Saturday, 12 October 2024

डॉ.मनीष कुमार मिश्रा संक्षिप्त परिचय 2024

 














नाम :  डॉ.मनीष कुमार मिश्रा

जन्म : वसंत पंचमी 09 फरवरी 1981

शिक्षा : मुंबई विद्यापीठ से MA हिंदी (Gold medalist) वर्ष 2003, B.Ed. वर्ष 2005, “कथाकार अमरकांत : संवेदना और शिल्पविषय पर डॉ. रामजी तिवारी के निर्देशन में वर्ष 2009 में PhD ,  MBA (मानव संसाधन) वर्ष 2014, MA English वर्ष 2018

संप्रति :  विजिटिंग प्रोफेसर, ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज़, उज्बेकिस्तान  

                 के एम अग्रवाल महाविद्यालय (मुंबई विद्यापीठ से सम्बद्ध ) कल्याण पश्चिम ,महाराष्ट्र में सहायक आचार्य हिन्दी विभाग में 14 सितंबर 2010 से कार्यरत ।

सृजन :

·         राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं /पुस्तकों इत्यादि में 80 से अधिक शोध आलेख प्रकाशित ।

·         250 से अधिक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों / वेबिनारों में सहभागिता ।

·         15 राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का संयोजक के रूप में सफ़ल आयोजन ।

 

प्रकाशन :

·         हिंदी और अंग्रेजी की लगभग 42 पुस्तकों का संपादन ।

·         अमरकांत को पढ़ते हुए   हिंदयुग्म नई दिल्ली से वर्ष 2014 में प्रकाशित । 

·         इस बार तुम्हारे शहर में कविता संग्रह शब्दशृष्टि, नई दिल्ली से 2018 में प्रकाशित ।

·         अक्टूबर उस साल कविता संग्रह शब्दशृष्टि, नई दिल्ली से 2019 में प्रकाशित ।

·         होश पर मलाल है - ग़ज़ल संग्रह, ऑथर्स प्रेस, नई दिल्ली से 2024 में प्रकाशित ।

·         तेरे अंजाम पे रोना आया - ठुमरी गायिकाओं पर केंद्रित आलेखों की पुस्तक ( सह लेखिका डॉ उषा आलोक दुबे ), आर के पब्लिकेशन मुंबई द्वारा 2024 में प्रकाशित 

सम्पर्क :     

·         manishmuntazir@gmail.com

·         https://onlinehindijournal.blogspot.com

91+ 9082556682, 8090100900

 


Sunday, 6 October 2024

डॉ. मनीष कुमार मिश्रा उज़्बेकिस्तान में खोज रहे हैं हिंदी की नई बोलियां ।

 











डॉ. मनीष कुमार मिश्रा उज़्बेकिस्तान में खोज रहे हैं हिंदी की नई बोलियां ।

माना जाता है कि दूसरी शताब्दी के आस पास कुछ घुमंतू जातियां मध्य एशिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका की तरफ गईं और अलग अलग स्थानों पर रहने लगीं । समय के साथ इन्होंने अपनी मूल भाषा को खो दिया और स्थानीय भाषाओं को बोलचाल के लिए स्वीकार कर लिया । इन्हें मूल रूप से जिप्सी कहा जाता है।

मध्य एशिया के देश उज़्बेकिस्तान में भी ऐसे कई समुदाय रहते हैं। इन लोगों को यहां स्थानीय उज़्बेक भाषा में लोले या लोली कहा जाता है। इनके बीच भी कई समुदाय हैं जैसे कि अफ़गान, मुल्तान, पारया, जोगी, मजांग, कव्वाल, चिश्तानी, सोहूतराश और मुगांत इत्यादि । ये सभी भारत से हैं या नहीं यह शोध का विषय है। 

इस संबंध में विधिवत शोध कार्य न के बराबर हुए हैं। डॉ भोलानाथ तिवारी ने ताशकंद रहते हुए अफ़गान समूह की भाषा पर काम किया और उनकी भाषा को "ताजुज्बेकी" नाम देते हुए इसे हिंदी की एक नई बोली बताई । लेकिन वे लोले या जिप्सियों को इनसे अलग मानते हैं।

डॉ मनीष कुमार मिश्रा इन दिनों ICCR हिन्दी चेयर पर उज़्बेकिस्तान में हैं और ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में हिंदी भाषा के विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं। आप भारतीय दूतावास उज़्बेकिस्तान के सहयोग से इन समुदायों एवम इनकी भाषाओं का अध्ययन कर भारत से इनके संबंधों की पड़ताल कर रहे हैं। संभव है कि जल्द ही हिंदी की कुछ नई बोलियों का पता लगाने में वे सफल हो जाएं ।

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