Thursday, 20 June 2013

तुम चले जाओगे --रचनाकार: अशोक वाजपेयी

तुम चले जाओगे

पर थोड़ा-सा यहाँ भी रह जाओगे

जैसे रह जाती है

पहली बारिश के बाद 

हवा में धरती की सोंधी-सी गंध 

भोर के उजास में 

थोड़ा-सा चंद्रमा 


खंडहर हो रहे मंदिर में


अनसुनी प्राचीन नूपुरों की झंकार|

तुम चले जाओगे


पर थोड़ी-सी हँसी


आँखों की थोड़ी-सी चमक


हाथ की बनी थोड़ी-सी कॉफी


यहीं रह जाएँगे


प्रेम के इस सुनसान में|

तुम चले जाओगे 


पर मेरे पास 


रह जाएगी


प्रार्थना की तरह पवित्र 


और अदम्य


तुम्हारी उपस्थिति,


छंद की तरह गूँजता


तुम्हारे पास होने का अहसास|

तुम चले जाओगे


और थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे|

--रचनाकार: अशोक वाजपेयी 

Tuesday, 18 June 2013

कनेक्टिविटी

              उनसे फोन पे बात हो रही थी
          मैंने पूछा – कहाँ  हो
          जवाब आया - छत पे 
          मैंने फ़िर पूछा –
          छत पे क्या कर रही हो ?
          यहाँ कनेक्टिविटी मिल जाती है – उनका जवाब
          मैंने कहा –
          अभी भी छत पे  कनेक्टिविटी खोजती हो ?
          उसने कहा –

          हाँ, मोबाईल की कनेक्टिविटी यहीं मिलती है ।   

अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष

          अमरकांत : जन्म शताब्दी वर्ष डॉ. मनीष कुमार मिश्रा प्रभारी – हिन्दी विभाग के एम अग्रवाल कॉलेज , कल्याण पश्चिम महार...