स्वामी विवेकानंद पर डॉ. हर्षा त्रिवेदी की पुस्तक प्रकाशित।
"स्वामी विवेकानंद: समग्र वैचारिक क्रांति" शीर्षक से डॉ. हर्षा त्रिवेदी द्वार संपादित पुस्तक आर. के. पब्लिकेशन, मुंबई से प्रकाशित हो चुकी है। इस पुस्तक में स्वामी विवेकानंद जी के विचारों, व्यक्तित्व और कृतित्व से संबंधित 26 आलेख हैं। पुस्तक की भूमिका पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ लेखिका डॉ विद्या विंदु सिंह ने लिखी है।
धर्म और अध्यात्म को आधार बनाकर स्वामी विवेकानंद जी ने राष्ट्रवाद की जो प्रांजल ज्योति प्रज्वलित की उसकी विस्तार से चर्चा पुस्तक के कई आलेखों में है । उनके जीवन, परिवार, संन्यास, यात्राएं, व्याख्यान, संदेश, शिक्षा संबंधी विचार, युवाओं को संदेश और प्रकाशित साहित्य पर केंद्रित आलेख महत्वपूर्ण हैं । जो बात इस पुस्तक को विशेष बनाती है वो है समग्रता में स्वामी विवेकानंद को देखने का प्रयास । इस पुस्तक में स्वामी विवेकानंद से संबंधित सभी रंग उपलब्ध हैं जो समग्रता में एक ऐसा इंद्रधनुष बनाते हैं जिसकी छटा मोहक, महत्त्वपूर्ण और समाजोपयोगी है। डॉ. हर्षा त्रिवेदी ने आलेखों का चयन बड़ी सूक्ष्मता और विवेकपूर्ण तरीके से किया है। यह उनकी संपादकीय दृष्टि ही है जो वे इस पुस्तक के कलेवर को इतनी विविधताओं के साथ समेटने में कामयाब रहीं।
स्वामी विवेकानन्द जी के विचारों और जीवन पर पुस्तक प्रकाशन की विस्तृत और गौरवशाली परंपरा रही है। इसी श्रृंखला की कड़ी के रूप में डॉ हर्षा त्रिवेदी द्वारा संपादित यह पुस्तक परंपरा का सिर्फ़ निर्वहन नहीं कर रही अपितु कई संदर्भों में उसे अग्रगामी भी बना रही है। वर्तमान भारतीय सामाजिक फलक पर पावनता के पुनर्वास हेतु जिन जीवन मूल्यों, विचारों और आदर्शों की देश को जरूरत है उन्हें स्वामी विवेकानंद के माध्यम से पूरा किया जा सकता है। एक आदर्श, प्रादर्श और प्रतिदर्श के रूप में स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व एक राष्ट्र नायक का व्यक्तित्व है । उनकी परंपरा से जुड़कर यह अनुभूति होती है कि हम ने सम सामयिक संदर्भों में सार्थक अभिव्यक्ति प्रदान की है। डॉ हर्षा त्रिवेदी ने संपादक के रूप में इस सार्थकता के अकादमिक अभियान का कुशलतापूर्वक निर्वहन किया है।
पुस्तक में संकलित आलेखों में विषय की नवीनता, भाषा एवं शैली वैविध्य इसे रोचकता प्रदान करता है। डॉ ज्योति शर्मा, डॉ महात्मा पाण्डेय, डॉ चमनलाल बग्गा, डॉ संदीप कदम, डॉ. कवलजीत कौर, डॉ. अर्जुन सिंह पंवार,डॉ. हर्षा त्रिवेदी,डॉ. मनीष कुमार मिश्रा, डॉ. मनीषा पाटील, डॉ. रवि रमेश, डॉ. गोविंद सिंह, डॉ. कुंजन आचार्य, श्री बृजेश कुमार शर्मा, डॉ. मनीष कुमार जैसल, अनुशांत सिंह तोमर,डॉ. रानू मुखर्जी,डॉ. हर्षल मधुकर बच्छाव ,श्रीमती क्रांती हर्षल बच्छाव, डॉ. अनघा राणे,डॉ. वर्षा महेश “गरिमा”, डॉ अनीता मन्ना, डॉ गजेन्द्र, डॉ बसुंधरा, डॉ सत्यवती चौबे और डॉ शिवा दुर्गा का आलेख श्रम पूर्वक लिखा गया है। इन आलेखों के माध्यम से स्वामी विवेकानंद के जीवन के विविध पक्षों को भली भांति रेखांकित किया गया है।
पुस्तक की भूमिका में डॉ विद्या विंदु सिंह जी लिखती हैं कि," डॉ. हर्षा त्रिवेदी को उनकी इस संपादित पुस्तक के लिये आशीष और बधाई । स्वामी विवेकानंद के जीवन और विचारों पर हमारे युवा इस तरह के रचनात्मक कार्यों में लगे हुए हैं, यह अपने आप में सुख देने वाली बात है । स्वामी जी का स्पष्ट मानना था कि धर्म और अध्यात्मिकता के स्तर पर हम बाहर से भले भिन्न दिखते हों लेकिन अंदर से एक हैं । यह एकरूपता आंतरिक है । इस देश में बाहरी रंग रूप से कहीं अधिक महत्व आंतरिक गुणों को दिया गया है । वैसे भी भारतीय होने का अर्थ है मानवीय होना, कृतज्ञतर होना । इस देश के अंदर रचा बसा सबकुछ इस देश का है ।" आदरणीय डॉ विद्या विंदु जी के ये शब्द इस पुस्तक के महत्व को रेखांकित करने में पूरी तरह समर्थ हैं। पुस्तक में संकलित आलेखों की मौलिकता सराहनीय है।
मैंने पुस्तक में संकलित अपने आलेख में साफ लिखा है कि "हमें अपनीय मानवीय उदारता को और विस्तार देना होगा,ताकि विस्तृत दृष्टिकोण हमारी थाती रहे । निरर्थकता में सार्थकता का रोपण ऐसे ही हो सकता है । स्वीकृत मूल्यों का विस्थापन और विध्वंश चिंतनीय है । विश्व को बहुकेंद्रिक रूप में देखना, देखने की व्यापक,पूर्ण और समग्र प्रक्रिया है । समग्रता के लिए प्रयत्नशील हर घटक राष्ट्रीयता का कारक होता है । जीवन की प्रांजलता, प्रखरता और प्रवाह को निरंतर क्रियाशीलता की आवश्यकता होती है । वैचारिक और कार्मिक क्रियाशीलता ही जीवन की प्रांजलता के प्राणतत्व हैं । जीवन का उत्कर्ष इसी निरंतरता में है । भारतीय संस्कृति के मूल में समन्वयात्मकता प्रमुख है । सब को साथ देखना ही हमारा सही देखना होगा । अँधेरों की चेतावनी और उनकी साख के बावजूद हमें सामाजिक न्याय चेतना को आंदोलित रखना होगा । खण्ड के पीछे अख्ण्ड के लिये सत्य में रत रहना होगा । सांस्कृतिक संरचना में प्रेम, करुणा और सहिष्णुता को निरंतर बुनते हुए इसे अपना सनातन सत्य बनाना होगा ।“ स्वामी विवेकानन्द ने इसी सनातन ताने बाने को वेदांत दर्शन के माध्यम से सार्वभौमिक सत्य के रूप में स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। इस तरह के कई अन्य आलेख इस पुस्तक में हैं जो स्वामी जी के विचारों को समसामयिक मुद्दों के परिप्रेक्ष्य में परिभाषित करते हैं।
समग्र रूप में कहा जा सकता है कि स्वामी विवेकानंद की जन्म जयंती (12 जनवरी) के पूर्व इस पुस्तक का प्रकाशन स्वामी जी के चरणों में सच्ची श्रद्धांजलि है । डॉ हर्षा त्रिवेदी को इस महती कार्य योजना के लिए बधाई । आप स्वयं विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज, दिल्ली में प्राध्यापिक के रूप में कार्यरत हैं । निश्चित तौर पर यह पुस्तक उस संस्था के लिए भी गौरव का विषय होगी जो स्वयं स्वामी विवेकानंद के नाम पर संचालित हो रही है । पुस्तक अब पाठकों के बीच उपलब्ध है । अमेजन पर ऑनलाइन पुस्तक प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित लिंक का उपयोग किया जा सकता है । https://www.amazon.in/dp/B0BRH48LS4?ref=myi_title_dp
आशा है डॉ हर्षा त्रिवेदी इस तरह की सार्थक अकादमिक दख़ल लगातार बनाए रखेगी। उन्हें बधाई ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
सहायक प्राध्यापक
के. एम. अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम, महाराष्ट्र
manishmuntazir@gmail.com
9082556682
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