उज़्बेकिस्तान में एक पार्क ऐसा भी है जो यहां के वरिष्ठ साहित्यकारों के नाम है। यहां उनकी मूर्तियां पूरे सम्मान से लगी हैं। अली शेर नवाई, ऑयबेक, अगाही, गफूर गुलाम और जुल्फियां की प्रतिमाएं आप यहां देख सकते हैं। इस तरह के पार्क पर कोई भी राष्ट्र गर्व कर सकता है। पार्क के बीचों बीच एक म्यूज़ियम भी है।
Tuesday, 22 October 2024
उज़्बेकिस्तान में एक पार्क ऐसा भी
Saturday, 12 October 2024
डॉ.मनीष कुमार मिश्रा संक्षिप्त परिचय 2024
नाम
: डॉ.मनीष कुमार मिश्रा
जन्म
: वसंत पंचमी 09 फरवरी 1981
शिक्षा
: मुंबई विद्यापीठ से MA हिंदी
(Gold medalist) वर्ष 2003,
B.Ed. वर्ष 2005, “कथाकार
अमरकांत : संवेदना और शिल्प” विषय पर डॉ. रामजी तिवारी के निर्देशन में वर्ष 2009 में PhD
, MBA (मानव संसाधन) वर्ष 2014,
MA English वर्ष
2018
संप्रति : विजिटिंग
प्रोफेसर, ताशकंद
स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़, उज्बेकिस्तान
के एम अग्रवाल महाविद्यालय (मुंबई विद्यापीठ से सम्बद्ध ) कल्याण पश्चिम ,महाराष्ट्र
में सहायक आचार्य हिन्दी विभाग
में 14 सितंबर 2010 से कार्यरत ।
सृजन :
·
राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पत्र – पत्रिकाओं /पुस्तकों इत्यादि में 80 से अधिक शोध आलेख प्रकाशित ।
·
250 से अधिक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों
/ वेबिनारों में सहभागिता ।
·
15 राष्ट्रीय – अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का संयोजक के
रूप में सफ़ल आयोजन ।
प्रकाशन :
·
हिंदी और अंग्रेजी की लगभग 42 पुस्तकों का संपादन ।
·
अमरकांत को पढ़ते हुए –
हिंदयुग्म नई दिल्ली से वर्ष 2014 में प्रकाशित ।
·
इस बार तुम्हारे शहर में – कविता संग्रह शब्दशृष्टि, नई दिल्ली से 2018 में प्रकाशित ।
·
अक्टूबर उस साल – कविता संग्रह शब्दशृष्टि, नई दिल्ली से 2019 में प्रकाशित ।
·
होश पर मलाल है - ग़ज़ल संग्रह, ऑथर्स
प्रेस, नई दिल्ली से 2024
में प्रकाशित ।
·
तेरे
अंजाम पे रोना आया - ठुमरी गायिकाओं पर केंद्रित आलेखों की पुस्तक ( सह लेखिका डॉ
उषा आलोक दुबे ), आर के पब्लिकेशन मुंबई द्वारा 2024 में प्रकाशित ।
सम्पर्क
:
·
https://onlinehindijournal.blogspot.com
91+ 9082556682, 8090100900
Sunday, 6 October 2024
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा उज़्बेकिस्तान में खोज रहे हैं हिंदी की नई बोलियां ।
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा उज़्बेकिस्तान में खोज रहे हैं हिंदी की नई बोलियां ।
माना जाता है कि दूसरी शताब्दी के आस पास कुछ घुमंतू जातियां मध्य एशिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका की तरफ गईं और अलग अलग स्थानों पर रहने लगीं । समय के साथ इन्होंने अपनी मूल भाषा को खो दिया और स्थानीय भाषाओं को बोलचाल के लिए स्वीकार कर लिया । इन्हें मूल रूप से जिप्सी कहा जाता है।
मध्य एशिया के देश उज़्बेकिस्तान में भी ऐसे कई समुदाय रहते हैं। इन लोगों को यहां स्थानीय उज़्बेक भाषा में लोले या लोली कहा जाता है। इनके बीच भी कई समुदाय हैं जैसे कि अफ़गान, मुल्तान, पारया, जोगी, मजांग, कव्वाल, चिश्तानी, सोहूतराश और मुगांत इत्यादि । ये सभी भारत से हैं या नहीं यह शोध का विषय है।
इस संबंध में विधिवत शोध कार्य न के बराबर हुए हैं। डॉ भोलानाथ तिवारी ने ताशकंद रहते हुए अफ़गान समूह की भाषा पर काम किया और उनकी भाषा को "ताजुज्बेकी" नाम देते हुए इसे हिंदी की एक नई बोली बताई । लेकिन वे लोले या जिप्सियों को इनसे अलग मानते हैं।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा इन दिनों ICCR हिन्दी चेयर पर उज़्बेकिस्तान में हैं और ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में हिंदी भाषा के विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। आप भारतीय दूतावास उज़्बेकिस्तान के सहयोग से इन समुदायों एवम इनकी भाषाओं का अध्ययन कर भारत से इनके संबंधों की पड़ताल कर रहे हैं। संभव है कि जल्द ही हिंदी की कुछ नई बोलियों का पता लगाने में वे सफल हो जाएं ।
Thursday, 3 October 2024
लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय : उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्यापन
लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय : उज़्बेकिस्तान में हिन्दी अध्यापन
अपने समय और
परिस्थितियों की विशेषता और विलक्षणता को समझना हमेशा ही भविष्य की राह आसान बनाता
है । ऐसे में वे राष्ट्र जो जनतांत्रिक
मूल्यों वाले समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा जो अपनी राष्ट्रीय एकता, अखंडता और संप्रभुता के प्रति दृढ़संकल्प होते, हुए
वैश्विक अर्थव्यवस्था और प्रगति के लिए निरंतर प्रयासरत है ;
उनमें भारत और उज्बेकिस्तान प्रमुखता से शामिल हैं । दोनों राष्ट्रो के साहित्यिक
मूल्यों में आपसदारी की बात करें तो उज़्बेकिस्तान में सन 1925 के आसपास रविंद्रनाथ
टैगोर की कहानियों एवं कविताओं का उज़्बेकी एवं रूसी भाषा में अनुवाद के माध्यम से
परिचय हुआ । सन 1940
से 1960 के बीच प्रेमचंद, मोहम्मद इकबाल, मिर्जा गालिब, अमृता प्रीतम और यशपाल की
रचनाएं यहां की भाषा में अनुवाद करके प्रकाशित की गयीं ।
अब तक अनुमानतः 30 से 35 भारतीय साहित्यकारों का
साहित्य उज़्बेकी भाषा में अनुवाद के माध्यम से पहुंच चुका है । अमृता प्रीतम ने कई
बार उज़्बेकिस्तान की यात्रा की । अमृता प्रीतम ने अपनी उज़्बेकिस्तान की यात्राओं
से संबंधित कुछ निबंध भी लिखे जो सन 1962
में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘अतीत की परछाइयां’ में संकलित हैं । सन 1978
में भारत के 30
लेखकों की कहानियों को उज़्बेकी में अनुवाद करके
पुस्तक के रूप में ताशकंद से प्रकाशित किया गया । भारत के संदर्भ में साहित्य रचनेवाले उज़्बेकी
साहित्यकारों में गफूर गुलाम, हमीद
गुलाम, अस्काद मुहतार, हमीद अलीमजान, मिरतेमीर, सईदा जुनुनोवा, एरकीन वहीदोवा और तमारा
खोदजाएवा का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है ।
ताशकंद के
लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय में प्रारंभिक शिक्षा के आधार पर हिंदी पढ़ाई
जाती
है
जिसकी
शुरूआत 1955 के आसपास हुई । पाठशाला क्रमांक 24/ मकतब 24 प्रसिद्ध लेखक दिमित्रोव के नाम से ताशकंद में शुरू
हुआ ।
सन
1972 में इसका नाम बदलकर लाल
बहादुर
शास्त्री विद्यालय किया गया। यहाँ
कक्षा 5 से ही हिन्दी का अध्यापन होता है । इस विद्यालय में लगभग 1400 विद्यार्थी
हैं जिनमें से लगभग 800 विद्यार्थी यहाँ
हिन्दी सीखते हैं । सिर्फ हिन्दी पढ़ाने के लिए यहाँ वर्तमान में 07
शिक्षक कार्यरत हैं । इस विद्यालय की वर्तमान डायरेक्टर नोसिरोवा दिलदोरा यहाँ की
हिन्दी शिक्षिका भी हैं । अन्य शिक्षकों में जोराइयेवा मोहब्बत, अब्दुर्राहमनोवा निगोरा, तोजीमुरुदोवा सुरइयो, तुर्दीओहूननोबा, कुरबानोवा ओजोदा और मिर्ज़ायूरादोवा मफ़ूजा शामिल हैं । लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय, ताशकंद संभवतः न केवल उज़्बेकिस्तान अपितु पूरे मध्य एशिया में
हिंदी अध्ययन अध्यापन का सबसे बड़ा केंद्र है ।
इस विद्यालय
के हिन्दी छात्रों
को हिंदी भाषा रुचिपुर्ण तरीके से सिखाने के लिए पाठ्य सामग्री को लगातार नए
स्वरूप में तैयार करने का कार्य चलता रहता है। नवीनतम
बदलाव वर्ष 2͏021 में किया गया ।
सभी कक्षाओं की (कक्षा 5 से 11 तक ) किताबों को बदलने͏ का का͏म स्कूल के͏ शिक्षकों
तथा ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीस्ज के वरिष्ठ इंडोलजिस्ट की मदद व
सुझाव से पाठ्य͏
पुस्तक समिति ने ͏कि͏या। इन
किताबों के प्रकाशन के लिए भी भारतीय दूतावास आर्थिक सहायता देता रहता है ।
विद्यालय के बायीं तरफ़ शास्त्री जी की विशाल
प्रतिमा लगी हुई है । इस प्रतिमा का अनावरण प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता राज कपूर ने 70
के दशक में की थी । उन दिनों हिन्दी के 35 से अधिक अध्यापक यहाँ कार्यरत थे । लाल
बहादुर शास्त्री संस्कृति केंद्र, भारतीय दूतावास की तरफ़
से यहाँ एक संग्रहालय कक्ष भी बनाया गया है । इस कक्ष में पुस्तकों, पत्रिकाओं
के साथ साथ भारतीय संस्कृति के प्रतीक चिन्हों के रूप में कई वस्तुओं को सँजोकर
रक्खा गया है । शास्त्री जी की एक प्रतिमा इस कक्ष में भी लगाई गयी है । इस
संग्रहालय कक्ष के लिए समय – समय पर कई भेंट वस्तुएं भारतीय दूतावास के माध्यम से
उपलब्ध कराई जाती है ।
स्वर्गीय लाल
बहादुर शास्त्री जी के पुत्र अनिल शास्त्री जी अपनी पत्नी के साथ इस विद्यालय में
आ चुके हैं । वे विद्यालय की व्यवस्था से बड़े प्रभावित भी हुए । विजिटर बुक में
उन्होने अपने हस्ताक्षर के साथ संदेश भी लिखा है । वे लिखते हैं कि ,’’मैं अपनी पत्नी मंजू के साथ लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय आया और बहुत
अच्छा लगा । स्कूल में बहुत सुधार है और मैं प्रधानाचार्य एवं प्रबंध समिति को
बधाई देता हूँ । यहाँ पर संग्रहालय से बहुत प्रभावित हूँ । आप ने शास्त्री जी की
स्मृति को बनाए रखने का बहुत अच्छा कार्य किया है । शास्त्री परिवार से किसी
प्रकार की सहायता चाहें तो बेझिझक मुझे या मंजू को बताएं ।“
समग्र रूप से हम यह कह
सकते हैं कि भारत और उज्बेकिस्तान विश्व के दो महान गणतंत्र हैं । 21वीं शती के
विश्वव्यापी मानवीय मूल्यों, शांति, स्थिरता, प्रगति और स्वतंत्रता के स्वप्न को साकार
करने में इन दोनों राष्ट्रों की भाषायी साझेदारी की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी । पूरे मध्य एशिया में हिंदी अध्ययन अध्यापन के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में लाल
बहादुर शास्त्री विद्यालय के अवदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा ।
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
विजिटिंग प्रोफ़ेसर – ICCR हिन्दी चेयर
ताशकंद, उज़्बेकिस्तान
Wednesday, 2 October 2024
शास्त्री कोचासी, ताशकंद ।
शास्त्री कोचासी, ताशकंद
।
आज़
02 अक्टूबर 2024 को
लाल बहादुर
शास्त्री जी की
जन्म जयंती पर
लाल बहादुर
शास्त्री जी के निशान
ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में
शास्त्री कोचासी
अर्थात
शास्त्री मार्ग/
सड़क
लाल बहादुर
शास्त्री स्कूल अर्थात
मकतब 24
और
लाल बहादुर
शास्त्री संस्कृति केन्द्र
के रूप में
सुरक्षित देख
इतिहास को
त्रासदी के आख्यान
के साथ साथ
वर्तमान की नींव
में भी पा रहा हूं ।
शास्त्री कोचासी पर
लगी
शास्त्री जी की
मूर्ति
आने जाने वालों से
तेज़ गति से भागती
गाड़ियों से
मानो कह रही हो कि
दुर्घटनाओं के मूल
में
अपनी असावधानी ही
कारण हो
यह ज़रूरी नहीं
बल्कि कई बार
हम दूसरों की
गलतियों का भी
अनायास दंड भोगते
हैं ।
कहीं पढ़ा था कि
लाल बहादुर
शास्त्री स्कूल
अर्थात मकतब 24 में लगी
शास्त्री जी की
भव्य मूर्ति का अनावरण
फिल्म अभिनेता राज
कपूर ने
सन 1974 में किया था
इसी विद्यालय में
हिंदी सीख रहे बच्चे
शास्त्री जी की
प्रतिमा के पास
शायद कभी गुनगुना
भी देते हों
राज कपूर का
मशहूर फिल्मी गीत
सब कुछ सीखा
हमने.........।
लाल बहादुर
शास्त्री संस्कृति केन्द्र में भी
शास्त्री जी की
प्रतिमा है
जहां से
दो राष्ट्रों के
मैत्री पूर्ण संबंधों को
साहित्यिक, सांस्कृतिक आयोजनों
द्वारा
लगातार निखारा जा
रहा है
क्योंकि संबंधों के
ताने बाने में
अविश्वास की गांठ
अच्छी नहीं होती ।
आज़ादी के इस अमृत
काल में
मैं शास्त्री जी को
ताशकंद से
उस नीलकंठ के रूप
में भी
याद करता हूं
जो सशक्त भारत की
नींव का
एक अविस्मरणीय
योद्धा है ।
डॉ मनीष कुमार
मिश्रा
विजिटिंग प्रोफेसर
(ICCR हिंदी चेयर )
ताशकंद स्टेट
यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज
ताशकंद, उज़्बेकिस्तान।
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