जो कहना था पहले ,
वो अब तक ना कह पाए .
संग-संग रहते थे घर में,
पर दिल में ना रह पाए .
सात जन्म का वादा करके,
सात कदम ना चल पाए .
प्यार बना समझौता कैसे ?
ये बात समझ ना पाए.
साथ सफ़र में दोनों थे पर ,
साथी ना बन पाए .
अंदर ही अंदर घुट कर,
दो-चार कदम चल पाए.
जिसके बिन जीना मुश्किल था,
साथ उसी के ना जी पाए .
इश्क क़ी राह पे चल के भी,
हम इश्क समझ ना पाए .
जो कहना था ----------------------------
(इस गीत क़ी पहली कड़ी भाई सुनील सावरा ने डी थी. वो इसे पूरा करना चाहते थे. मैंने अपनी तरफ से एक कोसिस क़ी है.शायद उन्हें पसंद आये.)
Sunday, 7 March 2010
कोई मेरी है दीवानी.
वही प्यार क़ी कहानी ,
हमे भी है दुहरानी .
मैं दीवाना किसी का,
कोई मेरी है दीवानी.
वही प्यार क़ी ---------------------------
थोड़ी जानी-पहचानी ,
थोड़ी सी है अनजानी .
रब ने मिलाया है तो ,
जोड़ी हमको है बनानी .
वही प्यार क़ी ---------------------------------
ना मैं कोई राजा,नाही वो है कोई रानी ,
लगती थोड़ी भोली,थोड़ी सी है वो सयानी .
जिन्दगी के इस सफ़र में,
हमसफ़र है वो दीवानी .
वही प्यार क़ी -----------------------------------
हमे भी है दुहरानी .
मैं दीवाना किसी का,
कोई मेरी है दीवानी.
वही प्यार क़ी ---------------------------
थोड़ी जानी-पहचानी ,
थोड़ी सी है अनजानी .
रब ने मिलाया है तो ,
जोड़ी हमको है बनानी .
वही प्यार क़ी ---------------------------------
ना मैं कोई राजा,नाही वो है कोई रानी ,
लगती थोड़ी भोली,थोड़ी सी है वो सयानी .
जिन्दगी के इस सफ़र में,
हमसफ़र है वो दीवानी .
वही प्यार क़ी -----------------------------------
यादों के फूलों में चेहरा तेरा , 2
यादों के फूलों में चेहरा तेरा ,
गुलाबी गालों की रंगत ,
आखों में सपना मेरा ;
निगाहों में रंगीनियों के डेरे ,
अभिलाषा रंगीन है मेरी ,
आशाओं के महीन से फेरे ,
फागुनी अंदाज में डूबे,
इरादे संगीन है मेरे ,
मोहब्बत और प्यास के सूबे ,
आ नए प्यार सा खेले,
समर्पण चाह के घेरे ,
इच्छाएं हसीन है मेरी,
वो पहली मुलाकात के डेरे ,
वो पहली रात की बातें,
उलझे बाल के फेरे ,
वो प्यास में डूबे ,
विश्वास के घेरे ;
यादों के फूलों में चेहरा तेरा ,
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mohabbat,
हिन्दी कविता hindi poetry

Friday, 5 March 2010
जितनी शरारत है,नजाकत भी है उतनी ही
उलझी हुई थोड़ी ,
थोड़ी सी सुलझी है.
वो लड़की जो ,मेरे दिल को ,चुरा के ले गयी यारों
पगली सी है थोड़ी,
थोड़ी सयानी है .
तितली सी है चंचल
फूलों सी कोमल है .
वो बोलती है जब,तो मुझको यूं लगता है
मन क़ी मेरी बगिया में
कोयल कूक भरती है .
ख़ामोशी में उसके
बादल उमड़ते हैं.
जितनी शरारत है,नजाकत भी है उतनी ही
बड़ी तो खूब है लेकिन,
वो गुडिया छोटी लगती है .
अदाएं चाँद क़ी सारी ,
लेकर निकलती है .
साँसों में बसा चंदन,खजाना रूप का लेकर
वो राहें भी महकती हैं,
जंहा से वो गुजरती है .
राधा सी लगती है,
कभी सीता सी लगती है .
जिसका प्यार मैं चाहूँ, सारी जिन्दगी भर को
वही प्रियतम वो लगती है
वही साथी वो लगती है .
थोड़ी सी सुलझी है.
वो लड़की जो ,मेरे दिल को ,चुरा के ले गयी यारों
पगली सी है थोड़ी,
थोड़ी सयानी है .
तितली सी है चंचल
फूलों सी कोमल है .
वो बोलती है जब,तो मुझको यूं लगता है
मन क़ी मेरी बगिया में
कोयल कूक भरती है .
ख़ामोशी में उसके
बादल उमड़ते हैं.
जितनी शरारत है,नजाकत भी है उतनी ही
बड़ी तो खूब है लेकिन,
वो गुडिया छोटी लगती है .
अदाएं चाँद क़ी सारी ,
लेकर निकलती है .
साँसों में बसा चंदन,खजाना रूप का लेकर
वो राहें भी महकती हैं,
जंहा से वो गुजरती है .
राधा सी लगती है,
कभी सीता सी लगती है .
जिसका प्यार मैं चाहूँ, सारी जिन्दगी भर को
वही प्रियतम वो लगती है
वही साथी वो लगती है .
Wednesday, 3 March 2010
रामदरश मिश्र
राम दरश मिश्र तो वैसे किसी परिचय के मोहताज नहीं है । फिर भी मै उनका परिचय देना चाहूँगी । मिश्र जी प्रेमचंदोत्तर युग के बहुमुखी प्रतिभा संपन्न कलाकार है ।
वे श्रमशक्ति के प्रतिक है । उनकी रचनाए आसाधरण पुरुषार्थ के मनोबल एवम अनुशासित कार्य प्रणाली का परिणाम है । एक मान्यता प्राप्त कवि होने के साथ - साथ एक बहुत अच्छे लेखक भी है ।
उनकी कहानिया और उपन्यास मै इतनी सचाई है कि उसे पढ़नेके बाद किसी भी इंशान का हिर्दय द्रवित हो जाय। उनका उपन्यास पानी के प्राचीर , जल टूटता हुआ और उनके कई उपन्यास है जिसे पढ़ने पर व्यक्ति मजबुर हो जाय सोचने पर कि हमारी गाँव की क्या हालत है। गाँव मे सुधार करने बहुत ही जरुरत है। मिश्र जी ने इतनी गंभीर समस्याओ को पाठको के समक्ष रखा है की शायद ही किसी का ध्यान उन समस्याओं पर जाय ।
वे श्रमशक्ति के प्रतिक है । उनकी रचनाए आसाधरण पुरुषार्थ के मनोबल एवम अनुशासित कार्य प्रणाली का परिणाम है । एक मान्यता प्राप्त कवि होने के साथ - साथ एक बहुत अच्छे लेखक भी है ।
उनकी कहानिया और उपन्यास मै इतनी सचाई है कि उसे पढ़नेके बाद किसी भी इंशान का हिर्दय द्रवित हो जाय। उनका उपन्यास पानी के प्राचीर , जल टूटता हुआ और उनके कई उपन्यास है जिसे पढ़ने पर व्यक्ति मजबुर हो जाय सोचने पर कि हमारी गाँव की क्या हालत है। गाँव मे सुधार करने बहुत ही जरुरत है। मिश्र जी ने इतनी गंभीर समस्याओ को पाठको के समक्ष रखा है की शायद ही किसी का ध्यान उन समस्याओं पर जाय ।
Tuesday, 2 March 2010
यादों के फूलों में चेहरा तेरा ,
यादों के फूलों में चेहरा तेरा ,
याद अब भी है तेरी धड़कन औ हसना तेरा ;
गुलाबी गालों की रंगत आखों में सपना सजा ,
पलकें आशा से खिली बातों में मोहब्बत घुली ,
महकते ख्वाबों की लचकन सुहानी रातों की धड़कन ;
वो अहसासों की तरन्नुम वो उमंगों की सरगम ,
नयनो की शिकायत आभासों के रेले ,
वो अरमानो की दुनिया सपनों के मेले ,
वो बंधन की राहें स्वच्छंदता के खेले ,
वो साँसों खुसबू ,बेखुदी में तुझे छुं ले ;
यादों के फूलों में चेहरा तेरा ,
तू ही बता तुझे यार हम कैसे भूले ?
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यादें,
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