Monday, 27 June 2011

काश तुम मिलती तो बताता



यूं ही तुम्हे सोचते हुवे
 सोचता  हूँ क़ि चंद लकीरों से तेरा चेहरा बना दूं 
 फिर उस चेहरे में ,
खूबसूरती  के सारे रंग भर दूं . 
तुझे इसतरह बनाते और सवारते हुवे,
शायद  खुद को बिखरने से रोक पाऊंगा . 
 पर जब भी कोशिश की,
 हर बार नाकाम रहा . 
 कोई भी रंग,
 कोई भी तस्वीर,
 तेरे मुकाबले में टिक ही नहीं पाते .

तुझसा ,हू-ब-हू तुझ सा ,
 तो बस तू है या  फिर 
 तेरा अक्स है जो मेरी आँखों में बसा है . 
 वो अक्स जिसमे 
 प्यार के रंग हैं 
 रिश्तों की रंगोली है 
 कुछ जागते -बुझते सपने हैं 
दबी हुई सी कुछ बेचैनी है  
और इन सब के साथ ,
 थोड़ी हवस भी है . 
इन आँखों में ही 
 तू है 
तेरा ख़्वाब है 
 तेरी उम्मीद है 
 तेरा जिस्म है 
और हैं वो ख्वाहीशें ,
जो  तेरे बाद 
 तेरी अमानत के तौर पे 
मेरे पास ही रह गयी हैं .

मैं जानता हूँ की मेरी ख्वाहिशें ,
 अब किसी और की जिन्दगी है. 
 इस कारण अब इन ख्वाहिशों के दायरे से 
 मेरा बाहर रहना ही बेहतर है . 

लेकिन ,कभी-कभी 
 मैं यूं भी सोच लेता हूँ क़ि-
काश 
 -कोई मुलाक़ात 
 -कोई बात 
 -कोई जज्बात  
-कोई एक रात  
-या क़ि कोई दिन ही 
बीत जाए तेरे पहलू में फिर 
 वैसे ही जैसे कभी बीते थे 
 तेरी जुल्फों क़ी छाँव के नीचे 
 तेरे सुर्ख लबों के साथ 
तेरे जिस्म के ताजमहल के साथ .
 इंसान तो हूँ पर क्या करूं 
 दरिंदगी का भी थोडा सा ख़्वाब रखता हूँ  
कुछ हसीन गुनाह ऐसे हैं,
 जिनका अपने सर पे इल्जाम रखता हूँ .
 और यह सब इस लिए क्योंकि ,
 हर आती-जाती सांस के बीच   
मैं आज भी 
तेरी उम्मीद रखता हूँ . 
 इन सब के बावजूद ,
 मैं यह जानता हूँ क़ि
 मोहब्बत निभाने क़ी सारी रस्मे ,सारी कसमे 
 बगावत के सारे हथियार छीन लेती हैं .
 और छोड़ देती हैं हम जैसों को 
 अस्वथ्थामा क़ी तरह 
 जिन्दगी भर 
 मरते हुवे जीने के लिए .
 प्यार क़ी कीमत ,
 चुकाने के लिए .
ताश के बावन पत्तों में,
जोकर क़ी तरह मुस्कुराने के लिए .
 काश तुम मिलती तो बताता ,
 क़ि मैं किस तरह खो चुका हूँ खुद को ,
 तुम्हारे ही अंदर . 
   
                                                             

Saturday, 25 June 2011

Credit / Grading System Time – Table of workshops IN hindi


Credit / Grading System Time – Table of workshops IN hindi

Course
 

Hindi
Contact Person
 
Dr. S. A. Dubey
    Contact No.  
    9930849111
      Venue  
K. C. College, Churchgate
    Date  
02.07.2011

शिकायत सब से है लेकिन,किसी से कह नहीं सकता

जो कहनी थी ,वही मैं बात,यारों भूल जाता हूँ .
किसी क़ी झील सी आँखों में, जब भी डूब जाता हूँ .

नहीं मैं आसमाँ का हूँ,कोई तारा मगर सुन लो
किसी के प्यार के खातिर,मैं अक्सर टूट जाता हूँ .

शिकायत सब से है लेकिन,किसी से कह नहीं सकता
बहुत गुस्सा जो आता है,तो खुद से रूठ जाता हूँ .

किसी क़ी राह का कांटा,कभी मैं बन नहीं सकता
इसी कारण से मफिल में,अकेला छूट जाता हूँ .

मासूम से सपनों क़ी मिट्टी,का घड़ा हूँ मैं,
नफरत क़ी बातों से,हमेशा फूट जाता हूँ .

Tuesday, 14 June 2011

अभिलाषा 2012

राहें चिकनी जब भी मिलीं ,
तभी-तभी मैं फिसल गया . 
लेकिन इस फिसलन में भी ,
 लुफ्त बड़ा था गजब प्रिये . 


                                     अभिलाषा *
        

चुरा के चैन वो मेरा


कोई ख्वाबों में आता है   
कोई नीदें चुराता है . 
चुरा के चैन वो मेरा, 
मुझे बेचैन करता है .  

 वहां पे वो अकेली है  
यहाँ पे मैं अकेला हूँ . 
उसे मुझसे मोहब्बत   है,
मुझे उससे मोहब्बत  है . 
  
खामोश रहती है, 
कभी वो कुछ नहीं कहती . 
यहाँ पे मैं तड़पता हूँ,
 वहां पे वो तड़पती है .

बादल जब बरसते हैं,
हम कितना तरसते  हैं ?
यहाँ पे मैं मचलता हूँ, 
वहां पे वो मचलती है . 

 सर्दी क़ी रातों में,
 अकेले ही कम्बल में .
 यहाँ पे मैं सिकुड़ता हूँ,
 वहां पे वो सिकुड़ती है .
               कोई ख्वाबों में ---------------------------------------    

ग्यारहवीं पंचवर्षीय यॊजना हिन्दी संस्करण‌ ugc


ग्यारहवीं पंचवर्षीय यॊजना हिन्दी संस्करण‌


 

ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...