Thursday, 8 July 2010
न महकते बागों के मंजर का शौक रखा ,
न तूफानी समंदर का शौक रखा ,
शौक तो बस इतना था तुझे जी भर के देखूं ,
तुने की शिकायत तो बंद आखों का शौक रखा /
Wednesday, 7 July 2010
रूह जलती रही मेरी सर शैया पे
Tuesday, 6 July 2010
सोच सोच के सोच रहा था ,
सोच सोच के सोच रहा था ,
क्या मै सोचूं सोच रहा था ;
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सोच न पाया सोचूं कैसे ,
सोच सोच के सोचूं कैसे ;
सोच सोच किस सोच को सोचूं ,
क्या मै सोचूं कैसे सोचूं ;
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सोच सोच के सोच रहा था ,
सोच है क्या मै सोच रहा था ;
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सोच को सोचा सोचा सोच ,
सोच न पाया सोचा सोच ;
सोचा सोच न समझा सोच ,
सोच की उलझन में उलझा सोच ,
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सोच सोच के सोच रहा था ,
क्या है ये सोच सोच रहा था ;
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सोच सोच के सोच रहा था ,
कैसे मै सोचूं सोच रहा था /
Monday, 5 July 2010
मिला बड़े शौक से किसी से,
बड़ा रुलाया तेरी बातों ने रह रह कर ,
Sunday, 4 July 2010
किन संग वक़्त गुजरता तेरा किन संग तू दिन भर रहता है /
Saturday, 3 July 2010
मेरी आखों को नम बनाये रखा /
बुलाये रखा , उलझाये रखा ,
मेरे दिल के जख्मों को सलीके से ताज़ा बनाये रखा ;
मुस्कराया भी मुझको हँसाया भी ,
पर मेरे भावों को तुने पराया रखा ,मुझको सताए रखा ;
मरहम लगता हर बार तू एक नए अंदाज से ,
पर रिसते घावों में कांटा चुभाये रखा ;
फूलों की खुसबू को मेरे पास बनाये रखा ;
बड़ी खूबसूरती से तुने मुझे अपनी जिंदगी के किनारे लगाये रखा ;
मेरे ओठों पे अपना नाम बनाये रखा ;
मेरी आखों को नम बनाये रखा /
Thursday, 1 July 2010
फितरत नहीं थी वैसा बना डाला ,
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न फितरत बदली न चाहत बदली ,
बदलते वक़्त ने करवट न बदली ;
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न व्यवहार बदला न संस्कार बदला ,
बदला वक़्त ने सिर्फ अभाव बदला ;
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फितरत नहीं थी वैसा बना डाला ,
मोहब्बत ने न जाने कैसा बना डाला ;
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सहज मासूम से ख्वाब थे मेरे ,
उन्हें आखों से बहता काजल बना डाला ;
चल रही थी जिंदगी जों सहज अंदाज से ,
तेरी इनायतों ने उसे हलाहल बना डाला ;
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फितरत नहीं थी वैसा बना डाला ,
मोहब्बत ने न जाने कैसा बना डाला /
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ताशकंद के इन फूलों में
ताशकंद के इन फूलों में केवल मौसम का परिवर्तन नहीं, बल्कि मानव जीवन का दर्शन छिपा है। फूल यहाँ प्रेम, आशा, स्मृति, परिवर्तन और क्षणभंगुरता ...

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