाका लगाए रह सकेगा। एब बानगी देखिए ‘‘कमला दादा हाथ जोड़कर बोले, ‘‘मास्टर साहब, इसका नाम राजा दशरथ कुमार मिश्र लिख दीजिए।’’ मास्टर साहब बोले, ‘‘राजा रहने दो, सिर्फ़ दशरथ कुमार मिश्र लिख रहा हूँ।’’ यह सुन कमला दादा मास्टर साहब के पैरों में गिर गए और बोले, ‘‘ऐसा जुर्म ना करें मास्टर साहब। जब दशरथ राजा ही नहीं रहेंगे, तब किस काम के? मेरी विनती है आप राजा दशरथ कुमार मिश्र ही लिखें।’’ इसी तरह के ठहाके उनकीविभागीयएवं अन्य कहानियों को पढ़ते समय पाठक के मानस में गूँज उठेंगे।

भाषा के साथ-साथ इस संग्रह की कहानियों में रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोतार्ज, पत्र, आत्मकथा, नाटक, कथा, विवेचन, डायरी, व्यंग्य, यात्रावृत्त, आदि साहित्यिक विधागत शैलियों, प्रवाह, प्रासाद, विक्षेप, व्यास, आत्मालाप, प्रलाप आदि भावगत एवं प्रश्नोत्तर, चित्रात्मक, समास, गवेषणात्मक, उद्धरण आदि कलागत शैलियों का प्रयोग किया जाना उनकी उनकी भाषाशैली पर पकड़ का सूचक है। उनकीसंकोचकहानी से आत्मालाप शैली की एक बानगी देखिए- ‘‘आप सोच रहे होंगे कि इन स्मृतियों की कहानियों में कौन है? अरे, बहुत से लोग हैं। लोग ही नहीं, बहुत से सपने भी हैं। कुछ वे जो टूटकर बिखर गए तो कुछ वे भी जो पूरे हुए। बीते हुए कल की मानों पूरी फ़िल्म यहाँ पड़ी है। यहां बचपन है, जवानी है, वादे-इरादे, प्यार-इकरार, रूठना-मनाना, धोखा-फरेब सब है।’’

उनकीजहरा, ‘फोटोरानी, ‘माँजैसी कहानियों में एक ओर ठेठ-अवधी, ग्रामीण समाज और संस्कृति की झलक देखी भी जा सकने वाली, जाति-धर्म से परे मानव मात्र के प्रति अपनेपन की उस साझा विरासत को महसूस किया जा सकता है, जिसकी कमी आज के समाज एवं परिवेश में सर्वत्र खलती है तो दूसरी ओरनकलधाम, ‘लॉकडाउन यादव का बाप, ‘सरकारी नियमानुसार, ‘विभागीय, ‘वो पहली मुलाकात, ‘वो लड़की, ‘संकोचजैसी कहानियों में परिनिष्ठित हिंदी, प्रचलित उर्दू एवं कार्यालयीन अंग्रेजी की तकनीकी शब्दावली के साथ वर्तमान समय में प्रयुक्त की जा रही हिंग्लिश का प्रयोग भी मिलता है, जो एक पढ़े-लिखे नौकरीपेशा, सामाजिक व्यक्ति के विचारों की कौंधन को व्यक्त करने में सर्वथा सक्षम है ही, कहानीकार की भाषिक पकड़ के दोनों सिरों को साध लेने की कुशलता का परिचायक है।

सारांशतः कहा जा सकता है कि दो सफल और गंभीर काव्य संग्रहों के प्रकाशन के बाद एक कहानीकार के रूप में डॉ. मनीष मिश्रा की कहानियों का यह संग्रह प्रकाशित है उसकी सभी ग्यारह कहानियाँ अपने कथ्य एवं शिल्प दोनों में बेजोड़ हैं। इनकी कहानियों में जो कुछ प्रस्तुत किया गया है वह सभी बड़ी नफ़ासत के साथ जिसको को पढ़ते समय एकसाथ ही प्रेमचंद भी याद आते हैं और मन्नु भण्डारी भी, रेणु भी याद आते हैं और मैत्रेयी पुष्पा भी, उदयप्रकाश भी याद आते हैं और मधु कांकरिया भी। हालाँकिवो पहली मुलाकातऔरवो लड़कीजैसी कहानियों में कहानीकार ने कहीं-कंही भदेश भाषा का प्रयोग भी हुआ है जो स्थानीय शब्दावली में प्रचलित होने के कारण कहानीकार काशीनाथ सिंह की भाषा की बरबस याद दिला देता है, पर कहानी की माँग होने के कारण भदेश भाषा के इस प्रयोग को भाषागत विकृति या कमी की तरह देखकर कथ्य एवं शिल्पगत आवश्यकता के तौर पर देखा जाना चाहिए। तथापि इस कहानी संग्रह की सभी ग्यारह कहानियाँ पाठक को बाँध लेने में पूर्णतः सफल हैं, जिनको पढ़ते समय, समय का आभास ही नहीं रहता। कहानी संग्रह उत्कृष्ट कहानियों का गुलदस्ता है जिसकी सुगंध साहित्याकाष में बिखरने में कहानीकार पूर्णतः सफल है।

डॉ. गजेन्द्र भारद्वाज,

सहायक प्राचार्य हिंदी,

चंद्रमुखी भोला महाविद्यालय डेवढ़ घोघरडीहा मधुबनी बिहार


Thursday, 5 May 2022

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा द्वारा सम्पादित पुस्तकें

 डॉ. मनीष कुमार मिश्रा द्वारा सम्पादित पुस्तकें : 


1.      हिंदी ब्लागिंग : स्वरूप,व्याप्ति और संभावनाएं

युवा साहित्य चेतना मंडल, नयी दिल्ली से वर्ष 2011 में प्रकाशित

 

2.      वेब मीडिया और हिंदी का वैश्विक परिदृश्य

हिन्दयुग्म प्रकाशन, नई दिल्ली से 2013 में प्रकाशित

 

3.      वैकल्पिक पत्रकारिता और सामाजिक सरोकार

हिन्दयुग्म प्रकाशन, नई दिल्ली से 2014 में प्रकाशित

 

4.      Research Canvas

हिन्दयुग्म प्रकाशन, नई दिल्ली से 2015 में प्रकाशित

 

5.      Water: Culture, Economy And Science

आर.के.पब्लिकेशन, मुंबई से वर्ष 2018 में प्रकाशित  

 

6.      जल संसाधन और प्रबंधन

  आर.के.पब्लिकेशन, मुंबई से वर्ष 2018 में प्रकाशित  

 

7.      भारतीय सिनेमा : विचारों का लोकतंत्र और स्त्री

कनिष्का पब्लिशिंग हॉउस, नयी दिल्ली से वर्ष 2019 में प्रकाशित

 

8.      Kaleidoscope of Indian Cinema : From Cacophony of voices to Euphony of Verses

कनिष्का पब्लिशिंग हॉउस, नयी दिल्ली से वर्ष 2019 में प्रकाशित

 

9.      भारत का क्षेत्रीय सिनेमा

कनिष्का पब्लिशिंग हॉउस, नयी दिल्ली से वर्ष 2020 में प्रकाशित

 

10.  रवीन्द्रनाथ टैगोर : सामाजिक प्रतीति के महानायक

कनिष्का पब्लिशिंग हॉउस, नयी दिल्ली से वर्ष 2020 में प्रकाशित

 

11.  शोध विविधा

कनिष्का पब्लिशिंग हॉउस, नयी दिल्ली से वर्ष 2021 में प्रकाशित

 

12.  फणीश्वरनाथ रेणु का संपूर्ण कथा साहित्य

प्रलेक प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई

 

13.  क़व्वाली और सूफी परंपरा

आर.के.पब्लिकेशन, मुंबई से वर्ष 2022 में प्रकाशित  

 

14.  राष्ट्र नायक सरदार वल्लभभाई पटेल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व

आर.के.पब्लिकेशन, मुंबई से वर्ष 2022 में प्रकाशित  

 

 


Wednesday, 6 April 2022

राष्ट्र नायक सरदार वल्लभभाई पटेल: व्यक्तित्व और कर्तृत्व


















 सरदार वल्लभ भाई पटेल पर राष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न ।


गुरुवार दिनांक 24 मार्च 2022 को कल्याण पश्चिम स्थित के. एम. अग्रवाल महाविद्यालय में आज़ादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में "राष्ट्रनायक सरदार वल्लभभाई पटेल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व" विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन हिंदी विभाग द्वारा किया गया। यह परिसंवाद महाविद्यालय के हिंदी विभाग, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद (ICSSR) नई दिल्ली एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया।


    परिसंवाद के बीज वक्ता के रूप में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो रजनीश कुमार शुक्ल उपस्थित थे । उन्हें एनसीसी कैडेट द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया । मुख्य अतिथि के रूप में मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष प्रो राजेश लाल मेहरा, वाणी प्रकाशन नई दिल्ली की निदेशक श्रीमती अदिति माहेश्वरी गोयल, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के पूर्व कार्याध्यक्ष प्रोफेसर शीतला प्रसाद दुबे एवं अकादमी के सदस्य सचिव श्री सचिन निंबालकर उपस्थित थे । समारोह अध्यक्ष के रूप में कॉलेज नियामक मंडल अध्यक्ष डॉ. आर. बी. सिंह उपस्थित थे ।  प्रस्ताविक प्रस्तुत की महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ अनिता मन्ना ने । परिसंवाद के संयोजक एवं हिंदी विभाग में सहायक प्राध्यापक डॉ मनीष कुमार मिश्रा ने उद्घाटन सत्र के संयोजन की भी जिम्मेदारी निभाई । इस अवसर पर कॉलेज नियामक मंडल के सदस्य श्री राजू गवली और श्री कांतिलाल जैन उपस्थित थे । आभार ज्ञापन महाविद्यालय के उप प्राचार्य डॉ राज बहादुर सिंह ने किया । 


दो दिन तक चलने वाले इस आयोजन में कुल छ सत्र रहे । सत्र संयोजक के रूप में डॉ राज बहादुर सिंह, डॉ अनघा राने, डॉ. महेश भिवंडीकर ,डॉ. वैशाली पाटिल एवं डॉ मुनीश पांडेय ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ।  समापन सत्र में महाविद्यालय नियामक मंडल के सचिव डॉ विजय नारायण पंडित जी उपस्थित थे । देश भर से करीब सवा सौ प्राध्यापक और छात्र इस परिसंवाद में सहभागी हुए । परिसंवाद में सहभागी अन्य विद्वानों में प्रो निर्मल कुमार, प्रो मनोज कुमार सिंह, प्रो चमनलाल शर्मा, डॉ चंद्रभान सिंह यादव, डॉ दिनेश जाधव, डॉ. रावेंद्र साहू, डॉ. सच्चिदानंद कालेकर, डॉ. सतीश पाण्डेय, डॉ श्याम सुंदर पाण्डेय, डॉ उमेश शुक्ला, डॉ दिनेश पाठक, डॉ बालकवि सुरंजे, डा संतोष मोटवानी, डॉ रीना सिंह, डॉ सत्यवती चौबे, डॉ मिथलेश शर्मा, डॉ तेज़ बहादुर सिंह, डॉ अनन्त द्विवेदी, प्रो शशिकला राय, डॉ मुकेश वसावा, डॉ ऋषिकेश मिश्रा, डॉ. गजेंद्र भारतद्वाज, डॉ हेमलता, डॉ दीपा, डॉ. मेना सेवंती वडा, डॉ. किरण वट्टी, डॉ. डांगे, डॉ. महात्मा पाण्डेय, डॉ. प्रवीण बिष्ट, डॉ उषा दुबे, डॉ रूपेश दुबे, श्री अमित पंडित, श्री उदय सिंह, श्री विजय वास्तव, श्री बी. के.महाजन, श्रीमती दिव्यांजलि दत्ता, श्रीमती अनिता सिंह, डॉ वीणा सुमन, डॉ पल्लवी प्रकाश, डॉ रमा सिंह, डॉ सुधीर कुमार चौबे, डॉ गीता दुबे, डॉ गुलाब सिंह, डॉ मनीषा पाटिल, श्री प्रदत्त उपाध्याय और डॉ साधना सिंह समेत कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे । श्री उदय सिंह जी ने मीडिया प्रबंधन की जिम्मेदारी कुशलता पूर्वक निभाई । डॉ रूपेश दुबे, श्री अमित पंडित एवं श्री सुहास जी ने पूरे कार्यक्रम का सफलता पूर्वक लाईव टेलीकास्ट यू ट्यूब चैनल पर किया ।

यह दो दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद सफलता पूर्वक संपन्न हुआ ।

उज़्बेकिस्तान में हिंदी

 विश्व हिन्दी दिवस कार्यक्रम                  भारतीय राजदूतावास ताशकंद,उज़्बेकिस्तान की तरफ से विश्व हिन्दी दिवस के उलक्ष्य में कई महत्वपूर्ण...