Saturday, 5 September 2015

सनी लियोन का सही बयान ।

बॉलीवुड अभिनेत्री सनी लियोन ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के महासचिव अतुल कुमार अंजान के बयान पर दो टूक प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि राजनीति में शामिल लोगों को उन पर अपना समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने समय का उपयोग करना चाहिए। सनी ने गुरुवार को ट्विटर पर लिखा, "दुख होता है जब राजनीति में शामिल लोग अपना समय और ऊर्जा मुझ पर बर्बाद करते हैं, इसकी बजाय उन्हें जरूरत मंद लोगों की मदद करनी चाहिए।"
http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/251059/1/19#.VepfltKqqkp 
https://www.google.co.in/search? q=sunny+leone+wallpaper+240x320&authuser=0&biw=1024&bih=667&site=webhp&tbm=isch&tbo=u&source=univ&sa=X&ved=0CC4QsARqFQoTCIfvyab43scCFRcFjgodrNcAXA से चित्र साभार ।

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Published on 04/09/2015
2.Published on 01/09/2015
UGC Notice reg.: List of Selected Candidates for Dr. Ambedkar Foundation's Study Tour to UK and USA
3.Published on 01/09/2015
4.Published on 28/08/2015
5.Published on 25/08/2015
6.Published on 21/08/2015

शिक्षक

एक औसत दर्जे का शिक्षक बताता है. एक अच्छा शिक्षक समझाता है. एक बेहतर शिक्षक कर के दिखाता है. एक महान शिक्षक प्रेरित करता है. - विलियम आर्थर वार्ड.आज शिक्षक दिवस है । 
शिक्षक का एक महान गुण है समझाना । वह समझा तो सकता है लेकिन समझ नहीं सकता । हम उन शिक्षकों से आशीर्वाद चाहते हैं जो समझने का हुनर भी रखते हैं ।शिक्षक कभी उम्र से बंधा नहीं रहता है, कभी रिटायर नहीं होता । शिक्षक कुम्हार की तरह हमारे जीवन की मिट्टी को संवारकर सही रूप देता है । 
शिक्षक की सिखाई बातें उम्र भर याद रहती हैं, हर सफल व्यक्ति के पीछे उसके शिक्षक का हाथ ज़रूर होता है।शिक्षक में दो गुण निहित होते हैं – एक जो आपको डरा कर नियमों में बाँधकर एक सटीक इंसान बनाते हैं और दूसरा जो आपको खुले आसमा में छोड़ कर आपको मार्ग प्रशस्त करते जाते हैं । 
जन्म दाता से ज्यादा महत्व शिक्षक का होता हैं क्यूंकि ज्ञान ही व्यक्ति को इंसान बनाता हैं जीने योग्य जीवन देता हैं |एक शिक्षक किताबी ज्ञान देता हैं, एक आपको विस्तार समझाता हैं एक स्वयं कार्य करके दिखाता हैं और एक आपको रास्ता दिखाकर आपको उस पर चलने के लिए छोड़ देता हैं ताकि आप अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व बना सके |
 यह अंतिम गुण वाला शिक्षक सदैव आपके भीतर प्रेरणा के रूप में रहता हैं जो हर परिस्थिती में आपको संभालता हैं आपको प्रोत्साहित करता हैं |आज के प्रतिस्पर्धा के समय में आपका विरोधी ही आपका सबसे अच्छा शिक्षक हैं |एक बेहतर शिक्षक सफलता का चढ़ाव नहीं अपितु असफलता का ढलान हैं |
जो असफल होकर निचे गिरते हैं वास्तव में वही शिक्षित होते हैं क्यूंकि जब वे वापस अपना नया रास्ता बनाते हैं उन्हें आतंरिक भय नहीं सताता |किसी शिष्य को उसके वास्तविक गुणों एवम अवगुणों से उसका परिचय करवाना ही एक सच्चे शिक्षक का परिचय हैं |
हर किसी की सफलता की नींव में एक शिक्षक की भूमिका अवश्य होती हैं | बिना प्रेरणा के किसी भी ऊँचाई तक पहुंचना असम्भव हैं |हम अपने जीवन के लिए माता पिता के ऋणी होते हैं लेकिन एक अच्छे व्यक्तित्व के लिए हम एक शिक्षक के ऋणी होते हैं |वक्त का हर एक लम्हा शिक्षा देता हैं वास्तव में समय एवम अनुभव ही हमारे प्राकृतिक शिक्षक हैं |माँ ही जीवन की वास्तविक शिक्षिका होती हैं क्यूंकि वही हमें करुण एवम आदर का भाव देती हैं | यही भाव सीखने की कला विकसित करते हैं |शिक्षक स्वयम कभी बुलंदियों पर नहीं पहुँचते लेकिन बुलंदियों पर पहुँचने वालो को शिक्षक ही निर्मित करते हैं |
किसी महान देश को महान बनाने के लिए माता पिता एवम शिक्षक ही ज़िम्मेदार होते हैं |

नक़लधाम

 काश के इंटर फ़ाइनल की परीक्षा का प्रथम दिन था । वह सुबह चार बजे ही उठ गया था । पर्चा अँग्रेजी का है और वह कोई कोताही नहीं बरतना चाहता । उसने टेबल लैम्प जलाई और चुपचाप पढ़ने बैठ गया । सरकार ने परीक्षा के दिनों में बिजली आपूर्ति रात भर करने का निर्णय लिया था सो बिजली कटी नहीं थी । उत्तर प्रदेश के पूर्वान्चल का यह जिला आज भी पिछड़ा ही माना जाता है, जिला – जौनपुर ।
          उधर आसमान में अभी उषा की लाली नहीं फैली थी लेकिन अँधेरा खुद को समेट रहा था, मानो उषा के स्वागत में पूरा आसमान बहोर रहा हो । रात शीत की वजह से मार्च महीने की यह भोर हल्के कोहरे से ढकी थी । इन दिनों मौसम के चरित्र में बड़ी तेज गिरावट दर्ज हुई है । बेमौसम बारिश से गेहूँ और दाल की फ़सल को बड़ा नुकसान हुआ है । कई किसान आत्महत्या कर चुके हैं और सरकार रोज़ राहत की घोषणाएँ कर रही है । लेकिन आत्महत्याएँ रुक नहीं रहीं, मानों सरकार के चरित्र पर भी इन गरीबों का विश्वास नहीं रहा ।
        फ़िर इन लोगों का भी कौन सा लोकतांत्रिक चरित्र रहा है ? चुनाव आते ही इनका जातिगत स्वाभिमान जाग जाता और ये जातियों में बटकर समाजवाद, स्वराज्य और राष्ट्रीय विकास के नीले, लाल,केसरी  और हरे रंग के झंडों के नीचे दफ़न होते रहे । अपनी पार्टी और नेता के लिए खाद बनकर उनकी राजनीतिक फ़सल को लहलहाते रहे । लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में जो हुआ वह उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी नहीं हुआ । “अच्छे दिनों” की आहट पर यहाँ की राजनीति ने नई करवट ली । इतनी सीटें तो उस पार्टी को मंदिर वाले मुद्दे पर भी नहीं मिली थीं वह भी पूरे देश से – स्पष्ट बहुमत ।
        लेकिन स्पष्ट रूप से आम आदमी के जीवन में कोई बड़ा परिवर्तन अभी नहीं आया था । अस्सी साल के मुरैला दादा भी इन दिनों ठगे ठगे ही महसूस कर रहे हैं । हज़ारी की चाय गुंटी पर लड़के उन्हें छेड़ते हुए कहते –
      “ का हो मुरैला दादा, वोटवा के का दिहे रह ?.......”
मुरैला दादा कहते – “ धोखा हो गया बचई । सबके बैंक खाता मा अठ-अठ दस-दस लाख डालइ वाला रहेन । उहई कालधन वाला पईसा । लेकिन अबई केहू क मिला नाइ । अबई तो सब का खाता खुलवा रहे हैं । देखा आगे का होई ? ......”
       लेकिन जो पढे लिखे थे वो जात-पात और व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठकर देशहित की बात का इन्हीं चाय की दुकानों पर पूरा समर्थन करते । उन्हें पूरा भरोसा था कि वर्तमान सरकार देश में आमूल परिवर्तन लाएगी और वह कर दिखाएगी जो आज तक इस देश में कभी नहीं हुआ । आकाश के पिता राजेश जी भी इन्हीं विचारों के थे । वे पड़ोस के गाँव में ही माध्यमिक विद्यालय में मास्टर थे । सब उन्हें राजेश मास्टर या मास्टर साहब ही बुलाते ।  
       आकाश की परीक्षा जब से नज़दीक आयी है मास्टर साहब ने अपनी दिनचर्या में थोड़ा परिवर्तन कर लिया है । अब वे सुबह जल्दी ही उठ जाते और कूँचा लेकर दुआर बटोरने लगते,गाय को बाहर बाँध दाना-भूसा करते, मैदान जाते और दातून कर स्नान करते । यह सब करते हुए वे इतना शोर तो कर ही देते कि पत्नी भी उठ जाएँ और आकाश भी । लेकिन मास्टर साहब के लिए सुखद आश्चर्य यह था कि आजकल आकाश उनसे पहले ही उठा रहता । उसे इस तरह सुबह जल्दी उठकर पढ़ते हुए देख मास्टर साहब को बड़ी प्रसन्नता होती । पत्नी पुष्पा जब चाय लेकर आयी तो मास्टर साहब बोले –
                 “यह लड़का शुरू से ही बड़ा होनहार रहा है । पूरी मेहनत और लगन से पढ़ता – लिखता है । देख लेना एक दिन ज़रूर यह हमारा नाम रोशन करेगा । इसके कक्षा अध्यापक रवि बाबू भी कह रहे थे कि यह राज्य में प्रथम आने का दावेदार है । हाई स्कूल में पूरे जिले में प्रथम आया था, सिर्फ़ दो नंबर और मिले होते तो पूरे राज्य में तीसरी पोजीशन होती लड़के की ।”
              माता - पिता अपने होनहार की खूब प्रशंसा करते । ऐसे मौके पर दोनों की ही आँखों में एक ख़ास चमक होती । भविष्य के सपनों के ताने- बाने के बीच एक गर्व का भाव होता । धीरे-धीरे पूर्व दिशा में लालिमा छाने लगती और उषा की लाली धरती पर प्रकाश की किरणों के साथ नई सुबह, नए दिन के आगमन की सूचना देती । पक्षियों का कलरव मानों नए दिन की दिनचर्या हेतु किया जा रहा विचार विमर्श हो । हर तरफ नई उम्मीद, नई कोशिश और नए संघर्ष का वातावरण दिखाई पड़ने लगता है । पुष्पा ने उठते हुए मास्टर साहब से पूछा –
 “ भईया कितने बजे जायेगा परीक्षा देने ?”
 “ साढ़े दस बजे से परीक्षा है तो दस बजे तक सेंटर पहुँच जाये तो अच्छा है ।”- मास्टर साहब ने कहा ।
 “ सेंटर कहाँ है ?” – पुष्पा ने फ़िर सवाल किया
 “ यहीं गोंसाईपुर के गोकुलनाथ त्रिपाठी महाविद्यालय में । दस किलोमीटर है यहाँ से । मैं मोटर साईकल से छोड़ दूँगा । तुम उसे नाश्ता करा के साढ़े नौं तक तैयार रहने को बोलो ।” – मास्टर साहब ने पुष्पा से कहा और उठकर सड़क की तरफ से हज़ारी की गुंटी की तरफ निकल पड़े अख़बार पढ़ने ।
       गुंटी पर पहुँचते ही जियावान नट ने मास्टर साहब को प्रणाम करते हुए तख्ते पर बैठने की जगह दी और ख़ुद उठ के खड़ा हो गया ।
“ और जियावन का हाल है ?” – मास्टर साहब ने अख़बार हांथ में लेते हुए पूछा ।
“ ठीक है सरकार, आप सब का कृपा बा ।’’ – जियावन ने हांथ जोड़कर कहा ।
“ मास्टर साहब बुरा न माने त एक ठो बात जानइ चाहत रहली ।’’- जियावन ने कहा
“ अरे बोला कि, का बात है ?”- मास्टर साहब बोले ।
“ हमार नतियवा ई बार बरही क़लास का परिक्षा देई वाला बा, क़हत रहा बाबू पढ़ाई –लिखाई क़ कौनों काम ना बा । नक़ल करउनी दू हजार रूपिया दिहले पर किताब में देख – देख लिखई के मिली । ई बतिया सच है का ?’’- जियावन ने पूछा ।
   “ अब का बताई जियावन । बतिया त सही है । कुकुरमुत्ता नीयर नया नया पराइवेट स्कूल कालेज खुलत जात बा । ई सब स्कूल क़ मान्यता पइसा खियाइ- पियाइ के मिलत बा । नियम- कानून से काम ना होत बा । परीक्षा के सेंटर लेई ख़ातिर लाखन रूपिया खियावल जात बा, फ़िर जे लडिका लोग परीक्षा देई ख़ातिर आवत हयेन, ओनसी अपने हिसाब से पइसा वसूलत बाटेन । एक लाख लगाई के पाँच लाख कमात बाटेन । अपने स्वार्थ के चक्कर में लड़िकन क़ ज़िंदगी खराब कई देत हयेन । नैतिकता अउर सदाचार से केहू के कौनों मतलबई नाइ बा ।’’ – मास्टर साहब ने कहा ।
“अउ सरकारी स्कूल – कालेज में कामचोरी बा । मास्टर लोग पढ़ाई लिखाई छोड़ी के दिनभर राजनीति करत बाटेन । जे काम करई चाहत बा ओकरे खिलाफ सब एक हो जात बाटेन । आखिर तब का किहल जाई मास्टर साहब? आपई कौनों रास्ता बताओ ?’’- जियावन ने हांथ जोड़कर कहा ।
“ अब क्या कहूँ भाई, मैं खुद मास्टर हूँ और इसी व्यवस्था में जी रहा हूँ, लेकिन आप की बात में सच्चाई है । यह देखिये, आज के अखबार में छपा है कोर्ट का आदेश ।  इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि - सरकारी कर्मचारियों, विधायकों, सांसदों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाया जाए। तभी वे इन स्कूलों की खस्ता हालत को समझ सकेंगे। यही नहीं कोर्ट ने कहा है कि यदि उनके बच्चे कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ते हैं तो वे बच्चों की पढ़ाई पर होने वाले इस खर्च के बराबर राशि सरकारी खजाने में जमा कराएं।कोर्ट ने यूपी के मुख्य सचिव को छह महीने में इस पर अमल सुनिश्चित करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने कहा है कि सभी जनप्रतिनिधियों और सरकारी कर्मचारियों जिनमें चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर आईएएस-आईपीएस तक शामिल होंगे और वे सभी कर्मचारी जो सरकार से सैलरी लेते हैं, के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाए जाएं।
 यह हुई बात जियावन । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य के प्राथमिक स्कूलों की खस्ता हालत को लेकर दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान ये बात कही। कोर्ट की इस बात पर अमल हुआ तो वीआईपी और वीवीआईपी माने जाने वाले लोगों के बच्चे भी आम बच्चों की तरह सरकारी स्कूलों में पढ़ते हुए नजर आएंगे। अब आयेंगे अच्छे दिन, क्या समझे ?” – मास्टर साहब ने हँसते हुए कहा और उठकर घर की तरफ चल पड़े ।
घर पहुँच कर मास्टर साहब ने पत्नी पुष्पा से आकाश को तैयार कर बाहर लाने को कहा और खुद कपड़े बदलने अपनी कोठरी में पहुँच गए । आकाश पहले से ही तैयार था सो माँ- बेटे दोनों तुरंत बाहर आ गए । मास्टर साहब ने अपनी मोटरसाइकिल निकली और उसे पोंछते हुए आकाश से पूछे – “ प्रवेश पत्र रख लिया है ?”
        “ हाँ पापा, प्रवेश पत्र, पेन,दो फोटो,पेंसिल,रबर सब रख लिया है ।’’- आकाश ने हँसते हुए उत्साह से कहा ।
        “ इसने कुछ खाया भी, अब तीन-चार घंटे वहाँ हाल में कुछ मिलेगा नहीं ।’’-मास्टर साहब ने पत्नी पुष्पा से कहा ।
        “ जी खा लिया है, इसे दही-शक्कर भी खिला दिया है और पानी की बोतल में ग्लूकोस्ज बनाकर भी दे दिया है ।’’- पत्नी पुष्पा ने जवाब दिया ।
मास्टर साहब ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और आकाश तुरंत पीछे बैठ गया । बैठने से पहले उसने अपनी माँ के पैर छूए तो माँ आशीष देते हुए बोली
 “ जुग-जुग जिय लाल । मातारानी सब ठीक करें । पेपर अच्छे से लिखना ।’’
 आकाश ने भी हाँ में सर हिलाया और मोटरसाइकिल चल पड़ी गोंसाईपुर के गोकुलनाथ त्रिपाठी महाविद्यालय के लिए जो की तीन ही किलोमीटर की दूरी पर था । जब तक स्कूल आ नहीं गया मास्टर साहब आकाश को समझाते रहे –
“ घबराना मत । पूरा पर्चा पहले ध्यान से पढ़ लेना । इधर-उधर मत देखना । कोई फालतू कागज अपने पास मत रखना । किसी से बोलना मत । कोई परेशानी हो तो कक्षा के गुरुजी से बताना । घड़ी पर भी नजर रखना । समय से सारा पर्चा खतम कर लेना । पर्चा पहले पूरा हो जाए तो भी पूरे समय बैठे रहना । और ऐसी ही कई हिदायतें जिनके जवाब में आकाश “जी पापा” कहकर चुप हो जाता ।
थोड़ी ही देर में दोनों परीक्षा केंद्र पर पहुँच जाते हैं । विद्यालय के प्रांगण में विद्यार्थियों और अभिभावकों का जमावड़ा लगा था । अभी मास्टर साहब ने मोटरसाइकिल खड़ी भी नहीं की थी कि चपरासी पारस सिंह लपका उनकी तरफ ।
“ पा लागी महराज़, आज इहाँ कइसे ?” – पारस ने मास्टर साहब के पैर छूते हुए पूछा ।
“ खुश रहा पारस, आकाश का पेपर यहीं है तो छोडने चला आया । ध्यान रखना जरा इसका ।’’- मास्टर साहब ने कहा और आकाश की तरफ इशारा किया । आकाश ने भी पारस के पैर छूए ।
“ अरे आप बिलकुल चिंता न करें महराज़ । घर की बात है । अउ ई विद्यालय त पूर्वान्चल क स्वर्ग है । ठकुरन क कालेज है अउ ठाकुर – ठकार आप देवता लोगन क खयाल न करीहई त नरकई जाबई करिहई ।’’- पारस ने दाँत निपोरते हुए कहा ।
“ ऐसी कोई बात नहीं । आप सम्मान देते हैं यही बड़ी बात है । त हम चली ?”- मास्टर साहब ने पारस से पूछा ।
“ हाँ महराज़, लेकिन तनी प्रिन्सिपल साहब से मिल लेता त ठीक रहात । कुली लड़िकन के गार्जियन मिलत बाटेन । साहब खुदई कहे बाटेन । चला मिलाई ।’’ – यह कहकर पारस ने मास्टर साहब का हांथ पकड़ लिया ।
“ बहुत जरूरी हो तो मिलूँ नहीं तो आज जाने दीजिये । मुझे भी अपने विद्यालय जाना है । जैसा आप बोलें ? कौनों खास बात ?” – मास्टर साहब ने पारस से पूछा ।
पारस  मास्टर साहब को थोड़े एकांत में ले गया और बोला –
“ देखा गुरु, जइसे अपने इनहा चौकिया माई क धाम बा, बीजेठुआ धाम बा, कंजातीबीर धाम बा, हरशू बरम क धाम बा वइसे ई गोंसाईपुर के गोकुलनाथ त्रिपाठी महाविद्यालय नक़लधाम है, नक़लधाम । जेकर नंबर इहाँ आ ग उ जाना फ़्सट क्लास पक्का । अब धाम में दान- दक्षिणा त करहिन चाहे । जा जाके प्रिन्सिपल साहब से मिल ला । जादा नाहीं मात्र दू हज़ार रूपिया में लडिका का किस्मत बन जाई, जा ।’’
“ऐसा है पारस सिंह, ई सब हमका पता है । हम ख़ुद अध्यापक हैं । लेकिन पैसा वो दें जो नकल करवाना चाहते हों, जिन्हें अपने बच्चे की क्षमता पर भरोसा न हो । हमारा आकाश होनहार है, मेहनती है । उसे नकल की कोई सुविधा नहीं चाहिए । मैं चलता हूँ। आप के प्रिन्सिपल साहब से मुझे मिलने की कोई ज़रूरत नहीं है । ठीक है ।’’- मास्टर साहब ने थोड़ा गुस्से में कहा ।
“ अरे बाभन देवता, जरूरत आप को नहीं है लेकिन संस्था को तो है । कुल 2 लाख रूपिया देकर परीक्षा केंद्र का जुगाड़ बनल है । ई पइसा तो आप को देना ही पड़ेगा । समझ लीजिये अनिवार्य है । सब दे रहे हैं । हमको यही आदेश मिला है गुरु, नहीं तो ....?” – पारस ने सर खुजलाते हुए कहा ।
“ नहीं तो क्या पारस ? वो भी बता दो ?’’- मास्टर साहब झल्लाते हुए बोले ।
“ महराज गुस्सा जिन हो । हम तो नौकर आदमी हैं । जो कहा गया है वही कह रहे हैं । आप तो सब जानते ही हैं, परीक्षा में बच्चों को परेशान करने के हज़ार तरीके हैं । फिर लड़के के भविष्य का सवाल है ..... बाकी ....जैसा आप ठीक समझें ।’’- पारस ने दुष्टता पूर्वक हंसी के साथ कहा ।
“यह तो हद है भाई। लूट है लूट । कानून नाम की कोई चीज ही नहीं रह गयी है । शिक्षा के मंदिर को रंडी के कोठे से भी बत्तर बना दिया है । कौन हैं प्रिन्सिपल साहब ? चलो मिलता हूँ । समझ क्या रखा है ?चलो ।’’ – मास्टर साहब ने तमतमाते हुए कहा ।
“ शांत हो जा गुरु । प्रिन्सिपल साहब श्री गुमान सिंह जी हैं । रिश्ते में हमरे फुफ़ा लगें । इनके ससुर ओम सिंह जी ही इस विद्यालय के सर्वेसर्वा हैं अब । ओम सिंह जी अरे अपने विधायक जी,उन्हीं का तो है यह नकलधाम ।’’ – पारस ने कुटिलता पूर्वक अपनी बात कही ।
आगे बढ़ रहा मास्टर साहब का पाँव अचानक रुक गया । वे स्तब्ध होकर खड़े रहे । एक बार आकाश की तरफ देखे जो अपनी किताब में खोया हुआ था । मानों कुछ भी पढ़ने से छोडना नहीं चाहता हो । दूसरी तरफ अभिभावकों की कतार थी जो प्रिन्सिपल साहब के कमरे के बाहर लगी थी । किसी को किसी से मानों कोई शिकायत ही नहीं थी । एसबी कुछ एक प्रक्रिया के तहत संपन्न हो रहा था । मौसम उमस भरा था और उस धूप में अब मास्टर साहब को बेचैनी होने लगी । पास ही नीम के पेड़ पर कोयल बोल रही थी जो इस समय बेसुरी महसूस हुई । पसीने की एक बूंद जब आँख पर पड़ी तो मानों मास्टर साहब की स्तब्धता टूटी । वे पारस की तरफ बढ़े और शांत भाव में बोले –“ पारस मुझे किसी से नहीं मिलना । पैसे मैं तुम्हें दे देता हूँ तुम जिसे देना हो दे देना । ये लो पैसे ।”
मास्टर साहब ने हज़ार की दो नोट जिस पर गांधी जी मुस्कुरा रहे थे पारस की तरफ बढ़ा दिये । पारस ने तुरंत पैसे जेब के हवाले किये और बोला –
 “ महराज आप निश्चिंत रहें, हम जमा कर देंगे । आप को किसी से मिलने की कोई ज़रूरत नहीं । आप लोगों की सेवा तो हम ठाकुर- ठकारों का काम ही है । आप जाइए, निश्चिंत होकर जाइए । पालागी महराज ।’’
 पैलगी करते हुए पारस ने पैर छुए और हांथ जोड़कर खड़ा हो गया । मास्टर साहब उसकी कुटिलता और अपनी मजबूरी पर मुस्कुराये और मोटरसाइकिल पर बैठते हुए बोले –
“ अच्छा पारस, विद्यालय का नाम  गोकुलनाथ त्रिपाठी महाविद्यालय और करता धरता सब तोहरी बिरादरी, कुछ समझ नहीं आया ।’’
“ अरे महराज । रामनरायन त्रिपाठी जी ने अपने पिता स्वर्गीय स्वतंत्रता सेनानी गोकुलनाथ त्रिपाठी जी के नाम पर यह महाविद्यालय बनवाया । ओम सिंह जी पहले सिर्फ़ मामूली ट्रस्टी थे लेकिन अपनी बुद्धि लगाकर और दूसरे सदस्यों को मिलाकार ख़ुद सर्वेसर्वा बन गए । लेकिन विद्यालय का नाम नहीं बदले । कहते हैं बाभन का नाम हो और हमारा काम तो क्या बुरा है । और हम तो यह भी सुने हैं कि जल्द ही वो मंत्री बननेवाले हैं । शिक्षा मंत्री का चांस है उनका । देखिये क्या होता है ? तो चलूँ महराज परीक्षा का समय हो गया है, बाकी काम भी देखने हैं ।’’-पारस ने अपनी घड़ी की तरफ इशारा करते हुए कहा ।
“हाँ, ठीक है जाओ ।’’- मास्टर साहब ने भी अपनी घड़ी देखते हुए कहा । पारस तुरंत प्रिन्सिपल आफिस की तरफ चला गया । मास्टर साहब ने आकाश को आवाज दी जो नीम के पेड़ के नीचे खड़ा था । वह तुरंत पिता के पास आकर खड़ा हो गया ।
“मैं जा रहा हूँ । दोपहर पेपर छूटने पर यहीं रहना मैं लेने आ जाऊंगा । ठीक है ?” –
 मास्टर साहब ने आकाश के सर पर हांथ फेरते हुए कहा ।
आकाश ने पिता के पैर छुए और “ठीक है” बोलकर अपनी कक्षा की तरफ दौड़ गया ।
मास्टर साहब थोड़ी देर तक उसे देखते रहे । फ़िर प्रिन्सिपल आफिस की तरफ नज़र दौड़ाई जहाँ अभी भी कतार लगी थी । उन्हें जाने क्यों लगा कि उनके मुंह के सारे दाँत गिर गए हैं और सिर्फ़ जीभ हर जगह घूम रही है । क्या अब काटने का कोई काम वो नहीं कर सकेंगे ? तो क्या सिर्फ़ चाटना भर ही जीवन में रह जायेगा ?
मास्टर साहब असहज हो रहे थे और पसीना और अधिक चूने लगा था । दोनों हांथों से हैंडल पकड़े मानों वो उस हैंडल को ही तोड़ देना चाहते हों । इतने में किसी गाड़ी के तेज हॉर्न ने उनकी स्तब्धता को भंग किया । कोई पीछे से चिल्लाया –“ अबे सुनाई नहीं दे रहा है का ? हट सामने से नहीं त चढ़ा देब । हट साले ।’’
मास्टर साहब ने तुरंत किक मारी और तेजी से वहाँ से निकल गए । परीक्षा तो आकाश की थी लेकिन फ़ेल हो गए थे मास्टर साहब । भ्रस्ट व्यवस्था की आंच गर्म लू की तरह वे अपने चेहरे पर महसूस कर रहे थे और जल्दी से अपने स्कूल पहुँचना चाह रहे थे, जहाँ के लिए देर पहले ही हो चुकी थी ।

डॉ मनीषकुमार सी. मिश्रा 
यूजीसी रिसर्च अवार्डी
हिंदी विभाग
बनारस हिंदू युनिवर्सिटी
वाराणसी, उत्तर प्रदेश

Friday, 4 September 2015

ANAHAD-An International Interdisciplinary Quarterly Bilingual Research Journal (ISSN: 2349-137X)

ANAHAD
An International Interdisciplinary Quarterly Bilingual Research Journal (ISSN: 2349-137X)
About The Journal
ANAHAD is a double-blind refereed International Quarterly Bilingual Research journal (ISSN: 2349-137x) aims to arm its readership with the latest research and commentary in all areas of Art,Culture,Music,humanities, languages and social sciences, with an informed, inter-disciplinary approach. The journal invites papers from all disciplines in Hindi as well as in English.
The journal has an international editorial and advisory board, representing all areas of social sciences, humanities, literature and management providing a broad structure to add value to interdisciplinary from a wide range of perspectives. The journal is a direct key benefit to academicians, practitioners and students who are interested in the latest innovations and research the field of Art, literature and Social Sciences.
                                    Dr. Madhu Rani Shukla
Editor
Mobile no. 09838963188, 09454843001
E mail – melodyanhad@gmail.com             madhushukla011@gmail.com

Thursday, 3 September 2015

अपना दृष्टिकोण बदलना होगा ।

सेमिनारों /संगोष्ठियों को लेकर अब मुझे लगता है कि हमें अपना दृष्टिकोण बदलना होगा । हमें यह समझना होगा कि आयोजक हमारा रिश्तेदार नहीं है जो वो हमारी अगवानी में बिछा पड़ा रहे । यह एक शैक्षणिक कार्य है ना की पारिवारिक समारोह ।
भाग लेना हमारी शैक्षणिक जरुरत भी है और जिम्मेदारी भी । हम मुफ्तखोरी से अपने आप को बचाएं और आयोजकों को भी तो शायद इस तरह के आयोजन अधिक सहज सरल और महत्वपूर्ण बन सकेंगे । 
इधर विदेशों के कुछ आयोजकों द्वारा आयोजित संगोष्ठियों को देखकर दंग रह गया ।
आप बीज वक्ता हों तब भी आप को पंजीकरण करवाना है और आने जाने,रहने खाने का व्यय भी खुद करना है । 
इतनी सादगी से आयोजन होते हैं क़ि क्या कहूं । शायद यही सही तरीका भी हो ।

बाबा रामदेव ने लॉन्च किया 'आटा नूडल्स'

जल्द ही लोग योगगुरु बाबा रामदेव का 'आटा नूडल्स' खरीद सकेंगे। रामदेव ने गुरुवार को मैगी के लॉन्चिंग के मौके पर दावा किया कि पतंजलि योग पीठ में तैयार हुआ नूडल्स आटे से बना है।
http://hindi.news24online.com/swami-ramdev-launches-patanjali-swadeshi-noodles-in-market-41/

ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...