Wednesday, 19 March 2025

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आचार्य श्रीराम शर्मा (1911-1990)

  आचार्य श्रीराम शर्मा (1911-1990) भारतीय संत, योगी और समाज सुधारक थे, जिनकी जीवन यात्रा ने भारतीय समाज के अनेक पहलुओं में बदलाव की लहर पैदा की। वे हिंदू धर्म के महान प्रवर्तक और आदर्शवादी थे। उन्होंने जीवन के विभिन्न पहलुओं को सरलता, शांति और परमात्मा के प्रति भक्ति की दृष्टि से समझने की कोशिश की। आचार्य राम शर्मा का योगदान न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से था, बल्कि उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों और सामाजिक असमानताओं को दूर करने के लिए भी निरंतर प्रयास किए। इस लेख में हम आचार्य श्री राम शर्मा के जीवन, उनके कार्यों और उनके योगदान को विस्तार से जानेंगे।

1. प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

आचार्य श्री राम शर्मा का जन्म २० सितम्बर १९११ को उत्तर प्रदेश के आलमनगर नामक स्थान में हुआ था। उनका प्रारंभिक जीवन बेहद साधारण था, लेकिन उन्होंने बचपन से ही अपनी बुद्धिमत्ता और आध्यात्मिक जागरूकता को दिखाया। उनके माता-पिता एक सामान्य किसान परिवार से थे, लेकिन उनके अंदर से जो अद्वितीय ज्ञान और समझ का स्रोत निकला, वह उनके जीवन के मार्ग को प्रबुद्ध कर गया।

आचार्य श्री राम शर्मा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने घर के पास के स्कूल से प्राप्त की थी। वे अत्यधिक जिज्ञासु थे और हमेशा नई चीजों को जानने के लिए प्रेरित रहते थे। प्रारंभ में उन्हें धार्मिक पुस्तकों और वेदों का अध्ययन करने का अवसर मिला, जो बाद में उनके जीवन का आधार बने।

2. तात्त्विक और धार्मिक दृष्टिकोण

आचार्य श्री राम शर्मा ने भारतीय धार्मिक परंपराओं को एक नए दृष्टिकोण से देखा। वे वेदों, उपनिषदों, और भगवद गीता के गहरे अध्येता थे, लेकिन उन्होंने इन ग्रंथों को केवल एक धार्मिक काव्य या आदर्श नहीं समझा, बल्कि उन्हें जीवन के वास्तविक संघर्षों और समस्याओं के समाधान के रूप में देखा। उनका मानना था कि धर्म का उद्देश्य केवल पूजा-अर्चना और कर्मकांडों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि समाज में व्याप्त असमानताओं और अन्याय के खिलाफ संघर्ष करना भी उसका अभिन्न हिस्सा होना चाहिए।

उनका तात्त्विक दृष्टिकोण भी सरल और व्यावहारिक था। उन्होंने एक सशक्त समाज की आवश्यकता पर जोर दिया, जहां सभी लोग समान अधिकारों का享वित करें और धार्मिक विश्वास के नाम पर किसी को भी शोषित या उत्पीड़ित न किया जाए। उन्होंने यह सिद्ध किया कि केवल बाहरी धार्मिक दिखावे से आत्मा की शुद्धि नहीं होती, बल्कि अपने कर्मों और आचरण में सत्यता और नैतिकता का पालन करना महत्वपूर्ण है।

3. यज्ञ आंदोलन और आचार्य श्री राम शर्मा का योगदान

आचार्य श्री राम शर्मा ने एक विशाल यज्ञ आंदोलन की शुरुआत की, जो भारतीय समाज के बदलाव की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम था। यज्ञ उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया, और उन्होंने इसके माध्यम से भारतीय संस्कृति के प्राचीन तत्वों को पुनः जीवन्त करने का कार्य किया। यज्ञ को उन्होंने न केवल धार्मिक अनुष्ठान के रूप में देखा, बल्कि समाज के लिए एक शुद्धता और सद्गुण का माध्यम भी माना।

आचार्य श्रीराम शर्मा के यज्ञ आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भारतीय समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन लाना था। उन्होंने यह मान्यता दी कि यज्ञों के माध्यम से सामाजिक उत्थान, मानसिक शांति और जीवन में स्थिरता लाई जा सकती है। इसके अलावा, उन्होंने यज्ञों को धार्मिक अनुष्ठान से बाहर निकालकर समाज के हर वर्ग तक पहुँचाने का प्रयास किया। यह आंदोलन आज भी अनेक स्थानों पर जारी है और इसके प्रभाव से समाज में अनेक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले हैं।

4. गायत्री परिवार और इसके उद्देश्यों का प्रचार

आचार्य श्रीराम शर्मा का एक और महत्वपूर्ण कार्य था गायत्री परिवार का गठन। गायत्री मंत्र, जो भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, को उन्होंने साधारण जनमानस तक पहुँचाने के लिए विशेष रूप से प्रचारित किया। उनका मानना था कि गायत्री मंत्र के नियमित जाप से व्यक्ति को मानसिक शांति और आत्मिक उन्नति प्राप्त हो सकती है।

गायत्री परिवार का उद्देश्य था समाज में एकता, शांति और मानवता के सिद्धांतों को फैलाना। उन्होंने यह देखा कि वर्तमान समाज में अधिकतर लोग भौतिकता और तात्कालिक सुखों की ओर बढ़ रहे हैं, जबकि उन्हें अपने आत्मिक विकास पर ध्यान देना चाहिए। गायत्री मंत्र और इसके तात्त्विक उद्देश्य ने भारतीय समाज को एक नए दिशा में प्रेरित किया, जहां आध्यात्मिकता और सामाजिक सुधार एक साथ आगे बढ़े।

5. सामाजिक सुधार और परिवर्तन

आचार्य श्रीराम शर्मा ने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों और असमानताओं को समाप्त करने के लिए निरंतर संघर्ष किया। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों को लेकर कई आंदोलन किए, और यह सुनिश्चित किया कि समाज में हर वर्ग को समान अवसर प्राप्त हो। उनका मानना था कि एक सशक्त और प्रबुद्ध समाज तभी बन सकता है, जब प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिले।

उन्होंने अंधविश्वास, पाखंड और जादू-टोना के खिलाफ भी आवाज उठाई। वे यह मानते थे कि समाज में जो भी धार्मिक कुरीतियाँ फैली हैं, उनका निराकरण केवल शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से ही संभव है। उन्होंने अपने यज्ञ और प्रवचनों के माध्यम से लोगों को यह समझाया कि धर्म का वास्तविक उद्देश्य केवल मुक्ति प्राप्त करना नहीं है, बल्कि समाज के हर व्यक्ति को सम्मान और सुरक्षा देना है।

6. पुस्तकें और लेखन

आचार्य श्रीराम शर्मा का लेखन भी अत्यंत प्रभावशाली था। उन्होंने कई पुस्तकें और लेख लिखे, जिनमें उन्होंने भारतीय संस्कृति, धर्म, और समाज के सुधार के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। उनकी प्रमुख पुस्तकों में "गायत्री महिमा", "साधना के रहस्य", "समाज सुधार" और "यज्ञ के उद्देश्य" जैसी पुस्तकें शामिल हैं। इन पुस्तकों के माध्यम से उन्होंने लोगों को आत्म-सुधार की दिशा में मार्गदर्शन किया और उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास किया।

7. अंतिम समय और धरोहर

आचार्य श्रीराम शर्मा का निधन 1990 में हुआ, लेकिन उनका प्रभाव आज भी भारतीय समाज में गहरा है। उनके द्वारा स्थापित किए गए संगठन, जैसे गायत्री परिवार, आज भी उनके द्वारा किए गए कार्यों और दृष्टिकोण को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके विचारों ने भारतीय समाज को एक नया दृष्टिकोण दिया, जो आज भी लोगों के जीवन में परिवर्तन ला रहा है।

आचार्य श्री राम शर्मा की धरोहर केवल उनके विचारों और उनके द्वारा किए गए कार्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके द्वारा स्थापित किए गए संगठन और उनके अनुयायी उनके जीवन के मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं। उनका जीवन यह सिखाता है कि यदि व्यक्ति अपने उद्देश्य के प्रति सच्चा और समर्पित होता है, तो वह समाज में बड़े बदलाव ला सकता है।

भारतीय ज्ञान परंपरा और उज़्बेकिस्तान: भाग एक

भारतीय ज्ञान परंपरा और उज़्बेकिस्तान: भाग एक 


                    भारतीय ज्ञान परंपरा अपनी प्राचीनता और व्यापकता में अद्वितीय है। यह केवल धार्मिक और आध्यात्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक, साहित्यिक और तकनीकी रूप से भी समृद्ध रही है। आज के वैश्वीकृत समाज में, भारतीय ज्ञान परंपरा की पुनः खोज और प्रचार-प्रसार आवश्यक है ताकि यह भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहे। भारतीय ज्ञान परंपरा हजारों वर्षों से मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है। इसकी जड़ें वेदों, उपनिषदों, पुराणों, आयुर्वेद, गणित, खगोल विज्ञान, साहित्य और दर्शन में गहराई से जुड़ी हैं। यह परंपरा न केवल भारतीय समाज को दिशा देने में सहायक रही है, बल्कि पूरे विश्व पर इसका प्रभाव पड़ा है। दूसरी ओर, उज़्बेकिस्तान ऐतिहासिक रूप से भारत के साथ गहरे सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंधों से जुड़ा रहा है। सिल्क रूट (रेशम मार्ग) के माध्यम से हुए व्यापार, बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार और इस्लामी ज्ञान परंपरा के विकास में इन दोनों सभ्यताओं का योगदान अविस्मरणीय है। 

               भारतीय ज्ञान परंपरा चार वेदों - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद - से जुड़ी है। इसके अलावा, ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद, पुराण, महाकाव्य (रामायण और महाभारत) और अन्य ग्रंथों में विज्ञान, गणित इत्यादि विषयों से संबन्धित ग्रंथ आते हैं । ऋग्वेद विश्व की सबसे प्राचीन ज्ञात साहित्यिक रचना है, जिसमें ऋचाओं के माध्यम से ब्रह्मांड, देवताओं और यज्ञ पर चर्चा की गई है।ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञ संबंधी विस्तार मिलता है, जबकि उपनिषदों में अद्वैतवाद और आत्मा-परमात्मा के गूढ़ तत्वों पर विचार किया गया है। इसी तरह यजुर्वेद में यज्ञों की विधियाँ वर्णित हैं। सामवेद में संगीत और छंद पर विशेष ध्यान दिया गया है। अथर्ववेद में चिकित्सा, तंत्र और जादू-टोने संबंधी ज्ञान मिलता है।, खगोलशास्त्र, चिकित्सा और दर्शन का विस्तृत उल्लेख मिलता है। भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य ने शून्य की खोज, दशमलव प्रणाली, बीजगणित और त्रिकोणमिति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सुश्रुत और चरक संहिता में चिकित्सा और शल्य चिकित्सा के विस्तृत वर्णन मिलते हैं। सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत जैसे भारतीय दर्शन शास्त्रों ने तर्क और ज्ञान परंपरा को समृद्ध किया। वराहमिहिर और आर्यभट्ट ने खगोलीय गणनाओं में योगदान दिया, जिसका प्रभाव मध्य एशिया और इस्लामी विज्ञान पर भी पड़ा। 

Tuesday, 18 March 2025

ताशकंद के इन फूलों में

 

ताशकंद के इन फूलों में केवल मौसम का परिवर्तन नहीं,

बल्कि मानव जीवन का दर्शन छिपा है। फूल यहाँ प्रेम, आशा, स्मृति, परिवर्तन और क्षणभंगुरता के प्रतीक हैं।उनकी बहार दिल के भीतर छिपी सूनी जमीन पर भी रंग और सुवास बिखेर जाती है। जैसे थके पथिक को किसी अनजानी जगह अपना गाँव दिख जाए — वही अपनापन, वही मिठास।फूलों की झूमती डालियाँ — जीवन के उतार-चढ़ाव की छवि,कभी तेज़ हवा में झुकतीं, तो कभी सूर्य की ओर मुख उठातीं।उनमें नश्वरता का भी बिंब है —पलभर की खिलावट, फिर मुरझाना,मानो कहती हों, "क्षणिक जीवन में ही सौंदर्य है।"

हवा में तैरती सुगंध — कोई इत्र नहीं,बल्कि बीते समय की स्मृतियाँ,

जो अनायास ही मन के बंद दरवाजों को खोल देती हैं।हर फूल — एक कविता, हर पंखुड़ी — एक अधूरी प्रेम-कहानी।फूलों की इस बहार में एक सन्देश छुपा है —

रंग भले अलग हों, खुशबू एक-सी होती है,

जैसे जीवन में विभिन्नता के बावजूद,

मूल में प्रेम, शांति और सुंदरता की गूँज होती है।










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ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...