Wednesday, 3 March 2010

fir kisi mod per

फिर किसी      

रामदरश मिश्र

राम दरश मिश्र तो वैसे किसी परिचय के मोहताज नहीं है । फिर भी मै उनका परिचय देना चाहूँगी । मिश्र जी प्रेमचंदोत्तर युग के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न कलाकार है ।
वे श्रमशक्ति के प्रतिक है । उनकी रचनाए आसाधरण पुरुषार्थ के मनोबल एवम अनुशासित कार्य प्रणाली का परिणाम है । एक मान्यता प्राप्त कवि होने के साथ - साथ एक बहुत अच्छे लेखक भी है ।
उनकी कहानिया और उपन्यास मै इतनी सचाई है कि उसे पढ़नेके बाद किसी भी इंशान का हिर्दय द्रवित हो जाय। उनका उपन्यास पानी के प्राचीर , जल टूटता हुआ और उनके कई उपन्यास है जिसे पढ़ने पर व्यक्ति मजबुर हो जाय सोचने पर कि हमारी गाँव की क्या हालत है। गाँव मे सुधार करने बहुत ही जरुरत है। मिश्र जी ने इतनी गंभीर समस्याओ को पाठको के समक्ष रखा है की शायद ही किसी का ध्यान उन समस्याओं पर जाय ।

Tuesday, 2 March 2010

यादों के फूलों में चेहरा तेरा ,

यादों के फूलों में चेहरा तेरा ,

याद अब भी है तेरी धड़कन औ हसना तेरा ;

गुलाबी गालों की रंगत आखों में सपना सजा ,

पलकें आशा से खिली बातों में मोहब्बत घुली ,

महकते ख्वाबों की लचकन सुहानी रातों की धड़कन ;

वो अहसासों की तरन्नुम वो उमंगों की सरगम ,

नयनो की शिकायत आभासों के रेले ,

वो अरमानो की दुनिया सपनों के मेले ,

वो बंधन की राहें स्वच्छंदता के खेले ,

वो साँसों खुसबू ,बेखुदी में तुझे छुं ले ;

यादों के फूलों में चेहरा तेरा ,

तू ही बता तुझे यार हम कैसे भूले ?

Sunday, 28 February 2010

आशा भरी पिचकारी थामे ,घुमू तेरे द्वार प्रिये ,

छुं लूँ मन के भाव तेरे ,रंगू रक्तिम गाल तेरे ,
आशा भरी पिचकारी थामे ,घुमू तेरे द्वार प्रिये ,
फागुन के मौसम में मन कब थमता है ,
जीवन तेरी अभिलाषा में रमता है ;
डालूँगा रंग कपड़ों पे तेरे ,
शायद दिल तेरा रंग जाय प्रिये ,
आशा भरी पिचकारी थामे ,घुमू तेरे द्वार प्रिये ,
चंचल मन है ,बहकी चितवन है ,
उसपे होली का त्यौहार प्रिये ,
मन को भावों से रंगुंगा ,तन को अहसासों से रंगुंगा ,
लाल ,हरा, पीला, नीला कितना प्यारा प्यार प्रिये ,
आशा भरी पिचकारी थामे ,घुमू तेरे द्वार प्रिये ,

Saturday, 27 February 2010

फिर किसी मोड़ पर -विजय भाई पंडित क़ी तीसरी पुस्तक है

फिर किसी मोड़ पर -विजय भाई पंडित क़ी तीसरी पुस्तक है ,जिसका लोकार्पण २ मार्च को कल्याण में होगा.आप लोगो के लिए किताब का कवर पजे दे रहा हूँ. बताइए आप को यह कैसा लगा ?

Thursday, 25 February 2010

जितने सालों से तुमने,/abhilasha

मन क़ी वीणा के तारों को,
टूटे उतने ही साल हुए हैं . 
जितने सालों से तुमने,
ना क़ी कोई भी बात प्रिये .

इन सालों को उम्र में मेरी ,
शामिल बिलकुल मत करना .
इनका तो मेरे दिल से,
नहीं कोई सम्बन्ध प्रिये.  
                                    -----अभिलाषा

वो जब पास होती है,

वो जब पास होती है,
धडकन तेज होती है.
लब खामोश होते हैं,
आँखों से सारी बात होती है ..

वो सबसे मिलती है ,
हंस  कर बातें करती है.
पर आकर मेरे पास,
जाने क्यों  घबराई  होती है.

 
  

ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...