Tuesday, 18 September 2012
इन रास्तों का अकेलापन
Labels:
इन रास्तों का अकेलापन
Monday, 17 September 2012
एक सौगात
इन पहाड़ों की सर्द हवाओं ने
सिमटने को मजबूर कर दिया है
ऊनी गर्म कपड़ों के बीच .
फिर भी इनमे वो गर्माहट कहाँ
जो तेरी साँसों की छुअन
तेरी बातों की चुभन
और उस चुंबन में थी
जिसे तुमने कहा था
तुम्हारी याद के लिए
कभी न भूलने वाली
एक सौगात .
सिमटने को मजबूर कर दिया है
ऊनी गर्म कपड़ों के बीच .
फिर भी इनमे वो गर्माहट कहाँ
जो तेरी साँसों की छुअन
तेरी बातों की चुभन
और उस चुंबन में थी
जिसे तुमने कहा था
तुम्हारी याद के लिए
कभी न भूलने वाली
एक सौगात .
Sunday, 16 September 2012
मैं और हिंदी दिवस
मुझे अच्छी तरह याद है कि 13 सितंबर के दिन ही मैंने अग्रवाल महाविद्यालय में हिंदी व्याख्याता के लिए साक्षात्कार दिया था और 14 सितंबर अर्थात हिंदी दिवस के दिन से ही हिंदी प्राध्यापक के रूप में अग्रवाल महाविद्यालय मे मेरी नियुक्ति हुई थी ।
हिंदी दिवस हिंदी वालों के लिए हमेशा ही खास रहता है , लेकिन मेरे लिए यह जीवन के अविस्मरणीय क्षणों में से एक रहा है । मैंने इस अवसर पे अपनी एक कविता भी संस्थान् के लोगों को सुनाई ।
हिंदी दिवस
मनाने का भाव
अपनी जड़ों को सीचने का भाव है .
राष्ट्र भाव से जुड़ने का भाव है .
भाव भाषा को अपनाने का भाव है .
हिंदी दिवस
एकता , अखंडता और समप्रभुता का भाव है .
उदारता , विनम्रता और सहजता का भाव है .
समर्पण,त्याग और विश्वास का भाव है .
ज्ञान , प्रज्ञा और बोध का भाव है .
हिंदी दिवस
अपनी समग्रता में
अपनी समग्रता में
खुसरो ,जायसी का खुमार है .
तुलसी का लोकमंगल है
सूर का वात्सल्य और मीरा का प्यार है .
हिंदी दिवस
कबीर का सन्देश है
बिहारी का चमत्कार है
घनानंद की पीर है
पंत की प्रकृति सुषमा और महादेवी की आँखों का नीर है .
हिंदी दिवस
निराला की ओजस्विता
जयशंकर की ऐतिहासिकता
प्रेमचंद का यथार्थोन्मुख आदर्शवाद
दिनकर की विरासत और धूमिल का दर्द है .
हिंदी दिवस
विमर्शों का क्रांति स्थल है
वाद-विवाद और संवाद का अनुप्राण है
यह परंपराओं की खोज है
जड़ताओं से नहीं , जड़ों से जुड़ने का प्रश्न है .
हिदी दिवस
इस देश की उत्सव धर्मिता है
संस्कारों की आकाश धर्मिता है
अपनी संपूर्णता में,
यह हमारी राष्ट्रीय अस्मिता है .
ऐसे संस्थान द्वारा मुख्य वक्ता बनाया जाना निश्चित तौर पे मेरे लिए एक भावुक क्षण रहा । यह दिन मैं हमेशा याद रखूँगा ।
Labels:
हिंदी दिवस और मैं
Friday, 14 September 2012
हिन्दी दिवस भारत में प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है
हिन्दी दिवस भारत में प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर
को मनाया जाता है। हिन्दी, विश्व
में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है और अपने आप में एक समर्थ भाषा
है। प्रकृति से यह उदार ग्रहणशील,
सहिष्णु और भारत की राष्ट्रीय चेतना की संवाहिका है। इस दिन विभिन्न
शासकीय - अशासकीय कार्यालयों, शिक्षा
संस्थाओं आदि में विविध गोष्ठियों,
सम्मेलनों, प्रतियोगिताओं
तथा अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह
निर्णय लिया कि हिन्दी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी । इसी महत्त्वपूर्ण
निर्णय के महत्त्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने
के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति,
वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को
प्रतिवर्ष हिन्दी - दिवस के रूप में मनाया जाता है।
पंडित
जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में 13 सितम्बर, 1949 के दिन बहस में भाग लेते हुए तीन प्रमुख बातें कही थीं --
किसी
विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता।
कोई
भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती।
भारत
के हित में, भारत
को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के हित में, ऐसा राष्ट्र बनाने के हित में जो अपनी आत्मा को पहचाने, जिसे आत्मविश्वास हो, जो संसार के साथ सहयोग कर सके, हमें हिन्दी को अपनाना चाहिए।यह बहस 12
सितम्बर, 1949 को 4 बजे
दोपहर में शुरू हुई और 14 सितंबर,
1949 के दिन समाप्त हुई। 14 सितम्बर, की शाम बहस के समापन के बाद भाषा संबंधी संविधान का तत्कालीन भाग 14
क और वर्तमान भाग 17, संविधान
का भाग बन गया। संविधान - सभा की भाषा - विषयक बहस लगभग 278 पृष्ठों में मुद्रित
हुई । इसमें डॉ. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी और श्री गोपाल स्वामी आयंगार की महती
भूमिका रही। बहस के बाद यह सहमति बनी कि संघ की भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी, किंतु देवनागरी में लिखे जाने वाले
अंकों तथा अंग्रेज़ी को 15 वर्ष या उससे अधिक अवधि तक प्रयोग करने के लिए तीखी बहस
हुई। अन्तत: आयंगर - मुंशी फ़ार्मूला भारी बहुमत से स्वीकार हुआ। वास्तव में अंकों
को छोड़कर संघ की राजभाषा के प्रश्न पर अधिकतर सदस्य सहमत हो गए। अंकों के बारे
में भी यह स्पष्ट था कि अंतर्राष्ट्रीय अंक भारतीय अंकों का ही एक नया संस्करण है।
कुछ सदस्यों ने रोमन लिपि के पक्ष में प्रस्ताव रखा, लेकिन देवनागरी को ही अधिकतर सदस्यों ने स्वीकार किया। स्वतन्त्र
भारत की राजभाषा के प्रश्न पर काफ़ी विचार - विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो
भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 (1) में इस प्रकार वर्णित है :--
संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए
प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
स्वतंत्रता
संग्राम के समय तो हिंदी का प्रयोग अपने चरम पर था। भारतेंदु हरिश्चंद्र, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, हरिशंकर परसाई, महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन,सुभद्रा कुमारी चौहान जैसे लेखकों और
कवियों ने अपने शब्दों से जन मानस के ह्रदय में स्वतंत्रता की अलख जलाकर इस
संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। महात्मा गांधीजी के स्वदेशी आन्दोलन
में तो अंग्रेजी भाषा का पूर्ण रूप से त्याग कर हिंदी भाषा को अपनाया गया।
हिंदी भाषा का स्वरुप ही अलग है, यह भाषा अत्यंत मीठी और खुले प्रकृति
की भाषा है। हिंदी अपने अन्दर हर भाषा को अन्तर्निहित कर लेती है और अपने इसी गुण
के कारण ही वर्तमान में विश्व की चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। यह
भाषा केवल एक देश तक सीमित नही है,
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, दक्षिण
अफ्रीका, मलेशिया, सिंगापुर जैसे कई देशों तक इसका
विस्तार है। हिंदी का सरल स्वाभाव इसकी लोकप्रियता को बढ़ा रहा है। कुछ बाधाएं आयी है इसके मार्ग में,पर हमें पूर्ण विश्वास है कि हिंदी
हमारे दिल में यूं ही समाकर हमारी भावनाओं को जन-जन तक पहुंचती रहेगी और
राष्ट्रभाषा के रूप में हमे गौरान्वित करती रहेगी।
संस्कृत
और हिंदी देश के दो भाषा रूपी स्तंभ हैं जो देश की संस्कृति, परंपरा और सभ्यता को विश्व के मंच पर
बखूबी प्रस्तुत करते हैं। आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी भाषा और
संस्कृति को जानने के लिए हमारे देश का रुख कर रहे हैं।
हिंदी
भाषा को हम राष्ट्र भाषा के रूप में पहचानते हैं। हिंदी भाषा विश्व में सबसे
ज़्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है।
देश
के गुलामी के दिनों में यहाँ अँग्रेज़ी शासनकाल होने की वजह से, अंग्रेजी का प्रचलन बढ़ गया था। लेकिन
स्वतंत्रता के पश्चात देश के कई हिस्सों को एकजुट करने के लिए एक ऐसी भाषा की
जरुरत थी जो सर्वाधिक बोली जाती है,
जिसे सीखना और समझना दोनों ही आसान हों।
इसके
साथ ही एक ऐसी भाषा की तलाश थी जो सरकारी कार्यों, धार्मिक क्रियाओं और राजनीतिक कामों में आसानी से प्रयोग में लाई जा
सके। हिंदी भाषा ही तब एक ऐसी भाषा थी जो सबसे ज्यादा लोकप्रिय थी।
धीरे-धीरे
हिंदी भाषा का प्रचलन बढ़ा और इस भाषा ने राष्ट्रभाषा का रूप ले लिया। अब हमारी
राष्ट्रभाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत पसंद की जाती है। इसका एक कारण यह है
कि हमारी भाषा हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंब है।
विश्व
हिन्दी दिवस प्रति वर्ष 10 जनवरी
को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये
जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है।
विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। सभी सरकारी
कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं।
विश्व मे हिन्दी का विकास करने और इसे प्रचारित - प्रसारित करने के उद्देश्य से
विश्व हिन्दी सम्मेलनो की शुरुआत की गई और प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी, 1975 को नागपुर मे आयोजित हुआ था इसी लिए इस दिन को
विश्व हिन्दी दिवस के रूप मे मनाया जाता है ।
बीसवीं
शती के अंतिम दो दशकों में हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है.
वेब, विज्ञापन, संगीत, सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिंदी की मांग जिस तेजी से बढी है
वैसी किसी और भाषा में नहीं. विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैंकडों छोटे-बडे
क़ेंद्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की
व्यवस्था हुई है. विदेशों से 25
से अधिक पत्र-पत्रिकाएं लगभग नियमित रूप से हिंदी में प्रकाशित हो
रही हैं. यूएई क़े 'हम
एफ एम' सहित अनेक देश
हिंदी कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं, जिनमें बीबीसी, जर्मनी
के डॉयचे वेले, जापान
के एनएचके वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिंदी सेवा विशेष रूप से
उल्लेखनीय हैं.
केंद्रीय
हिन्दी संस्थान के सेवानिवृत निदेशक प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन ने अपने आलेख में
हिन्दी की विश्व व्यापी लोकप्रियता का प्रतिपादन करते हुए यह अभिमत व्यक्त किया है
कि हिन्दी की फिल्मों, गानों, टी.वी. कार्यक्रमों ने हिन्दी को कितना
लोकप्रिय बनाया है- इसका आकलन करना कठिन है। केन्द्रीय हिन्दी संस्थान में हिन्दी
पढ़ने के लिए आने वाले 67
देशों के विदेशी छात्रों ने इसकी पुष्टि की कि हिन्दी फिल्मों को देखकर तथा हिन्दी
फिल्मी गानों को सुनकर उन्हें हिन्दी सीखने में मदद मिली।लेखक ने स्वयं जिन देशों
की यात्रा की तथा जितने विदेशी नागरिकों से बातचीत की उनसे भी जो अनुभव हुआ उसके
आधार पर यह कहा जा सकता है कि हिन्दी की फिल्मों तथा फिल्मी गानों ने हिन्दी के प्रसार
में अप्रतिम योगदान दिया है। सन् 1995 के
बाद से टी.वी. के चैनलों से प्रसारित कार्यक्रमों की लोकप्रियता भी बढ़ी है।इसका
अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि जिन सेटेलाइट चैनलों ने भारत में अपने
कार्यक्रमों का आरम्भ केवल अंग्रेजी भाषा से किया था; उन्हें अपनी भाषा नीति में परिवर्तन
करना पड़ा है। अब स्टार प्लस, जी.टी.वी., जी न्यूज, स्टार न्यूज, डिस्कवरी, नेशनल ज्योग्राफिक आदि टी.वी.चैनल अपने
कार्यक्रम हिन्दी में दे रहे हैं। दक्षिण पूर्व एशिया तथा खाड़ी के देशों के कितने
दर्शक इन कार्यक्रमों को देखते हैं- यह अनुसन्धान का अच्छा विषय है।
आज
कई विदेशी छात्र हमारे देश में हिंदी और संस्कृत भाषाएँ सीखने आ रहे हैं। विदेशी
छात्रों के इस झुकाव की वजह से देश के कई विश्वविद्यालय इन छात्रों को हमारे देश
की संस्कृति और भाषा के ज्ञानार्जन के लिए सुविधाएँ प्राप्त करवा रहे हैं। विदेशों
में हिंदी भाषा की लोकप्रियता यहीं खत्म नहीं होती। विश्व की पहली हिंदी
कॉन्फ्रेंस नागपुर में सन् 1975
में हुई थी। इसके बाद यह कॉन्फ्रेंस विश्व में बहुत से स्थानों पर रखी गई।
दूसरी
कॉन्फ्रेंस- मॉरीशस में, सन्
1976 मेंतीसरी
कॉन्फ्रेंस - भारत में, सन्
1983 मेंचौथी
कॉन्फ्रेंस - ट्रिनिडाड और टोबैगो में, सन् 1996
में पाँचवीं कॉन्फ्रेंस - यूके में,
1999 मेंछठी कॉन्फ्रेंस - सूरीनाम में, 2003 में और सातवी कॉन्फ्रेंस - अमेरिका में, सन् 2007 में।
हिंदी
भाषा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य :
* आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि
हिंदी भाषा के इतिहास पर पहले साहित्य की रचना भी ग्रासिन द तैसी, एक फ्रांसीसी लेखक ने की थी।
* हिंदी और दूसरी भाषाओं पर पहला विस्तृत
सर्वेक्षण सर जॉर्ज अब्राहम ग्रीयर्सन (जो कि एक अँग्रेज़ हैं) ने किया।
* हिंदी भाषा पर पहला शोध कार्य ‘द थिओलॉजी ऑफ तुलसीदास’ को लंदन विश्वविद्यालय में पहली बार एक
अग्रेज़ विद्वान जे.आर.कार्पेंटर ने प्रस्तुत किया था।
भारत में किशोर लड़कियों की तस्करी
भारत में किशोर लड़कियों की
तस्करी
डॉ मनीषकुमार सी. मिश्रा
सह-अध्येता
, भारतीय उच्च अध्ययन केंद्र एवं
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग , के.एम.अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम , महाराष्ट्र
मो. 08080303132,09324790726,
ई मेल- manishmuntazir@gmail.com
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
भारत देश में बाल अपराध से संबंधित जिस
तरह के आंकड़े और जैसी ख़बरें लगातार सामने आ रही हैं वे चिंतनीय
हैं । नैतिकता का हो
रहा पतन , आर्थिक विषमता और गरीबी के साथ-साथ
विक्षिप्त मानसिकता और भोग –विलाश
पूर्ण जीवन शैली इस अपराध के मूल में है ।
शहरों की तेज रफ्तार जिंदगी में अपनी जरूरतों और अपनी मजबूरियों के बीच पिस रहे
माँ-बाप चाह कर भी अधिक कुछ नहीं कर पाते। संयुक्त परिवार की संकल्पना शहरों के
आर्थिक ढांचे के बिलकुल अनुकूल नहीं हैं,ऐसे
में परिस्थितियाँ और विकट होती जा रही हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि संयुक्त
परिवारों में सबकुछ ठीक रहता है । अध्ययन और खबरें बताती हैं कि लड़कियों का
किशोरावस्था में अधिकांश बार शोषण पारिवारिक सदस्यों या रिशतेदारों द्वारा ही होता
है । ऐसे मामलों में सबसे बड़ी तकलीफ तो यह होती है कि माँ-बाप लोक-लाज और
पारिवारिक प्रतिष्ठा इत्यादि बातों की चिंता करते हुए ऐसे मामलों को या तो नजर
अंदाज करते हैं या चुप बैठ जाते हैं ।
इस तरह के अपराधों से लड़ने की जिनकी ज़िम्मेदारी
है,वे स्थितियों को और अधिक द्यनीय ही
बनाते हुवे दिखायी पड़ते हैं । कारण है
प्रतिबद्धता , ज़िम्मेदारी और संवेदनाओं की कमी । हालत
इतने खराब हैं कि मानव तस्करी की पीड़ित
लड़की अनाथालयों , सुधारगृहों, जेलों और अस्पतालों मे बार-बार शारीरिक
शोषण का शिकार बनतीं हैं ।
सही तरह के कानून,कानून का कड़ाई से पालन और विकसित
सामाजिक-आर्थिक ढाँचा इस मानव तस्करी के व्यवसाय पर लगाम लगा सकता है । एक अनुमान
के मुताबिक अवैध हथियारों और अवैध नशीली दवाओं की तस्करी से जितनी आय होती है, लगभग उतनी ही या अधिक आय मानव तस्करी
के व्यवसाय में भी है । The
International Organisation For Migration (IOM) के अनुसार वैश्विक स्तर पे मानव तस्करी
के माध्यम से लगभग 08 बिलियन अमेरिकी डालर का व्यापार होता
है । किशोर लड़कियों और औरतों की तस्करी का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है , यह पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय
है ।
सामान्य तौर पे मानव तस्करी को वेश्यावृत्ति या
देहव्यापार तक सीमित समझा जाता है, लेकिन
मानव तस्करी का बहुआयामी स्वरूप कंही अधिक विकराल है । देह व्यापार या
वेश्यावृत्ति को इसका एक हिस्सा मात्र समझना चाहिए । जीवनयापन के सीमित साधन , सीमित संसाधन, बढ़ती बेरोजगारी, कमजोर आर्थिक परिस्थितियाँ, असमान क्षेत्रिय विकास, स्थानांतरण मजबूरी तथा जीवन मूल्यों
में आ रही गिरावट मानव तस्करी की त्रासदी के लिए सीधे तौर पे जिम्मेदार है ।
मेरे इस अध्ययन का
उद्देश्य यही है कि प्रमुख सामाजिक समस्याओं के परिप्रेक्ष में ‘क़ीमत’ और ‘मूल्यों’ की जो लड़ाई इस
बाजारीकरण ने शुरू कर दी है उसमें हम मानवीय सोच और मानवीय मूल्यों को बचाने की
दिशा में एक पहल कर सकें साथ ही साथ दिन ब दिन कमजोर होती जा रही संवेदनाओं को कसमसाने
का एक अवसर प्रदान कर सकें । किसी ने लिखा भी है कि –
करनी
है हमें एक शुरुआत नई
यह सोचना ही एक शुरुआत है ।
Thursday, 13 September 2012
अजातशत्रु हैं विजय ( बंड्या ) साड्वी
अजातशत्रु हैं विजय ( बंड्या ) साड्वी
श्री विजय (बंड्या ) साड्वी मेरे अनन्य मित्रों ,शुभचिंतकों और मार्गदर्शकों में से एक
हैं . आप के जन्मदिन के उपलक्ष में निकाले जा रहे अभिनन्दन ग्रन्थ के बहाने मुझे
भी अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अवसर दिया गया इसके लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ
. अपने इस छोटे से आलेख के माध्यम से मैं अपना अभीष्ट चिंतन आप सभी के साथ साझा कर
रहा हूँ .
आप हमेशा लोगों क़ी सहायता के लिए तत्पर रहते हैं. संकल्प एवं समर्पण से ही लक्ष्य की प्राप्ति
संभव है। कोई भी व्यक्ति किसी से हारना नहीं चाहता किंतु आप अपने व्यवहार से सब का दिल जीत लेते हैं .
धार्मिक , सामाजिक, राजनितिक , शैक्षणिक और क्रिडा के क्षेत्र में आप
का योगदान हमेशा से ही रहा है . सामाजिक कार्यों क़ी एक सुव्यवस्थित परंपरा आप ने
कल्याण शहर में डाली है .आप सही मायनों में एक सच्चे मार्गदर्शक के रूप में समाज
को एक नई दिशा और कार्यकर्ताओं के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहें हैं .
दोस्ती शब्द से ही एक पवित्र रिश्ते का एहसास होता है अगर आप दोस्ती
के वास्तविक अर्थ से अवगत है और अपनी दोस्ती को पूरे विश्वास,निष्ठां व वफादारी से निभाने की क्षमता
रखते हैं तब ही आपको दोस्ती के लिए अपने हाथ बढ़ाने चाहिए.वरना यह कहकर संतोष कर
लीजिए कि-
" दुनिया में राज-ए-दिल,दोस्ती करते तो हम किससे.
मिलते ही नहीं, जहाँ में हमारे ख्याल के "
साहित्य, समाज और संस्कृति की त्रिवेणी उन
कर्मशील और सृजनशील व्यक्तियों के मार्गदर्शन में परिमल , विमल प्रवाह के साथ बढ़ती है , जो अपनी प्रातिभ दृष्टि से जीवन के हर
कार्य को नई दिशा देते हैं । ऐसे ही प्रतिभा सम्पन्न लोग समाज के सामने एक आदर्श, प्रादर्श और प्रतिदर्श उपस्थित करते
हैं । ऐसे श्रेष्ठ लोग मानव मात्र को ही अपनी प्रेरणा मानते हैं । ऐसे ही कद्दावर
व्यक्तियों में आप का का नाम प्रमुखता से लिया
जाता है । अपनी प्रखरता, निडरता, और सामाजिक दायित्वबोध के साथ जीवन को उसकी संपूर्णता में जीने वाले आप
, हम
सभी के लिए अनुकरणीय हैं ।
हम आप के स्वस्थ , सुखी , कर्मशील, सृजनरत दीर्घायु की मंगल कामना करते हैं
विजय
नारायण पंडित
जोशिबाग
, कल्याण
Wednesday, 12 September 2012
डॉ देवेन्द्र कुमार
Sunday, 9 September 2012
आजकल इन पहाड़ों के रास्ते
आजकल इन पहाड़ों के रास्ते
शाम को कोहरे से भरे होते हैं
जैसे मेरा मन
तेरी यादों से भरा होता है
डॉ मनीष कुमार मिश्र
असोसिएट
शाम को कोहरे से भरे होते हैं
जैसे मेरा मन
तेरी यादों से भरा होता है
डॉ मनीष कुमार मिश्र
असोसिएट
भारतीय उच्च अध्ययन केंद्र ,
राष्ट्रपति निवास, शिमला
manishmuntazir@gmail.com
Labels:
आजकल इन पहाड़ों के रास्ते
आज अचानक हुई बारिश में
आज अचानक हुई बारिश में
भीगते हुवे बुरा लग रहा था
क्योंकि वो बारिश याद रही
जिसमे एक छाते मे सिमटकर
हम बारिश से बच तो रहे थे
मगर भीग भी रहे थे
एक- दूसरे के प्यार में .
भीगते हुवे बुरा लग रहा था
क्योंकि वो बारिश याद रही
जिसमे एक छाते मे सिमटकर
हम बारिश से बच तो रहे थे
मगर भीग भी रहे थे
एक- दूसरे के प्यार में .
Labels:
आज अचानक हुई बारिश में
Subscribe to:
Posts (Atom)
What should be included in traning programs of Abroad Hindi Teachers
Cultural sensitivity and intercultural communication Syllabus design (Beginner, Intermediate, Advanced) Integrating grammar, vocabulary, a...
-
***औरत का नंगा जिस्म ********************* शायद ही कोई इस दुनिया में हो , जिसे औरत का जिस्म आकर्षित न करता हो . अगर सारे आवरण हटा क...
-
जी हाँ ! मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष , जिसके विषय में पद््मपुराण यह कहता है कि - जो मनुष्य सड़क के किनारे तथा...
-
Factbook on Global Sexual Exploitation India Trafficking As of February 1998, there were 200 Bangladeshi children and women a...
-
अमरकांत की कहानी -जिन्दगी और जोक : 'जिंदगी और जोक` रजुआ नाम एक भिखमंगे व्यक्ति की कहानी है। जिसे लेखक ने मुहल्ले में आते-ज...
-
अनेकता मे एकता : भारत के विशेष सन्दर्भ मे हमारा भारत देश धर्म और दर्शन के देश के रूप मे जाना जाता है । यहाँ अनेको धर...
-
अर्गला मासिक पत्रिका Aha Zindagi, Hindi Masik Patrika अहा जिंदगी , मासिक संपादकीय कार्यालय ( Editorial Add.): 210, झेलम हॉस्टल , जवा...
-
Statement showing the Orientation Programme, Refresher Courses and Short Term Courses allotted by the UGC for the year 2011-2012 1...
-
अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...