Wednesday, 20 November 2024

International conference on Raj Kapoor at Tashkent

 






लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र

( भारतीय दूतावास, ताशकंद, उज्बेकिस्तान )

एवं

ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़

( ताशकंद, उज्बेकिस्तान )

के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित 

एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद


 हिन्दी सिनेमा की वैश्विक लोकप्रियता और राज कपूर

 (दिनांक : शनिवार , 21 दिसंबर 2024)


कार्यक्रम स्थल : ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़





लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र : 


लाल बहादुर शास्त्रीय भारतीय संस्कृति केंद्र (LBSCIC), ताशकंद में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद(ICCR) का एक केंद्र है । यह केंद्र हिंदी, कथक, तबला और योग में निशुल्क नियमित कक्षाएं आयोजित करता है । केंद्र की स्थापना सन 1995 में हुई थी और सन 2005 में इसका नाम बदलकर लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र कर दिया गया । केंद्र की प्रमुख गतिविधियां इस प्रकार हैं –

हिंदी कत्थक तबला एवं योग कक्षाओं का नियमित संचालन 

सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं कार्यशालाओं का आयोजन 

व्याख्यान सेमिनार और प्रदर्शनियों का आयोजन 

आधिकारिक सांस्कृतिक सहयोग कार्यक्रम का कार्यान्वयन 

भारत, इसकी जीवन शैली और संस्कृति के बारे में जानकारी का प्रसार करना 

भारत सरकार छात्रवृत्ति कार्यक्रमों का प्रशासन करना


 लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र और उज्बेकिस्तान के अन्य क्षेत्रों में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करता है और अन्य संस्थाओं के साथ भी सहयोग करता है । यह भारतीय फिल्मों और वृत्त चित्रों को प्रदर्शित करता है । केंद्र हर महीने के आखिरी शुक्रवार को ‘हिंदी मंच’ का आयोजन करता है जो उज़्बेकी नागरिकों को हिंदी में बातचीत करने और विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने के लिए एक मंच प्रदान करता है । लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र, उज़्बेकिस्तान में भारतीय सांस्कृतिक मंडलों के दौरे की व्यवस्था करता है । जिसमें ‘शार्क तरोनालारी’ जैसे स्थानीय त्योहारों में भागीदारी भी शामिल है । सांस्कृतिक केंद्र भारतीय शैक्षिक संस्थानों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आईसीसीआर और भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित विभिन्न छात्रवृत्ति कार्यक्रमों का भी संचालन करता है । केंद्र में एक वाचनालय के अलावा हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू,उज़्बेकी और रूसी भाषा में पुस्तकोंवाला एक पुस्तकालय भी है । 



ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़ : 


                             तुर्केस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिएंटल स्टडीज की स्थापना नवंबर 1918 में ताशकंद में की गई थी। मध्य एशिया का पहला (और एकमात्र) ओरिएंटल उच्च-शिक्षा संस्थान, स्कूल ने तुर्केस्तान और पड़ोसी देशों के लिए ओरिएंटल अध्ययन की कई शाखाओं में योग्य विशेषज्ञों को तैयार करना शुरू किया। सन1918 से ही यहाँ अरबी, फ़ारसी, चीनी, पश्तू, उर्दू, तुर्की; स्थानीय भाषाएँ (उज़्बेक, ताजिक, किर्गिज़, तुर्कमेन, तातार) और यूरोपीय भाषाएँ (अंग्रेजी, जर्मन और फ्रेंच) पढ़ाई गईं। संस्थान ने स्थानीय स्कूलों के लिए भाषा और इतिहास के शिक्षक तैयार किए। 1922 तक इसमें 5,300 पुस्तकें और 200 से अधिक पांडुलिपियाँ थीं। ओरिएंटल संकाय के पहले डीन ए. वाई. श्मिट थे। जुलाई 1991 में उज़्बेकिस्तान गणराज्य के कैबिनेट मंत्रियों के संकल्प संख्या 186 के अनुसार इसे उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय से संबद्ध किया गया था, और उच्च और माध्यमिक विशेष शिक्षा मंत्रालय द्वारा 26 जुलाई 1991 के संकल्प के आधार पर इसका नामकरण किया गया था।


                            

प्रस्तावना : 


           वर्ष 2024 कद्दावर फ़िल्म अभिनेता राज कपूर का जन्म शताब्दी वर्ष है । हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के बड़े बेटे राज कपूर का जन्म दिनांक,14 दिसम्बर 1924 को पेशावर में हुआ था। उनके बचपन का नाम रणबीर राज कपूर था। प्रारंभिक स्कूली शिक्षा कोलकाता में हुई, लेकिन पढ़ाई में उनकी कोई रुचि नहीं थी । परिणाम स्वरूप राज कपूर ने 10वीं कक्षा की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। सन् 1929 में जब पिता पृथ्वीराज कपूर बंबई/मुंबई आए, तो राज कपूर भी साथ आए। जब मात्र सत्रह वर्ष की आयु में रणजीत मूवीटोन में एक साधारण एप्रेंटिस का काम राज कपूर को मिला, तो उन्होंने वजन उठाने और पोंछा लगाने के काम से भी परहेज नहीं किया। पंडित केदार शर्मा के साथ काम करते हुए उन्होंने अभिनय की बारीकियों को सीखा। केदार शर्मा ने ही अपनी फ़िल्म 'नीलकमल' (1947) में मधुबाला के साथ राज कपूर को नायक के रूप में प्रस्तुत किया था।


                 एक बाल कलाकार के रूप में 'इंकलाब' (1935) , 'हमारी बात' (1943) और 'गौरी' (1943) फ़िल्म में छोटी भूमिकाओं में कैमर का सामना राज कपूर करने लगे थे। फ़िल्म 'वाल्मीकि' (1946) तथा 'नारद और अमरप्रेम' (1948) में आप ने कृष्ण की भूमिका निभाई । मात्र 24 वर्ष की आयु में राज कपूर ने पर्दे पर पहली प्रमुख भूमिका 'आग' (1948) नामक फ़िल्म में निभाई, जिसका निर्माण और निर्देशन भी उन्होंने स्वयं किया था। राज कपूर ने मुंबई के चेम्बूर इलाके में चार एकड़ ज़मीन लेकर सन 1950 में आर. के. स्टूडियो की स्थापना की । सन 1951 में आई फ़िल्म 'आवारा' के माध्यम से राज कपूर को एक रूमानी नायक के रूप में लोक प्रियता मिली । 'बरसात' (1949), 'श्री 420' (1955), 'जागते रहो' (1956) व 'मेरा नाम जोकर' (1970) जैसी सफल फ़िल्मों का न केवल निर्देशन व लेखन अपितु उनमें अभिनय भी राज कपूर ने ही किया। 

         राज कपूर को हिन्दी फ़िल्मों का पहला शोमैन माना जाता है । उनकी फ़िल्मों में आवारगी, आशिक़ी, देश प्रेम,मौज-मस्ती, प्रेम, हिंसा से लेकर अध्यात्म,मानवतावाद और नायकत्व से लेकर लगभग सब कुछ उपलब्ध रहता था । राज कपूर की फ़िल्में न केवल भारत अपितु पूरे विश्व में सिने प्रेमियों द्वारा पसंद की गई।रूस में उनकी लोकप्रियता गज़ब थी । उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में आज भी राज कपूर नाम से एक प्रसिद्ध भारतीय व्यंजनों का रेस्टोरेन्ट है । राजकपूर का मूल्यांकन एक महान् फ़िल्म संयोजक के रूप में भी किया जाता है ।उन्हें फ़िल्म की विभिन्न विधाओं की बेहतरीन समझ थी। यह उनकी फ़िल्मों के कथानक, कथा प्रवाह, गीत संगीत, फ़िल्मांकन आदि में स्पष्ट महसूस किया जा सकता है। राज कपूर को सन् 1987 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्रदान किया गया था। राज कपूर को कला के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा, सन् 1971 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। 02 जून, 1988 को राज कपूर ने अंतिम सांस ली । 


             अपनी फिल्मों के माध्यम से मानवीय करुणा,विश्वास, प्रेम, मस्ती और संवेदना का सौंदर्य पूरे विश्व में बिखेरने के लिए इस महान फ़िल्म अभिनेता को विश्व सदैव याद रखेगा । वर्ष 2024 राज कपूर का जन्म शताब्दी वर्ष है अतः उनके वैश्विक फ़िल्मी योगदान को याद करने का यह सुनहरा अवसर है । इसी बात को ध्यान में रखकर इस परिसंवाद की कल्पना की गई ।    

                 


शोध आलेख प्रस्तुत करने हेतु उप विषय : 


राज कपूर : जीवन परिचय  

राज कपूर : पारिवारिक पृष्ठभूमि 

राज कपूर का फिल्मी सफर 

राज कपूर की फिल्मों का वैचारिक धरातल 

राज कपूर की वैश्विक लोकप्रियता 

राज कपूर से जुड़ी प्रकाशित पुस्तकें 

राज कपूर से संबंधित फ़िल्म समीक्षाएं 

राज कपूर से जुड़े अकादमिक शोध कार्य

राज कपूर की फ़िल्मों में नवाचार 

राज कपूर : एक फ़िल्म निर्माता,निर्देशक के रूप में  

राज कपूर का फ़िल्मों से जुड़ा लेखन कार्य  

फ़िल्म समन्वयक के रूप में राज कपूर की छवि 

राज कपूर की फ़िल्मों का संगीत 

राज कपूर की फ़िल्मों के माध्यम से हिन्दी का प्रचार-प्रसार  

राज कपूर से जुड़ी फ़िल्म डाकूमेंट्री

राज कपूर का पारिवारिक जीवन 

राज कपूर और उज़्बेकिस्तान

राज कपूर और नेहरूवादी समाजवाद

राज कपूर का फिल्मी चरित्र अभिनय 

चार्ली चैप्लिन और राज कपूर

हिन्दी फिल्में और राज कपूर : महत्त्व एवं प्रासंगिकता 

राज कपूर : हिन्दी सिनेमा के शो मैन

फ़िल्म डबिंग और राज कपूर की फिल्में 


( उपर्युक्त विषयों के अतिरिक्त भी आप राज कपूर से जुड़े किसी विषय पर संयोजक की पूर्व अनुमति से शोध आलेख प्रस्तुत कर सकते हैं । ) 


शोध आलेख कैसे भेजें : 


शोध आलेख हिन्दी/अँग्रेजी/उज़्बेकी भाषा में स्वीकार किए जाएंगे 

शोध आलेख कम से कम 1500 शब्दों और अधिकतम 4000 शब्दों में लिखा हो 

शोध आलेख पूर्व में कहीं प्रकाशित या प्रस्तुत न हो 

शोध आलेख मौलिक और सुव्यवस्थित हो 

हिन्दी शोध आलेख यूनिकोड मंगल में 12 फॉन्ट साइज़ में A4 साइज़ पृष्ठ के एक तरफ टंकित हो 

अँग्रेजी के आलेख टाइम्स रोमन में 12 फॉन्ट साइज़ में A4 साइज़ पृष्ठ के एक तरफ टंकित हों 

उज़्बेकी में लिखे आलेख 12 फॉन्ट साइज़ में A4 साइज़ पृष्ठ के एक तरफ टंकित हों

शोध आलेख ईमेल में attached word file के रूप में ही भेजें 

शोध आलेख के अंत में संदर्भ सूची अवश्य दें 

शोध आलेख के प्रारंभ में शोध आलेख का शीर्षक और अंत में अपना नाम, पद, संस्था का नाम, ईमेल और मोबाइल नंबर अवश्य लिखें 

शोध आलेख भेजने की अंतिम तिथि 10 दिसंबर 2024 है 

शोध आलेख manishmuntazir@gmail.com पर प्रेषित करें 



परिसंवाद में सहभागिता : 


इस परिसंवाद में सहभागी होने के लिए आप को किसी तरह का पंजीकरण शुल्क नहीं देना होगा 

चुने हुए आलेखों को लाल बहादुर शास्त्रीय भारतीय संस्कृति केंद्र (LBSCIC), ताशकंद द्वारा ISBN / ISSN के साथ पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाएगा 

यात्रा और आवास से संबंधित सारी व्यवस्था प्रतिभागी को स्वयं व्यक्तिगत खर्च पर करनी होगी । 



परिसंवाद का प्रारूप : 


शनिवार, दिनांक 21-12-2024


सुबह : 9.00 से 10.00 - पंजीकरण और जलपान 

सुबह : 10.00 से 11.00 - उद्घाटन सत्र 

सुबह : 11.00 से दोपहर 12.30 - प्रथम चर्चा सत्र 

दोपहर 12.30 से 2.00 - द्वितीय चर्चा सत्र 

दोपहर 2.00 से 3.00 - भोजनावकाश 

दोपहर 3.00 से सायं 4.30 - तृतीय चर्चा सत्र 

सायं 4.30 से 5.00 - समापन सत्र / प्रमाणपत्र वितरण              


  


परिसंवाद संयोजक 


डॉ. मनीष कुमार मिश्रा 

विजिटिंग प्रोफ़ेसर

ICCR हिन्दी चेयर

ताशकंद राजकीय प्राच्य विश्वविद्यालय 

ताशकंद, उज्बेकिस्तान 

मोबाइल – +91-809010900

+998-503022454


डॉ. नीलूफ़र खोजाएवा

 अध्यक्ष

दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशियाई भाषा विभाग 

ताशकंद राजकीय प्राच्य विश्वविद्यालय 

ताशकंद, उज़्बेकिस्तान 

मोबाइल – 

+998-946442799 












Tuesday, 19 November 2024

International conference on GLOBAL POPULARITY OF HINDI CINEMA AND RAJ KAPOOR

 One day International conference on GLOBAL POPULARITY OF HINDI CINEMA AND RAJ KAPOOR @ TASHKENT STATE UNIVERSITY OF ORIENTAL STUDIES, TASHKENT, UZBEKISTAN.

LAST DATE FOR PAPER SUBMISSION: 10-12-2024

CONFERENCE DATE: 21-12-2024

One can submit the paper in HINDI, ENGLISH or UZBEKI Language.






International conference on Raj Kapoor

 #RajKapoor the Showman of Indian Cinema made it possible for Bollywood to have a strong presence in the world, especially in Central Asia. This International Conference by ICCR's Lal Bahadur Shastri Centre for Indian Culture and Tashkent State University of Oriental Studies celebrates 100 years of Raj Kapoor. Research Papers are invited in Hindi, English and Uzbek. In-person in Tashkent and Online Participation are possible. Get in touch with the Organising team. #Tashkent #Conference #ICCR #India #Bollywood #HindiMovies #UzbekCinema






Alfraganus University में व्याख्यान

 🔴HINDISTON | MA'RUZA


🟤Bugun Alfraganus universitetiga xalqaro hamkorlik doirasida Hindistonning Mumbay shtati Maharashtra shahrida joylashgan K.M. Agraval kolleji dotsenti, PhD Manish Kumar Mishra va Toshkent davlat sharqshunoslik universiteti Janubiy Osiyo tillari va adabiyoti oliy maktabi dotsenti v.b. PhD Kamola Raxmatjonova tashrif buyurdilar.


🟤PhD Manish Kumar Mishra Ijtimoiy fanlar fakulteti talabalari uchun "Hindiston falsafasi va dinlari" mavzusida ma’ruza o‘qib, Hindistonning falsafiy merosi, diniy an’analari hamda madaniy o‘ziga xosliklari haqida batafsil ma’lumot berdi.


🟤Uchrashuv davomida talabalar Hindiston madaniyati va dinlari haqidagi bilimlarini boyitish bilan birga, xalqaro fanlararo muloqotning muhim ahamiyatini chuqur angladilar.


Alfraganus University ताशकंद में आज "भारतीय दर्शन और सनातन धर्म" विषय पर व्याख्यान देने का अवसर मिला। इस अवसर के लिए प्रोफ़ेसर Kamola Rahmatjonova  और Alfraganus University में समाज विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर शेरदोर जी का आभार।










Saturday, 16 November 2024

राज कपूर पर अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद, ताशकंद, उज़्बेकिस्तान

 राज कपूर शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र, भारतीय दूतावास, ताशकंद, उज़्बेकिस्तान एवं ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज, ताशकंद, उज़्बेकिस्तान के संयुक्त तत्त्वावधान में एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन आगामी 21 दिसंबर, 2024 को ताशकंद में किया जा रहा है। प्रपत्र हिंदी, अंग्रेजी या उज़्बेकी भाषा में 10 दिसंबर 2024 तक स्वीकार किये जायेंगे। विस्तृत जानकारी संलग्न है । इस संदर्भ में अधिक जानकारी के लिए संयोजक डॉ मनीष कुमार मिश्रा एवं डॉ निलोफर खोदेजेवा / Nilufar Bekmuratovna Khodjaeva जी से संपर्क किया जा सकता है।

इस आयोजन से जुड़ने के लिए आप निम्नलिखित ग्रुप से जुड़ सकते हैं। ऑनलाइन माध्यम से भी प्रपत्र प्रस्तुत किए जा सकेंगे।


टेलीग्राम ग्रुप 

https://t.me/+GAG9-26tLdM2ZWE9


व्हाट्स अप ग्रुप 

https://chat.whatsapp.com/KNM0G4s9iEOK2iEYNwhE4N


किसी भी तकनीकी सहयोग के लिए डॉ प्रवीण कुमार शर्मा/ Parveen Sharma  जी से संपर्क कर सकते हैं।






Tuesday, 22 October 2024

उज़्बेकिस्तान में एक पार्क ऐसा भी

 उज़्बेकिस्तान में एक पार्क ऐसा भी है जो यहां के वरिष्ठ साहित्यकारों के नाम है। यहां उनकी मूर्तियां पूरे सम्मान से लगी हैं। अली शेर नवाई, ऑयबेक, अगाही, गफूर गुलाम और जुल्फियां की प्रतिमाएं आप यहां देख सकते हैं। इस तरह के पार्क पर कोई भी राष्ट्र गर्व कर सकता है। पार्क के बीचों बीच एक म्यूज़ियम भी है।

छायांकन सहयोग भाई Parveen Sharma







Saturday, 12 October 2024

डॉ.मनीष कुमार मिश्रा संक्षिप्त परिचय 2024

 














नाम :  डॉ.मनीष कुमार मिश्रा

जन्म : वसंत पंचमी 09 फरवरी 1981

शिक्षा : मुंबई विद्यापीठ से MA हिंदी (Gold medalist) वर्ष 2003, B.Ed. वर्ष 2005, “कथाकार अमरकांत : संवेदना और शिल्पविषय पर डॉ. रामजी तिवारी के निर्देशन में वर्ष 2009 में PhD ,  MBA (मानव संसाधन) वर्ष 2014, MA English वर्ष 2018

संप्रति :  विजिटिंग प्रोफेसर, ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़, उज्बेकिस्तान  

                 के एम अग्रवाल महाविद्यालय (मुंबई विद्यापीठ से सम्बद्ध ) कल्याण पश्चिम ,महाराष्ट्र में सहायक आचार्य हिन्दी विभाग में 14 सितंबर 2010 से कार्यरत ।

सृजन :

·         राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं /पुस्तकों इत्यादि में 80 से अधिक शोध आलेख प्रकाशित ।

·         250 से अधिक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों / वेबिनारों में सहभागिता ।

·         15 राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का संयोजक के रूप में सफ़ल आयोजन ।

 

प्रकाशन :

·         हिंदी और अंग्रेजी की लगभग 42 पुस्तकों का संपादन ।

·         अमरकांत को पढ़ते हुए   हिंदयुग्म नई दिल्ली से वर्ष 2014 में प्रकाशित । 

·         इस बार तुम्हारे शहर में कविता संग्रह शब्दशृष्टि, नई दिल्ली से 2018 में प्रकाशित ।

·         अक्टूबर उस साल कविता संग्रह शब्दशृष्टि, नई दिल्ली से 2019 में प्रकाशित ।

·         होश पर मलाल है - ग़ज़ल संग्रह, ऑथर्स प्रेस, नई दिल्ली से 2024 में प्रकाशित ।

·         तेरे अंजाम पे रोना आया - ठुमरी गायिकाओं पर केंद्रित आलेखों की पुस्तक ( सह लेखिका डॉ उषा आलोक दुबे ), आर के पब्लिकेशन मुंबई द्वारा 2024 में प्रकाशित 

सम्पर्क :     

·         manishmuntazir@gmail.com

·         https://onlinehindijournal.blogspot.com

91+ 9082556682, 8090100900

 


Sunday, 6 October 2024

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा उज़्बेकिस्तान में खोज रहे हैं हिंदी की नई बोलियां ।

 











डॉ. मनीष कुमार मिश्रा उज़्बेकिस्तान में खोज रहे हैं हिंदी की नई बोलियां ।

माना जाता है कि दूसरी शताब्दी के आस पास कुछ घुमंतू जातियां मध्य एशिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका की तरफ गईं और अलग अलग स्थानों पर रहने लगीं । समय के साथ इन्होंने अपनी मूल भाषा को खो दिया और स्थानीय भाषाओं को बोलचाल के लिए स्वीकार कर लिया । इन्हें मूल रूप से जिप्सी कहा जाता है।

मध्य एशिया के देश उज़्बेकिस्तान में भी ऐसे कई समुदाय रहते हैं। इन लोगों को यहां स्थानीय उज़्बेक भाषा में लोले या लोली कहा जाता है। इनके बीच भी कई समुदाय हैं जैसे कि अफ़गान, मुल्तान, पारया, जोगी, मजांग, कव्वाल, चिश्तानी, सोहूतराश और मुगांत इत्यादि । ये सभी भारत से हैं या नहीं यह शोध का विषय है। 

इस संबंध में विधिवत शोध कार्य न के बराबर हुए हैं। डॉ भोलानाथ तिवारी ने ताशकंद रहते हुए अफ़गान समूह की भाषा पर काम किया और उनकी भाषा को "ताजुज्बेकी" नाम देते हुए इसे हिंदी की एक नई बोली बताई । लेकिन वे लोले या जिप्सियों को इनसे अलग मानते हैं।

डॉ मनीष कुमार मिश्रा इन दिनों ICCR हिन्दी चेयर पर उज़्बेकिस्तान में हैं और ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में हिंदी भाषा के विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। आप भारतीय दूतावास उज़्बेकिस्तान के सहयोग से इन समुदायों एवम इनकी भाषाओं का अध्ययन कर भारत से इनके संबंधों की पड़ताल कर रहे हैं। संभव है कि जल्द ही हिंदी की कुछ नई बोलियों का पता लगाने में वे सफल हो जाएं ।

Thursday, 3 October 2024

लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय : उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्यापन

 

 

लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय : उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्यापन

 

                             अपने समय और परिस्थितियों की विशेषता और विलक्षणता को समझना हमेशा ही भविष्य की राह आसान बनाता है ।  ऐसे में वे राष्ट्र जो जनतांत्रिक मूल्यों वाले समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा जो अपनी राष्ट्रीय एकता, अखंडता और संप्रभुता के प्रति दृढ़संकल्प होते, हुए वैश्विक अर्थव्यवस्था और प्रगति के लिए निरंतर प्रयासरत है ; उनमें भारत और उज्बेकिस्तान प्रमुखता से शामिल हैं । दोनों राष्ट्रो के साहित्यिक मूल्यों में आपसदारी की बात करें तो उज़्बेकिस्तान में सन 1925 के आसपास रविंद्रनाथ टैगोर की कहानियों एवं कविताओं का उज़्बेकी एवं रूसी भाषा में अनुवाद के माध्यम से परिचय हुआ । सन 1940 से 1960  के बीच प्रेमचंद, मोहम्मद इकबाल, मिर्जा गालिब, अमृता प्रीतम और यशपाल की रचनाएं यहां की भाषा में अनुवाद करके प्रकाशित की गयीं ।

                     अब तक अनुमानतः 30 से 35 भारतीय साहित्यकारों का साहित्य उज़्बेकी भाषा में अनुवाद के माध्यम से पहुंच चुका है । अमृता प्रीतम ने कई बार उज़्बेकिस्तान की यात्रा की । अमृता प्रीतम ने अपनी उज़्बेकिस्तान की यात्राओं से संबंधित कुछ निबंध भी लिखे जो सन 1962 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘अतीत की परछाइयां’ में संकलित हैं ।  सन 1978 में भारत के 30 लेखकों की कहानियों को उज़्बेकी में अनुवाद करके  पुस्तक के रूप में ताशकंद से प्रकाशित किया गया ।  भारत के संदर्भ में साहित्य रचनेवाले उज़्बेकी साहित्यकारों में गफूर गुलाम, हमीद गुलाम, अस्काद मुहतार, हमीद अलीमजान, मिरतेमीर, सईदा जुनुनोवा, एरकीन वहीदोवा और तमारा खोदजाएवा का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है ।

         ताशकंद के लाल बहादुर शास्त्री  विद्यालय में प्रारंभिक शिक्षा के आधार पर हिंदी पढ़ाई जाती है जिसकी शुरूआत 1955 के आसपास हुई पाठशाला क्रमांक 24/ मकतब 24 प्रसिद्ध लेखक दिमित्रोव के नाम से ताशकंद में शुरू हुआ । सन 1972 में इसका नाम बदलकर लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय किया गया। यहाँ कक्षा 5 से ही हिन्दी का अध्यापन होता है । इस विद्यालय में लगभग 1400 विद्यार्थी हैं जिनमें से  लगभग 800 विद्यार्थी यहाँ हिन्दी सीखते हैं । सिर्फ हिन्दी पढ़ाने के लिए यहाँ वर्तमान  में  07 शिक्षक कार्यरत हैं । इस विद्यालय की वर्तमान डायरेक्टर नोसिरोवा दिलदोरा यहाँ की हिन्दी शिक्षिका भी हैं । अन्य शिक्षकों में जोराइयेवा मोहब्बत, अब्दुर्राहमनोवा निगोरा, तोजीमुरुदोवा सुरइयो, तुर्दीओहूननोबा, कुरबानोवा ओजोदा और मिर्ज़ायूरादोवा मफ़ूजा शामिल हैं । लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय, ताशकंद संभवतः न केवल उज़्बेकिस्तान अपितु पूरे मध्य एशिया में हिंदी अध्ययन अध्यापन का सबसे बड़ा केंद्र है ।

                         इस विद्यालय के हिन्दी छात्रों को हिंदी भाषा रुचिपुर्ण तरीके से सिखाने के लिए पाठ्य सामग्री को लगातार नए स्वरूप में तैयार करने का कार्य चलता रहता  है। नवीनतम बदलाव वर्ष 2͏021 में किया गया ।  सभी कक्षाओं की (कक्षा 5 से 11 तक ) किताबों को बदलने͏ का का͏ स्कूल के͏ शिक्षकों  तथा ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीस्ज के वरिष्ठ इंडोलजिस्ट की मदद व सुझाव से पाठ्य͏ पुस्तक समिति ने ͏कि͏या। इन किताबों के प्रकाशन के लिए भी भारतीय दूतावास आर्थिक सहायता देता रहता है ।

 

              विद्यालय के बायीं तरफ़ शास्त्री जी की विशाल प्रतिमा लगी हुई है । इस प्रतिमा का अनावरण प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता राज कपूर ने 70 के दशक में की थी । उन दिनों हिन्दी के 35 से अधिक अध्यापक यहाँ कार्यरत थे ।  लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केंद्र, भारतीय दूतावास की तरफ़ से यहाँ एक संग्रहालय कक्ष भी बनाया गया है । इस कक्ष  में पुस्तकों, पत्रिकाओं के साथ साथ भारतीय संस्कृति के प्रतीक चिन्हों के रूप में कई वस्तुओं को सँजोकर रक्खा गया है । शास्त्री जी की एक प्रतिमा इस कक्ष में भी लगाई गयी है । इस संग्रहालय कक्ष के लिए समय – समय पर कई भेंट वस्तुएं भारतीय दूतावास के माध्यम से उपलब्ध कराई जाती है ।


 

        स्वर्गीय  लाल बहादुर शास्त्री जी के पुत्र अनिल शास्त्री जी अपनी पत्नी के साथ इस विद्यालय में आ चुके हैं । वे विद्यालय की व्यवस्था से बड़े प्रभावित भी हुए । विजिटर बुक में उन्होने अपने हस्ताक्षर के साथ संदेश भी लिखा है । वे लिखते हैं कि ,’’मैं अपनी पत्नी मंजू के साथ लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय आया और बहुत अच्छा लगा । स्कूल में बहुत सुधार है और मैं प्रधानाचार्य एवं प्रबंध समिति को बधाई देता हूँ । यहाँ पर संग्रहालय से बहुत प्रभावित हूँ । आप ने शास्त्री जी की स्मृति को बनाए रखने का बहुत अच्छा कार्य किया है । शास्त्री परिवार से किसी प्रकार की सहायता चाहें तो बेझिझक मुझे या मंजू को बताएं ।“

       समग्र रूप से हम यह कह सकते हैं कि भारत और उज्बेकिस्तान विश्व के दो महान गणतंत्र हैं । 21वीं शती के विश्वव्यापी मानवीय मूल्यों, शांति, स्थिरता, प्रगति और स्वतंत्रता के स्वप्न को साकार करने में इन दोनों राष्ट्रों की भाषायी साझेदारी की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी । पूरे मध्य एशिया में हिंदी अध्ययन अध्यापन के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय के अवदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा ।

 

 

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा

विजिटिंग प्रोफ़ेसर – ICCR हिन्दी चेयर

ताशकंद, उज़्बेकिस्तान

 







 

 

International conference on Raj Kapoor at Tashkent

  लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र ( भारतीय दूतावास, ताशकंद, उज्बेकिस्तान ) एवं ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़ ( ताशकं...