बोध कथा २३: भ्रूण हत्या
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बहुत समय पहले क़ि बात है ,एक बार जंगल में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस आयोजन के माध्यम से यह निश्चित करना था क़ि जंगल का सबसे चतुर और चालाक पक्षी कौन है.यह निर्णय करने के लिए सभी जानवर जंगल के नदी किनारे जमा हो गये थे.
सभी पक्षियों क़ी तरह नर और मादा कौवे भी वहां आ गए. नर कौवे को पूरा भरोसा था क़ी चुनाव में वही विजयी घोषित किया जाएगा. लेकिन उसके मन में एक आशंका भी थी. वह मादा कौवे से बोला,''सभी लोग हमे चतुर पक्षी समझते हैं. लेकिन तुम्हारी वजह से मेरी नाक कट सकती है. वह कोयल अपने अंडे तुम्हारे घोसले में ड़ाल जाती है और तुम्हे पता भी नहीं चलता .तुम उसके अण्डों को अपना अंडा समझ के पालती हो. तुम भी ना -------''
नर कौवे क़ी बात सुनकर मादा कौवा बोली,''तुम्हारी सोच गलत है.मैं अपने और कोयल के अण्डों को पहचानती हूँ.लेकिन मैं उसके अण्डों को फोड़ नहीं सकती.'' इस नर कौवे ने फिर प्रश्न किया ,''तुम उसके अंडे क्यों नहीं फोड़ सकती ?'' इस पर मादा कौवा बोली,''हम इंसान थोड़े ही हैं जो भ्रूण हत्या करेंगे.मैं इसे पाप समझती हूँ.ये इंसान इस बात को जाने कब समझेंगे ?''
मादा कौवे क़ी बात सुनकर नर कौवे क़ी आँख भर आयी.उसने कहा,''प्रिये मेरी नजरों में अब तुम चालक और चतुर ही नहीं,अपितु सबसे समझदार पक्षी भी हो.मुझे तुमपर गर्व है.''
उन दोनों क़ी बातों को उस सम्मेलन के सभापति शेर ने भी सुन ली.वह मादा कौवे से बड़ा प्रभावित हुआ.अंत में सभापति ने सब को मादा कौवे क़ी विचारधारा से अवगत कराते हुवे,उसे ही विजेता घोषित किया .जंगल के सभी जानवरों ने इस निर्णय का समर्थन किया .
हमे भ्रूण हत्या पर रोक लगानी चाहिए. किसी ने लिखा भी है क़ि----------------------
''भ्रूण हत्या से बढकर के ,जग में दूजा पाप नहीं
ऐसा जो भी कर्म करे,वो हरगिज इंसान नहीं ''
Tuesday, 13 April 2010
Monday, 12 April 2010
हवाओं के झोकों में अहसास भेजा है/
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हवाओं के झोकों में अहसास भेजा है ;उजालों में फैला विश्वास भेजा है ;
.
रातों को तारों को देखना जरा उन सितारों में मोहब्बत की प्यास भेजा है /
।
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हवाओं के झोकों में अहसास भेजा है ;उजालों में फैला विश्वास भेजा है ;
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रातों को तारों को देखना जरा उन सितारों में मोहब्बत की प्यास भेजा है /
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सुनील सवार का ब्लॉग बन गया
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अब आप मशहूर हास्य कलाकार सुनील सवार का ब्लॉग पढ़ सकते हैं.उनके ब्लॉग का लिंक है --
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Sunday, 11 April 2010
बोध कथा २२ : टोपीवाला --------------------
बोध कथा २२ : टोपीवाला
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आप लोगों ने उस टोपीवाले क़ी कहानी तो सुनी ही होगी जो दोपहर को एक पेड़ के नीचे आराम करते हुवे सो जाता है और जब उसकी आँख खुलती है तो वह देखता है क़ि उस पेड़ के सभी बंदर उसकी टोपियाँ लेकर पेड़ पर चढ़ गएँ हैं .अंत में वह टोपी वाला अपनी अक्ल का इस्तमाल करते हुवे अपनी टोपी को निकाल कर अपनी संदूख में फेकता है .उसकी देखा -देखी सारे बंदर भी अपनी टोपी संदूख में फेक देते हैं.इसतरह टोपीवाला अपनी बुद्धिमानी के चलते अपनी सारी टोपियाँ वापस पा जाता है और खुशी-खुशी अपने घर वापस चला जाता है. अब इस कहानी के आगे का भाग आप यंहा पढ़ सकते हैं.-------------------------------------------------------------------
घर वापस आकर टोपीवाला सारी बात अपनी बीबी और छोटे बच्चे रामू को बतलाता है. रामू से वह यह भी कहता है क़ि ,''बेटा ,कभी तुम भी यदि ऐसी ही मुसीबत में पड़ जाओ तो यही तरीका अपनाना .'' रामू ने हाँ में अपना सर हिला दिया. कई दिन बीत गए . अब रामू भी अपने पिताजी के साथ टोपियाँ बेचने के लिए जाने लगा . धीरे -धीरे वह भी इस व्यवसाय में निपुण हो गया . पिताजी अब बूढ़े हो चले थे और टोपियाँ ले कर घूमने क़ी हिम्मत अब उनमे नहीं रह गई थी . इसलिए अब रामू ही यह व्यवसाय करने लगा .
एक बार जब रामू टोपियाँ बेच ने के लिए जा रहा था , तभी तेज धूप के बीच उसने एक पेड़ के नीचे रुक कर रोटी खाने क़ी सोची . पास ही एक पेड़ क़ी छाया में वह बैठ गया और रोटी खाने लगा . रोटी खाने के बाद उसने सोचा क़ी थोड़ी देर आराम कर लिया जाय, फिर आगे चलेंगे . धीरे -धीरे उसकी आँख लग गई .
अचानक जब उसकी आँख खुली तो वह देखता है क़ि उसकी सारी टोपियाँ बक्से में से गायब हैं. पेड़ के ऊपर से शोर -शराबे क़ी आवाज सुनकर जब उसने ऊपर देखा तो वह भौचक्का रह गया . उस पेड़ पर बहुत सारे बंदर थे . उन बंदरो ने उसकी सारी टोपी निकाल ली थी .रामू बहुत परेशान हुआ . उसे समझ में नहीं आ रहा था क़ि वह क्या करे ?. तभी उसे अपने पिताजी क़ी बात याद आई . और उसने भी वही युक्ति लगाते हुवे अपनी टोपी निकाल कर संदूख में फेंक दी . उसे पूरा विश्वाश था क़ि उसकी देखा-देखी बंदर भी ऐसा करेंगे . लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ . बंदरों ने एक भी टोपी नहीं फेकी . वह सर पकड कर बैठ गया . उसे समझ में नहीं आ रहा था क़ि ऐसा कैसे हो गया ? आखिर बंदरों ने इस बार टोपी क्यों नहीं फेकी ?
इतने में बंदरों का सरदार नीचे उतरा और बोला ,''रामू ,अगर तेरे पिताजी ने तुझे सिखाया है तो हमारे बाप ने भी हमे सिखाया है .हमेशा एक ही तरीके से काम नहीं चलता . हमे समय के साथ बदलना चाहिए.लकीर का फकीर कब तक बना रहेगा ? .''
किसी ने लिखा भी है क़ि--------------------
'' समय -दशा सब देखकर ,निर्णय अपना लेना सीखो
सिखी -सिखाई बातों से,हटकर के कुछ करना सीखो ''
(इस कहानी के साथ जो तस्वीर है उस पर मेरा कोई कॉपी राइट नहीं है.यह तस्वीर http://pustak.org:4300/bs/kidsimages/The-capseller-and-the-monkeys-page.ज्प्ग इस लिंक से प्राप्त क़ि गई है . )
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आप लोगों ने उस टोपीवाले क़ी कहानी तो सुनी ही होगी जो दोपहर को एक पेड़ के नीचे आराम करते हुवे सो जाता है और जब उसकी आँख खुलती है तो वह देखता है क़ि उस पेड़ के सभी बंदर उसकी टोपियाँ लेकर पेड़ पर चढ़ गएँ हैं .अंत में वह टोपी वाला अपनी अक्ल का इस्तमाल करते हुवे अपनी टोपी को निकाल कर अपनी संदूख में फेकता है .उसकी देखा -देखी सारे बंदर भी अपनी टोपी संदूख में फेक देते हैं.इसतरह टोपीवाला अपनी बुद्धिमानी के चलते अपनी सारी टोपियाँ वापस पा जाता है और खुशी-खुशी अपने घर वापस चला जाता है. अब इस कहानी के आगे का भाग आप यंहा पढ़ सकते हैं.-------------------------------------------------------------------

एक बार जब रामू टोपियाँ बेच ने के लिए जा रहा था , तभी तेज धूप के बीच उसने एक पेड़ के नीचे रुक कर रोटी खाने क़ी सोची . पास ही एक पेड़ क़ी छाया में वह बैठ गया और रोटी खाने लगा . रोटी खाने के बाद उसने सोचा क़ी थोड़ी देर आराम कर लिया जाय, फिर आगे चलेंगे . धीरे -धीरे उसकी आँख लग गई .
अचानक जब उसकी आँख खुली तो वह देखता है क़ि उसकी सारी टोपियाँ बक्से में से गायब हैं. पेड़ के ऊपर से शोर -शराबे क़ी आवाज सुनकर जब उसने ऊपर देखा तो वह भौचक्का रह गया . उस पेड़ पर बहुत सारे बंदर थे . उन बंदरो ने उसकी सारी टोपी निकाल ली थी .रामू बहुत परेशान हुआ . उसे समझ में नहीं आ रहा था क़ि वह क्या करे ?. तभी उसे अपने पिताजी क़ी बात याद आई . और उसने भी वही युक्ति लगाते हुवे अपनी टोपी निकाल कर संदूख में फेंक दी . उसे पूरा विश्वाश था क़ि उसकी देखा-देखी बंदर भी ऐसा करेंगे . लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ . बंदरों ने एक भी टोपी नहीं फेकी . वह सर पकड कर बैठ गया . उसे समझ में नहीं आ रहा था क़ि ऐसा कैसे हो गया ? आखिर बंदरों ने इस बार टोपी क्यों नहीं फेकी ?
इतने में बंदरों का सरदार नीचे उतरा और बोला ,''रामू ,अगर तेरे पिताजी ने तुझे सिखाया है तो हमारे बाप ने भी हमे सिखाया है .हमेशा एक ही तरीके से काम नहीं चलता . हमे समय के साथ बदलना चाहिए.लकीर का फकीर कब तक बना रहेगा ? .''
किसी ने लिखा भी है क़ि--------------------
'' समय -दशा सब देखकर ,निर्णय अपना लेना सीखो
सिखी -सिखाई बातों से,हटकर के कुछ करना सीखो ''
(इस कहानी के साथ जो तस्वीर है उस पर मेरा कोई कॉपी राइट नहीं है.यह तस्वीर http://pustak.org:4300/bs/kidsimages/The-capseller-and-the-monkeys-page.ज्प्ग इस लिंक से प्राप्त क़ि गई है . )
Saturday, 10 April 2010
राहों पे निकले हो खुशियाँ और उत्साह लाना ;
आखें खुली हुई थी ,हवाएं महकी हुई थी ;
निहार रहा था उनको ;सांसे रुकी हुई थी /
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निहार रहा था उनको ;सांसे रुकी हुई थी /
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राहों पे निकले हो खुशियाँ और उत्साह लाना ;
रास्ते में हसना गुनगुनाना और खुशबुए साथ लाना ;
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ख्वाब को हकीकत करना और मेरी मोहब्बत पास लाना .
लम्हे सजाना मन खिलाना और कुछ हंसी पल साथ लाना ;
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राहों पे निकले हो खुशियाँ और उत्साह लाना ;
अपना वजूद बढाना पर अपना अस्तित्व साथ लाना /
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बोध कथा २१ : अनोखी प्रतियोगिता
बोध कथा २१ : अनोखी प्रतियोगिता
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बहुत पुरानी बात है. एक नगर में एक ज्ञानरंजन नामक राजा राज करता था . वह हमेशा अपने राज्य में अनोखी स्पर्धाएं आयोजित करता था. वह दूर-दूर तक अपने इसी स्वभाव के लिए जाना जाता था एक बार राजा ने निर्णय लिया क़ी वह शांति पे एक चित्र काला स्पर्धा का आयोजन कराये गा.शान्ति पर सर्वोत्तम चित्र बनाने वाले कलाकार को पुरस्कार देने की घोषणा की .
अनेक कलाकारों ने प्रयास किया .सभी ने अपनी छमता के अनरूप कड़ी मेहनत क़ी. राजा ने सबके चित्रों को देखा परन्तु उसे केवल दो ही चित्र पसंद आए और उसे उनमे से एक को चुनना था ।एक चित्र था शांत झील का .चारों ओर के शांत ऊंचे पर्वतों के लिए वह झील एक दर्पण के सामान थी .ऊपर आकाश में श्वेत कोमल बादलों के पुंज थे .जिन्होंने भी इस चित्र को देखा उन्हें लगा कि यह शान्ति का सर्वोत्तम चित्रण है । दूसरे चित्र में भी पर्वत थे परन्तु ये उबड़ -खाबड़ एवं वृक्ष रहित थे .ऊपर रूद्र आकाश था जिससे वृष्टिपात हो रहा था और बिजली कड़क रही थी .पर्वत के निचले भाग से फेन उठाता हुआ जलप्रपात प्रवाहित हो रहा था ,यह सर्वथाशान्ति का चित्र नही था ।
परन्तु जब राजा ने ध्यान से देखा ,तो पाया कि जलप्रपात के पीछे की चट्टान की दरार में एक छोटी सी झाड़ी उगी हुई है .झाडी पर एक मादा पक्षी ने अपना घोसला बनाया हुआ था .वहाँ ,प्रचंड गति से बहते पानी के बीच भी वह मादा पक्षी अपने घोसले पर बैठी थी -पूर्णतया शांत अवस्था में !राजा ने दूसरे चित्र को चुना .उसने स्पष्ट किया ,शान्ति का अभिप्राय किसी ऐसे स्थान पर होना नही है ,जहाँ कोईकोलाहल ,संकट या परिश्रम न हो ,शान्ति का अर्थ है इन सब के मध्य रहते हुए भी ह्रदय शांत रखना । शान्ति का सच्चा अर्थ यही है .हमे अपनी स्थितियों के बीच से ही समाधान भी निकालना चाहिए.
किसी ने लिखा भी है क़ि-------------------------------
'' जितना भी हो कठिन समय, राह वही से निकलेगी
जब घोर अँधेरा होता है, तब भोर पास ही होती है ''
(यह कहानी योग मंजरी से ली गई है. इस पर उन्ही का कॉपी राईट है. हमारा नहीं. )
बोध कथा २०: आराम और प्रगति
बोध कथा २०: आराम और प्रगति
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घनश्यामपुर नामक एक गाँव में सोहन कुमार नामक एक युवक रहता था. वह एक व्यापारी पुत्र था.लेकिन उसे बहुत अधिक धन का लालच नहीं था .वह जितना है उसी में संतोष करनेवाला व्यक्ति था. वह सुबह जल्दी उठता ,नहा-धो कर भगवान् के मंदिर जाता.मंदिर से आने के बाद अपनी दुकान खोलता और शाम को दुकान बंद कर सारा समय परिवार के साथ बिताता था .उसकी यह नियमित दिनचर्या थी.अपने परिवार भर का कमाकर वह आराम क़ि जिंदगी बिता रहा था.
सोहन के एक चाचा थे रामनारायण .रामनारायण सुबह उठते ही जल्दी से दुकान खोलने क़ी फिराक में रहते. शाम को भी देर तक दुकान चालू रखते. २ का ४ कैसे बनाया जाय ,इसी चिंता में हमेशा डूबे रहते. वे कमाते तो सोहन से जादा लेकिन परिवार के साथ सुकून के दो पल बिता नहीं पाते.
एक दिन अचानक जब उनकी और सोहन क़ी मुलाक़ात हुई तो वे सोहन से नाराजगी व्यक्त करते हुवे बोले,''तुम बड़े आलसी हो. सुबह दुकान भी देर से खोलते हो.शाम को जल्दी बंद कर देते हो. फ़ालतू घर पे समय बिताते हो. अगर जादा देर काम करोगे तो जादा कमाओगे .घर पे रह कर क्या करोगे ?'' चाचा क़ी बातें सुन कर सोहन ने पहले तो उनका हाँथ पकडकर उन्हें खाट पर बिठाया. फिर बड़ी ही शांति से पूछा ,''अच्छा चाचा ,एक बात तो बताओ.जादा पैसा कमा कर हम क्या करेंगे ?'' उसके इस सवाल पे भड़कते हुवे रामनारायण ने कहा ,''बड़े बेवकूफ हो भाई. अरे जादा कमाओगे तो जादा पैसा मिले गा.जादा पैसा मिले गा तो एक क़ी दो दुकान कर सकते हो,फिर दो क़ी चार और चार क़ी दस.देहते ही देखते तुम इतने अमीर बन जाओगे क़ी कुछ करने क़ी जरूरत ही नहीं पड़ेगी ,मजे से बीबी-बच्चों के बीच आराम करना .''
जब चाचा क़ी बात ख़त्म हुई तो सोहन मुस्कुराते हुवे बोला,''तो चाचा ,ले -दे कर नतीजा तो यही निकला ना क़ि हम जादा कमाकर अपने बीबी-बच्चों के साथ आराम से रहेंगे ,तो वही काम तो हम आज भी कर रहे हैं .फिर आप हमसे नाराज किस बात पर हैं ?''
सोहन क़ी बात सुनकर ,उसके चाचा का मुंह खुला का खुला रह गया. फिर सोहन ने ही उन्हें समझाते हुवे कहा ,''देखो चाचा, पैसे के पीछे अँधा होकर भागते रहना जिन्दगी नहीं है. पैसा हमारे लिए होता है,हम पैसे के लिए नहीं हैं. जिस इच्छा का कोई अंत नहीं है ,उससे कोई खुशी नहीं मिल सकती. अपना परिवार,अपने सम्बन्ध इन सब को डॉ किनार कर पैसे के पीछे अपना सुख-चैन नहीं खोना चाहिए. हम अपनी जरूरत पूरी कर सकें और अपनी छमता के अनुसार किसी क़ी थोड़ी बहुत मदद कर सकें,बस धन इतने के लिए ही है .''
किसी ने इसीलिए लिखा भी है क़ि-----------------------
'' साईं इतना दीजिये ,जामे कुटुंब समाय
मैं भी भूखा ना रहूँ ,साधू ना भूखा जाय ''
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घनश्यामपुर नामक एक गाँव में सोहन कुमार नामक एक युवक रहता था. वह एक व्यापारी पुत्र था.लेकिन उसे बहुत अधिक धन का लालच नहीं था .वह जितना है उसी में संतोष करनेवाला व्यक्ति था. वह सुबह जल्दी उठता ,नहा-धो कर भगवान् के मंदिर जाता.मंदिर से आने के बाद अपनी दुकान खोलता और शाम को दुकान बंद कर सारा समय परिवार के साथ बिताता था .उसकी यह नियमित दिनचर्या थी.अपने परिवार भर का कमाकर वह आराम क़ि जिंदगी बिता रहा था.
सोहन के एक चाचा थे रामनारायण .रामनारायण सुबह उठते ही जल्दी से दुकान खोलने क़ी फिराक में रहते. शाम को भी देर तक दुकान चालू रखते. २ का ४ कैसे बनाया जाय ,इसी चिंता में हमेशा डूबे रहते. वे कमाते तो सोहन से जादा लेकिन परिवार के साथ सुकून के दो पल बिता नहीं पाते.
एक दिन अचानक जब उनकी और सोहन क़ी मुलाक़ात हुई तो वे सोहन से नाराजगी व्यक्त करते हुवे बोले,''तुम बड़े आलसी हो. सुबह दुकान भी देर से खोलते हो.शाम को जल्दी बंद कर देते हो. फ़ालतू घर पे समय बिताते हो. अगर जादा देर काम करोगे तो जादा कमाओगे .घर पे रह कर क्या करोगे ?'' चाचा क़ी बातें सुन कर सोहन ने पहले तो उनका हाँथ पकडकर उन्हें खाट पर बिठाया. फिर बड़ी ही शांति से पूछा ,''अच्छा चाचा ,एक बात तो बताओ.जादा पैसा कमा कर हम क्या करेंगे ?'' उसके इस सवाल पे भड़कते हुवे रामनारायण ने कहा ,''बड़े बेवकूफ हो भाई. अरे जादा कमाओगे तो जादा पैसा मिले गा.जादा पैसा मिले गा तो एक क़ी दो दुकान कर सकते हो,फिर दो क़ी चार और चार क़ी दस.देहते ही देखते तुम इतने अमीर बन जाओगे क़ी कुछ करने क़ी जरूरत ही नहीं पड़ेगी ,मजे से बीबी-बच्चों के बीच आराम करना .''
जब चाचा क़ी बात ख़त्म हुई तो सोहन मुस्कुराते हुवे बोला,''तो चाचा ,ले -दे कर नतीजा तो यही निकला ना क़ि हम जादा कमाकर अपने बीबी-बच्चों के साथ आराम से रहेंगे ,तो वही काम तो हम आज भी कर रहे हैं .फिर आप हमसे नाराज किस बात पर हैं ?''
सोहन क़ी बात सुनकर ,उसके चाचा का मुंह खुला का खुला रह गया. फिर सोहन ने ही उन्हें समझाते हुवे कहा ,''देखो चाचा, पैसे के पीछे अँधा होकर भागते रहना जिन्दगी नहीं है. पैसा हमारे लिए होता है,हम पैसे के लिए नहीं हैं. जिस इच्छा का कोई अंत नहीं है ,उससे कोई खुशी नहीं मिल सकती. अपना परिवार,अपने सम्बन्ध इन सब को डॉ किनार कर पैसे के पीछे अपना सुख-चैन नहीं खोना चाहिए. हम अपनी जरूरत पूरी कर सकें और अपनी छमता के अनुसार किसी क़ी थोड़ी बहुत मदद कर सकें,बस धन इतने के लिए ही है .''
किसी ने इसीलिए लिखा भी है क़ि-----------------------
'' साईं इतना दीजिये ,जामे कुटुंब समाय
मैं भी भूखा ना रहूँ ,साधू ना भूखा जाय ''
Friday, 9 April 2010
मैंने मोहब्बत को दी आग दर्दे दिल को नूर कर दिया
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हवा ऐ तूफान ने जब चिराग को बेनूर कर दिया ;
मैंने मोहब्बत को दी आग दर्दे दिल को नूर कर दिया /
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दिल ऐ बेकशी जब तासीर बन गयी ,मैंने तुझे नसीब कर दिया ;
तेरी बेवफाई का सितम इतना था की तुझे मैंने तकदीर कर दिया /
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मेरी तकलीफों पे हँसने की तेरी आदत हसीन है ;
मैंने अपनी मुश्किलों को तेरी हंसी का जमीर कर दिया /
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बोध कथा १९ : बहेलिया आएगा ,जाल बिछाएगा -------------------------------
बोध कथा १९ : बहेलिया आएगा ,जाल बिछाएगा -------------------------------
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एक बार क़ि बात है, नीलगिरी के जंगलों के पास के गाँव में एक बहेलिया रहता था. पक्षियों को पकडकर उन्हें बेचना ही उसका काम था. वह अपने काम में बड़ा निपुण था. जाल लगाने और पक्षियों को फसाने में वह माहिर था.
एक दिन जब वह जाल बिछा कर बैठा था तो जाने कंहा से एक तोता जाल पर बिखेरे दानों के लालच में वंहा आ गया और जाल में फंस गया. जब वह बहेलिया उस तोते को लेकर अपने घर क़ि तरफ जा रहा था,तभी एक साधू उसे मिले.तोते को तडपता हुआ देख कर उन्होंने बहेलिये से कहा क़ि ,''अरे बहेलिये, कई दिनों से मुझे एक तोते कई तलह थी.मैं उसे पालना चाहता था.क्या तुम यह प्यारा सा तोता मुझे दोगे ? मैं मुफ्त में नहीं लूँगा .तुम्हे इसके बदले उचित मूल्य भी दूंगा .''
साधू क़ी बात सुनकर बहेलिया बड़ा खुश हुआ .उसे तो तोता बेचना ही था. सो उसने उचित मूल्य लेकर तोता साधू को दे दिया.तोता लेकर साधू बाबा अपने आश्रम पहुंचे. और उन्होंने निर्णय लिया क़ी वे तोते को शिक्षित करेंगे ,जिससे यह तोता जंगल के अन्य पक्षियों को भी जागरूक कर सके. फिर क्या था !,साधू जी ने उस तोते को रटाना शुरू किया क़ि-बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
अब तोता रोज यही वाक्य सुन-सुन कर उसे बोलने लगा .वह हमेशा यही बोलता रहता क़ि --
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे -
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
साधू को यकीन हो गया क़ि अब तोता पूरी बात सीख गया है. उन्होंने तोते को जंगल में वापस छोड़ने का निर्णय लिया. तोता जंगल में जा कर खुश था. उसने लगभग जंगल के सभी पक्षियों को यह रटा दिया क़ि -
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
जब यह बात बहेलिये को पता चली तो वह बड़ा निराश हुआ. उसे लगा क़ि अब कोई भी पक्षी उसके जाल में नहीं फसेंगे. लेकिन फिर भी वह जंगल में गया और उसने पहले क़ी ही तरह जाल बिछाकर उसपर दाने ड़ाल दिए. थोड़ी देर में ह एक तोता आकर दाने खाने लगा.उसके पीछे पूरा का पूरा झुण्ड चला आया. बहेलिया बड़ा खुश हुआ. वह जल्द ही सभी तोतों को समेटकर ले जाने लगा.वह मस्ती से चला जा रहा था और सभी तोते वही रट लगाये हुवे थे क़ि-
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है क़ि हमे सिर्फ किसी बात को तोते कीतरह रटना ही नहीं चाहिए अपितु उसका अर्थ भी समझना चाहिए. ज्ञान वही है जो समझ लिया जाय ,रटी हुई विद्या जादा उपयोगी नहीं होती . किसी ने लिखा भी है क़ि ----- '' समझ -बूझकर ज्ञान को ,करना आत्मसाथ
वरना वक्त पड़ेगा जब,तब मलोगे केवल हाथ ''
इस तोते क़ी तस्वीर मुझे parrotarchive.blogspot.com/ से प्राप्त हुई है. इसपर मेरा कोई कॉपी राईट नहीं है
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एक बार क़ि बात है, नीलगिरी के जंगलों के पास के गाँव में एक बहेलिया रहता था. पक्षियों को पकडकर उन्हें बेचना ही उसका काम था. वह अपने काम में बड़ा निपुण था. जाल लगाने और पक्षियों को फसाने में वह माहिर था.
एक दिन जब वह जाल बिछा कर बैठा था तो जाने कंहा से एक तोता जाल पर बिखेरे दानों के लालच में वंहा आ गया और जाल में फंस गया. जब वह बहेलिया उस तोते को लेकर अपने घर क़ि तरफ जा रहा था,तभी एक साधू उसे मिले.तोते को तडपता हुआ देख कर उन्होंने बहेलिये से कहा क़ि ,''अरे बहेलिये, कई दिनों से मुझे एक तोते कई तलह थी.मैं उसे पालना चाहता था.क्या तुम यह प्यारा सा तोता मुझे दोगे ? मैं मुफ्त में नहीं लूँगा .तुम्हे इसके बदले उचित मूल्य भी दूंगा .''

अब तोता रोज यही वाक्य सुन-सुन कर उसे बोलने लगा .वह हमेशा यही बोलता रहता क़ि --
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे -
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
साधू को यकीन हो गया क़ि अब तोता पूरी बात सीख गया है. उन्होंने तोते को जंगल में वापस छोड़ने का निर्णय लिया. तोता जंगल में जा कर खुश था. उसने लगभग जंगल के सभी पक्षियों को यह रटा दिया क़ि -
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
जब यह बात बहेलिये को पता चली तो वह बड़ा निराश हुआ. उसे लगा क़ि अब कोई भी पक्षी उसके जाल में नहीं फसेंगे. लेकिन फिर भी वह जंगल में गया और उसने पहले क़ी ही तरह जाल बिछाकर उसपर दाने ड़ाल दिए. थोड़ी देर में ह एक तोता आकर दाने खाने लगा.उसके पीछे पूरा का पूरा झुण्ड चला आया. बहेलिया बड़ा खुश हुआ. वह जल्द ही सभी तोतों को समेटकर ले जाने लगा.वह मस्ती से चला जा रहा था और सभी तोते वही रट लगाये हुवे थे क़ि-
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे
इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है क़ि हमे सिर्फ किसी बात को तोते कीतरह रटना ही नहीं चाहिए अपितु उसका अर्थ भी समझना चाहिए. ज्ञान वही है जो समझ लिया जाय ,रटी हुई विद्या जादा उपयोगी नहीं होती . किसी ने लिखा भी है क़ि ----- '' समझ -बूझकर ज्ञान को ,करना आत्मसाथ
वरना वक्त पड़ेगा जब,तब मलोगे केवल हाथ ''
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Thursday, 8 April 2010
उम्मीदे वफ़ा है की तू मिल जाये
उम्मीदे वफ़ा है की तू मिल जाये ,
यादों का फलसफा है की तू मिल जाये ;
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वर्षों का इंतजार लाजमी है की निराशा छाये ;
मेरे जनाजे को यकीं है तू मिल जाये /
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Labels:
हिंदी शायरी .उम्मीद

हास्य कलाकार सुनील सावरा का पूरा परिचय
हास्य कलाकार सुनील सावरा का पूरा परिचय
Bio-Data
Name : Sunil Pathak Sawara
Occupation : Standup comedian
Host / Actor
Script writer / Poet
Telecast : Star One – Punjabi Chakdai Laughter Champion
Great Indian laughter challenge 2 (finalist)
Sony TV – Commedy Circus (First Top Three Finalist)
NDTV Imagin – Raju hagir ho
Sahara One – Comedy Champion
India TV – Just Laugh Baki Maaf
Zee News – Special Report (Ganga Kai Kinari gudgudi
Live India – Kya Baat hai (many episode)
Zee Smile – Hasya Kavi Mukabla (performer script writer)
Mahua TV – Special episode
Audio : 1) Merai guru prabhudev (Bhajan) Lyrics writer
2) Gori Teri Bhigi Chunari, Tips Holi songs Lyrics writer
3) Bhang Ki goli Mahuva ka holi, Tips Holi somng lyrics writer
4) Hasya Maev Jaitai, Tips (Poetry) Layrics writer
5) Hasi Kai Husgullai poetry, Tips Lyrics – Writer
6) Kamha Bhai Nirdaiya Tall Tarang company Layrics writer
Film : As a Actor
1) Ishq wishk total kisk
2) Bhawnavo ko samjho
3) Baglwali Jaan Maaraili (Bhojpuri)
Stage Show (Live) : More than 700 stages live show all over India
and abroad as comedian & host.
Book as a writer : 1) Srijam Sambarbh (poetry book)
2) Thali Mai Chaid (poetry)
Awards / prizes : 1) Uttar Pradesh Yuva Samma on by the --------- of honor Shrimati
Hema Malini in 2007 at Mumbai by ABHIYAN SANSTHA.
2) Hindi Srijan Puraskar Gov. of Karnataka in 2005.
3) Yuva Kavi Protsahaan –
Puraskar in 2006 by home ministry of India.
4) Hasya Shiromani Award in 2007 at delhi.
5) Chhatrapat Shivaji Puraskar in 2009 at नन्देद
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