Wednesday, 17 March 2010

मुंबई क़ी महालक्ष्मी देवी

 नवरात्री के इस पावन अवसर पे मुंबई क़ी महालक्ष्मी देवी क़ी यह तस्वीर आप लोंगो के दर्शनार्थ यंहा ब्लॉग पर ड़ाल रहा हूँ.                                    
********* जय माता दी *********

 

बोध कथा-५ : विश्वाश

बोध कथा-५ : विश्वाश
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      आज शाम जब मीमांसा अपनी माँ के साथ घूमने निकली,तो रास्ते में चलते हुए छोटी मीमांसा बार-बार पीछे छूट जा रही थी. ५ साल क़ी मीमांसा के लिए यह मुमकिन नहीं  हो रहा था क़ि वह अपनी माँ के साथ कदम ताल कर सके. आज माँ भी कुछ अधिक ही जल्दी-जल्दी चल रही थी. दरअसल वे जिस अस्पताल में काम करती थी,वंहा उन्हें जल्दी पहुंचना था.अस्पताल से फ़ोन आया था. अस्पताल में किसी मरीज क़ी तबियत अचानक खराब हो गई थी .
          माँ बार-बार मीमांसा से जल्दी -जल्दी चलने के लिए कह रही थी. मीमांसा क़ी हर कोशिश ना काफी साबित हो रही थी. अंत में हार कर उसने माँ से कहा,''माँ,आप मेरा हाथ पकड़ लो, आगे नदी भी है.मुझे डर लगता है.'' माँ ने मीमांसा क़ी तरफ देखा और हस्ते हुए बोली,''बेटा,डर तुम्हे लगता है.तो फिर तुम ही मेरा हाँथ क्यों नहीं पकड़ लेती ?'' माँ क़ी बात सुनकर मीमांसा ने उनका हाँथ तो पकड़ लिया ,मगर वह मन में कुछ सोच रही थी.अचानक ही वह फिर बोली,''माँ ,जब मैं तुम्हारा हाँथ पकडती हूँ तो अपने डर के कारण पकडती हूँ.इसलिएआपका हाँथ पकड़ने के बावजूद , मेरे मन का डर बना रहता  है.लेकिन जब आप मेरा हाँथ पकड़ लेती हो तो मुझे विश्वाश हो जाता है क़ि अब मुझे कुछ नहीं होगा.मैं डर के साथ नहीं विश्वाश के साथ आगे तेजी से चल पाउंगी,इसलिए आप मेरा हाँथ पकड़ लीजिये .''
                                  अपनी छोटी सी बेटी के मुह से इतनी समझदारी भरी बातें सुनकर माँ का दिल भर आया.माँ ने मीमांसा को गोंद में उठा कर उसे कई बार चूमा.और उसे गोंद में लेकर आगे बढती रही . कितनी सच्चाई थी उस छोटी सी बच्ची क़ि बातों में.अनायास ही किसी क़ि ये पंक्तियाँ याद आ जाती हैं क़ि ----
                           '' विश्वाश जंहा पे कायम है, 
                              जीत वँही पे रहती है.
                              विश्वाश जंहा पे टूटा है, 
                              इंसान वही पे हारा है .''  

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Tuesday, 16 March 2010

बोध कथा-४ : मासूम सवाल

बोध कथा-४ : मासूम सवाल 
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                         रोहन आज सुबह से अपने पिताजी से जिद कर रहा था क़ि उसे आइसक्रीम खानी है. रोज-रोज क़ी जिद पिताजी को पसंद नहीं आई और गुस्से में उन्होंने एक झापड़ रोहन को लगा  दिया.पिताजी के इस व्यवहार से मासूम रोहन अंदर तक काँप गया.वह चुप-चाप रोता हुआ अपने कमरे में दाखिल हो गया.रोते-रोते उसे कब नीद आ गयी ,यह वह खुद भी ना समझ पाया.
                    इधर पिताजी को भी अपना व्यवहार कुछ अधिक ही कड़क लगा.रोहन अभी सिर्फ ५ साल का मासूम बच्चा है.मुझे उसे प्यार से समझाना चाहिए था.उस पर  हाँथ उठा कर मैंने अच्छा नहीं किया. इसी तरह के विचारों में खोये हुए रोहन के पिताजी भी अपनी आराम कुर्सी पर सो गए.अचानक जब आँख खुली तो देखा कि दिन ढल चुका था. रोहन भी सब भूल कर घर के सामने दुसरे बच्चों के साथ खेल रहा था. उसकी मासूम सूरत पर नजर पड़ी तो पिताजी को अपना वह झापड़ याद आ गया,जो आइसक्रीम क़ी जिद्द क़ी वजह से उन्होंने रोहन के गाल पर लगाया था.रोहन तो सब भूल गया था पर पिताजी का मन अंदर ही अंदर कचोट रहा था.
              वे उठकर अपने कमरे में गए और बटुवे में से २० रुपये निकाल कर ले आये.उन्होंने धीरे से रोहन को अपने पास बुलाया.उसे पैसे देते हुए बोले ,''जाओ आइसक्रीम खरीद लो .'' पिताजी क़ी बात सुनकर रोहन का चेहरा खिल गया.और पैसे ले कर वह दुकान क़ी तरफ दौड़ पड़ा.दुकान पर जा कर उसने दुकानदार को पैसे देते हुए कहा,'' अंकल,आइसक्रीम देना .'' दुकानदार ने पैसे ले कर आइसक्रीम दे दी. रोहन  आइसक्रीम लेते हुए बोला ,''कितना पैसा बचा ?'' उसकी बात पर दुकानदार बोला,''कुछ नहीं बचा .२० रुपए क़ी ही आइसक्रीम है. इससे कम वाली नहीं है .''
        दुकानदार क़ी बात सुनकर रोहन हतप्रभ सा खड़ा रहा.उसे समझ नहीं आ रहा था क़ी वह क्या करे.उसे इस तरह देख कर दुकानदार बोला,''क्या हुआ ? आइसक्रीम चाहिए क़ी नहीं ?'' इस प्रश्न से रोहन क़ी एकाग्रता भंग हुई.उसने कहा,''आइसक्रीम तो चाहिए ,लेकिन-------और--पैसे -------'' दुकानदार कुछ समझ नहीं पा रहा था. उसने झल्लाते हुए कहा,''वाह,नवाब साहब को आइसक्रीम भी चाहिए और पैसे भी.'' यह सुनकर रोहन बोला,'' अगर मैं पूरे पैसे क़ी आइसक्रीम ले लूँगा तो आप को टिप देने के लिए मेरे पास एक भी पैसे नहीं बचेंगे.मेरे पास इतने ही पैसे हैं.अगर आप थोड़ी सस्ती आइसक्रीम देते ,तो मै आप को टिप भी दे पाता .लेकिन------.''
      मासूम रोहन क़ी बातें सुनकर दुकान दार क़ी आँखें भर आयीं.और उसने आइसक्रीम रोहन क़ी तरफ बढ़ाते हुए कहा,''बेटा,तुम आइसक्रीम ले लो.मैं भूल गया था,यह १५ रूपए क़ी ही है.क्या मैं बाक़ी के ५ रुपए टिप रेख लूं ?'' रोहन क़ी खुशी का ठिकाना ना रहा. उसने हाँ में सर को हिलाया और आइसक्रीम को लेकर घर क़ी तरफ बेतहाशा दौड़ गया. दुकानदार के चेहरे पर हंसी और आँखों में आंसू थे.पास ही खड़े एक फ़कीर ने शांति के साथ यह सब देखा .अचानक ही उसके मुह से ये शब्द निकल पड़े------ 
                  ''  उसका अंदाज सबसे  जुदा होता है,
                    मासूम खयालों में खुदा होता है.'' 




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आखें मींच के सो के उठना ,

आखें मींच के सो के उठना ,

उठते ही वो चेहरा ढूढ़ना ;

दिन में उसकी यादों से यारी ,

रातों को आखों में वारी ;

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सोचों में अब भी वो रहती ,

सपनों में अब भी वो दिखती ;

उसकी झलक को आखें तरसी ,

दिल में मेरे अब भी वो बसती ;

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राह न दिखती चाह की कोई ,

आभास नहीं है आस ना कोई ;

पागल मन उन्मुक्त सा खोजे ;

डोर न मिलती प्यार की कोई ;

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खोजूं मै निगाहें वही ,

जानू केवल बाहें वही ;

अँधियारा कितना भी फैले ,

चाहूँ मै आभासें वही /

---

आखें मींच के सो के उठना ,
उठते ही वो चेहरा ढूढ़ना ;
दिन में उसकी यादों से यारी ,
रातों को आखों में वारी ;

Monday, 15 March 2010

जो तू न स्वीकार कर सकी वो तेरा अतीत हूँ , 5

अवधरण हूँ ,आवरण हूँ ,
अतिक्रमण हूँ ,अनुकरण हूँ ;
जिसे तू ना सँवार सकी ,
वो तेरा आचरण हूँ /
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अनिमेष हूँ , अवधेश हूँ ,
अभिषेक हूँ ,अवशेष हूँ ;
जिसे ना तू सहेज सकी ,
वो तेरा अधिवेश हूँ /
---
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अमान्य हूँ ,अवमान्य हूँ ,
अरीति हूँ ,अप्रीति हूँ ,
जो तू ना स्वीकार कर सकी ,
वो तेरा अतीत हूँ /


जब दिल का मसला होता है.

निर्णय लेना कठिन बहुत है ,
जब दिल का मसला होता है.
हर हालत में चुपके-चुपके,
छिप कर रोना पड़ता है .  

Sunday, 14 March 2010

मैं भी चुप था,वो भी चुप थी ,

मैं भी चुप था,वो भी चुप थी  ,
फिर हो गई कैसे ,बात न जानू .
इधर लगन थी,उधर अगन थी,
लग गई कैसे आग ना जानू .

ना जाने कितने फूलों पर,
बन भवरा मैं ,मंडराया हूँ .
पर क्यों ना मिटी,
ये प्यास ना जानू . 

जिस मालिक के हम सब बच्चे,
है राम वही ,रहमान वही.
फिर आपस में खून -खराबा ,
क्यों हो बैठा मै ना जानू .

हिन्दू-मुस्लिम सिख इसाई ,
ये सब हैं भाई-भाई .
फिर झगड़ा मंदिर -मस्जिद का, 
कैसे हुआ ,ये मैं ना जानू .
 
  

ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...