Friday, 21 April 2023

प्रेम और मानवीय भावों को स्पंदित करती मनीष मिश्रा की कविताएं

 प्रेम और मानवीय भावों को स्पंदित करती मनीष मिश्रा की कविताएं



मानव के जीवन में मानवीय गुणों का मुख्य आधार प्रेम है। परस्पर प्रेम और सौहार्द से ही मानव ने अपनी विकास यात्रा के विविध पड़ावों को सफलतापूर्वक पार किया है। मानव ने प्रेम के माध्यम से उस विधि को अंगीभूत किया है, जिससे वह समाज में अपने अस्तित्व को बरकरार रखकर भी किसी दूसरे की सत्ता को सहज ही स्वीकार कर लेता है। प्रेम में किसी दूसरे का होना स्वयं से भी अधिक महŸवपूर्ण हो जाता है। किसी दूसरे की इसी सत्ता और महŸव को मनीष कुमार मिश्रा ने अपने कविता संग्रह ‘इस बार तुम्हारे शहर में’ में गुणीभूत किया है। मनीष कुमार ने इस कविता संग्रह के माध्यम से आज के दौर में ऊब और सीलन भरी जिन्दगी में एक नई ऊर्जा का संचार किया है। आज के दौर में स्त्री-पुरुष संबंधों में बढ़ती खाई को पाटने का प्रयास है प्रस्तुत कविता संग्रह। प्रेम की मिठास का एहसास करवाती मनीष जी की कविताएं परस्पर समर्पण का भी संदेश देती हैं। प्रेमिका को ‘लड्डू’ की संज्ञा देना प्रेम की निश्चलता का भी प्रतीक प्रतीत होता है, यह लड्डू कोई साधारण मिठाई न होकर उस लड्डू को प्रतीक है जिस किसी अबोध बालक का मन रीझ जाता है और उस रीझने में किसी प्रकार स्वार्थ नहीं होता है। होता है तो बस निश्चल प्रेम।

प्रस्तुत संग्रह की कुल साठ कविताओं में मनीष जी के लेखन की सहजता को आंका जा सकता है। बिना किसी काव्यात्मक औपचारिकता के लिखी गईं ये कविताएं युवा वर्ग या यूं कहें कि प्रेम में पगे हुए युवा वर्ग की मनोस्थितियों को भी रेखांकित करती हैं। आज जब प्रेम भी व्यापार जैसी लेन देन की प्रक्रिया ही प्रतीत होता है। परन्तु मनीष जी की कविताओं में अभिव्यक्त प्रेम निश्चल प्रेम है, जहां प्रेमी प्रेमिका का समर्पण है, मान-मनुहार है, रुठना मनाना है, मिलन की उत्कंठा है, विरह की आकुलता है, स्मृतियां हैं अर्थात् प्रेम का वह प्रत्येक रूप है, जो हमें सामान्य जीवन में देखने को मिलता है। मनीष मिश्रा की कविताओं में प्रेम के वो आदर्श भी मिलते हैं, जो आजकल के प्रेम से नदारद होते जाते हैं। इनकी कविताओं में प्रेमी प्रेम को केवल दैहिक स्तर पर ही महत्वपूर्ण नहीं मानता, अपितु उसके लिए वास्तव में प्रेम आत्म-विस्तार का आधार है। प्रेमी इस तथ्य को स्वीकार करते हुए कहता है -

उसे जब देखता हूं

तो बस देखता ही रह जाता हूं

उसमें देखता हूं

अपनी आत्मा का विस्तार

अपने सपनों का 

सारा आकाश  ।


प्रेम के माध्यम से अपनी आत्मा के विस्तार का साक्षात्कार हो जाने पर प्रेमी के मन की सारी शंकाएं समाप्त हो जाती हैं और वह पूर्णतः अपनी प्रेमिका के प्रति समर्पित हो जाता है। वह अपनी प्रियतमा की आस्थाओं में ही अपनी आस्था को पाता है। अपनी प्रेमिका का विश्वास में ही उसका विश्वास है। इसीलिए उसकी अनगिनत प्रार्थनाएं अपनी प्रेमिका के प्रति समर्पित हैं। वह मानता है कि 

वो समर्पण का भाव

जिसकी हकदार

सिर्फ और सिर्फ

तुम रही हो ।

प्रस्तुत कविता संग्रह का वैशिष्ट्य यह भी है कि यह संग्रह स्मृतियों का संग्रह है। कवि ने अपनी स्मृतियों में आज भी अपने प्रेम को जीवंत बनाए रखा है।बिछुड़ जाने के बाद पहाड़ जैसे जीवन की तुलना पहाड़ी रास्तों से करते हुए प्रेमी का यह कहना कि आजकल/ये पहाड़ी रास्ते/कोहरे से भरे होते हैं/जैसे/मेरा मन/तेरी यादों से भरा होता है। इसीलिए संग्रह की अधिकतर कविताएं एक प्रेमी की अपनी प्रेमिका के साथ व्यतीत किए गए क्षणों की स्मृतियों पर आधारित हैं। इन कविताओं में कवि की संवेदनाएं इतनी मर्मस्पर्शी हैं कि पाठक स्वयं को उस प्रेमी-प्रेमिका की दुनिया में विचरण करता हुआ पाता है। इसका एक कारण यह भी है कि रचनाकार ने रोज़मर्रा की जिन्दगी में घटित होने वाली सामान्य सी घटनाओं को प्रेम की आभा के साथ बहुत ही सहज ढंग से प्रस्तुत किया है। 

सम्पूर्ण हो जाना प्रेम के लिए आवश्यक नहीं है और यही विचार मनीष मिश्रा की कविताएं भी संप्रेषित करती प्रतीत होती है। मनीष मिश्रा की कविताओं में प्रेमी और प्रेमिका एक दूसरे से विलग हो जाने के बाद भी एक दूसरे के प्रति आदर और समर्पण का भाव रखते हैं। एक दूसरे के प्रति नकारात्मक भाव का लेशमात्र भी उनके मन में नहीं है, अपितु विरह में पग कर वे और भी परिपक्व हो गए हैं। इस काव्य संग्रह से एक नयी चेतना दृष्टि यह भी आभासित होती है कि प्रेमी विरह में भी कहीं व्याकुल नहीं होता। उसका जीवन सामान्य दिनों की ही भांति चल रहा है अर्थात् कवि की जीवन दृष्टि यह भी है कि प्रेम के अधूरेपन को भी बड़े ही चाव और उत्साह के साथ जिया जा सकता है। 

प्रस्तुत संग्रह में कवि ने मां के प्रेम और मां के प्रति प्रेम को भी स्थान दिया है। वह मां को जीवन की जटिलताओं और विपदाओं में आशा की किरण मानता है, रचना की प्रेरणा और जीवन को सुसंस्कृत करने वाली जीवनधारा मानता है, जीवन के उल्लास और उत्सवों में ही नहीं, बल्कि हार और दुर्बलताओं के क्षणों में भी प्रेरणा का स्रोत मानता है। मां के इसी रूप से प्रभावित होता हुआ कवि मन स्वीकार करता है कि समाज में व्याप्त विसंगतियों, बुराईयों को समाप्त कर सकने का सामथ्र्य केवल नारी में ही है। ‘औरत’ कविता के माध्यम से मनीष मिश्रा ने औरत के सामथ्र्य के साथ-साथ औरत के प्रति सम्मान भाव को भी प्रदर्शित किया है। जो व्यक्ति अपनी मां की असीम संभावनाओं को सकारात्मक दृष्टि से पहचान लेता है, वही अपनी प्रेमिका के प्रति इतना समर्पित हो सकता है शायद इसीलिए इन कविताओं में प्रेमी समर्पित है।

मनीष मिश्रा ने अपनी कविताओं में अपनी प्रेमिका और मां के प्रति प्रेम के साथ-साथ अपने परिवेश के प्रति भी प्रेम-भाव को अभिव्यक्त किया है। बनारस की गलियों में गुज़रा समय कवि के लिए केवल समय भर ही नहीं है, अपितु ऐसा प्रतीत होता है कि कवि ने इन गलियों में जीवन को जिया है, खुलकर जिया है, घुलकर जिया है। लंकेटिंग, मणिकर्णिका, अयोध्या, बनारस के घाट जैसी कविताओं में कवि ने अपने परिवेश के प्रति अपने मनोभावों को इस ढं़ग से शब्दबद्ध किया है कि ऐसा प्रतीत होता है, जैसे बनारस कोई स्थान न होकर कोई देव पुरूष है, जिसके प्रति कवि पूर्णतः आसक्त है। इन्हीं कविताओं में मनीष मिश्रा की दार्शनिक दृष्टि का भी परिचय मिलता है। मृत्यु, जीवन, आसक्ति, निरासक्ति, धर्म, कर्म, मोक्ष आदि विषयों को सांकेतिक रूप से व्याख्यायित करती ये कविताएं महनीय बन गयी हैं।

मनीष मिश्रा ने अपने इस संग्रह में कई नये प्रतिमानों और प्रतीकों को भी गढ़ा है। प्रेम की पूर्णता में कवि ने सामाजिक मर्यादाओं की सीमा में न रहकर स्वयं को दरिंदगी का एहसास रखने वाला बताकर अपनी ईमानदारी का भी परिचय दिया है। भाषिक स्तरों पर भी यह कविता संग्रह कुछ विलक्ष्णताएं रखता है। कविताओं के शीर्षक सामान्य सी घटनाओं और विषयों से प्रेरित होते प्रतीत हैं, जैसे- नेलकटर, चाय का कप, लड्डू, चुड़ैल, कैमरा, तस्वीर खींचना, पेन, नेलपालिश, मोबाईल, जूते, विज़िटिंग कार्ड, झरोखा, तुम्हारे गले की खराश आदि कई ऐसे शीर्षक हैं, जो सहसा ही पाठक को आकर्षित करते हैं और इसी के साथ एक खूबी यह भी कि यह शीर्षक केवल शीर्षक भर ही नहीं है, अपितु कवि की प्रेम के प्रति, समाज के प्रति, स्त्री के प्रति, जीवन के प्रति विशेष प्रकार की मानसिकता को द्योतित करते हैं। विज़िटिंग कार्ड जैसी कविता में आज के दौर में भीड़ में भी एकांकीपन के भाव ग्रस्त मानव की व्यथा का चित्रण है। नेलकटर कविता में भी नेलकटर एक ऐसे प्रतीक रूप में प्रयुक्त हुआ है, जो मानव मन अवांछित परिस्थितियों को काटने का काम कर सके। कवि ने अधिकतर साधारण बोलचाल की भाषा में ही अपने भावों में अभिव्यक्त किया है, किन्तु संग्रह में कुछ कविताएं ऐसी भी जहां भाषा की रागात्मकता को भी महसूस किया जा सकता है। संग्रह की ‘जीवन राग’ जैसी कविताएं इसी तथ्य को प्रमाणित करती है कि मनीष मिश्रा जितने साधारण भाषा में सहज प्रतीत होते हैं, उतने ही गूढ़ प्रतीकात्मक भाषा में प्रौढ़ दार्शनिक से महसूस होते हैं।

‘इस बार तुम्हारे शहर में’ की कविताओं में जीवन ने अनेक रंग देखने को मिलते हैं। प्रेमी-प्रेमिका प्रेम, मां-बेटे का प्रेम, मानव और परिवेश का प्रेम ये सब विषय इस संग्रह की कविताओं में अन्तर्भुत हैं। इसीलिए कविताएं दिल को छू लेने वाली हैं, विरह में भी सुखद आनंद का आभास करवाने वाली हैं, पीड़ा का उत्सव मानने की प्रेरणा देने वाली हैं, उल्लास और उन्माद की कविताएं हैं, वास्तव में जीवन को हर परिस्थिति में जीने की प्रेरणा देने वाली कविताएं हैं।


डॉ. रजनी प्रताप

हिन्दी विभाग

पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला

पंजाब


Thursday, 20 April 2023

सकारात्मक और आत्मीय भाव की मनीष कुमार मिश्रा की कविताएं

                                        

                      “ अक्टूबर उस साल ” काव्य संग्रह की समीक्षा


 “अक्टूबर उस साल”

डॉ. मनीष मिश्रा जी


वर्तमान में आप महाराष्ट्र मुंबई विश्वविद्यालय के .एम. अग्रवाल महा विश्वविद्यालय कल्याण (पश्चिम) हिंदी विभाग में प्रमुख के पद पर कार्यरत है | एक दर्जनों से अधिक राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियो के सफल आयोजक | आपने 11 पुस्तकों का संपादन तथा विदेशों में अपनी कविताओं तथा कहानियों एवं शोध आलेख से पाठकों पर अपनी लेखनी का गहरा प्रभाव डाला है | वर्ष 2019 में आपका काव्य संग्रह “अक्टूबर उस साल” प्रकाशित हुआ | वर्ष 2020- 21 के लिए आपको महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा संत नामदेव पुरस्कार स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया है| यह पुरस्कार आपको “तुम्हारे शहर में”काव्य संग्रह के लिए प्रदान किया गया | उन्होंने डॉ रामजी तिवारी के निर्देशन में कथाकार “अमरकांत : संवेदना और शिल्प”पीएचडी के लिए विषय को चयनित कर सर्वोच्च अध्ययन के लिए उन्हें वर्ष 2003 में श्याम सुंदर गुप्ता स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया | वर्ष 2014 से वर्ष 2016 तक आप यूजीसी रिसर्च अवॉडी के रूप में चुने गए | कोविड-19 के कठिन समय में भी आपने महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा संपोषित “75 साल 75 व्याख्यान” नामक ऑनलाइन व्याख्यान को सफलतापूर्वक चलाया | “अक्टूबर उस साल”काव्य संग्रह में 56 कहानियों का समावेश है | हर एक कविताओं का अपना एक अलग पहलू है | दूसरों के प्रति सकारात्मक आत्मीयता का भाव, निस्वार्थ प्रेम की भावना ,सामाजिक बंधनों से मुक्त होकर भय को पराजय कर जीने की नई उमंग- तरंग को दर्शाती है| मस्तिष्क और हृदय के बीच की जंग में हृदय की जीत को दर्शाती है | उनकी कुछ कविताएं मातृत्व भाव को स्पर्श करती हुई सहज ही जुड़कर बचपन से यौवन तक की यात्रा से गुजरते हुए मां के अंतिम समय की पीड़ा को दर्शाती है| भूली बिसरी विस्मृतियों को याद करके आनंद की अनुभूति होती है | उनकी कविताएं जीवन के हर एक पड़ाव तथा भाव को व्यक्त करती है| प्रकृति के साथ मनुष्य की भावनाओं वेदनाओ को जोड़ने का सार्थक प्रयास किया है | दूसरी और नारी संवेदना तथा समाज में चल रही वर्तमान स्थिति के विभिन्न पहलू को स्पर्श करती कविताओं का संकलन भी किया है | उन्होंने “अक्टूबर उस साल” में व्यक्ति की पूरी जीवन यात्रा के अनछुए पहलुओं को जोड़कर स्वयं की आपबीती जीवनी का जीवंत रूप कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया है | उनकी कविताओं से पाठक स्वयं ही जुड़ जाता है, क्योंकि उनकी पंक्तिया कहीं ना कहीं हमारे जीवन से जुड़ी हैं और हमारे भीतर झांकती हुई हमारी भावनाओं को प्रस्तुत करती हैं | उनकी कविताओं को पढ़कर हमें यह महसूस होता है, कि यह हमारे ही जीवन का प्रतिबिंब है| और अनचाहे पहलुओं को छू लेती है| इनकी कविताओं में पाठक अपने अतीत के पन्नों को खोल देता है तथा इन पंक्तियों में अतीत को प्रत्यक्ष रूप से जीने लगता है | इस काव्य संग्रह में मेरी रुचि का कारण मेरी भावनाएं हैं | जो इस काव्य संग्रह में अपने वास्तविकता तक पहुंचती है | और यह उन सभी को पढ़नी चाहिए जो अपने भावों की प्रस्तुति करना चाहते हैं असल में “अक्टूबर उस साल” की कविताएं हृदय के तारों को झंकृत करती है | और मैं यह काव्य संग्रह उन सभी पाठकों से पढ़ने का निवेदन करूंगी जो अपने आप से रू-ब-रू होना चाहते हैं |  

समीक्षक- गरिमा .आर. जोशी

दिनांक -



                                                                                                                         





मनीष कुमार मिश्रा की कविताएं

 

स्त्री का पुरुष के प्रति 
प्रेम, भक्ति और आसक्ति 
को अनगिनत कवि 
यदा कदा शब्द रूप देते दिखते है किन्तु 
मनीष जी की कविताओं मे  पुरुष की स्त्री के प्रति 
प्रेम और भक्ति प्रशंसनीय है मनीष जी के इस कविता संग्रह "इस बार तुम्हारे शहर मे"-
में अधिकांश कविताओं में स्त्री को स्थान मिला है 
उन्होंने स्त्री को केवल 
देवी या साधारण नारी/स्त्री ना मान कर 
स्त्री को पुरुष की शक्ति और प्रेरणा के रूप मे 
प्रस्तुत किया है । 
"इस बार तुम्हारे शहर में " कविता संग्रह मे 
अधिकांश कविताओं मे स्त्री अस्था का केंद्र रही है 
स्त्री के हावभाव,  
शारीरिक गठन को सुंदर शब्दों से गरिमापूर्ण सजाया , निखारा है 
औरत /स्त्री होने का उन्दा अर्थ प्रकट करती कविता -"तुम जो सुलझाती हौ "- मे स्त्री की प्रकृति की तरह व्याख्या की है 
बदलते मौसम और उनकी विशेषताओं को अपने मे समेटे स्त्री... 
बांधनों से बंधी 
जीवन की गाँठे सुलझाती स्त्री...जिसके होने से ही 
सब अर्थपूर्ण है अन्यथा सबका सब व्यर्थ है 
पुरी कविता स्त्री की महिमा का गुणगान गाती है ।
"दुबली पतली और उजली सी"- कविता मे कहानी, कविता, महाकाव्य को 
अपनी चुप्पी में  समेटे 
रिश्तो को जोड़ती , बांधती , सिंचती लड़की उत्सव रचा बसा देती है मन में 
किन्तु उसकी चुप्पी मे 
बहोत कुछ समाया है  
इतनी गहरी प्रस्तुति लड़की के मन की निश्चय ही 
पाठक के मन मे गहरे 
उतरती है । 
विश्वास के प्रतिक के रूप मे स्त्री की व्याख्या 
"सवालों से बंधी " कविता मे खूब की है 
प्रेम और  रिश्तों को समेटे "तुम्हारे ही पास" कविता में फिर एक बार 
नारी के उदांत ह्रदय की व्याख्या की है जो 
प्यार की उष्मा से पिघल जाती है ।
"कि तुम जरूर रहना"- कविता मे पुरुष के भीतर शक्ति बन कर 
प्रेरित करती नारी ... 
स्त्री का आना पुरुष के जीवन को कितना संवारता है 
"तुम आ रही हो तो "- कविता से पूर्ण प्रतिपादित होता है । वही " चुड़ैल" कविता मे 
व्यंग का पुट मिलता है चुड़ैल शब्द का प्रयोग स्त्री के 
प्रेम मे वशिभूत हो कर किया है स्त्री की सुंदरता को 
शब्दों मे बांधा नहीं जा सकता "उसे जब
देखता हुँ " कविता स्पष्ट करती है कि स्त्री के सौन्दर्य का पैमाना केवल उसके उपासक की आँखों मे होता है 
अन्य कविताओं मे "कविताओं के शब्द"- 
कविता मे शब्दों की महिमा , उपयोगिता का सुंदर वर्णन दिखता है 
औजारों की धार से नुकिले शब्द, 
विचारों को विस्तार देते शब्द, उम्मीद को बांधते शब्द, अपनी पूर्ण आभा लिए शब्द कविता को लय प्रदान करते है वही दूसरी कविता 
"तस्वीर खिंचना"- बेहद प्रासंगिक है  भौतिक युग मे सेल्फी का महत्व ओर प्रचलन उत्तरोत्तर बढ़ता ही  जा रहा है हर आयु वर्ग 
का व्यक्ति अपनी आयु ओर उपयोगिता से कही अधिक शौक से मोबाईल युग मे मोबाईल का उपयोग करता है 
उससे तस्वीरे लेता है 
जाने अनजाने ये तस्वीर लेने का शौक उसके यादों के संग्रह को बढ़ाता ही जाता है उन सुनहरी यादों की मुस्कानों मे जिन्हे फिर से जिया तो नहीं जा सकता पर तस्वीरो को देख कर मुस्कुराया जा सकता है । 
" तृषिता" मे प्रेम मे रूठने मनाने का जो आनन्द है जो प्रेम को बढ़ाता है उसे जिंदा रखता है उस मनुहार का सुंदर वर्णन हे 
व्याकरण की बरिकियों को दर्शाती कविता "तुम्हे मनाने के"- मे 'जानने' और 'मानने' का अंतर केवल शब्दों का नहीं भावों से कही गहरे जुड़ा है । "वह पीला स्वेटर"- कविता मे स्त्री का साथ ना होकर भी हमेशा साथ
होना  प्राण वायु की तरह जिंदा रखता है मौसम बदले ,वक्त बदला पर 
उसके लिए जज्बात नहीं बदले , जिस दिल की गहराई मे समाई थी आज भी वही बसी है 
इसी तरह " तुम मिलती तो बताता" ," मुझे उतनी ही  मिली तुम" , "झरोखा" ,इन सभी कविताओं मे कही यूँ भी लगता है जैसे कवि को पुराना प्यार रह रह कर याद आता है 
"मणिकर्निका" - कविता जीवन्तता हर चीज , हर घटना मे है पूर्णतः दर्शाती है ।
निष्कर्ष स्वरूप "इस बार तुम्हारे शहर में "- मनीष जी की कविताओं का ऐसा संग्रह है मानों गुलदस्ते में अनेक फूलो का एक साथ एक जगह होकर भी अपनी खुशबु ,अपना रंग ,अपनी पहचान ,स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रहना ।
अनेकानेक शुभकामनाओं के साथ.. बधाई 💐

डॉ. रेखा वैदया 
प्रवक्ता हिंदी विभाग 
जवाहरलाल नेहरू राजकीय महाविद्यालय 
पोर्टब्लैयर , अंडमान एवं निकोबार द्विपसमुह 
9679591235


Thursday, 13 April 2023

डॉ हर्षा त्रिवेदी का प्रथम काव्य संग्रह " कहीं तो हो तुम"

 डॉ हर्षा त्रिवेदी का प्रथम काव्य संग्रह " कहीं तो हो तुम"


आर.के. पब्लिकेशन, मुंबई से प्रकाशित हो चुका है। कुल 66 कविताओं की यह पुस्तक अपने अंदर संवेदनाओं की कई कई गाठों को खोलती है। इन कविताओं में लालसाएं, सपने, प्रतिबद्धता, प्रेम, परिमार्जन, परिष्कार, राष्ट्रप्रेम के साथ साथ क्षमा, दया, करुणा और उदात्त मानवीय मूल्यों के लिए संकल्पों का रचनधर्मी फलक बहुत विस्तृत है। कई कविताएं सहिष्णुता के महत्व को रेखांकित करते हुए मनुष्य को अधिक उदार होने की तरफ़ इशारा करती हैं।

जीवन, प्रकृति, राष्ट्र , दर्शन, आध्यात्म और प्रेम की अभिव्यक्ति अधिकांश कविताओं का केंद्रीय स्वर है । प्रेम की अभिव्यक्ति कहीं एकदम सीधे सपाट पर मोहक रूप में हुई है तो कहीं उसपर आध्यात्म का आवरण दिखाई पड़ता है। कविता संग्रह का शीर्षक इसी बात का प्रमाण है। आज की बाजार केंद्रित विश्वगत व्यवस्था में संवेदनाओं की इतनी महीन कारीगरी शब्दों के साथ करनें में डॉ हर्षा अपनी इन कविताओं के माध्यम से सफल दिखाई पड़ती हैं। 

     डॉ हर्षा त्रिवेदी की कविताएं मन में धसे और गड़े भावों की शब्द चित्रकारी सी प्रतीत होती हैं। इन कविताओं में जीवन के प्रति सकारात्मक ऊर्जा और दृष्टिकोण है । इन कविताओं का एक सिरा मानवीय मूल्यों और भावों का है तो दूसरा इन भावों को निरंतर सिंचित करने वाले उदात्त प्रेम और आध्यात्मिक भाव का । ज्ञात से अज्ञात को जानने की लालसा में विश्वास इतना प्रबल है कि " कहीं तो हो तुम" जैसी महत्वपूर्ण कविता डॉ हर्षा रच सकीं । 

     डॉ हर्षा त्रिवेदी को उनके इस प्रथम काव्य संग्रह के प्रकाशन की बहुत बहुत बधाई। आशा है वे अपनी इस रचनाधर्मिता को लगातार आगे बढ़ाते हुए साहित्य सेवा में महती योगदान देती रहेंगी । यह किताब एमेजॉन पर ऑनलाइन उपलब्ध है। 

Sunday, 12 March 2023

डॉ मनीष कुमार मिश्रा को महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी पुरस्कार घोषित

 के . एम . अग्रवाल महाविद्यालय, कल्याण पश्चिम में हिंदी प्राध्यापक के रूप में कार्यरत डॉ मनीष कुमार मिश्रा को उनके काव्य संग्रह "इस बार तुम्हारे शहर में" के लिए महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ने संत नामदेव पुरस्कार वर्ष 2020-21 की घोषणा की । मनीष जी के दो काव्य संग्रह एवं एक कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुका है। संपादित पुस्तकें लगभग 28 हैं। 




ताशकंद के इन फूलों में

  ताशकंद के इन फूलों में केवल मौसम का परिवर्तन नहीं, बल्कि मानव जीवन का दर्शन छिपा है। फूल यहाँ प्रेम, आशा, स्मृति, परिवर्तन और क्षणभंगुरता ...