Tuesday, 25 August 2015

आप के आलेखों का स्वागत है ।

VEETHIKA-An International Interdisciplinary Research Journal ( 2454-342X ) 

Vol 1 , No. 2 , July - Sep , 2015
के लिए आप अपने आलेख भेज सकते  हैं । 
अधिक जानकारी के लिए http://www.manuscripts.qtanalytics.com/CurrentArticals.aspx?JID=32 इस लिंक पर क्लिक करें । 
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Monday, 24 August 2015

आरती बाबा विश्वनाथ की


मंत्र से गुंजायमान
हो रहा शंखनाद
बड़ा जोर घंटनाद 
आरती हो रही
बाबा विश्वनाथ की ।
एक सुर ,एक ताल
हर कोई है निहाल
भक्ति में हो के लीन
आरती हो रही
बाबा विश्वनाथ की ।
हाँथ जोड़,आँख मूंद
भीड़ में खड़े-खड़े
भक्ति भाव से डेट
आरती हो रही
बाबा विश्वनाथ की ।
तर-बतर हो के भी
झूम रहा हर कोई
उल्लास का प्रचंड रूप
आरती हो रही
बाबा विश्वनाथ की ।
बोल बम का जयकार
हर हर महादेव का
लगा के नारा
आरती हो रही
बाबा विश्वनाथ की ।
अतुलनीय,अद्वितीय
अदभुद,अविस्मरणीय
दिव्य और भव्य
आरती हो रही
बाबा विश्वनाथ की ।
मनीष कुमार
BHU

बनारस में सांड़


गली,मुहल्ला या कि
सड़कों के बीचों बीच
ऊँची-नीची सीढियाँ 
हो घाट या कि चौक
पूरे अधिकार और
मिज़ाज के साथ
आप को दिख ही जायेंगे
बनारस में सांड़।
हस्ट पुष्ट और
गर्व में चूर
कभी मौन समाधी में लीन
कभी आपस में रगड़ते सींग
लड़ते- झगड़ते
उलझते -सुलझते
आप को दिख ही जायेंगें
बनारस में सांड़।
काले-सफ़ेद
चितकबरे और लाल
ये भोले के दुलारे
भोले के ही दुआरे
उन्हीं के ही सहारे
सांझ कि सकारे
आप को दिख ही जायेंगें
बनारस में सांड़।
जीवन के एक अंग जैसे
दिन के एक रंग जैसे
यहाँ - वहाँ
जहाँ - तहाँ
पूँछों न कहाँ -कहाँ
अपने में मस्त
आप को दिख ही जायेंगें
बनारस में सांड़ ।
न कोई लोक लाज
न ही कोई काम काज
बीच सड़क
करते हैं रति
रोककर शहर की गति
विचरते नंग धड़ंग
आप को दिख ही जायेंगें
बनारस में सांड़ ।
शहर की
पहचान के पूरक
शिव के
सनातन सेवक
आज भी
पूरी गरिमा के साथ
आप को दिख ही जायेंगें
बनारस में सांड़ ।
मनीष कुमार
BHU

बनारसी


न जान न पहचान
आप भले हों
पूरी तरह अनजान
मगर बनारसी
साध ही लेगा
आप से
सीधा संवाद ।
यह बनारस की
ख़ासियत है
बनारस
अपनाता है
हर किसी को
बिना किसी भेद भाव के ।
बनारसी भी
इसी अपनेपन की
संस्कृति से
इसकी जड़ों से जुड़े हैं
सो जोड़ना
इनकी आदत में शामिल है ।
खिलखिलाते
मुस्कुराते
पान चबाते
भाँग छानते
ये मिल जायेंगें
घाट पर,दूकान पर
या कि
सरे राह ।
गरियाते हुए
गुरु- गुरु बुलाते हुए
बड़की -बड़की
बतियाते हुए
और देते हुए चुनौती
हर
आम-ओ-ख़ास को ।
ये बनारसी
बकैती के महागुरु
जहाँ मिलें वहीँ शुरू
हर विषय के ज्ञाता
इन्हें सबकुछ है आता
यह भ्रम ही
इन्हें ब्रह्मा बनाये हुए है ।
लगे रहो गुरु -
ई बनारस है
यहाँ कंठ से लंठ
कोई नहीं
सब को
नीलकंठ का आशीष है
बनारसी आदमी
सब पर बीस है ।
मनीष कुमार
BHU

Sunday, 16 August 2015

बनारस की तरह


आधी रात को
यूँ खिड़की से
तुम्हारा चाँद को देखना 
मुझे वैसे ही लगा
जैसे बनारस के
किसी घाट की सीढियों पर
घंटों बैठकर
गंगा की मौज को निहारना ।
मैं जानता हूँ कि
तुम्हारी ख़ामोशी
किसी तपस्वी की
साधना सी है
ऐसी साधना जो
अब बनारस के
मठों में भी
दुर्लभ है ।
मेरे लिए
तुम जितनी
पवित्र और निर्मल हो
उतनी तो अब
गंगा की धार भी नहीं ।
तुम मेरे विश्वास का
वैसा ही केंद्र हो
जैसा बनारस का विश्वास
बाबा विश्वनाथ पर ।
मैं बनारस की
गलियों सा तंग
गोदलिया सा
भीड़ से भरा
और तुम
बी.एच.यू. कैंपस सी
सुंदर,सुव्यवस्थित और
गरिमापूर्ण ।
मैं इस शहर में
शहर का होकर जीता हूँ
और जीना चाहता हूँ
ऐसे ही
तुम्हारा होकर भी ।
बनारस के संगीत सा
तुम्हारे अंदर
घुलना चाहता हूँ
शाम की लंकेटिंग में
तुम्हारा साथ चाहता हूँ
बनारस की होली सा
तुम्हें हर रंग देना चाहता हूँ
पप्पू की अड़ी पर
चाय की चुसकी के साथ
हर मुद्दे पर
तुमसे बहस करना चाहता हूँ
बोलो
क्या तुम
इस शहर
बनारस की तरह
मुझे प्यार कर सकोगी ?

लंकेटिंग


सुबह शाम
लंका तक तफ़री
लंकेटिंग है ।
सिंहद्वार बी.एच.यू.
के ठीक सामने
भारत रत्न
महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी
कि प्रतिमा को साक्षी रख
जुटते रहे हैं
लंकेटिंग के धुरंधर ।
रामनगर और डी.एल.डबलू से
सुंदरपुर और रविन्द्र्पुरी तक से
आ धमकते हैं
छात्र,छात्राएं और प्राध्यापक गण
और भी चारों ओर से
अहोर - बहोर ।
चाय, चायनीज,मोमोज
आमलेट,चिकन,बिरियानी
यादव होटल,सावन रेस्टोरेंट
ओम साईं गेस्ट हाउस
कामधेनु अपार्टमेंट
हेरिटेज और बी.एच.यू. अस्पताल
और इनके दम पर सजी
दवाओं की अनगिनत दुकानें ।
वैशाली स्वीट्स की
छेने का दही वडा
रविदास गेट पर
केशव ताम्बुल भंडार
पहलवान लस्सी
और इनसब के साथ
युनिवर्सल बुक हॉउस और
मौर्या मैगजीन के साथ
कई बैंकों के ए.टी.एम्. ।
जूते- चप्पल और
कपड़ों की दुकानें
जूस और सब्जी के साथ
किराना और इलेक्ट्रानिक
ज़ेरॉक्स और बाइंडिंग के साथ
मोबाईल रिचार्ज और रिपेअरिंग
शेविंग और कटिंग संग
देशी-विदेशी
शराब और भाँग का इंतजाम ।
लंका पर
यह सारी व्यवस्था
इसे खास बनाती है
और लंकेटिंग
लंकावासियों क़ी
दिनचर्या का अंग ।
छात्रों प्राध्यापकों
कि राजनीति
यहाँ परवान चढ़ती है
इश्कबाज
चायबाज और
सिगरेटबाजों के दमपर
यह लंका रातभर
गुलज़ार रहती है ।
समोसा संग लाँगलता
यहाँ सर्व प्रिय है
सर्फ़िंग संग
नई फिल्मों की डाऊनलोडिंग
रुपए 10 में एक है ।
यह लंका
और यहाँ क़ी लंकेटिंग
मीटिंग,चैटिंग और सेटिंग
और जब कुछ न हो तो
महा बकैती
सिंहद्वार पर धरना - प्रदर्शन
फ़िर
पी.ए.सी.रामनगर
और पुलिस ही पुलिस ।
यह सब
यहाँ आम है
क्योंकि यहाँ
हर कोई ख़ास है
कम से कम
मानता यही है ।
लंकेटिंग
एक शैली विशेष है
जो बड़े विश्वविद्यालयों में
आबाद और बर्बाद
होनेवाले
विशेष रूप से जानते हैं ।
लंकेटिंग
ज्ञान का नहीं
अनुभूति का विषय है
तो आइये कभी
लंका - बी.एच.यू.
और खुद को
समृद्ध होने का
अवसर दें ।
डॉ मनीष कुमार ।
BHU

आज़ादी की पूर्व संध्या पर


सत्तर की हो चली है
थोड़ी गदरा भी गई है
इसे खुली हवा के साथ 
महसूस करता हूँ तो
रोमांचित हो जाता हूँ
आखिर आज़ादी
किसे पसंद नहीं ?
लेकिन जिस तरह के
देश के हालात हैं
लगता है
थोड़ी पथ भ्रष्ट तो नहीं
हमारी आज़ादी ?
सबसे अंतिम व्यक्ति
कि आँखों के आँसू
पोंछने वाला वह सपना
इस नई पूँजीवादी व्यवस्था में
हाशिये पर तो नहीं ?
काँटनेवाले दांत तोड़कर
चाटनेवाली जीभ
छोड़ दी गई है क्योंकि
अब क्रांति
लिजलिजी और बेकार बात है
क्योंकि
यह बाजार के अनुकूल नहीं है
है क्या ?
फ़िर ख़ुद की जरूरतों के बीच
हम कितने बाजारू
कितने आत्मकेंद्रित
और कितने फिरकापरस्त
हो गए
यह हमें एहसास है क्या ?
हमारी संवेदन शून्यता
हमें कितना
अमानवीय बना रही है
कभी राष्ट्र और समाज के
सरोकारों के बीच
हमनें जानना चाहा क्या ?
हम एक राष्ट्र के रूप में
जाति धर्म भाषा और प्रांत
से आगे बढ़कर
इस देश का
कितना हो पायें हैं ?
और कितना हो पायेंगें ?
कभी सोचा हमनें ?
जो रोकती हैं
टोकती हैं
सालती हैं
हमें तोड़ती और बाँटती हैं
उन बातों की राजनीति से
खुद को
अलग कर पाये हम ?
अगर नहीं तो फ़िर
आज़ादी की पूर्व संध्या पर
थोड़ा दुखी हूँ
पर ख़ुश भी हूँ क्योंकि
हाँथों में आयी
थोड़ी गदराई
यह आज़ादी
सुकून तो देती ही है ।
आनेवाली चुनौतियाँ
आनेवाला समय
डरा तो रहा है मगर
मुझे अपनी गहरी और
बहुत गहरी
राष्ट्रिय चेतना और संस्कारों पर
सम्पूर्ण विश्वास है
सनातन शाश्वत
मूल्यों और सिधान्तों पर
गहरी आस्था है ।
हम बचेंगें
हम बढ़ेगें
हम चलेंगें
प्रगति के नए पथ पर
अपने और
अपनों के सपनों के साथ ।
आज़ादी का
यह राष्ट्र पर्व
आप सभी को मुबारक
हमें मुबारक
जय हिंद ।
डॉ मनीष कुमार
BHU

ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...