Tuesday, 2 May 2023

Morning Quotes

 : Waking up this morning, I smile. 24 brand new hours are before me. I vow to live fully in each moment….Good Morning 🌹

: A happy person is happy, not because everything is right in his life. He is happy because his attitude towards everything in his life is right….Good Morning 🌹🌹🌹

: Two things define you: 

1. Your patience when you have nothing. 

2. Your attitude when you have everything.

..Good Morning 🌹🌹🌹

: Most obstacles melt away when we make up our minds to walk boldly through them….Good Morning 🌹🌹🌹

: The difference between winning and losing is most often not quitting….

🌹🌹Good Morning 🌹🌹

: Courage is grace under pressure…🌹🌹Good Morning 🌹🌹:

 Never give up on a dream because of the time it will take to accomplish. The time will pass anyway….

🌹🌹Good Morning 🌹🌹

: Develop success from failures. Discouragement and failure are two of the surest stepping stones to success.

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

: Now that your eyes are open, make the sun jealous with your burning passion to start the day. Make the sun jealous or stay in bed.

🌹🌹Good Morning 🌹🌹:

 Nobody can go back and start a new beginning, but anyone can start today and make a new ending

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

: The morning is good because we remember that no matter what went wrong the previous days, we just got a perfect opportunity to rewrite history and do better

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

: "If life were predictable it would cease to be life, and be without flavor."

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

: The day will be what you make it, so rise, like the sun, and burn

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹:

 Success is not final; failure is not fatal: It is the courage to continue that counts.

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

 Do not go where the path may lead, go instead where there is no path and leave a trail.

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

: Being defeated is often a temporary condition. Giving up is what makes it permanent

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹:

 Never let the fear of striking out keep you from playing the game.

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

: It’s Sunday, therefore I am 100% motivated to do nothing today

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹:

 In one minute you can change your attitude, and in that minute you can change your entire day.

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

: An obstacle is often an unrecognized opportunity.

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

 The line between failure and success is so fine... that we are often on the line and do not know it.

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

 There was never a night or a problem that could defeat sunrise or hope.

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

: The importance of good people in our life is just like the importance of heartbeats. It's not visible but silently supports our life. 

🌹🌹Good Morning 🌹🌹

: “Be thankful for problems. If they were less difficult, someone with less ability might have your job.

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

: Be not afraid of going slowly, Be afraid only of standing still.🌹🌹Good Morning 🌹🌹

: People will have you, rate you, shake you, and break you. But how strong you stand is what makes you.

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

: Even the smallest of thoughts have the potential to become the biggest of successes. All you have to do is get up and get going. 

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

: “It is a serious thing – just to be alive – on this fresh morning – in this broken world.”

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

 Every morning you have two choices: Continue to sleep with your dreams, or wake up and chase them

🌹🌹 Good Morning 🌹🌹

दया प्रकाश सिन्हा के जन्मदिन पर डॉ हर्षा त्रिवेदी का महत्वपूर्ण आलेख

  मंच के पुजारी : दया प्रकाश सिन्हा 

- डॉ.हर्षा त्रिवेदी 

    विवेकानन्द इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज

     नई दिल्ली 




             आज 2 मई, प्रसिद्ध नाटककार और पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार दया प्रकाश सिन्हा जी का जन्मदिन है। दया प्रकाश जी के साहित्य पर मेरा यह शोध आलेख प्रस्तुत है ।

         आदरणीय दया प्रकाश सिन्हा जी को जन्मदिन की अनंत शुभ कामनाएं।


हिन्दी साहित्य का अपना समृद्ध इतिहास है। साहित्य की विभिन्न विधाओं में नाटक का महत्वपूर्ण स्थान है। वस्तुतः नाटक एक कला है। संगीत, नृत्य, चित्रांकन, रंगाकन के समान ही एक कला होते हुए भी नाट्य-कला इन कलाओं से भिन्न है। नाटक एक द्वि-आयामी कला विधा है। जो कला के साथ साहित्य भी है। कुछ नाटक ऐसे होते हैं, जो साहित्य की दृष्टि से तो श्रेष्ठ होते हैं, किन्तु रंगमंच पर उनकी प्रस्तुतियाँ असफल सिद्ध होती हैं। साथ ही कुछ नाटक ऐसे होते हैं, जो रंगमंच पर तो अत्यन्त सफल सिद्ध होते हैं, किन्तु उनमें साहित्यगत मूल्यों का नितान्त अभाव होता है। अतः नाटक की सफलता के लिए साहित्यगत मूल्यों के साथ-साथ मंचसिद्ध होना भी अनिवार्य है।  

दया प्रकाश सिन्हा हिन्दी के वर्तमान नाटककारों में एकमात्र ऐसे नाटककार हैं, जो निर्देशक के रूप में भी रंगमंच से संबंद्ध हैं। वे प्रकाशन के पूर्व, अपने नाटकों को स्वयं निर्देशित करके, मंचसिद्ध करते हैं। यही तथ्य उनको अन्य नाटककारों से अलग पहचान देता है।

दयाप्रकाश सिन्हा नाम के इस युवा कला-साधक का जन्म पश्चिमी उŸार प्रदेश के एटा ज़िले के कासगंज कस्बे में 2 मई, 1935 को हुआ। पिता श्री अयोध्यानाथ सिन्हा सरकारी सेवा में थे, और माता का नाम श्रीमती स्नेहलता। बचपन से ही सिन्हा जी की नाटक एवं रंगमंच में विशेष रूचि रही है। उनके नाटकों में इतिहास चक्र, ओह अमेरिका, कथा एक कंस की, सीढ़ियाँ, इतिहास, अपने-अपने दाँव, रक्त अभिषेक (प्रकाशित) एवं मन के भँवर, मेरे भाई : मेरे दोस्त, सादर आपका, सांझ-सवेरा, पंचतंत्र लघुनाटक (बाल-नाटक), हास्य एकांकी संग्रह, दुश्मन (प्रकाशनाधीन) आदि प्रमुख है।

सत्य-असत्य, हिंसा-अहिंसा, राजनीतिक कूचक्र, पीढी-अन्तराल आदि अनेक ऐसे प्रश्न है, जिनसे हम जूझ रहे हैं। यह हमारी ‘विशेषता‘ है या ‘विवशता‘ ? इन प्रश्नों को दयाप्रकाश जी ने अपनी समर्थ लेखन-शक्ति द्वारा रूपायित किया है। इनके नाटकों में वर्तमान घटनाक्रम को इस तरह पिरोया गया है कि पाठक के मस्तिष्क में परिस्थितियाँ जीवन्त हो उठती हैं।

सिन्हा जी समाज-इतिहास-राजनीति को दूरदर्शी यन्त्र से देखते हैं। इनके नाटकों में शाश्वत नैतिक मूल्य और समकालीन भौतिक मूल्यों के संघर्ष को रूपायित किया गया है। संरचना के स्तर पर भी दयाप्रकाश सिन्हा के नाटकों का अध्ययन महŸवपूर्ण है। रंगमंच की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए सिन्हा जी ने ऐसे नाटक लिखे जो केवल एक ही दृश्यबन्ध पर मंचस्थ हो सके। 

समकालीन विसंगत परिवेश में उलझे और परिस्थितियों के चक्रव्यूह में फँसकर टूटते हुए मनुष्य को वे कभी ऐतिहासिक पौराणिक संदर्भों के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं तो कभी सामाजिक विसंगतियों से सीधा साक्षात्कार भी कराते हैं। कभी व्यक्ति के अन्तर्मन और उसके स्वार्थी चरित्र को दृश्यत्व देते हैं तो कभी उनकी दृष्टि पाश्चात्य सभ्यता के अन्धानुकरण से उत्पन्न असहज स्थितियों और उनके परिणामों से उत्पन्न खीझ और व्याकुलता के साथ-साथ पीढ़ियों की वैचारिक टकराहटों और हताशा पर भी केन्द्रित हुयी है। सिन्हा जी ने अपने नाटकों द्वारा व्यापक जीवन-स्थिति एवं शाश्वत जीवन मूल्यों को उद्घाटित किया है। वे वास्तव में जीवन की आस्था के नाटककार हैं। 

बाजारीकरण के इस दौर में मनुष्य की भाव संवेदनाओं में व्यापक परिवर्तन आए है। वैचारिक धारणाएँ बदली हैं। इस बदलाव के समय में साहित्य के माध्यम से सुषुप्त संवेदनाओं को पुनर्जाग्रत करने एवं नैतिक मूल्यों की स्थापना में सिन्हा जी के नाटकों का विशिष्ट योगदान है।

सिन्हा जी का जीवनयापन कभी किसी लेखन पर आधारित नहीं रहा। इसलिए लिखना कभी भी उनकी विवशता नहीं रहा। यह उनकी व्यक्तिगत साधना है। उन्होंने जो भी लिखा, अपनी अन्तःप्रेरणा से लिखा उन्होंने अपने को स्थापित करने के उद्देश्य से कभी नहीं लिखा।

उनका ‘इतिहास-चक्र‘ एक युद्ध विरोधी नाटक है। यह नाटक उन कारणों का अध्ययन करता है, जिनके कारण समय-समय पर युद्ध होते रहते है। पुरातन एवं आधुनिक सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था के उस अमानवीय तन्त्र को इसमें रूपायित किया गया है, जिसमें जकड़ा हुआ आम आदमी भूख, अभाव, बेरोजगारी, शोषण और वंचनाओं की मार झेलता हुआ मृत्यु को प्राप्त होता है। ‘ओह ! अमेरिका‘ नाटक विरोध करता है उन तमाम विवेकहीन भारतीयों का जिनके आचरण, व्यवहार एवं दिलो-दिमाग आज भी गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं। नाटक में बताया गया है कि पश्चिम के मूल्यों, व्यवहार एवं संस्कृति की सार्थकता जाने बिना केवल फैशन के वशीभूत होकर उसका अन्धानुकरण नहीं किया जाना चाहिए। 

‘कथा एक कंस की‘ नाटक में कंस को गुण-दोषों सहित एक मानव के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया गया है। कंस और रावण जैसे पात्रों को हमेशा विलेन रूप में चित्रित किया गया है य किन्तु सच तो यह है कि कोई भी व्यक्ति न तो शत-प्रतिशत बुरा होता है न ही शत-प्रतिशत अच्छा। आवश्यकता है तो केवल एक नई दृष्टि की जो मानव को पूर्ण रूप में देखे।

इसी प्रकार ‘सीढ़ियाँ‘ नाटक में मुगलकालीन इतिहास के माध्यम से आज के सामाजिक-राजनीतिक समकालीन परिवेश, मूल्यहीनता, संवेदनशून्यता, एवं विकृतियों को प्रकाश में लाने की चेष्टा की गई है तो ‘इतिहास‘ नाटक में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से शुरू हुए ‘इतिहास‘ और गाँधी जी द्वारा देश के विभाजन की स्वीकृति तक के 90 वर्षों के घटनाक्रम को बड़ी कुशलता से स्थान दिया गया है। ‘अपने-अपने दांव‘ एक पारिवारिक सिचुएशनल कॉमेडी है तो साथ ही ‘रक्त अभिषेक‘ नाटक अहिंसा के आधे-अधूरे ज्ञान पर कुठाराघात करता है। 

सिन्हा जी के नाटक न केवल सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक परिदृश्य को लेकर लिखे गए बल्कि एक-एक कृति एक-एक प्रतिक्रिया है। साहित्यकार अपने आस-पास के परिवेश और परिस्थितियों से प्रभावित होकर साहित्य सृजन में प्रवृŸा होता है। सिन्हा जी ने भी अपने जीवनानुभवों एवं तत्कालीन परिस्थितियों से प्रेरित होकर अपने नाट्य ग्रन्थों की रचना की है।

सिन्हा जी के नाटक थियेटर के लिए ही हैं। शायद इसलिए कलाकार उन्हें मंच के पुजारी की संज्ञा देते हैं। सिन्हा जी के अनुसार- ‘‘रंगमंच अपने आप में एक लोकतांत्रिक कला है। उसे अपने साथ एक विशाल जनसमूह को लेकर चलना पड़ता है।‘‘ स्पष्ट है कि सिन्हा जी सामाजिक क्रिया की समग्रता एवं विशिष्टता पर बल देते हैं। इसलिए श्री सिन्हा व्यक्ति से ऊपर उठकर संस्था बन जाते हैं, जो अनेक कलाकारों को प्रेरणा एवं प्रोत्साहन भी देते रहते हैं।

सिन्हा जी की रचनाओं के विश्लेषण से यह लगता है कि उनका अपना एक मौलिक चिन्तन है जो कि व्यापक एवं संवेदनात्मक है।

सिन्हा जी ने न केवल राजनीतिक कूचक्र, सामाजिक विसंगतियाँ, संवेदनशून्यता, भ्रष्टाचरण, अहिंसा, युद्ध, साम्प्रदायिकता, भारत-विभाजन जैसे महŸवपूर्ण विषयों पर अपनी लेखनी चलाई है बल्कि उनके निराकरण पर भी दृष्टि रखी है। उनके नाटक दुष्यन्त की इन पंक्तियों को सार्थक सिद्ध करते प्रतीत होते हैं। 

‘‘सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं 

मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।‘‘

 

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची -

1. इतिहास-चक्र - वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली।

2. ओह अमेरिका - वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली। 

3. कथा एक कंस की - वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली।

4. सीढ़ियाँ - वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली।

5. इतिहास - वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली।

6. अपने-अपने दांव - गंगा डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली।

7. रक्त-अभिषेक - सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली।

8. समीक्षायन - रवीन्द्रनाथ बहोरे, संजय प्रकाशन, नई दिल्ली।

9. दयाप्रकाश सिन्हा : नाट्य रचनाधर्मिता - प्रो. ए. अच्युतन, परमेश्वरी प्रकाशन, नई दिल्ली।


डॉ.हर्षा त्रिवेदी 

सहायक आचार्य

विवेकानन्द इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज

नई दिल्ली।

Malegaon film Management


 

अलंकार सिद्धांत


 

रीति सिद्धांत और संप्रदाय


 

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल


 

National Education Policy


 

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