Sunday, 31 August 2025
Thursday, 28 August 2025
Two days online international Conference
International Institute of Central Asian Studies (IICAS), Samarkand, Uzbekistan
(by UNESCO Silk Road Programme )
Alfraganus University, Tashkent, Uzbekistan
and
Hindi Department, K.M.Agarwal Arts, Commerce and Science College, Kalyan (West)
Maharashtra, India
jointly organising
Two Day Online International Conference
*Central Asia: Literary, Cultural Scenario and Hindi*
(Date : *Saturday-Sunday 20-21 September, 2025)*
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Tuesday, 26 August 2025
ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन
✦ शोध आलेख
“ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन
लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र
समीक्षक : डॉ शमा
1. प्रस्तावना
हिंदी साहित्य में विदेश-यात्रा और सांस्कृतिक संवाद पर आधारित साहित्यिक कृतियाँ सदैव विशेष आकर्षण का केंद्र रही हैं। कवि या लेखक जब किसी विदेशी भूमि में जाकर जीवन व्यतीत करता है तो वह केवल दृश्य या भूगोल का वर्णन नहीं करता, बल्कि उस भूमि की संस्कृति, समाज और प्रकृति के साथ अपने अंतरसंबंधों को भी व्यक्त करता है। इसी परंपरा में डॉ. मनीष कुमार मिश्र का काव्य-संग्रह “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” एक महत्त्वपूर्ण योगदान है।
ताशकंद, जो कि उज़्बेकिस्तान की राजधानी है, भारतीय मानस के लिए ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। लालबहादुर शास्त्री की आकस्मिक मृत्यु (1966) से लेकर राजकपूर की सिनेमाई लोकप्रियता तक, यह शहर भारत की स्मृति में स्थायी रूप से दर्ज है। कवि ने इस शहर में प्रवास और अध्यापन के दौरान प्राप्त अनुभवों को कविताओं के रूप में प्रस्तुत किया है।
2. शोध का उद्देश्य
इस आलेख का उद्देश्य है –
“ताशकंद – एक शहर रहमतों का” संग्रह की कविताओं का आलोचनात्मक विश्लेषण करना।
कवि की काव्य-दृष्टि, प्रतीकों और सांस्कृतिक संवाद की विशेषताओं को समझना।
यह देखना कि यह काव्य-संग्रह हिंदी साहित्य में विदेश-आधारित काव्य-परंपरा को किस तरह नया आयाम देता है।
3. संग्रह की संरचना
संग्रह में कुल 32 कविताएँ हैं जिन्हें चार प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –
ऐतिहासिक-सांस्कृतिक कविताएँ – शास्त्री कोचासी, समरकंद, बुख़ारा, ख़िवा, रेशम मार्ग, राजकपूर की स्मृतियाँ।
प्रकृति और ऋतु-चित्रण आधारित कविताएँ – मौसम-ए-बहारा, बादामशोरी, शहतूत, चिनार, खुबानी, झरती हुई बर्फ़।
स्थानीय जीवन व परंपरा से जुड़ी कविताएँ – चोसू बाज़ार, समसा/समोसा, चायख़ाना, समालक, तरबूज़, गुल्लार बैरामी।
व्यक्तिगत संस्मरणात्मक कविताएँ – विद्यार्थी, अज़ीज़लार दोस्तलार, पिता बनने की ख़बर, कोई सुर्ख़ गुलाबी चेहरा।
इस तरह संग्रह अनुभव, इतिहास और संस्कृति की त्रयी पर आधारित है।
4. काव्य-दृष्टि और प्रतीकात्मकता
कवि ने ताशकंद की प्रकृति, इतिहास और संस्कृति को प्रतीकों के माध्यम से जीवंत किया है।
चिनार → ताशकंद की चेतना और मनुष्य की आत्मा का प्रतीक।
शहतूत → रेशम मार्ग और जीवन की मिठास का द्योतक।
बर्फ़ → प्रेम, मौन और आत्म-शुद्धि का रूपक।
समसा/समोसा → खानपान द्वारा सभ्यताओं के संवाद का प्रतीक।
रेशम मार्ग → व्यापार और सांस्कृतिक मिलन का सेतु।
इन प्रतीकों के माध्यम से कवि स्थानीय को वैश्विक और व्यक्तिगत को सार्वभौमिक बना देता है।
5. प्रमुख कविताओं का आलोचनात्मक विश्लेषण
(क) शास्त्री कोचासी, ताशकंद
यह कविता भारतीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की स्मृति को ताशकंद में संरक्षित रूप में देखती है। कवि लिखता है कि स्मृतियाँ केवल त्रासदी नहीं, बल्कि “दो राष्ट्रों के मैत्रीपूर्ण संबंधों की नींव” भी बन सकती हैं।
(ख) मौसम-ए-बहारा
कवि वसंत को ताशकंद की पथरीली गलियों में जीवन के पुनर्जन्म का प्रतीक बनाता है। बादाम और चेरी के फूल यहाँ “पुनः अंकुरित होने” के द्योतक हैं।
(ग) चोसू बाज़ार
ताशकंद के दैनिक जीवन का यह चित्र बाज़ार को सांस्कृतिक केंद्र बना देता है। नान की गोलाई में जीवन-चक्र और मसालों की सुगंध में रेशम मार्ग की धूप – यह बिंब अद्वितीय हैं।
(घ) समसा / समोसा
यह कविता भोजन को सभ्यताओं के संवाद का माध्यम बताती है। उज़्बेक “समसा” भारत आकर “समोसा” बन गया – यह केवल खानपान का रूपांतरण नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रतीक है।
(ङ) ताशकंद मेट्रो
आधुनिक यातायात प्रणाली को कवि “स्मृतियों का संग्रहालय” कहता है। यहाँ अतीत और वर्तमान साथ-साथ चलते हैं।
(च) ताशकंद के विद्यार्थी / अज़ीज़लार दोस्तलार
इन कविताओं में कवि की आत्मीयता और मानवीय संबंध झलकते हैं। विद्यार्थी कवि के लिए “ऐसी कविता” हैं जिसे वह कभी पूरा नहीं लिख पाएगा।
6. सांस्कृतिक संवाद
इस संग्रह का केंद्रीय तत्व है – भारत और उज़्बेकिस्तान का सांस्कृतिक संवाद।
राजकपूर की फ़िल्मों ने इस संवाद को भावनात्मक आयाम दिया।
विश्वविद्यालय और भाषा-अध्ययन ने इसे शैक्षणिक आधार दिया।
समसा, समालक और चायख़ाना जैसी परंपराओं ने इसे दैनिक जीवन में रचा-बसा दिया।
कवि यह स्पष्ट करता है कि संस्कृतियाँ सीमाओं से बंधी नहीं होतीं, वे संवाद और आदान-प्रदान से जीवित रहती हैं।
7. आलोचनात्मक मूल्यांकन
संग्रह की सबसे बड़ी विशेषता है व्यक्तिगत संस्मरण और सांस्कृतिक बिंबों का संतुलन।
कवि ने इतिहास और आधुनिकता, परंपरा और तकनीक, प्रकृति और समाज – सबको एक काव्यात्मक सूत्र में बाँधा है।
भाषा सहज, संवादपरक और भावुक है, जो पाठक से सीधा संवाद करती है।
कमज़ोरी के रूप में कहा जा सकता है कि कुछ कविताएँ (जैसे गुल्लार बैरामी या तरबूज़) अधिक वर्णनात्मक होकर काव्यात्मक गहराई से थोड़ा बाहर चली जाती हैं। परंतु संग्रह का समग्र मूल्यांकन करते हुए यह कहा जा सकता है कि यह कृति हिंदी कविता को अंतरराष्ट्रीय संदर्भों में विस्तृत करती है।
8. निष्कर्ष
“ताशकंद – एक शहर रहमतों का” हिंदी साहित्य में एक अनूठा योगदान है। इसमें कवि ने न केवल ताशकंद की प्रकृति, इतिहास और संस्कृति का काव्यात्मक चित्रण किया है, बल्कि भारत–उज़्बेकिस्तान की साझा आत्मीयता को भी व्यक्त किया है।
यह संग्रह यात्रा-संस्मरण और काव्य का अद्भुत संगम है। यहाँ व्यक्तिगत जीवनानुभव (विद्यार्थियों से संबंध, पिता बनने की ख़बर) सांस्कृतिक स्मृतियों (शास्त्री जी, राजकपूर, रेशम मार्ग) और प्रकृति (चिनार, शहतूत, बर्फ़) से गुंथा हुआ है।
हिंदी साहित्य में यह कृति प्रवासी अनुभवों पर आधारित कविताओं की परंपरा को समृद्ध करती है और यह प्रमाणित करती है कि कविता केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि संस्कृतियों का जीवित संवाद है।
Sunday, 24 August 2025
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