Tuesday, 20 December 2011
SEMINAR PHOTOS 2
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SEMINAR PHOTOS
Monday, 19 December 2011
साझा
साझा
मैंने
उस दिन ऐसे ही कहा कि-
तुम बड़ी
चालाक हो,
सब के
साथ कोई न कोई रिश्ता बना कर रखती हो .
इस पर
उसने फिर कहा –
तुम्हारे
साथ कौन सा रिश्ता है ?
मैंने
कहा –
प्यार, विश्वास और दोस्ती का ।
उसने
कहा -
प्यार मैं तुम्हें करती नहीं
विश्वास
तुम मेरा तोड़ चुके हो
और जिस
पर विश्वास न हो, वह दोस्त कैसा ?
उसकी
बातें कड़वी थी, पर सच्ची थी ।
मेरी
खामोशी ने उसे पिघलाया और वह बोली –
मेरा
तुम्हारे साथ अतीत का रिश्ता है,
जो वर्तमान
मे अपनी पहचान खो चुका है
लेकिन
मेरा वर्तमान और भविष्य ,
मेरे
अतीत से बेहतर नहीं है
और हो भी जाए तब भी ,
अतीत की बातें मैं भूल नहीं सकती
क्योंकि
मैं –
सब के साथ कोई न कोई रिश्ता बना कर रखती हूँ ।
इतना
कहकर वो मुस्कुराने लगी ।
मन ही
मन मुझे गुदगुदाने लगी ।
Sunday, 18 December 2011
ब्लागिंग पर आयोजित संगोष्ठी : कुछ मेरे मन की
अब जब की संगोष्ठी बीत चुकी है और थोड़ी राहत महसूस कर रहा हूँ तो कुछ बातें आप सभी से साझा करना चाहता हूँ. सब से बड़ी बात तो यह की कई सारे दोस्त मिले जिनके साथ एक आत्मीय रिश्ता कायम हो गया. इस संगोष्ठी का तकनीकी रूप से संयोजक मैं था लेकिन मुझसे जादा जिम्मेदारी लगभग हर किसी ने निभाई . महाविद्यालय प्रबंधन ,शिक्षक -शिक्षकेतर कर्मचारियों के अलावा विद्यार्थियों ने भी पूरा सहयोग दिया . पत्रकार भाइयों ने इस संगोष्ठी की जम के चर्चा की. हिंदी,मराठी और अंग्रेजी के कई अख़बारों में इस संगोष्ठी की सकारात्मक खबर लगातार छप रही है. कई इलेक्ट्रानिक मीडिया चैनलों ने भी इस खबर को प्रमुखता दी. इटरनेट पे तो वेबकास्टिंग हुई.कई ब्लागर मित्रों ने पूरी रिपोर्ट लिखी.उन सब का जितना भी आभार व्यक्त करूँ कम है. भाई सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी , रविन्द्र प्रभात, शैलेश भारतवाशी, अविनाश वाचस्पति ,डॉ.हरीश अरोरा,केवल राम,रवि रतलामी जी,आशीष मोहता, मानव मिश्र,डॉ. चन्द्र प्रकाश मिश्र, डॉ. अशोक कुमार मिश्र, गिरीश बिल्लोरे और प्रान्सू ने दिल जीत लिया . सभी की सहजता, सहयोग और अपनेपन के भाव ने मुझे काफी संबल दिया.उनके कल्याण से जाने के बाद अभी तक औपचारिकता वस भी एक फोन नहीं कर पाया. ऐसा इसलिए क्योंकि हमारा दोस्ताना औपचारिकताओं का मोहताज नहीं है. वैसे भी जो मुझे जानते हैं वो मेरी इस कमजोरी को भी समझ जाते हैं कि मैं औपचारिकतायें निभाने में बड़ा फिसड्डी हूँ. मुंबई के ब्लागरों में अनीता कुमार जी, अनूप सेठी जी ,डॉ. रुपेश श्रीवास्तव और भाई युनुस खान का पूरा साथ मिला. अनीता जी तो हर कदम पर मेरे साथ थी.
मुंबई विद्यापीठ के हिंदी अध्ययन मंडल के अध्यक्ष डॉ. शीतला प्रसाद दुबे, डॉ. सतीश पाण्डेय, डॉ. अनिल सिंह और डॉ. रामजी तिवारी, डॉ. प्रकाश मिश्र, डॉ. आर.पी. त्रिवेदी , डॉ. शशि मिश्र और आलोक भट्टाचार्य जी तो मुझपर पुत्रवत स्नेह रखते ही हैं. मेरी सारी गलतियों को नजरअंदाज कर देते है. इनके बारे में जब भी सोचता हूँ तो वो पंक्तियाँ याद आ जाती हैं कि -----
'' कोई है जो मुझे दुवाओं में याद करता है,
मैं डूबने को होता हूँ तो वो दरिया उछाल देता है.''
डॉ. सुनील शर्मा जी ने मुंबई में अंग्रेजी के सभी बड़े अख़बारों के माध्यम से मुझे बार-बार सामने लाया और मैं उन्हें धन्यवाद देने में भी संकोच करता रहा. क्या करूँ खोखली औपचारिकताओं क़ी जिन्दगी आज तक जी नहीं. जिनसे भी जुड़ा उनका साथ पूरी तरह निभाया, कुछ रिश्तों में तो अपने आप को बेहिसाब तकलीफ देकर , जलील होकर ,बदनाम होकर और तनहा हो कर भी. लेकिन साथ किसी का नहीं छोड़ा .यही कारण है क़ी ३० वसंत पूरे कर चुके इस जीवन में जब पीछे मुड कर देखता हूँ तो अपार संतोष और हर्ष होता है. मैं बड़ा ही साधारण और सामान्य व्यक्ति हूँ , अपनी ही आहुति देकर प्रकाशित होनेवाली बात पर विश्वाश रखता हूँ. यश -अपयश से जादा प्रभावित नहीं होता. जादा घमंडी भी नहीं हूँ.शायद यही कारण है कि अपने आस-पास प्रेम,स्नेह और आशीष के कई हाँथ पाता हूँ.
डॉ. दामोदर खडसे जी, डॉ. ईश्वर पवार, डॉ. गाड़े, डॉ. शमा , डॉ. के.पी . सिंह , डॉ. संगीता सहजवानी, श्री राजमणि त्रिपाठी और डॉ. कामायनी सुर्वे जी का भी मैं ह्रदय से आभारी हूँ. आप सभी के सहयोग के बिना मैं इतना बड़ा आयोजन नहीं कर पाता. डॉ. पवन अग्रवाल, डॉ. बलजीत श्रीवास्तव, डॉ. संजीव दुबे , डॉ. मिथलेश शर्मा, श्री संजय अन्नादते और वे सभी लोग जो इस संगोष्ठी में सम्मिलित हुवे , उनके प्रति मैं ह्रदय से आभारी हूँ.
कुछ अपने शायद कुछ गलत फैमियों क़ी वजह से नाराज भी हुवे लेकिन मुझे उम्मीद है क़ि समय के साथ उनकी नाराजगी दूर हो जाएगी. मैं सही समय का इन्तजार करूंगा . हिंदी ब्लागिंग पर एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की योजना पर विचार कर रहा हूँ, बस वही वाली बात है क़ि
जख्म पुराने यदि भर पाए
तो खतरे नए खरीदेंगे .
आप सभी के साथ क़ी जरूरत पड़ेगी, आप देंगे न मेरा साथ ?
Thursday, 15 December 2011
अन्ना हजारे पर पहले हिंदी उपन्यास का लोकार्पण
अन्ना हजारे पर पहले हिंदी उपन्यास का लोकार्पण कल १६ दिसम्बर २०११ को मुंबई में होना सुनिश्चित हुआ है. ॐ प्रकाश पांडे' नमन ' की यह रचना आप www.aadhijeet.blogspot.कॉम पर पढ़ सकते हैं.
| इस पूरे लोकार्पण समारोह का वेबकास्टिंग के माध्यम से लाइव टेलीकास्ट किया जायेगा |
)
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जज्बातों को जब्त किये जाता हूँ ,
जज्बातों को जब्त किये जाता हूँ ,
स्याह रातों को सर्द किये जाता हूँ ,
मगरूर हो महरूफ हो मुकद्दर की तरह ,
तेरी रवायतों को तर्क दिए जाता हूँ ,
बेवफा हो नहीं वफ़ा ना कर सके तुम ,
तेरी उलझनों को अर्थ दिए जाता हूँ ,
मोहब्बत को कमजोरी समझ बैठे हो ,
चाहत को खुदा को अर्ध्य किये जाता हूँ /
स्याह रातों को सर्द किये जाता हूँ ,
मगरूर हो महरूफ हो मुकद्दर की तरह ,
तेरी रवायतों को तर्क दिए जाता हूँ ,
बेवफा हो नहीं वफ़ा ना कर सके तुम ,
तेरी उलझनों को अर्थ दिए जाता हूँ ,
मोहब्बत को कमजोरी समझ बैठे हो ,
चाहत को खुदा को अर्ध्य किये जाता हूँ /
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[ बादलों की प्यास हूँ मै ,
जो पूरी न हुयी ,वो आस हूँ मै ;
फूलों की घाटी का ,
दल से बिछडा गुलाब हूँ मै ;
सुबह का पूरा न हुवा ;
वो अधुरा ख्वाब हूँ मै / ]====
{ तजुर्बा उम्र का है या उम्र तजुर्बे की ?
कैसे कहें की बात सच की है या सपने की ?
जो दिया जिंदगी ने समेट लिया ,
जो कहा अपनो ने सहेज लिया /
रास्ते कहाँ जायेंगे जानता नहीं हूँ मै;
खुदा की राह है,मंजिल तलाशता नहीं हूँ मै / }
====
( मेरी मोहब्बत से मुझको शिकायत है ,
ऐसे न कर सका की उनको भी आहट हो / )
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Wednesday, 14 December 2011
हिंदी संगोष्ठी की खबर लखनऊ के अख़बारों में
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