Thursday, 13 March 2025

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भगवान परशुराम को वैज्ञानिक दृष्टिकोण

 भगवान परशुराम को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने पर हम कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों और विज्ञान की विभिन्न शाखाओं से उनकी तुलना कर सकते हैं। उनके जीवन, कर्म और विशेषताओं को आधुनिक विज्ञान से जोड़कर समझने का प्रयास करते हैं। 

1. आनुवंशिकता और विकास (Genetics & Evolution)

**संबंधित वैज्ञानिक सिद्धांत:**  

ग्रेगर मेंडेल के आनुवंशिकता के नियम (Mendel’s Laws of Inheritance) और चार्ल्स डार्विन का विकासवाद (Theory of Evolution)।  


### **परशुराम से संबंध:**  

परशुराम ब्राह्मण कुल में जन्मे लेकिन क्षत्रियों जैसी युद्ध-कला में निपुण थे। यह दिखाता है कि केवल जन्म नहीं, बल्कि प्रशिक्षण और अभ्यास से भी गुण प्राप्त किए जा सकते हैं।  

- आनुवंशिकी सिद्ध करती है कि गुणसूत्रों (Chromosomes) द्वारा माता-पिता के गुण संतानों में आते हैं।  

- परशुराम ने अपने शिष्यों (भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण) को प्रशिक्षित करके दिखाया कि उचित शिक्षा से गुणों को विकसित किया जा सकता है, चाहे आनुवंशिक रूप से वे किसी भी जाति के क्यों न हों।  


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## **2. भौगोलिक परिवर्तन और समुद्र विज्ञान (Geology & Oceanography)**  

### **संबंधित वैज्ञानिक सिद्धांत:**  

प्लेट टेक्टोनिक्स (Plate Tectonics) और समुद्र के जलस्तर परिवर्तन (Sea Level Change)।  


### **परशुराम से संबंध:**  

कहा जाता है कि भगवान परशुराम ने समुद्र को पीछे हटाकर केरल की भूमि बनाई। यह घटना भूगर्भीय हलचलों (Geological Activities) से जुड़ी हो सकती है।  

- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह एक टेक्टोनिक घटना हो सकती है, जहाँ समुद्र का जलस्तर नीचे गया हो।  

- इतिहास में समुद्री जलस्तर में परिवर्तन और भूकंपीय गतिविधियों के कारण नए द्वीप और भूभाग उभरते रहे हैं।  

- यह दर्शाता है कि परशुराम काल में भी लोग इन प्राकृतिक घटनाओं को समझते थे और उन्हें अपनी संस्कृति में शामिल करते थे।  


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## **3. सैन्य विज्ञान और अस्त्र-शस्त्र (Military Science & Metallurgy)**  

### **संबंधित वैज्ञानिक सिद्धांत:**  

धातु विज्ञान (Metallurgy) और बैलिस्टिक्स (Ballistics - हथियारों की गति का अध्ययन)।  


### **परशुराम से संबंध:**  

भगवान परशुराम के पास एक दिव्य परशु (कुल्हाड़ी) था, जिसे उन्होंने भगवान शिव से प्राप्त किया था।  

- प्राचीन भारत में उन्नत धातु विज्ञान था, जिससे अयस्कों को शुद्ध करके मजबूत धातु बनाई जाती थी।  

- दिल्ली का लौह स्तंभ (Iron Pillar of Delhi) बिना जंग लगे हजारों वर्षों से खड़ा है, जो दर्शाता है कि उस समय धातु निर्माण की तकनीक उन्नत थी।  

- आधुनिक सैन्य विज्ञान में भी हथियारों के निर्माण में सही धातु का उपयोग बहुत महत्वपूर्ण होता है।  


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## **4. पर्यावरण विज्ञान और पारिस्थितिकी (Environmental Science & Ecology)**  

### **संबंधित वैज्ञानिक सिद्धांत:**  

पारिस्थितिकी संतुलन (Ecological Balance) और जल प्रबंधन (Water Management)।  


### **परशुराम से संबंध:**  

परशुराम को प्रकृति प्रेमी और तपस्वी के रूप में भी दिखाया गया है।  

- वे वनों और पर्वतों में रहे, जिससे यह पता चलता है कि वे प्रकृति के महत्व को समझते थे।  

- उन्होंने कई तीर्थ स्थलों और झीलों का निर्माण किया, जो जल संरक्षण की ओर संकेत करता है।  

- आधुनिक पर्यावरण विज्ञान में भी जल स्रोतों और जंगलों के संरक्षण पर जोर दिया जाता है, जो परशुराम की विचारधारा से मेल खाता है।  


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## **5. ऊर्जा विज्ञान और ब्रह्मास्त्र (Energy Science & Nuclear Physics)**  

### **संबंधित वैज्ञानिक सिद्धांत:**  

नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy) और प्लाज्मा भौतिकी (Plasma Physics)।  


### **परशुराम से संबंध:**  

परशुराम को दिव्य अस्त्रों का ज्ञान था, जिनमें ब्रह्मास्त्र प्रमुख था।  

- ब्रह्मास्त्र का वर्णन एक ऐसे अस्त्र के रूप में किया जाता है जो अत्यंत विनाशकारी होता है और नियंत्रित न होने पर पृथ्वी को नष्ट कर सकता है।  

- यह आधुनिक नाभिकीय हथियारों (Nuclear Weapons) से मिलता-जुलता है, जो अणु (Atoms) और नाभिक (Nucleus) के विखंडन से अपार ऊर्जा उत्पन्न कर सकते हैं।  

- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह संकेत करता है कि उस युग में उन्नत ऊर्जा स्रोतों का ज्ञान हो सकता था, जिसे मिथकीय रूप में प्रस्तुत किया गया हो।  


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## **6. मनोविज्ञान और शिक्षा (Psychology & Education)**  

### **संबंधित वैज्ञानिक सिद्धांत:**  

मनोवैज्ञानिक प्रशिक्षण (Psychological Conditioning) और शिक्षाशास्त्र (Pedagogy)।  


### **परशुराम से संबंध:**  

परशुराम केवल शारीरिक युद्ध-कला के ही नहीं, बल्कि मानसिक अनुशासन और रणनीति के भी महान शिक्षक थे।  

- आज की आधुनिक शिक्षा प्रणाली भी "गुरु-शिष्य परंपरा" की ओर लौट रही है, जहाँ व्यक्तिगत मार्गदर्शन (Mentorship) पर ध्यान दिया जाता है।  

- परशुराम ने भीष्म, द्रोणाचार्य, और कर्ण को प्रशिक्षित करके दिखाया कि सही शिक्षा से किसी भी व्यक्ति को महान योद्धा बनाया जा सकता है।  

- आज के मनोविज्ञान में भी यह सिद्ध हो चुका है कि व्यक्ति का दिमाग प्रशिक्षण और अनुशासन से निखरता है, न कि केवल जन्मजात गुणों से।

भगवान परशुराम को केवल धार्मिक दृष्टिकोण से देखने की बजाय, यदि वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार देखा जाए, तो वे एक उन्नत ज्ञान और अनुशासन के प्रतीक हैं। उनका जीवन **आनुवंशिकी, भूगोल, धातु विज्ञान, पर्यावरण, ऊर्जा विज्ञान और मनोविज्ञान** से जुड़े कई वैज्ञानिक पहलुओं को दर्शाता है।  

इससे यह भी सिद्ध होता है कि प्राचीन भारत में वैज्ञानिक सोच और उन्नत ज्ञान का स्तर उच्च था, जिसे पौराणिक कथाओं के माध्यम से संजोया गया है।

Friday, 28 February 2025

वरिष्ठ भारतीय भाषाविदों का सम्मान समारोह संपन्न

https://www.emsindia.com/news/show/2880677/national 

मुंबई, (ईएमएस)। उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद स्थित लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र में गुरुवार दिनांक 27 फ़रवरी को दोपहर 3 बजे एक गरिमामयी कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें भारतीय भाषाओं के वरिष्ठ विद्वानों को सम्मानित किया गया। यह कार्यक्रम भारतीय दूतावास और संस्कृति केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया था। इस ऐतिहासिक आयोजन का उद्देश्य भारतीय भाषाओं के संरक्षण, संवर्धन और वैश्विक स्तर पर उनके प्रचार-प्रसार में योगदान देने वाले विद्वानों को सम्मानित करना था। कार्यक्रम में भारत और उज्बेकिस्तान के कई गणमान्य व्यक्तियों, राजनयिकों, साहित्यकारों, शिक्षाविदों और भाषा विशेषज्ञों ने शिरकत की। इस अवसर पर भारतीय राजदूत स्मिता पंत, ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज के आमंत्रित प्रोफेसर, अमेरिकन यूनिवर्सिटी से डॉ परवीन कुमार, स्थानीय प्रशासन के कई अधिकारी और भारतीय संस्कृति केंद्र के कार्यवाहक निदेशक एम.श्रीनिवासन जी उपस्थित रहे। भारतीय राजदूत स्मिता पंत जी ने अपने संबोधन में कहा,आज का यह आयोजन उन विद्वानों के प्रति आभार प्रकट करने का अवसर है, जिन्होंने अपनी पूरी जीवन-यात्रा भारतीय भाषाओं को समर्पित कर दी। ये विद्वान भारत के सांस्कृतिक राजदूत हैं । सम्मानित होने वाले भारतीय भाषाविदों में कुछ ऐसे विद्वान भी थे जो अब जीवित नहीं हैं। उनके परिवार के सदस्यों ने उनके प्रतिनिधि के रूप में पुरस्कार स्वीकार किया। ऐसे विद्वानों में मोहम्मदजोनोव रहमोनबेरदी, गियासोव तैमूर, युल्दाशेव सादुल्ला, गुलोमोवो रानो, शमातोव आजाद, अमीर फैजुल्ला, नसरुल्लाएव जियादुल्ला और इब्राहिमोव असरुद्दीन शामिल रहे। अन्य सम्मानित विद्वानों में शिरीन जलीलोवा, आबिदो बख्तियोर, मिर्जैव शिरॉफ, निजामुद्दीनो नजमुद्दीन, रहमतो बयोत, रहमतो सेवार, मुहर्रम मिर्जेवा, सादिकोवा मौजूदा तथा कासीमोव अहमदजान शामिल रहे। सम्मान स्वरूप नगद राशि और पुष्पगुच्छ भेंट किया गया। सम्मान के बाद कुछ विद्वानों ने सब की तरफ से आभार प्रकट किया। ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में हायर स्कूल विभाग प्रमुख डॉ.निलुफर खोजएवा ने ऐसे आयोजनों की सार्थकता पर बल देते हुए दूतावास के प्रति आभार जताया। आईसीसीआर हिन्दी चेयर पर कार्यरत डॉ.मनीष कुमार मिश्रा ने उज़्बेकिस्तान से शुरू हुए ताशकंद संवाद नामक पहले हिन्दी ब्लॉग की जानकारी दी तथा डिजिटल रूप में सभी उज़्बेकी भारतीय भाषाविदों के साक्षात्कार को संरक्षित करने की योजना भी बताई। पूरे कार्यक्रम का सफ़ल संचालन डॉ.कमोला ने किया जिनकी तकनीकी सहायक मोतबार जी रहीं। अंत में लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र के कार्यवाहक निदेशक एम.श्रीनिवासन जी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। समूह फोटो तथा स्नेह भोज के साथ यह कार्यक्रम समाप्त हुआ। इस तरह यह सम्मान समारोह भारतीय भाषाओं के प्रति समर्पित व्यक्तियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना और यह संदेश दिया कि भारतीय भाषाएं केवल भारत की नहीं, बल्कि पूरे विश्व की धरोहर हैं। संतोष झा- २८ फरवरी/२०२५/ईएमएस




वरिष्ठ भारतीय भाषाविदों का सम्मान समारोह


 

ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन

✦ शोध आलेख “ताशकंद – एक शहर रहमतों का” : सांस्कृतिक संवाद और काव्य-दृष्टि का आलोचनात्मक अध्ययन लेखक : डॉ. मनीष कुमार मिश्र समीक्षक : डॉ शमा ...