Tuesday, 28 April 2015

कुछ था कि जो



होकर ही महसूस किया
न होने के फ़लसफ़े को
और यह भी कि
तुम आवेग के आगे
प्रेम के आगे 
अपनी मतलब परस्ती के बाद
टूंट की गूँज के बाद
बिना किसी अपराध बोध के
जब कभी फ़िर
चाहोगी तो
वो सब पुराना
पहले से कंही जादा
नया और चटक होकर
मिलेगा फ़िर तुम्हें
बिना किसी शिकायत के
तुम में डूबा हुआ
तुमसे ही पूरा हुआ
वो सब
जो बिखरा पड़ा है
टूटा और बेकार सा
उसी किसी कोने में
जहाँ कि
तुम लौटो कभी
या कि फ़िर पल दो पल
चाहो रुकना
खेलना
तोड़ना
या डूबना
ताकि उबर सको
मुस्कुरा सको
और कह सको कि
तुम्हें ज़रुरत तो नहीं थी पर
कुछ था कि जो
हो जाता तो
बेहतर था ।
सोचता हूँ
यह क्या था ?
यह क्या है ?
जो मेरे अंदर
तुम्हारे होने न होने से
परे है
लेकिन है
तुम्हारे लिये ही
जब कि तुम्हें
ज़रूरत नहीं है
और
कोई शिकायत भी नहीं ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा

Saturday, 18 April 2015

होकर औरत ही

धूप सी सुनहली 
गर्म और बिखरी हुई 
सर्दियों सी कपकपाती 
ठिठुरती और सिमटी हुई 
बारिश की बूंदों सी टिपटिपाती
बरसती और भिगोती हुई
रात सी ख़ामोश
दिन के कोलाहल से भरी हुई
सीधी और सरल सी
नरम गरम और पथराई हुई
ज़िन्दगी सी
उलझी हुई
तुम जो सुलझाती हो
वो गाँठें
ख़ुद को बांधे
इतने बंधनों में
इतने जतन से
सालों
शताब्दियों
सहस्त्राब्दियों से
तुम
औरत होकर भी
नहीं नहीं
तुम औरत हो
और
होकर औरत ही
तुम कर सकती हो
वह सब
जिनके होने से ही
होने का कुछ अर्थ है
अन्यथा
जो भी है
सब का सब
व्यर्थ है ।
----- मनीष

How to earn money by blogging

ChatGPT said: Earning money through blogging can be quite rewarding if done right! Here’s a step-by-step guide to help you understand how to...