Friday, 28 May 2021
Wednesday, 26 May 2021
Sunday, 23 May 2021
Thursday, 20 May 2021
Saturday, 15 May 2021
Friday, 7 May 2021
उतरे हुए रंग की तरह उदास ।
उतरे हुए रंग की तरह उदास ।
टूटकर
बिखरे हुए लोग
चुप हैं आजकल
या फिर
मुस्कुरा कर रह जाते हैं
हंसने और रोने के बीच
कहीं गहरे गड़े हुए हैं ।
झरते हुए आंसू
रिसते हुए रिश्ते
सब मृत्यु से भयभीत
दांव पर लगी जिंदगी की
इच्छाएं शिथिल हो चुकी हैं
सब के पास
एक उदास कोना है
हंसी खुशी
अब खूंटियों पर टंगी है ।
सब के हिस्से में
महामारी
महामारी की त्रासदी
महामारी के किस्से हैं
आशा की नदी
सूखती जा रही है
सारी व्यवस्थाएं
उतरे हुए रंग की तरह उदास हैं ।
संवेदनाओं का कच्चा सूत
रूठी हुई नींदों को
कहानियां सुनाता है
इस उम्मीद में कि
उसका हस्तक्षेप दर्ज होगा
लेकिन
अंधेरा बहुत ही घना है
जहरीली हवा
शिकार तलाश रही है
सत्ताओं का क्या ?
उनकी दबी हुई आंख को
ऐसे मंजर बहुत पसंद आते हैं ।
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण ( पश्चिम ), महाराष्ट्र ।
manishmuntazir@gmail.com
Monday, 3 May 2021
इस महामारी में ।
6. इस महामारी में ।
इस महामारी में
घर की चार दिवारी में कैद होकर
जीने की अदम्य लालसा के साथ
मैं अभी तक जिंदा हूं
और देख रहा हूं
मौत के आंकड़ों का सच
सबसे तेज़
सबसे पहले की गारंटी के साथ ।
इस महामारी में
व्यवस्था का रंग
एकदम कच्चा निकला
प्रशासनिक वादों के फंदे से
रोज ही
हजारों कत्ल हो रहे हैं ।
इस महामारी में
मृत्यु का सपना
धड़कनों को बढ़ा देता है
जलती चिताओं के दृश्य
डर को
और गाढ़ा कर देता है ।
इस महामारी में
हवाओं में घुला हुआ उदासी का रंग
कितना कचोटता है ?
संवेदनाओं की सिमटती परिधि में
ऑक्सीजन / दवाइयों की कमी से
हम सब पर
अतिरिक्त दबाव है ।
इस महामारी में
सिकुड़े और उखड़े हुए लोग
गहरी, गंभीर शिकायतों के साथ
कतार में खड़े हैं
बस अड्डे, रेलवे स्टेशन, अस्पताल से लेकर
शमशान घाट तक ।
इस महामारी में
हम सब एकसाथ अकेले हैं
होने न होने के बीच में
सासों का गणित सीख रहे हैं
इधर वो रोज़ फ़ोन कर पूछती है
कैसे हो ?
जिसका मतलब होता है
ज़िंदा हो न ?
------ डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
के.एम.अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम, महाराष्ट्र
manishmuntazir@gmail.com
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