Friday, 4 November 2011

क्या कहे लोग अपने ही थे ,

शब्दों  से  खेल  रहे  , 
भावों   को  तौल  रहे  ,
लोग  वो  अपने  ही  ,
जिंदगी  यूँ  हम  अपनी  झेल  रहे .
 
राहों   के  दरमयान  कब  सड़के  बदल  डाली  ,
बातों ही बातों में शर्ते बदल डाली ,
क्या  कहे  लोग  अपने  ही  थे  ,
क्यूँ   रश्मे  बदल  डाली .
 

Wednesday, 2 November 2011

पथरीली पगडंडी पे काटों से राहत है /

न गम ही है तेरा , न तेरी ख़ुशी है ,
न आखों में आंसू , न मुख पे हंसी है ;
न मंजिल की चाहत , न राहें थमी  हैं ;
कैसी जिंदगानी ये कैसी कमी है  /

विस्मित अँधेरा है ,साये ने घेरा है 

परछाई है व्याकुल अँधेरा ही अँधेरा है ;

तारो की टिमटिमाहट है कैसी ये चाहत है ,

पथरीली पगडंडी पे काटों से राहत है /

Monday, 31 October 2011

आखों में तेरे खोया हूँ अब तक,

आखों में तेरे खोया हूँ अब तक,
कितनी ही रातें न सोया हूँ  अब तक ,

जागे हुए सपनों की बातें करूँ क्या ,
न पूरी हुई मुलाकाते वो कहूँ क्या ,

बाँहों का घेरा था
कितना अकेला था
खिलता अँधेरा था
तन्हायी  ने  घेरा था

यादें महकी थी
आहें बहकी थी
गमनीन सीरत थी
तू बड़ी खुबसूरत थी

फिजा गुनगुनायी थी
चाहत सुगबुगाई थी
तू मन मंजर पे छाई थी
तू न मेरी हुई न परायी थी

  किस्से अधूरे हैं
वाकये न पूरे हैं
जीवन के लम्हे है
हंसते और सहमे है

Tuesday, 25 October 2011

HAPPY DEEPAWALI

तुम्हारी यादों के साथ,
 तुम्हारी ही बातों के पास ,
 जलता-सुलगता बहुत कुछ है .
 शायद मन में, मन रही दीपावली है. 

         तेरी आँखों में जलते सपनो ,
 और मेरे दिल की उलझनों के बीच 
बिखरता, टूटता,कसमसाता आज भी कुछ है .
शायद मन में, मन रही दीपावली है .

ताशकंद के इन फूलों में

  ताशकंद के इन फूलों में केवल मौसम का परिवर्तन नहीं, बल्कि मानव जीवन का दर्शन छिपा है। फूल यहाँ प्रेम, आशा, स्मृति, परिवर्तन और क्षणभंगुरता ...