Tuesday 14 February 2012

मेरी उड़ीसा यात्रा का पहला दिन

आज सुबह जैसे ही ट्रेन के डिब्बे से बाहर निकला डॉ . कमलनी पाणिग्रही मैडम अपने उसी चिर- परिचित अंदाज और मुस्कुराते चेहरे के साथ भुवनेश्वर स्टेशन पर मिली । मैं उनके साथ उनके घर आया जो स्टेशन से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था । घर पर उनके पिताजी , माताजी , बड़ी बहनों और भतीजी से मिला । सभी बड़े अपनेपन के साथ मिले । कमलनी मैडम इन दिनों स्काउट गाइड ट्रेनिंग कैम्प कर रही हैं , इसलिए वे 8.30 तक कैम्प चली गयी । मैं नहा-धो कर तैयार हुआ और माताजी ने नास्ते में उड़िया डोसा खिलाया और चाय पिलायी। फिर मैं कमलनी जी की दो बड़ी बहनों के साथ भुवनेश्वर घूमने निकल पड़ा ।

सबसे पहले हम लिंगराज मंदिर गए । मंदिर में कैमरा ले जाना मना था, इसलिए वहाँ की कोई तस्वीर नहीं निकाल सका । वहाँ दर्शन करना एक सुखद अनुभव रहा । मंदिर में भगवान को दीप जलाकर उनकी स्तुति की गयी । वहाँ से हम लोग शांति पगोडा ( स्तूप ) देखने निकल पड़े। रास्ते में द्या नदी पड़ी जिसके किनारे अशोक ने कलिंग का युद्ध लड़ा था और पूरी नदी के पानी को रक्त से लाल कर दिया था । पगोडा बड़ा भव्य था । वंहा पर लेटे हुवे भगवान बुद्ध की मूर्ति भी देखी । वंही एक शिवमंदिर भी हैं जहाँ मैंने बौर लगे आम के पेड़, ओरिसा के काजू और काले गणेश जी की मूर्ति के साथ बौद्ध प्रार्थना कक्ष देखा । वहाँ की शांति और पवित्रता ने मन मोह लिया ।
वहाँ से हम लोग मुक्तेश्वर मंदिर आए । यहाँ सूर्य घड़ी , प्राचीन मूर्तियों के साथ कुछ कुंड भी देखे । यह मंदिर बड़ा ही सुंदर और मोहक लगा । यहाँ से हम फिर एक और ऐतिहासिक जगह आए , जो मुख्य रूप से गुफाओं से भरी हुई प्राचीन ओपन थीएटर जैसा कुछ था, नाम है उदयगिरि और खंडगीरी । यहाँ इन दिनों मेला भी लगा हुआ है । ख्ंड्गिरि के ऊपर एक दिगंबर जैन मंदिर है जहाँ कई भव्य मूर्तिया देखने को मिली । आज वेलेंटाइन डे था तो प्रेम रत कई सुंदर जोड़ियों के भी दर्शन सुखद रहे , किसी की याद ताजा हो गयी ।






वहाँ से हम कलिंगा काटेज नामक एक होटल में आए और दोपहर का भोजन किया । वहाँ से फिर नंदन कानन के लिए निकल पड़े । नंदन कानन में सफेद टाईगर , घड़ियाल , हिरण , लकडबगहा , दरियाई घोडा , साँप और कई जानवरों को देखा । पक्षियों वाला भाग बर्ड फ्लू के कारण बंद था । नन्दन कानन तब तक घूमते रहे जब तक थक नहीं गए । वहाँ से निकले तो एक मिठाई की दुकान पर कई तरह की मिठाइयों का भोग लगाया , मजा आ गया । अब वापस घर पर हूँ और सारे फोटो फ़ेस बुक पर अपलोड कर रहा हूँ । बाकी अभी कल जगन्नाथ जी के दर्शन करने हैं और कोणार्क मंदिर भी जाना है । बहुत थका हूँ, आराम से सो जाता हूँ ताकि कल फिर घूमने जा सकूँ

Monday 13 February 2012

आज जब वैलेंटाईनडे है

आज जब वैलेंटाईनडे है,

यार बस तुम ही याद आयी हो ।

इतने सालों बाद भी,

राख़ के नीचे दबे अंगार सी ,

तुम ही, बस तुम ही याद आयी हो ।

टूटे सपनों और रिश्तों के बावजूद ,

हर साँस के साथ छूटी आस के बावजूद ,

किसी और का होने, हो जाने के बावजूद,

सालों बिना किसी मुलाक़ात के बावजूद ,

अब मोबाइल में तुम्हारा नमबर न होने के बावजूद,

आज जब वैलेंटाईनडे है,

यार बस तुम ही याद आयी हो ।

ऐसा इसलिए क्योंकि ,

वो जो हमारे बीच का विश्वास था

वो आज भी कायम है और

हमेशा रहेगा ।

इसलिए जब भी  वैलेंटाईनडे आयेगा,

शुभे,  बस तुम ही याद आओगी ।

Sunday 12 February 2012

ब्लॉगिंग पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला संपन्न

 


कार्यशाला को संवोधित करते रवीन्द्र प्रभात,साथ में डा. अनिता मन्ना
कार्यशाला को संवोधित करते रवीन्द्र प्रभात,साथ में डा. अनिता मन्ना

मुम्बई। पिछले दिनों मुम्बई का प्रवेश द्वार माने जाने वाले कल्याण के के. एम. अग्रवाल कॉलेज में ब्लॉग लेखन पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन हुआ,जिसमें ब्लॉगिंग क्या ? ब्लॉगिंग क्यों? ब्लॉगिंग किसके लिए? ब्लॉगिंग के क्या फायदे ? ब्लॉगिंग कैसे ? आदि विषयों पर हिंदी के मुख्य ब्लॉग विश्लेषक रवीन्द्र प्रभात ने खुलकर चर्चा की । वे इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि थे,जिसकी अध्यक्षता की महाविद्यालय की प्राचार्या डा. अनिता मन्ना ने और संचालन किया महाविद्यालय के हिंदी विभाग प्रभारी डा. मनीष कुमार मिश्र ने ।



प्रश्न पूछते प्रतिभागी
प्रश्न पूछते प्रतिभागी
इस अवसर पर रवीन्द्र प्रभात ने कहा कि ” लोग ब्लॉग को भले ही व्यक्तिगत डायरी के रूप में लिखते हैं, किन्तु अंतरजाल पर आ जाने के बाद उसे पूरा विश्व पढ़ता है । इसलिए मैं ब्लॉग को निजी डायरी नहीं मानता । यह वह खुला पन्ना है , जो सारी दुनिया में आपके विचार को विस्तारित करता है । इसलिए जो भी आप लिखें उसे दुबारा जरूर पढ़ें । क्या लिखा है , उसके क्या परिणाम हो सकते हैं इसपर विचार अवश्य करें । ध्यान दें- आपका लिखा हुआ कई सालों बाद सन्दर्भ के लिए लिया जा सकता है ।” कार्यशाला में पूछे गए एक प्रश्न “ब्लॉगिंग से व्यक्तित्व विकास कैसे संभव है” के उत्तर में उन्होंने कहा कि “हर व्यक्ति में कोई -न-कोई गुण अवश्य होते हैं, जो उन्हें औरों से अलग करते हैं । अपने इन्हीं गुणों को ढूंढिए और ब्लॉगिंग के माध्यम से उसका विकास कीजिये । इससे आपकी सेल्फ स्टीम में इजाफा होगा और आप खुद को लेकर अच्छा महसूस करेंगे।”


उपस्थित प्रतिभागी
उपस्थित प्रतिभागी
दिनांक 03.02.2012 को आयोजित इस कार्यशाला में ब्लॉग शिष्टाचार पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि “यदि आपको एक कुशल ब्लॉगर के रूप में छवि विकसित करनी है तो सबसे पहले आपको भाषा के व्याकरण पर विशेष ध्यान केन्द्रित करना होगा । यह सही है कि ब्लॉग आपका पर्सनल मामला है और इसे किसी भी भाषा में और कैसे भी लिखने के लिए आप स्वतंत्र हैं । फिर भी आप चाहते हैं कि आपकी लेखनी अधिक से अधिक लोग पढ़ें तो भाषा और वर्तनी की शुद्धता पर अवश्य ध्यान देना होगा । व्याकरण एकदम शुद्ध रखने का प्रयास करना होगा । यदि उसमें कोई गलती हो तो संज्ञान में आते ही सुधारने का प्रयास करें । इसके अलावा गलती मानने की प्रवृति अपनाएं , क्योंकि कोई भी हमेशा सही नहीं हो सकता । यदि आपसे जाने-अनजाने में कोई गलती हो जाए तो वजाए तर्क-वितर्क के गलती मान लेनी चाहिए । इससे दूसरों की नज़रों में आपका सम्मान बढेगा । एक और महत्वपूर्ण बात है ब्लोगिंग के सन्दर्भ में कि ब्लॉग पढ़ने के लिए किसी को भी बाध्य न करें ,क्योंकि इससे आप अपनी प्रतिष्ठा खो देंगे । एक-दो बार लोग आपका मन रखने के लिए टिप्पणी तो कर देंगे ,किन्तु आपके पोस्ट से उनकी दिलचस्पी हट जायेगी । और हाँ कोशिश यह अवश्य करें कि कोई भी टिप्पणी आप अपने नाम से ही करें , क्योंकि लोग आपके विचारों को पहचानते हैं । अपनी पहचान को क्षति न पहुचाएं । स्वयं के प्रति ईमानदार बने रहें । एक और महत्वपूर्ण बात कि लेखन की जिम्मेदारी लेना लेखक की विश्वसनीयता मानी जाती है । कोई हरदम आपकी तारीफ़ नहीं कर सकता , कभी आपको कटाक्ष का दंश भी झेलना पड़ता है ऐसे में कटाक्ष पर शांत रहना सीखें ताकि आप उस आग में जलकर कंचन की भांति और निखर सकें ।”
(मुम्बई से मनीष कुमार मिश्र की रपट)