Thursday, 25 March 2010

बोध कथा ११ :निशानेबाज

बोध कथा ११ :निशानेबाज
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                 बहुत पुरानी बात है. रामनगर नामक एक छोटे से गाँव में एक युवक रहता था.उसका नाम था,विवेक. विवेक को तीरंदाजी का बड़ा शौख था. वह दिन-रात बस एक सफल तीरंदाज बनने के सपने देखा करता था. उसकी मेहनत भी धीरे-धीरे रंग ला रही थी. उसकी कला को गाँव वाले सम्मान भी देने लगे थे. अचूक निशाना लगाने में वह लगभग पारंगत हो गया था. लेकिन उसे पूरी दक्षता अभी हासिल नहीं हुई थी.इस लिए वह अपना अभ्यास लगातार कर रहा था .
            एक दिन किसी ने उसे बताया क़ि उस राज्य का राजकुमार सबसे बड़ा तीरंदाज है. उसके जैसा निशाना पूरे राज्य में कोई नहीं लगा सकता. यह बात सुनकर विवेक के मन में राजकुमार से मिलने और तीरंदाजी के गुर सीखने क़ि इच्छा हुई. और उसने निश्चित किया क़ि वह राजकुमार से मिलेगा.
       एक दिन उसे खबर मिली क़ि राजकुमार शिकार खेलने के लिए जंगल में आये हुए हैं. फिर क्या था ,विवेक भी जंगल क़ि तरफ निकल पड़ा.और सौभाग्य से उसकी राजकुमार से मुलाकात भी हो जाती है. राजकुमार से मिल कर विवेक उन्हें अपने तीरंदाजी क़ि बात से अवगत कराता है :साथ ही साथ उनसे अनुरोध भी करता है क़ि वे उसे तीरंदाजी के कुछ गुर सिखाएं . 
               विवेक क़ि बातों से राजकुमार प्रभावित होते हैं.राजकुमार उसे तीरंदाजी के कुछ नमूने दिखाने को कहते हैं. विवेक की कला का प्रदर्शन देख कर राजकुमार आश्चर्य चकित हो जाते हैं. वे विवेक से कहते हैं क़ि,''  तुम तो बहुत अच्छे तीरंदाज हो.मुझ से भी अच्छे .मैं तो तुम्हारे आगे कुछ भी नहीं. सीखना तो मुझे तुमसे  चाहिए .'' राजकुमार क़ि बातों पर विवेक को विश्वाश नहीं हुआ.आखिर राजकुमार ने विवेक से कहा ,''मित्र,तुम पहले अपना लक्ष्य निर्धारित करते हो,फिर वंहा निशाना लगाते हो.मैं ऐसा नहीं करता ,मैं पहले तीर चला देता हूँ.फिर वह तीर जंहा लग जाता है,उसे ही लक्ष्य घोषित कर देता हूँ.आखिर राजकुमार जो हूँ. कुछ समझे  ?'' इतना कहकर राजकुमार हसने लगे. विवेक भी हसने लगा . 
            बड़े परिवारों या बड़े घरानों में पैदा हो जाने से भी,यह समाज आप को प्रतिभावान मानने लगता है.ऐसे लोगों के लिए ही किसी ने लिखा है क़ि-------
                      ''जिनके घर अमीरी का सजर लगता है  
                उनका हर ऐब ,जमाने को हुनर लगता है '' 









Wednesday, 24 March 2010

ढरकता पल्लू आखों में नाज था /

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ढरकता पल्लू आखों में नाज था , बड़ी मासूमियत से उसने पूछा हाल था ;
उछल पड़ी धड़कन ,सांसे बहक गयी ;मरने नहीं दिया अब जीना मुहाल था /
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नहीं रहे मार्कंडेय

नहीं  रहे  मार्कंडेय
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           हिंदी नई कहानी आन्दोलन के प्रमुख कथाकारों में से एक मार्कण्डेय जी अब हम लोगों के बीच नहीं रहे.इलाहाबाद में रहते हुवे वे आर्थिक तंगी और बिमारी से कई सालों से जूझ रहे थे.आदर्श कुक्कुट गृह जैसी मशहूर कहानियाँ लिखने वाले मार्कंडेय हिंदी साहित्य से लगातार जुड़े रहे.
          ८० से अधिक उम्र के इस लेखक ने अपनी अंतिम सांस दिल्ली के राजू गाँधी केंसर अस्पताल में ली. मार्कंडेय को कई पुरस्कारों से समय-समय पर सम्मानित भी किया गया.जैसे क़ि-                राहुल  सांस्कृत्यायन  अवार्ड  १९९३ 
 प्रयाग गौरव सम्मान 
 हिंदी गौरव सम्मान २००३ 
                                     साहित्य  भूषण  अवार्ड   2009. प्रमुख है. आप क़ि जो रचनाएं अधिक प्रसिद्ध हुई  उनमे से प्रमुख
पान कां फूल , महुवा  का  पेड़ , भूदान , कहानी  की बात और  अग्निबीज विशेष उल्लेखनी हैं. हंसा  जाए  अकेला और गुलरा के बाबा  के अलावां उन्होंने कथा नामक पत्रिका  का सम्पादन भी उन्होंने किया.                                                     

बोध कथा १० : आदमी

बोध कथा १० : आदमी
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      एक बहुत ही दानी और अमीर व्यापारी के बारे में सुन कर गरीब ब्राह्मण रामानंद ने सोचा क़ि वह भी क्यों ना व्यापारी  के पास जा कर कुछ स्वर्ण मुद्राएँ मांग लाये.अपने मन की बात जब रामानंद ने अपनी धर्म पत्नी से कही तो उन्होंने भी इसके लिए हाँ कर दिया .
        फिर क्या था ? सुबह -सबेरे ब्राह्मण देवता चना-चबैना-गंगजल लेकर नगर क़ी तरफ निकल पड़े.लम्बी पद यात्रा कर के जब वे व्यापारी के पास पहुंचे तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना ना था. उन्होंने व्यापारी को अपनी सब ग्रह दशा बता दी. व्यापारी ने बड़े ही अनमने भाव से उनकी बात सुनी.अंत में बोला'' ठीक है ब्राह्मण ,कल आ जाना.आज कोई आदमी नहीं है.'' इतना कह कर वह व्यापारी घर के अंदर चला गया. ब्राह्मण सोचने लगा क़ि कुछ  बड़ा सा दान मिलने वाला है.एक दिन इन्तजार सही.नगर में इधर-उधर घूम कर भूखे पेट जैसे-तैसे उन्होंने रात बिताई.सुबह जब फिर व्यापारी के पास गए तो व्यापारी ने वही टका सा जवाब दिया.  ''कल आना,आज आदमी नहीं है.''
                              इस तरह लगभग एक महीना बीत गया. ब्राह्मण रोज व्यापारी के पास जाता  और व्यापारी वही रटा-रटाया जवाब देता क़ि,''कल आना,आदमी नहीं है .'' इस बार भी जब ब्राह्मण को वही जवाब मिला तो ,उससे रहा नहीं गया.ब्राह्मण ने हाँथ जोडकर विनम्रता पूर्वक कहा,''हे सेठ श्री,गलती आप की नहीं है. आप के पास आदमी नहीं है ,और मैं तो आप को ही आदमी समझ कर आ गया था.बड़ी भूल हुई,अब नहीं आऊंगा .''इतना कह कर ब्राह्मण तो चला गया पर व्यापारी को काटो तो खून नहीं.वह अपने व्यवहार पर अंदर ही अंदर जीवन भर शर्मिंदा होता रहा.
                             हमे जीवन में किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखनी  चाहिए.रहीम ने लिखा भी है क़ि------
                              '' रहिमन वे नर मर चुके,जो कुछ मांगन जांहि
                      उनसे पहले वो मुवें,जिन मुख निकसत नाहिं ''  

Tuesday, 23 March 2010

मोहब्बत भरी मेरी निगाहें ना देखो तुम ,

मोहब्बत भरी मेरी निगाहें ना देखो तुम ,
प्यार से भरी मेरी आहें ना देखो तुम ;

इश्क की राहें आसां नहीं होती ,
चाहते मंजिल बदनाम है होती ;

कीचड़ में खिले कमल ,काटों में गुलाब है ;
हुस्न हो बेपरदा ,मेरा नहीं ये ख्वाब है '

काटों की ये पगडण्डी ,
दिल तडपे है रातों में ;
आंसूं आखों से पिघले है ,
तू बढ जा अपनी राहों में ;
सरल सही से भावों को लेकर;
तू खुश रह अपनी पनाहों में;

कठिनाई को चुनना कैसा ,
बदनामी का संग करना कैसा ;
अच्छाई का दामन हो तुम ;
सच्चाई का आंगन हो तुम ;
कीचड़ की पगडण्डी पे चलना कैसा ,
काटों की राहों में बसना कैसा ;

मोहब्बत भरी मेरी निगाहें ना देखो तुम ,
प्यार से भरी मेरी आहें ना देखो तुम ;

Monday, 22 March 2010

बोध कथा ९ : दोस्ती

बोध कथा ९ : दोस्ती
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                                          एक दिन जब तबेले में सुबह-सुबह ताज़ा दूध निकाला जा रहा था,तभी दूध क़ी नजर सामने पड़े पानी से लबा-लब भरी  बाल्टी पर गयी.पानी को देखते ही दूध ने इतरा कर कहा ,''कहो दोस्त ,क्या हाल है ?''. पानी का ध्यान दूध क़ी तरफ गया.उसने भी विनम्रता पूर्वक कहा,''ठीक हूँ दोस्त.बस तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था. अभी थोड़ी देर में ये लोग हम दोनों को मिलाकर एक कर देंगे.मै भी तुम्हारे ही रंग में रंग कर,तुम्हारा ही अंश बन जाऊँगा .'' दूध क़ी बात सुनकर पानी बोला,''हाँ भाई,तुम्हारी तो मजा ही मजा है. हो तो मामूली  पानी लेकिन मेरे साथ मिलकर मेरे ही भाव में बिकते हो.तुम्हे अपने इस दोस्त का एहसान मानना चाहिए .'' यह बात सुनकर पानी थोडा संकोच में पड़ गया,लेकिन उसने तुरंत जवाब दिया कि,''मैं तुम्हारी बात मानता हूँ.तुम मुझे अपने में शामिल कर मेरा मूल्य बढ़ा देते हो.मै भी वचन देता हूँ क़ि जब भी तुम पर कोई खतरा आएगा ,पहले उस खतरे का सामना मै करूँगा.मेरे जीते जी कोई तुम्हारा बाल भी बाका नहीं कर सकेगा.''
                                 इतने में तबेलेवाला वंहा आया और उसने दूध और पानी को मिलाकर एक ही कर दिया.थोड़ी देर में एक गाडी आयी और उसमे दूध को रख दिया गया. दूध को बेचने के लिए बाजार भेजा जा रहा था. बाजार में पूरा दूध थोडा-थोडा कर बेच भी दिया गया.लेकिन जंहा भी दूध गया ,वंहा उसे गर्म करने के लिए खरीदार ने गैस पे रख दिया. जब आग क़ि आंच दूध ने महसूस क़ी तो वह चिल्ला पड़ा,''अरे यह क्या ? इस तरह तो ये लोग हमे जला कर मार डालेंगे .अब हम क्या करें ?'' दूध क़ी बात को सुनकर उसमे मिले पानी ने कहा,''चिंता मत करो मित्र.जब तक मै तुम्हारे साथ हूँ ,तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगा.अगर जलना ही है तो पहले मैं जलूँगा.''
                         यह कहकर पानी जलने लगता है. वह वाष्प बनने लगता है. अपने दोस्त क़ी यह हालत देखकर दूध का मन विचलित हो जाता है.वह पानी को अपने से दूर जाने से रोकने के लिए ,अपने मलाई क़ी एक मोटी परत पूरे बर्तन के ऊपर  फैला देता है. परिणामस्वरूप पानी वाष्प के रूप में बाहर नहीं जा पाता और दूध में उबाल आ जाता है.उबाल को देख कर खारीदार भी गैस बंद कर देता है. इसतरह दूध और पानी सच्ची दोस्ती क़ी एक मिसाल सामने रखते हैं.वे अपने प्राणों क़ी भी परवाह नहीं करते.ऐसी दोस्ती के लिए ही किसी ने लिखा है क़ि----- 
                        '' हर रिश्ते से बड़ा है,दोस्ती का रिश्ता  
                   मत तोडना कभी,दोस्ती का रिश्ता ''   

Sunday, 21 March 2010

झुझलाया हुआ था ,अलसाया हुआ था ;

झुझलाया हुआ था ,
अलसाया हुआ था ;
तल्खी थी बातों में ,
शरमाया हुआ था ;
बयां हो रहा था कल रात का किस्सा ,
नहीं चाहता था वो ,
मैं जानू तूफानी रात का किस्सा ;
उलझे हुए बाल तूफान साथ लाये थे ,
गरदन के वो निशा,
निशानी खास लाये थे ;
आखों की लाली बन रही थी रात का दर्पण ,
बदन की भगिमा बता रही थी प्यार का अर्पण ;
लौट आया मै ,
अपनी मोहब्बत का कर दर्शन ;
नहीं चाहता बन जाऊं उसकी प्यास की अड़चन ;
झुझलाया हुआ था ,
अलसाया हुआ था ;
तल्खी थी बातों में ,
शरमाया हुआ था ;

ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...