Thursday, 13 March 2025

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भगवान परशुराम को वैज्ञानिक दृष्टिकोण

 भगवान परशुराम को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने पर हम कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों और विज्ञान की विभिन्न शाखाओं से उनकी तुलना कर सकते हैं। उनके जीवन, कर्म और विशेषताओं को आधुनिक विज्ञान से जोड़कर समझने का प्रयास करते हैं। 

1. आनुवंशिकता और विकास (Genetics & Evolution)

**संबंधित वैज्ञानिक सिद्धांत:**  

ग्रेगर मेंडेल के आनुवंशिकता के नियम (Mendel’s Laws of Inheritance) और चार्ल्स डार्विन का विकासवाद (Theory of Evolution)।  


### **परशुराम से संबंध:**  

परशुराम ब्राह्मण कुल में जन्मे लेकिन क्षत्रियों जैसी युद्ध-कला में निपुण थे। यह दिखाता है कि केवल जन्म नहीं, बल्कि प्रशिक्षण और अभ्यास से भी गुण प्राप्त किए जा सकते हैं।  

- आनुवंशिकी सिद्ध करती है कि गुणसूत्रों (Chromosomes) द्वारा माता-पिता के गुण संतानों में आते हैं।  

- परशुराम ने अपने शिष्यों (भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण) को प्रशिक्षित करके दिखाया कि उचित शिक्षा से गुणों को विकसित किया जा सकता है, चाहे आनुवंशिक रूप से वे किसी भी जाति के क्यों न हों।  


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## **2. भौगोलिक परिवर्तन और समुद्र विज्ञान (Geology & Oceanography)**  

### **संबंधित वैज्ञानिक सिद्धांत:**  

प्लेट टेक्टोनिक्स (Plate Tectonics) और समुद्र के जलस्तर परिवर्तन (Sea Level Change)।  


### **परशुराम से संबंध:**  

कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने समुद्र को पीछे हटाकर केरल की भूमि बनाई। यह घटना भूगर्भीय हलचलों (Geological Activities) से जुड़ी हो सकती है।  

- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह एक टेक्टोनिक घटना हो सकती है, जहाँ समुद्र का जलस्तर नीचे गया हो।  

- इतिहास में समुद्री जलस्तर में परिवर्तन और भूकंपीय गतिविधियों के कारण नए द्वीप और भूभाग उभरते रहे हैं।  

- यह दर्शाता है कि परशुराम काल में भी लोग इन प्राकृतिक घटनाओं को समझते थे और उन्हें अपनी संस्कृति में शामिल करते थे।  


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## **3. सैन्य विज्ञान और अस्त्र-शस्त्र (Military Science & Metallurgy)**  

### **संबंधित वैज्ञानिक सिद्धांत:**  

धातु विज्ञान (Metallurgy) और बैलिस्टिक्स (Ballistics - हथियारों की गति का अध्ययन)।  


### **परशुराम से संबंध:**  

भगवान परशुराम के पास एक दिव्य परशु (कुल्हाड़ी) था, जिसे उन्होंने भगवान शिव से प्राप्त किया था।  

- प्राचीन भारत में उन्नत धातु विज्ञान था, जिससे अयस्कों को शुद्ध करके मजबूत धातु बनाई जाती थी।  

- दिल्ली का लौह स्तंभ (Iron Pillar of Delhi) बिना जंग लगे हजारों वर्षों से खड़ा है, जो दर्शाता है कि उस समय धातु निर्माण की तकनीक उन्नत थी।  

- आधुनिक सैन्य विज्ञान में भी हथियारों के निर्माण में सही धातु का उपयोग बहुत महत्वपूर्ण होता है।  


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## **4. पर्यावरण विज्ञान और पारिस्थितिकी (Environmental Science & Ecology)**  

### **संबंधित वैज्ञानिक सिद्धांत:**  

पारिस्थितिकी संतुलन (Ecological Balance) और जल प्रबंधन (Water Management)।  


### **परशुराम से संबंध:**  

परशुराम को प्रकृति प्रेमी और तपस्वी के रूप में भी दिखाया गया है।  

- वे वनों और पर्वतों में रहे, जिससे यह पता चलता है कि वे प्रकृति के महत्व को समझते थे।  

- उन्होंने कई तीर्थ स्थलों और झीलों का निर्माण किया, जो जल संरक्षण की ओर संकेत करता है।  

- आधुनिक पर्यावरण विज्ञान में भी जल स्रोतों और जंगलों के संरक्षण पर जोर दिया जाता है, जो परशुराम की विचारधारा से मेल खाता है।  


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## **5. ऊर्जा विज्ञान और ब्रह्मास्त्र (Energy Science & Nuclear Physics)**  

### **संबंधित वैज्ञानिक सिद्धांत:**  

नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy) और प्लाज्मा भौतिकी (Plasma Physics)।  


### **परशुराम से संबंध:**  

परशुराम को दिव्य अस्त्रों का ज्ञान था, जिनमें ब्रह्मास्त्र प्रमुख था।  

- ब्रह्मास्त्र का वर्णन एक ऐसे अस्त्र के रूप में किया जाता है जो अत्यंत विनाशकारी होता है और नियंत्रित न होने पर पृथ्वी को नष्ट कर सकता है।  

- यह आधुनिक नाभिकीय हथियारों (Nuclear Weapons) से मिलता-जुलता है, जो अणु (Atoms) और नाभिक (Nucleus) के विखंडन से अपार ऊर्जा उत्पन्न कर सकते हैं।  

- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह संकेत करता है कि उस युग में उन्नत ऊर्जा स्रोतों का ज्ञान हो सकता था, जिसे मिथकीय रूप में प्रस्तुत किया गया हो।  


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## **6. मनोविज्ञान और शिक्षा (Psychology & Education)**  

### **संबंधित वैज्ञानिक सिद्धांत:**  

मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण (Psychological Conditioning) और शिक्षाशास्त्र (Pedagogy)।  


### **परशुराम से संबंध:**  

परशुराम केवल शारीरिक युद्ध-कला के ही नहीं, बल्कि मानसिक अनुशासन और रणनीति के भी महान शिक्षक थे।  

- आज की आधुनिक शिक्षा प्रणाली भी "गुरु-शिष्य परंपरा" की ओर लौट रही है, जहाँ व्यक्तिगत मार्गदर्शन (Mentorship) पर ध्यान दिया जाता है।  

- परशुराम ने भीष्म, द्रोणाचार्य, और कर्ण को प्रशिक्षित करके दिखाया कि सही शिक्षा से किसी भी व्यक्ति को महान योद्धा बनाया जा सकता है।  

- आज के मनोविज्ञान में भी यह सिद्ध हो चुका है कि व्यक्ति का दिमाग प्रशिक्षण और अनुशासन से निखरता है, न कि केवल जन्मजात गुणों से।

भगवान परशुराम को केवल धार्मिक दृष्टिकोण से देखने की बजाय, यदि वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार देखा जाए, तो वे एक उन्नत ज्ञान और अनुशासन के प्रतीक हैं। उनका जीवन **आनुवंशिकी, भूगोल, धातु विज्ञान, पर्यावरण, ऊर्जा विज्ञान और मनोविज्ञान** से जुड़े कई वैज्ञानिक पहलुओं को दर्शाता है।  

इससे यह भी सिद्ध होता है कि प्राचीन भारत में वैज्ञानिक सोच और उन्नत ज्ञान का स्तर उच्च था, जिसे पौराणिक कथाओं के माध्यम से संजोया गया है।

Friday, 28 February 2025

वरिष्ठ भारतीय भाषाविदों का सम्मान समारोह संपन्न

https://www.emsindia.com/news/show/2880677/national 

मुंबई, (ईएमएस)। उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद स्थित लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र में गुरुवार दिनांक 27 फ़रवरी को दोपहर 3 बजे एक गरिमामयी कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें भारतीय भाषाओं के वरिष्ठ विद्वानों को सम्मानित किया गया। यह कार्यक्रम भारतीय दूतावास और संस्कृति केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया था। इस ऐतिहासिक आयोजन का उद्देश्य भारतीय भाषाओं के संरक्षण, संवर्धन और वैश्विक स्तर पर उनके प्रचार-प्रसार में योगदान देने वाले विद्वानों को सम्मानित करना था। कार्यक्रम में भारत और उज्बेकिस्तान के कई गणमान्य व्यक्तियों, राजनयिकों, साहित्यकारों, शिक्षाविदों और भाषा विशेषज्ञों ने शिरकत की। इस अवसर पर भारतीय राजदूत स्मिता पंत, ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज के आमंत्रित प्रोफेसर, अमेरिकन यूनिवर्सिटी से डॉ परवीन कुमार, स्थानीय प्रशासन के कई अधिकारी और भारतीय संस्कृति केंद्र के कार्यवाहक निदेशक एम.श्रीनिवासन जी उपस्थित रहे। भारतीय राजदूत स्मिता पंत जी ने अपने संबोधन में कहा,आज का यह आयोजन उन विद्वानों के प्रति आभार प्रकट करने का अवसर है, जिन्होंने अपनी पूरी जीवन-यात्रा भारतीय भाषाओं को समर्पित कर दी। ये विद्वान भारत के सांस्कृतिक राजदूत हैं । सम्मानित होने वाले भारतीय भाषाविदों में कुछ ऐसे विद्वान भी थे जो अब जीवित नहीं हैं। उनके परिवार के सदस्यों ने उनके प्रतिनिधि के रूप में पुरस्कार स्वीकार किया। ऐसे विद्वानों में मोहम्मदजोनोव रहमोनबेरदी, गियासोव तैमूर, युल्दाशेव सादुल्ला, गुलोमोवो रानो, शमातोव आजाद, अमीर फैजुल्ला, नसरुल्लाएव जियादुल्ला और इब्राहिमोव असरुद्दीन शामिल रहे। अन्य सम्मानित विद्वानों में शिरीन जलीलोवा, आबिदो बख्तियोर, मिर्जैव शिरॉफ, निजामुद्दीनो नजमुद्दीन, रहमतो बयोत, रहमतो सेवार, मुहर्रम मिर्जेवा, सादिकोवा मौजूदा तथा कासीमोव अहमदजान शामिल रहे। सम्मान स्वरूप नगद राशि और पुष्पगुच्छ भेंट किया गया। सम्मान के बाद कुछ विद्वानों ने सब की तरफ से आभार प्रकट किया। ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में हायर स्कूल विभाग प्रमुख डॉ.निलुफर खोजएवा ने ऐसे आयोजनों की सार्थकता पर बल देते हुए दूतावास के प्रति आभार जताया। आईसीसीआर हिन्दी चेयर पर कार्यरत डॉ.मनीष कुमार मिश्रा ने उज़्बेकिस्तान से शुरू हुए ताशकंद संवाद नामक पहले हिन्दी ब्लॉग की जानकारी दी तथा डिजिटल रूप में सभी उज़्बेकी भारतीय भाषाविदों के साक्षात्कार को संरक्षित करने की योजना भी बताई। पूरे कार्यक्रम का सफ़ल संचालन डॉ.कमोला ने किया जिनकी तकनीकी सहायक मोतबार जी रहीं। अंत में लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र के कार्यवाहक निदेशक एम.श्रीनिवासन जी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। समूह फोटो तथा स्नेह भोज के साथ यह कार्यक्रम समाप्त हुआ। इस तरह यह सम्मान समारोह भारतीय भाषाओं के प्रति समर्पित व्यक्तियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना और यह संदेश दिया कि भारतीय भाषाएं केवल भारत की नहीं, बल्कि पूरे विश्व की धरोहर हैं। संतोष झा- २८ फरवरी/२०२५/ईएमएस




वरिष्ठ भारतीय भाषाविदों का सम्मान समारोह


 

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस


 

Thursday, 27 February 2025

वरिष्ठ भारतीय भाषाविदों का सम्मान समारोह संपन्न ।


वरिष्ठ भारतीय भाषाविदों का सम्मान समारोह संपन्न ।


उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद स्थित लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र में गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025 को दोपहर 3 बजे एक गरिमामयी कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें भारतीय भाषाओं के वरिष्ठ विद्वानों को सम्मानित किया गया। यह कार्यक्रम भारतीय दूतावास और संस्कृति केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया था। इस ऐतिहासिक आयोजन का उद्देश्य भारतीय भाषाओं के संरक्षण, संवर्धन और वैश्विक स्तर पर उनके प्रचार-प्रसार में योगदान देने वाले विद्वानों को सम्मानित करना था।
कार्यक्रम में भारत और उज्बेकिस्तान के कई गणमान्य व्यक्तियों, राजनयिकों, साहित्यकारों, शिक्षाविदों और भाषा विशेषज्ञों ने शिरकत की। इस अवसर पर भारतीय राजदूत श्रीमती स्मिता पंत, ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज के आमंत्रित प्रोफेसर, अमेरिकन यूनिवर्सिटी से डॉ परवीन कुमार, स्थानीय प्रशासन के कई अधिकारी और भारतीय संस्कृति केंद्र के निदेशक श्री एम श्रीनिवासन जी उपस्थित रहे ।
कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए  संस्कृति केंद्र के निदेशक श्री एम श्रीनिवासन ने सभी अतिथियों और सम्मानित विद्वानों का स्वागत किया। उन्होंने भारतीय भाषाओं के वैश्विक प्रसार में भाषाविदों की भूमिका पर प्रकाश डाला और कहा,"भारतीय भाषाएं न केवल हमारी सांस्कृतिक पहचान का आधार हैं, बल्कि वे विश्वभर में संवाद और सौहार्द्र का भी माध्यम हैं।" इसके बाद भारतीय राजदूत श्रीमती स्मिता पंत जी ने अपने संबोधन में कहा,"आज का यह आयोजन उन विद्वानों के प्रति आभार प्रकट करने का अवसर है, जिन्होंने अपनी पूरी जीवन-यात्रा भारतीय भाषाओं को समर्पित कर दी। ये विद्वान भारत के सांस्कृतिक राजदूत हैं ।"


सम्मानित होने वाले भारतीय भाषाविदों में कुछ ऐसे विद्वान भी थे जो अब जीवित नहीं हैं। उनके परिवार के सदस्यों ने उनके प्रतिनिधि के रूप में पुरस्कार स्वीकार किया। ऐसे विद्वानों में मोहम्मदजोनोव रहमोनबेरदी, गियासोव तैमूर, युल्दाशेव सादुल्ला, गुलोमोवो रानो, शमातोव आजाद, अमीर फैजुल्ला, नसरुल्लाएव जियादुल्ला और इब्राहिमोव असरुद्दीन शामिल रहे । अन्य सम्मानित विद्वानों में खालमिर्ज़ाएव ताशमिर्जा, सूरत मिर्कोसिमोव, बेंगीजोवा खांजारीफा, शिरीन जलीलोवा, तेशाबायेव फातिह, आबिदो बख्तियोर, मिर्जैव शिरॉफ, निजामुद्दीनो नजमुद्दीन, रहमतो बयोत, रहमतो सेवार, मुहर्रम मिर्जेवा, सादिकोवा मौजूदा तथा कासीमोव अहमदजान शामिल रहे। सम्मान स्वरूप नगद राशि और पुष्पगुच्छ भेंट किया गया।
सम्मान के बाद कुछ विद्वानों ने सब की तरफ से आभार प्रकट किया। ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में हायर स्कूल विभाग प्रमुख डॉ निलुफर खोजएवा ने ऐसे आयोजनों की सार्थकता पर बल देते हुए दूतावास के प्रति आभार जताया। ICCR हिन्दी चेयर पर कार्यरत डॉ मनीष कुमार मिश्रा ने उज़्बेकिस्तान से शुरू हुए ताशकंद संवाद नामक पहले हिन्दी ब्लॉग की जानकारी दी तथा डिजिटल रूप में सभी उज़्बेकी भारतीय भाषाविदों के साक्षात्कार को संरक्षित करने की योजना भी बताई ।  पूरे कार्यक्रम का सफ़ल संचालन डॉ कमोला ने किया जिनकी तकनीकी सहायक मोतबार जी रहीं। अंत में लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र के निदेशक श्री एम श्रीनिवासन जी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। समूह फोटो तथा स्नेह भोज के साथ यह कार्यक्रम समाप्त हुआ ।
इस तरह यह सम्मान समारोह भारतीय भाषाओं के प्रति समर्पित व्यक्तियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना और यह संदेश दिया कि भारतीय भाषाएं केवल भारत की नहीं, बल्कि पूरे विश्व की धरोहर हैं।











मराठी भाषा गौरव दिवस


 

Sunday, 23 February 2025

ताशकंद संवाद: उज़्बेकिस्तान से प्रकाशित पहली ई पत्रिका















https://tashkantsamvad.blogspot.com/?m=1

साथियों ,

आप के साथ यह खबर साझा करते हुए खुशी हो रही है कि उज़्बेकिस्तान, ताशकंद से हिन्दी की पहली ई पत्रिका "ताशकंद संवाद"ब्लॉग के माध्यम से शुरू करने में हम कामयाब हुए हैं।धीरे धीरे इसके स्वरूप को निखारने का काम होगा । इस ई पत्रिका "ताशकंद संवाद" के माध्यम से उज़्बेकिस्तान में हिन्दी से जुड़ी गतिविधियों को प्रचारित प्रसारित करने में सहायता मिलेगी । आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। 

Tuesday, 11 February 2025

उज़्बेकिस्तान में हिंदी

 विश्व हिन्दी दिवस कार्यक्रम


                 भारतीय राजदूतावास ताशकंद,उज़्बेकिस्तान की तरफ से विश्व हिन्दी दिवस के उलक्ष्य में कई महत्वपूर्ण और सफ़ल कार्यक्रम आयोजित हुए । मंगलवार दिनांक 17 दिसंबर 2024 को उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न हुआ। भारतीय दूतावास ताशकंद एवं ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज के संयुक्त तत्त्वावधान में यह परिसंवाद आयोजित किया गया। परिसंवाद का मुख्य विषय था "हिंदी सिनेमा की वैश्विक लोकप्रियता और राज कपूर" । इस अवसर पर यूजीसी केयर लिस्टेड शोध पत्रिका 'अनहद लोक' के राज कपूर विशेषांक का लोकार्पण भी किया गया। इस अंक का सम्पादन ICCR हिन्दी चेयर के विजिटिंग प्रोफेसर डॉ. मनीष कुमार मिश्रा एवं ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज की हॉयर स्कूल विभागाध्यक्ष डॉ. निलुफ़र खोजाएवा ने किया ।  वर्ष 2024 कद्दावर फ़िल्म अभिनेता राज कपूर का जन्म शताब्दी वर्ष था । हाल ही में भारत के आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने कपूर परिवार से बातचीत करते हुए कहा था कि, ‘’राज कपूर की 100वीं जयंती का उत्सव भारतीय फिल्म उद्योग की स्वर्णिम यात्रा की गाथा का प्रतीक है। मध्य एशिया में भारतीय सिनेमा के लिए मौजूद अपार संभावनाओं को भुनाने की दिशा में काम करने की जरूरत है, मध्य एशिया में नई पीढ़ी तक पहुंचने के प्रयास किए जाने चाहिए ।‘ उनकी कही हुई बात को ध्यान में रखकर हम ने सफलता पूर्वक यह आयोजन किया एवं राज कपूर विशेषांक के रूप में इसका दस्तावेज़ीकरण भी किया । 

              ताशकंद में हिन्दी अध्ययन अध्यापन से जुड़े लाल बहादुर शास्त्री स्कूल, ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज, द यूनिवर्सिटी ऑफ वर्ड इकॉनमी अँड डिप्लोमसी तथा उज़्बेकिस्तान स्टेट वर्ड लैंगवेजेज़ यूनिवर्सिटी में क्रमश: दिनांक 16,17,28 और 29 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस के उलक्ष्य में कई प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया एवं सभी प्रतिभागी छात्रों को प्रमाणपत्र एवं भेट वस्तुएँ प्रदान की गईं ।  कुल 150 से करीब हिन्दी छात्रों को भारतीय राजदूतावास ताशकंद की तरफ से सम्मानित किया गया । विश्व हिन्दी दिवस के इन्हीं आयोजनों में हिन्दी अध्ययन अध्यापन से जुड़े  शिक्षकों एवं प्राध्यापकों को भी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सेवी सम्मान 2025 से सम्मानित किया गया । उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्ययन अध्यापन से जुड़े शोध छात्रों, शिक्षकों एवं प्राध्यापकों के विचारों को डिजिटल स्वरूप में संरक्षित करने एवं भारतीय  ज्ञान परंपरा के महत्वपूर्ण साहित्य को उज़्बेकी भाषा में अनुवादित करने की महती योजना भी भारतीय राजदूतावास ताशकंद के प्रयासों से शुरू की गयी है । 

उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्ययन अध्यापन की एक समृद्ध परंपरा है। ताशकंद के लाल बहादुर शास्त्री स्कूल में कक्षा पांच से कक्षा 11 तक हिन्दी अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है। लगभग 600 उज़्बेकी छात्र यहां हिन्दी पढ़ते हैं। पूरे मध्य एशिया में हिन्दी अध्ययन का यह सबसे बड़ा केंद्र है। यहां हिन्दी के कुल आठ शिक्षक कार्यरत हैं।नोसिरोवा दिलदोरा,कासिमोव बहतियोर, जोरायेवा मुहब्बत ,अब्दुरहमानोवा निगोरा ,तुर्दीओखूनोवा मुहैयो,कुर्बोनोवा ओज़ोदा,कोदीरोवा बख़्तीगुल और मिर्ज़ामुरोदोवा मख़फ़ूज़ा यहां हिन्दी अध्यापन का कार्य करती हैं।

विश्वविद्यालय स्तर पर हिन्दी में स्नातक, परास्नातक और phd करने की व्यवस्था ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में है । यहां करीब 12 प्राध्यापक हिन्दी अध्यापन कार्य से जुड़े हैं। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) के हिन्दी चेयर के माध्यम से भारतीय प्राध्यापक भी यहां विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्य करते रहे हैं। वर्तमान में डॉ मनीष कुमार मिश्रा यहां हिन्दी चेयर पर कार्यरत हैं। डॉ.निलूफर खोजाएवा,प्रो.उल्फतखान मुहिबोवा, डॉ.तमारा खोजाएवा, डॉ.सिराजुद्दीन नुरमातोव, डॉ.मुखलिसा शराहमेतोवा और डॉ.कमोला रहमतजानोवा जैसे उज़्बेकी हिन्दी प्राध्यापकों का हिन्दी के प्रति समर्पण महत्वपूर्ण है।

वर्तमान में करीब 200 छात्र अकेले इसी विश्वविद्यालय में हिंदी सीख रहे हैं।  इसके अतिरिक्त द यूनिवर्सिटी ऑफ वर्ड इकॉनमी अँड डिप्लोमसी तथा उज़्बेकिस्तान स्टेट वर्ड लैंगवेजेज़ यूनिवर्सिटी में भी स्नातक स्तर पर हिन्दी भाषा पढ़ाई जाती है। लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र, ताशकंद में भी हिंदी अध्ययन की व्यवस्था है। वरिष्ठ हिन्दी प्राध्यापक श्रीमान बयात रहमातोव एवं श्रीमती मुहाय्यो तूरदीआहूनोवा यहां वर्तमान में कार्यरत हैं। उज़्बेकी हिन्दी शब्दकोश के निर्माण में श्रीमान बयात रहमातोव का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

  

 डॉ मनीष कुमार मिश्रा 








Indologist in Uzbekistan


 

Monday, 3 February 2025

महाकुंभ

 महाकुंभ 


लाखों करोड़ों की आस्था का सैलाब होता है कुंभ
सनातन संस्कृति का तेजस्वी भाल होता है कुंभ।

जो पहुंच पाया प्रयागराज वो आखंड तृप्त हुआ
न पहुंचनेवालों के लिए बड़ा मलाल होता है कुंभ।

मेला ठेला रेलम रेला साधू संत और नागा बाबा
इनसब से भरा हुआ बड़ा ही कमाल होता है कुंभ।

यज्ञ हवन पूजा पंडाल और कथा अखाड़ों का डेरा
स्वर्ग सा ही दिव्य भव्य दैदीप्यमान होता है कुंभ ।

गंगा की पावन धारा में भक्ति भाव का प्रवाह सा
सत्य सनातन व धर्म ध्वजा का नाद होता है कुंभ।

डॉ मनीष कुमार मिश्रा 
विजिटिंग प्रोफेसर (ICCR HINDI CHAIR )
ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज 
 ताशकंद, उज़्बेकिस्तान।

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