Friday, 27 February 2009
क्यो होता है प्यार ?
१-प्यार बता के नही होता ।
२-यह दिमाक से नही दिल से होता है ।
३-मै प्यार करना नही चाहता था /थी पर हो गया
४-प्यार खुदा/इश्वर की इनायत है ।
इसी तरह की अनेको बातो से आप को टाल दिया जाता है । लेकिन सच्चाई इन सब बातो से कोसो दूर है । दरअसल प्यार का दिल से कुछ लेना -देना नही है । यह सब हमारे मनोविज्ञान और शारीरिक-मानसिक प्रवित्ति का एक हिस्सा है । यह बात विज्ञानं के शोध मे भी साबित हो चुकी है ।
मनुष्य के रूप मे अपना सामाजिक जीवन जीते हुए, हम बहुत से कार्य ना चाहते हुऐ भी करते हैं । हम कई तरह के समझोते भी करते हैं । व्यवहार मे आडम्बर ,ओपचारिकता और ऐसी ही अनेकों बातो का घाल -मेल बढ़ता जाता है । ऐसे मे हमारी हालत उस मकडी की तरह हो जाती है जो अपने ही बनाये जाल मे फस कर मरने लगती है । ऐसे मे हमे एक तरह की मानसिक विश्रांती की आवश्यकता होती है । किसी के स्नेह और विशवास की आवश्यकता होती है । अपनी पूरी वास्तविकता के साथ किसी के सामने प्रस्तुत होने का मन होता है । मन होता है की कोई हमे हमारी पूरी कमियों के साथ स्वीकार कर ले । कोई हो जिसके लिये मुझसे जादा महत्वपूर्ण और कुछ ना हो ।
तो जब मन चाहता है तो हम अपने आस पास से ही किसी को चुन कर उसे अपने प्यार के काबिल बना लेते हैं .
Wednesday, 25 February 2009
सीख
कभी-कभी इसका कारण बड़ा अजीब सा होता है , जैसे की साथ काम करने वालों के साथ उनका बनकर रहने की मजबूरी । मसलन अगर सभी क्लास मे देरी से जाते हैं तो यह आप की नैतिक जिम्मेदारी हो जाती है की आप भी उन्ही की तरह आचरण करें । अन्यथा ''अलग करने '' के चक्कर मे आप ही सबसे अलग कर दिये जायेंगे । और इस तरह का अलगाव बड़ा ही कस्टप्रद होता है .अतः ''जन्हा रहो सब का बन कर रहो ''यह बहुत जरूरी है । दूसरा कारन यह भी है की आज शिक्षको की हालत सरकारी नियमो की वजह say और bigdi है ।
अगर महाराष्ट्र की बात karoo to आप को जानकर aaschary हो ga की yanha
thaika padhati pay sikshako say काम लिया जाता है । इस कारण यह उसकी भी मजबूरी है की वह एक say अधिक जगहों pay काम karay और आमदनी के vaikalpik rasto की talaas karai ।
to बात यहाँ say shoroo हुई थी की मैं क्लास may dair say pahucha । गाँधी जी के sansmaran का एक paath padhanay लगा । jismay way एक dair say aanay wakai adhyaapak को samjhatai हैं की उसकी dari के कारण देश कितना peechay हो जा reha है। जब paath khatm हुआ to एक लड़की nay dhheray say कहा -sir आप भी dair say aayain हैं ।
मैं ander ही ander kafi sarminda हुआ । और उस दिन say मैं nai यह tain किया की मैं अब कभी भी dari say क्लास may नही jaoonga । उस paath nay bachho के साथ -साथ mujhai भी एक nai seekh दी ।
यही थी mari seekh -------------------------------------
Saturday, 21 February 2009
हास्य सम्राट सुनील सावरा
majak aur baba ramdev
pichlay dino jab unsay mila to mujhsai bolay-aaj kal kya kar rehai ho ?
mai bola-baba vahi logo ko hasanay ka kaam.
baba bolay beta pranayam shuroo kar do ,nahi to log tumhai sun kar nahi dekh kar hasayin gai.
?
Friday, 13 February 2009
Just to say a 'HI!!!'
Thanks to Manish, for inviting me as an Author on this Blog.
Thursday, 12 February 2009
वैलेंटाइन डे और डॉ.विद्यानिवास मिश्र ----------------------
वहा पे डॉ वीद्याबिंदु सिंह के यहाँ रुका था । विद्या दीदी मुझपे अपार स्नेह रखती हैं । मै अपना शोध कार्य भी उन्ही के साहित्य पे करना चाहता था । पंडित जी (डॉ.विद्यानिवास मिश्र ) भी मरे शोध कार्य से खुश थे। १४ फ़रवरी को मैने अपना विषय शोध समिति के सामने प्रस्तुत किया। विषय स्वीकार भी हो गया । मैं सोच रहा था की जल्दी से यह खबर विद्यादिदी को बता दूँ ।
मैं शाम को जब दीदी के घर आया तो ,सब लोग खामोश थे .दीदी अपने रूम मे रो रही थी । मेरी समझ मे कुछ नही आ रहा था । फ़िर किसी ने बताया की पंडित जी का रोड एक्सीडेंट हो गया ,और वे अब नही रहे ।
यह सुन कर मैं हतप्रभ रह गया .------------------------------आज २००९ ,१४ फ़रवरी को मैं अपना शोध कार्य पूरा कर चुका हूँ । मुंबई विश्विद्यालय से अमरकांत के कथा साहित्य पे । लेकिन जब भी यह १४ फ़रवरी आती है तो पंडित जी का चेहरा आँखों के सामने आ जाता है । सायद इस लिये भी की वो ख़ुद एक संत थे । दीदी ने बताया था की सफ़र में-------JAB KABHI PANDIT JI KO KOI PURANA पेड दिखाई देता वो उसके पास जाते उस पेड से लिपट कर उसे उसकी सेवा के लिये धन्यवाद देते । Aउर उसके प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करते ।
पंडित जी का यह प्रेम का संदेश हम सभी को समझना होगा ।
Sunday, 8 February 2009
भारतीय भाषावों का ग़ज़ल संस्करण -------------

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