Thursday, 3 October 2024

लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय : उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्यापन

 

 

लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय : उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्यापन

 

                             अपने समय और परिस्थितियों की विशेषता और विलक्षणता को समझना हमेशा ही भविष्य की राह आसान बनाता है ।  ऐसे में वे राष्ट्र जो जनतांत्रिक मूल्यों वाले समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा जो अपनी राष्ट्रीय एकता, अखंडता और संप्रभुता के प्रति दृढ़संकल्प होते, हुए वैश्विक अर्थव्यवस्था और प्रगति के लिए निरंतर प्रयासरत है ; उनमें भारत और उज्बेकिस्तान प्रमुखता से शामिल हैं । दोनों राष्ट्रो के साहित्यिक मूल्यों में आपसदारी की बात करें तो उज़्बेकिस्तान में सन 1925 के आसपास रविंद्रनाथ टैगोर की कहानियों एवं कविताओं का उज़्बेकी एवं रूसी भाषा में अनुवाद के माध्यम से परिचय हुआ । सन 1940 से 1960  के बीच प्रेमचंद, मोहम्मद इकबाल, मिर्जा गालिब, अमृता प्रीतम और यशपाल की रचनाएं यहां की भाषा में अनुवाद करके प्रकाशित की गयीं ।

                     अब तक अनुमानतः 30 से 35 भारतीय साहित्यकारों का साहित्य उज़्बेकी भाषा में अनुवाद के माध्यम से पहुंच चुका है । अमृता प्रीतम ने कई बार उज़्बेकिस्तान की यात्रा की । अमृता प्रीतम ने अपनी उज़्बेकिस्तान की यात्राओं से संबंधित कुछ निबंध भी लिखे जो सन 1962 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘अतीत की परछाइयां’ में संकलित हैं ।  सन 1978 में भारत के 30 लेखकों की कहानियों को उज़्बेकी में अनुवाद करके  पुस्तक के रूप में ताशकंद से प्रकाशित किया गया ।  भारत के संदर्भ में साहित्य रचनेवाले उज़्बेकी साहित्यकारों में गफूर गुलाम, हमीद गुलाम, अस्काद मुहतार, हमीद अलीमजान, मिरतेमीर, सईदा जुनुनोवा, एरकीन वहीदोवा और तमारा खोदजाएवा का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है ।

         ताशकंद के लाल बहादुर शास्त्री  विद्यालय में प्रारंभिक शिक्षा के आधार पर हिंदी पढ़ाई जाती है जिसकी शुरूआत 1955 के आसपास हुई पाठशाला क्रमांक 24/ मकतब 24 प्रसिद्ध लेखक दिमित्रोव के नाम से ताशकंद में शुरू हुआ । सन 1972 में इसका नाम बदलकर लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय किया गया। यहाँ कक्षा 5 से ही हिन्दी का अध्यापन होता है । इस विद्यालय में लगभग 1400 विद्यार्थी हैं जिनमें से  लगभग 800 विद्यार्थी यहाँ हिन्दी सीखते हैं । सिर्फ हिन्दी पढ़ाने के लिए यहाँ वर्तमान  में  07 शिक्षक कार्यरत हैं । इस विद्यालय की वर्तमान डायरेक्टर नोसिरोवा दिलदोरा यहाँ की हिन्दी शिक्षिका भी हैं । अन्य शिक्षकों में जोराइयेवा मोहब्बत, अब्दुर्राहमनोवा निगोरा, तोजीमुरुदोवा सुरइयो, तुर्दीओहूननोबा, कुरबानोवा ओजोदा और मिर्ज़ायूरादोवा मफ़ूजा शामिल हैं । लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय, ताशकंद संभवतः न केवल उज़्बेकिस्तान अपितु पूरे मध्य एशिया में हिंदी अध्ययन अध्यापन का सबसे बड़ा केंद्र है ।

                         इस विद्यालय के हिन्दी छात्रों को हिंदी भाषा रुचिपुर्ण तरीके से सिखाने के लिए पाठ्य सामग्री को लगातार नए स्वरूप में तैयार करने का कार्य चलता रहता  है। नवीनतम बदलाव वर्ष 2͏021 में किया गया ।  सभी कक्षाओं की (कक्षा 5 से 11 तक ) किताबों को बदलने͏ का का͏ स्कूल के͏ शिक्षकों  तथा ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीस्ज के वरिष्ठ इंडोलजिस्ट की मदद व सुझाव से पाठ्य͏ पुस्तक समिति ने ͏कि͏या। इन किताबों के प्रकाशन के लिए भी भारतीय दूतावास आर्थिक सहायता देता रहता है ।

 

              विद्यालय के बायीं तरफ़ शास्त्री जी की विशाल प्रतिमा लगी हुई है । इस प्रतिमा का अनावरण प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता राज कपूर ने 70 के दशक में की थी । उन दिनों हिन्दी के 35 से अधिक अध्यापक यहाँ कार्यरत थे ।  लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केंद्र, भारतीय दूतावास की तरफ़ से यहाँ एक संग्रहालय कक्ष भी बनाया गया है । इस कक्ष  में पुस्तकों, पत्रिकाओं के साथ साथ भारतीय संस्कृति के प्रतीक चिन्हों के रूप में कई वस्तुओं को सँजोकर रक्खा गया है । शास्त्री जी की एक प्रतिमा इस कक्ष में भी लगाई गयी है । इस संग्रहालय कक्ष के लिए समय – समय पर कई भेंट वस्तुएं भारतीय दूतावास के माध्यम से उपलब्ध कराई जाती है ।


 

        स्वर्गीय  लाल बहादुर शास्त्री जी के पुत्र अनिल शास्त्री जी अपनी पत्नी के साथ इस विद्यालय में आ चुके हैं । वे विद्यालय की व्यवस्था से बड़े प्रभावित भी हुए । विजिटर बुक में उन्होने अपने हस्ताक्षर के साथ संदेश भी लिखा है । वे लिखते हैं कि ,’’मैं अपनी पत्नी मंजू के साथ लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय आया और बहुत अच्छा लगा । स्कूल में बहुत सुधार है और मैं प्रधानाचार्य एवं प्रबंध समिति को बधाई देता हूँ । यहाँ पर संग्रहालय से बहुत प्रभावित हूँ । आप ने शास्त्री जी की स्मृति को बनाए रखने का बहुत अच्छा कार्य किया है । शास्त्री परिवार से किसी प्रकार की सहायता चाहें तो बेझिझक मुझे या मंजू को बताएं ।“

       समग्र रूप से हम यह कह सकते हैं कि भारत और उज्बेकिस्तान विश्व के दो महान गणतंत्र हैं । 21वीं शती के विश्वव्यापी मानवीय मूल्यों, शांति, स्थिरता, प्रगति और स्वतंत्रता के स्वप्न को साकार करने में इन दोनों राष्ट्रों की भाषायी साझेदारी की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी । पूरे मध्य एशिया में हिंदी अध्ययन अध्यापन के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय के अवदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा ।

 

 

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा

विजिटिंग प्रोफ़ेसर – ICCR हिन्दी चेयर

ताशकंद, उज़्बेकिस्तान

 







 

 

Wednesday, 2 October 2024

शास्त्री कोचासी, ताशकंद ।












 

शास्त्री कोचासी, ताशकंद 

 

आज़ 

02 अक्टूबर 2024 को

लाल बहादुर शास्त्री जी की

जन्म जयंती पर 

लाल बहादुर शास्त्री जी के निशान

ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में 

शास्त्री कोचासी अर्थात

शास्त्री मार्ग/ सड़क

लाल बहादुर शास्त्री स्कूल अर्थात

मकतब 24 

और 

लाल बहादुर शास्त्री  संस्कृति केन्द्र 

के रूप में सुरक्षित देख

इतिहास को 

त्रासदी के आख्यान के साथ साथ

वर्तमान की नींव में भी पा रहा हूं ।

 

शास्त्री कोचासी पर लगी 

शास्त्री जी की मूर्ति

आने जाने वालों से 

तेज़ गति से भागती गाड़ियों से 

मानो कह रही हो कि 

दुर्घटनाओं के मूल में 

अपनी असावधानी ही कारण हो

यह ज़रूरी नहीं 

बल्कि कई बार 

हम दूसरों की गलतियों का भी 

अनायास दंड भोगते हैं ।

 

कहीं पढ़ा था कि 

लाल बहादुर शास्त्री स्कूल

अर्थात मकतब 24 में लगी

शास्त्री जी की भव्य मूर्ति का अनावरण 

फिल्म अभिनेता राज कपूर ने 

सन 1974 में किया था 

इसी विद्यालय में हिंदी सीख रहे बच्चे

शास्त्री जी की प्रतिमा के पास 

शायद कभी गुनगुना भी देते हों 

राज कपूर का 

मशहूर फिल्मी गीत 

सब कुछ सीखा हमने.........।

 

लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र  में भी

शास्त्री जी की प्रतिमा है 

जहां से 

दो राष्ट्रों के मैत्री पूर्ण संबंधों को 

साहित्यिक, सांस्कृतिक आयोजनों द्वारा 

लगातार निखारा जा रहा है 

क्योंकि संबंधों के ताने बाने में 

अविश्वास की गांठ 

अच्छी नहीं होती ।

 

आज़ादी के इस अमृत काल में 

मैं शास्त्री जी को ताशकंद से

उस नीलकंठ के रूप में भी

याद करता हूं 

जो सशक्त भारत की नींव का 

एक अविस्मरणीय योद्धा है 

 

 

डॉ मनीष कुमार मिश्रा

विजिटिंग प्रोफेसर (ICCR हिंदी चेयर )

ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज

ताशकंदउज़्बेकिस्तान।

 

Wednesday, 18 September 2024

उज़्बेकिस्तान में एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न ।

 उज़्बेकिस्तान में एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न ।


                    बुधवार, दिनांक 18 सितंबर 2024 को लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद की शुरुआत सुबह 10 बजे हुई । परिसंवाद का मुख्य विषय था "उज़्बेकिस्तान में हिंदी: दशा और दिशा" । इस परिसंवाद के उद्घाटन सत्र में अध्यक्ष के रूप में उज़्बेकिस्तान में भारत सरकार की राजदूत आदरणीय स्मिता पंत जी उपस्थित थी । बीज वक्ता के रूप में वरिष्ठ हिंदी भाषाविद श्री बयोत रहमतोव और मुख्य अतिथि के रुप में ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज से डॉ निलूफर खोजाएवा ऑनलाईन माध्यम से उपस्थित हुई । 

            कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित करके हुई । लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद के कल्चरल डायरेक्टर श्री सीतेश कुमार जी ने स्वागत भाषण देते हुए केंद्र की आगामी योजनाओं की भी चर्चा की । प्रस्ताविकी परिसंवाद संयोजक के रूप में डॉ मनीष कुमार मिश्रा ने प्रस्तुत करते हुए सत्र का संचालन भी किया । मुख्य अतिथि डॉ निलुफर खोजाएवा जी ने आयोजन की सफलता के लिए बधाई देते हुए अपने संस्थान में हिंदी की गतिविधियों की जानकारी दी। बीज वक्ता के रूप में श्री बयोत रहमतोव जी ने विस्तार से उज़्बेकिस्तान में इंडियन डायसपोरा की चर्चा करते हुए भोलानाथ तिवारी के कार्यों को याद किया। इस अवसर पर परिसंवाद में प्रस्तुत शोध आलेखों की पुस्तक का लोकार्पण भी मान्यवर अतिथियों के द्वारा किया गया। इस पुस्तक का सम्पादन डॉ मनीष कुमार मिश्रा एवं  डॉ निलुफ़र खोजाएवा जी ने किया । इस एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के लिए प्राप्त शोध आलेखों में से कुल  30 शोध आलेखों को ISSN JOURNAL ( 2181-1784), 4(22), September 2024, www.oriens.uz के माध्यम से प्रकाशित किया गया है। 

     वरिष्ठ हिन्दी प्राध्यापिका डॉ सादिकोवा मौजूदा काबिलोवना जी की पाठ्यक्रम केंद्रित पुस्तक का भी इस अवसर पर लोकार्पण हुआ । इस कार्यक्रम में ऑन लाईन माध्यम से भारत समेत कई अन्य देशों के हिंदी विद्वान उत्साहपूर्वक जुड़े रहे । अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में आदरणीय स्मिता पंत जी ने लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों की प्रशंसा की । हिंदी के प्रचार प्रसार हेतु ऐसे आयोजनों की सार्थकता पर आप ने विस्तार से चर्चा करते हुए आगामी आयोजनों के लिए हर संभव सहायता का आश्वासन भी दिया। उज़्बेकिस्तान में जनवरी 2025 में हिन्दी ओलम्पियाड़ आयोजित करने की योजना पर भी आप ने प्रकाश डाला । 

            उद्घाटन सत्र के बाद प्रथम और द्वितीय चर्चा सत्र की शुरुआत हुई जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ हिंदी भाषाविद डॉ सादिकोवा मौजूदा काबिलोवना जी ने की । इस सत्र में जिन विद्वानों ने अपने शोध आलेख प्रस्तुत किए उनमें  शाहनाजा ताशतेमीरोवा, कमोला अखमेदोवा, प्रवीण कुमार, नेमातो युरादिल्ला, डॉ. उषा आलोक दुबे , तिलोवमुरोडोवा शम्सिक़मर, निकिता, डा० कमोला रहमतजनोवा, डॉ. हर्षा त्रिवेदी, श्रीमती नेहा राठी, डॉ. राजेश सरकार और प्रो. उल्फ़त मोहीबोवा जी शामिल रहीं । इनमें से कई विद्वान ऑन लाईन माध्यम से संगोष्ठी से जुड़े रहे । ऑन लाईन माध्यम से संगोष्ठी से जुड़े अन्य विद्वानों में डॉ. फ़तहुद दिनोवा इरोदा, युनूसोवा आदोलत, अखमदजान कासीमोव, डॉ सिराजूद्दीन नुर्मातोव, संध्या सिलावट, डॉ.प्रियंका घिल्डियाल समेत अनेकों लोग देश-विदेश से शामिल थे ।            

      दोपहर के भोजन के उपरांत तीसरे चर्चा सत्र की शुरुआत हुई। इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ हिन्दी भाषाविद श्री बयोत रहमतोव जी ने की । इस सत्र में जिन विद्वानों ने अपने शोध आलेख प्रस्तुत किए उनमें अज़ीज़ा योरमातोवा, जियाजोवा बेरनोरा मंसूर्वोना, मोतबार स्मतुलायवा, हिदायेव मिरवाहिद, खुर्रामो शुकरुल्लाह, डॉ. शिल्पा सिंह और डॉ. ठाकुर शिवलोचन शामिल रहे । इस सत्र में भी भारत से कई विद्वान ऑन लाइन माध्यम से प्रपत्र वाचक के रूप में जुड़े । 

             तीसरे सत्र के बाद समापन सत्र की शुरुआत हुई। प्रतिभागियों ने इस आयोजन के संदर्भ में खुलकर अपने विचार प्रकट किए। अंत में लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद के कल्चरल डायरेक्टर श्री सीतेश कुमार जी के हाथों प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र और शोध आलेखों की पुस्तक भेंट की गई । अंत में डॉ मनीष कुमार मिश्रा ने सभी के प्रति आभार ज्ञापित किया और परिसंवाद समाप्ति की घोषणा की । इस तरह यह एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद सम्पन्न हुआ ।
















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