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Thursday 24 December 2009

अभी मेरी चाहत का भावावेश बाकी है /

अनजान राहें न थीं ,
अजनबी बाहें न थीं ;
सिमट न सकी वो मेरे सिने में ,
मोहब्बत की उसमे चाहें न थीं /

बदन की प्यास न थी ,
उपेच्छा की आस न थी ,
मोहब्बत से कब इनकार था मुझको ,
उनसे दुरी काश न थीं /

अभी रोष बाकी है ,
अभी तो होश में हूँ मगर ,
प्यार का जोश बाकी है ;
चाहता हूँ बाँहों में भर सिने से लगा लूँ ,
अभी मेरे इश्क का आवेश बाकी है ,
ये यार मेरे अभी इश्क का उदघोष बाकी है ,
आखों में आंसू दिल में दर्द ,
अभी मेरी चाहत का भावावेश बाकी है /

Wednesday 23 December 2009

सजे हो महफ़िल में आखों में चमक नहीं /

सजे हो महफ़िल में आखों में चमक नहीं ,
हँसता चेहरा खिलती बातें पर वो मुस्कान नहीं ;
घूम रही है तू इठला के पर गुमान नहीं ,
क्या उलझन है तेरे दिल की ,
क्यूँ तेरा मन शांत नहीं /
तेरी खनकती आवाजों को सब तेरी खुशियाँ मान रहे ,
बदन थिरकता तेरा धुनों पे सब सुखी तुझे जान रहे ;
तेरी आभा जो खोयी है वो नहीं जान रहे ,
जो कहना चाहो कह दो मुझसे क्या बिखरा क्या खोया है ,
क्यूँ खुशियाँ दिल में नहीं तेरे जो तुने चेहरे पे बिखरा है ;
क्या यादों का साथ अभी है ,
क्या ह्रदय में घाव अभी है ,
क्या सब हो के भी कुछ खलता है ,
क्या प्यार तेरा अब भी जलता है ;
क्यूँ त्योहारों पे उमंगें उमंगें छाती है ,
क्यूँ फिर भी आखें नहीं हंस पाती हैं /
अब राहों पे रुकना कैसा ,
अब चाहों से हटना कैसा ,
ह्रदय है हावी तो दिल की सुनो ,
अब क्यूँ घुटना क्यूँ मुड़ के देखना ;
अब है रिश्तों को अपने ढंग से जीना /
कुछ तकलीफे कुछ खुशियाँ होंगी ,
पर वो तेरी अपनी होंगी /
-- - -- - - पर वो तेरी अपनी होंगी /

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लिप्त हैं वो अभिसार में ,

खोये हैं वो इक दूजे के प्यार में ;

ओठ पी रहे ओठों की मदिरा ,

चंचल मान और काम का कोहरा ;

मचल रहा बदन बदन के प्यास से ,

चहक रहा तन तन के साथ से,

चन्दन सा घर्षण मेंहंदी सी खुसबू ,

उत्तेजित काया मन बेकाबू ,

कम्पित उच्च उरोजों का वो मर्दन ,

चूमता बदन और हर्ष का क्रन्दन ,

उफनती सांसों का महकता गुंजन ,

दुनिया से अनजान पलों में ,

स्वर्गिक वो तनों का मंथन ,

कितना भींच सको अपने में ,

कितना दैविक वो छनों का बंधन ,

भावों की वो चरमानुभुती है ,

प्रेमोत्सव की परिणिति है ;

प्यार सिर्फ अभिसार की राह नहीं है यारों ,

पर प्यार की ही ये भी इक प्रीती है ,

प्यार का बंधन तन मन का आलिंगन ,

कितनी दिव्य ये भी इक रीती है /

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क्या वक़्त था वो भी ,क्या समय था वो भी ,

वो मुझपे मरती थी मै कितना डरता था ;

नजरें जब भी उनसे मिलती थी ,

पलकें पहले मेरी झुकतीं थी ,

पास जो आके वो इतराती ,

मेरी हालत पतली हो जाती ,

बात वो करती जब अदा से ,

कम्पित तन मन थर -थर करता ,

बदन कभी जब बदन से लगता ,

दिल मेरा धक् -धक् सा करता ,

मुस्काती थी तब वो खुल के ,

मै पत्थर का बुत बन जाता ,

हफ्ते बीते ,बीते मौसम ,

बदला साल महीने बीते ,

पता नहीं कब मैंने हाथ वो पकड़ा ,

कब उसने बंधन में जकड़ा ,

कब डूबा उसकी बातों में ,

कब खोया उसकी आखों में ,

वक़्त उड़ा फिर ,नहीं पता चला फिर ,

कब उसकी मगनी कब शादी बीती ,

असहाय हुआ मूक बना कब ,

क्यूँ उसने नहीं मुझको बोला ,

आखों में खालीपन लिए मै डोला ,

अब सिने को सिने की बारी थी ,

अब नए जीवन से लड़ने की तैयारी थी ,

नयी राह पे फिर मैं निकला ,

फिर जीवन को जीने की ठानी थी /

Sunday 20 December 2009

आहत मन को प्यार से जीतो /

आहत मन को प्यार से जीतो ,

जजबातों को भाव से जीतो ;

कठिन समय को सब्र से जीतो ,

जीवन को तुम कर्म से जीतो /

दुविधावों को धर्म से परखो ,

रिश्तों को तुम मर्म से परखो ;

अभावों से जूझना सीखो ;

खुद पे तुम हँसना सीखो /

राहें तेरी राह तकेंगी ,

मंजिल तेरा मान करेगी ,

कठिनाई में अपनो को जीतो ,

अच्छाई में सबको पूंछों /

करुणा मत खोना तुम कभी ,

अभिमान सजोना ना तुम कभी ;

नम्रता गुण है अच्छायी का ;

झुकना आभूषण है ऊँचाई का /

अपने मन पे राज करो तुम ,

माया पे अधिकार करो तुम ;

सत से ना तुम पीछे हटना ;

ना अपना ना दूजा तू करना /

आ इक दूजे के सपने जिए हम /

आहत हूँ क्यूँ व्यवहार पे उनके ,
चाहा था इसी चाल पे उनके ,
मचल उठती थी धड़कने उनकी अदाओं पे ,
क्यूँ चाहता हूँ वो बदले मेरी बातों पे ;

आवारापन मेरी सोचों का जो तुझे भाया था ,
मेरी जिस बेफक्री ने तुझे रिझाया था ,
मेरी ख़ामोशी जो तुझे लुभाती थी ,
क्यूँ मेरी वो आदतें तुझे खिजाती है ;

आ खोजे इक दूजे को हम नयी पनाहों में ,
समझे हालातों संग ढलना नयी फिजाओं में ,
बदले तौर तरीके पर खुद को ना खोये हम ,
आ इक दूजे के सपने जिए हम /

अभिलाषा १०१ ------------------------------------------------------


 
माना की हो दूर तुम लेकिन, 
   दिल से दूर कंहा हो मेरे ?

 आंखे बंद कर देख लिया,
 चाहा जब भी  तुम्हे प्रिये . 





  
 


                



    

                                                                                         --------अभिलाषा  १०१  

Saturday 19 December 2009

कभी तो चाहत को आवाज दे देते /

कभी तो चाहत को आवाज दे देते ,
कभी तो सपनों का साथ दे देते ;
प्यार पे बस नहीं सच है मगर ;
कभी तो इरादों को आधार दे देते ;
लबों की लालिमा बडाना है ,
बदन को होठों से सजाना है ;
भींच ले वो मुझे अपने सिने में ,
उनके अहसासों को ऐसे मनाना है /

अजीब इश्क था

अधखुली आखों से अनकहे भावों से ,
चाहा था उसने असमर्थ इरादों से ;

दूर हुआ नहीं पास गया नहीं ,
इज़हार हुआ नहीं इकरार किया नहीं ;

अजीब इश्क था ,
दिल से गया नहीं धडकनों में बसा नहीं /

Thursday 17 December 2009

उस दिन /

मैंने बाल कटाया उस दिन ,
जुल्फों को रंगवाया उस दिन ;
चेहरे को massage कराया उस दिन ,
कितनी देर नहाया उस दिन /
शम्पू से बालों को धोया ,
बॉडी वाश से बदन भिगोया ;
mainicure कराया उस दिन ;
padicure कराया उस दिन ;
चेहरे पे moisture लगाया ,
तन को deo से महकाया ;
मोज़े में भी scent लगाया ,
mouth freshner से मुंह गरगलाया ;
मन कितना हर्षित था उस दिन ,
तन कितना पुलकित था उस दिन ;
उनसे मिलने की जल्दी थी मुझको ,
आखों में भरना था उनको ;
उनकी बातों में रमना था उस दिन,
उनको बाँहों में भरना था उस दिन ;
भाव मेरे खिले हुए थे ;
सपने आखों में घुले हुए थे ;
तैयार हुआ सज धज के उस दिन ;
तभी रिंग बजी ``आज नहीं किसी और दिन ``
मुझको बोला ऐसा वो उस दिन ;
एक निराशा दिल में छाई ,
आखों में नमी थी आई ,
ना घर में ना बाहर रह पाता ,
ना हंस ना ही रो पाता ;
क्या बीती थी मुझपे उस दिन ;
क्या सोचा क्या हुआ था उस दिन /

Wednesday 16 December 2009

सरल सहज साधारण सपनों का साथ लिए /

सरल सहज साधारण सपनों का साथ लिए ,
सुन्दर सीधी साथी के सांसों का भान लिए ;
सम्यक ,संकुचित सतही सा ज्ञान लिए ,
मै निकला था जीवन की राहों में ,
अपने और घरवालों का अरमान लिए /

राहों में उलझा ,बातों में खीझा ,
भटका सालों फिर भी जीवन ना सुलझा ;
हार ना मानी जीत ना जानी ,
तकलीफें आयीं , मुश्किल झायी ,
हिम्मत ना हारी मै ना पलटा ,
चंचलता आयी ,माया ने माया फैलाई ;
मन भरमाया ,तन छितराया ,
भावों ने टोका ,राहों पे लौटा ;

सरल सहज साधारण सपनों का साथ लिए ,
सुन्दर सीधी साथी के सांसों का भान लिए ;
सम्यक ,संकुचित सतही सा ज्ञान लिए ,
मै निकला था जीवन की राहों में ,
अपने और घरवालों का अरमान लिए
/


अपनो के प्यार ने वर्षों को आसान किये ,
आशीर्वाद और आशीष ने मंजिल तक की रह दिए ;
माँ के भावों ने हरदम मुझे संजोये रक्खा ,
भाई बहनों कितने ही अपनो की दुआओं ने भटकाव को रोका ;
साथी तेरे प्यार ने कितने ही पल आसान किये ;
रुका नहीं हूँ अब भी मै तो पर चलता हूँ संज्ञान लिए, ,
बाँहों में सीखा ,राहों में सीखा और सीखा अभावों में
गिर के सीखा लड़ के सीखा और सीखा स्वभावों में ,
ममता से सीखा ,स्नेह से सीखा और सीखा बंधुत्व से ,
दुश्मन से सीखा ,चिलमन से सीखा और सीखा सदभाव से ;
यारी से सीखा तीमारदारी से सीखा और सीखा सरदारी से ;
भाग्य से सीखा अभाग्य से सीखा और सीखा खुद्दारी से ;
पास नहीं है मंजिल फिर भी, पर अब वो दूर नहीं है ;
साथ अभी भी है सब अपनो का ,जहाँ में इससे बढकर ख़ुशी नहीं है ;
राहों में चलने की हैं खुशियाँ मंजिल तो पल भर की है ;
नयी तलाश नयी मंजिले फिर बनती हैं खुशियाँ तो जीने में है /

सरल सहज साधारण सपनों का साथ लिए ,
सुन्दर सीधी साथी के सांसों का भान लिए ;
सम्यक ,संकुचित सतही सा ज्ञान लिए ,
मै निकला था जीवन की राहों में ,
अपने और घरवालों का अरमान लिए /

Monday 14 December 2009

भूत तो इतिहास है ,आज कहाँ तेरा साथ है ;

न आस हो न प्यास हो न झुलाता विश्वास हो ;

न प्यास हो ,न विलास हो पर जीवन की साँस हो ;

वक्त ना धूमिल कर सके समय साथ जो चल सके ;

व्यक्त तो हुआ नही पर अव्यक्त जो न रह सके ;

दुरी जिसे न मोड़ सके तकलीफे जिसे न तोड़ सके ;

वो मेरा अहसास हो ,तुम वही मेरा प्यार हो /

भाग्य में है क्या ,क्या पता ;

राह में है क्या , क्या पता ;

भाव में है क्या , क्या पता ;

भूत तो इतिहास है ,आज कहाँ तेरा साथ है ;

भविष्य में है क्या ,क्या पता ?

दिल से मोहब्बत जाती नही ,

प्यार को दूरी भाती नहीं ;

बाँहों में भींच लेना अपने सपनों में तू मुझे ;

मुझे आज कल नीद आती नही /

जीवन की उलझनों में उलझाना क्या ;

रिश्ते के भ्रमो में भटकना क्या ;

ह्रदय की गहराइयों में झाक के देखो ;

प्यार के रिश्ते में झगड़ना क्या ?

Sunday 13 December 2009

तो कोई बात न थी /

तेरे बुलावे का इंतजार करता रह गया ,

सपनों को ख्वाब करता रह गया ;

दिल आखों से ना बह जाए कहीं ,

मै जजबातों पे इख़्तियार करता रह गया /

उनमे अहसास ना होता तो कोई बात न थी ,

उन्हें प्यार ना होता तो कोई बात न थी ;

रवायतों जिंदगी की कवायतों ने उन्हें थाम लिया ,

तेरी तमन्नाओं की फरियाद होती तो कोई बात न थी /

आशाओं के तिनके ने मुझे थाम लिया ,

हताशा टूट भी जाती तो कोई बात न थी /

मैं ना का इंतजार करता रह गया ;

तू मेरी मौत पे भी ना आती तो कोई बात न थी /

Thursday 10 December 2009

कहाँ सोचा था /

हर साँस का जिनके पता होता था ,

हर चाह पे जिनकी अमल होता था ;

धड़कने जिनकी चलती थी मेरे सिने में ;

हो जाएगा अनजान कहाँ सोचा था /

इंतजार करती थी कभी आखें उनकी,

पुकारती थी कभी बाहें उनकी ;

हर्षित हो जाती मुझे देख उमंगें उनकी ;

हो जाएँगी उनकी बातें अनजान कहाँ सोचा था /

हर मुलाकात नया असर देती थी ,

हर बात नया हर्ष देती थी ;

हर अदा एक सपना सजा देती थी ;

बेखबर रहेंगे वो हमसे कहाँ सोचा था /

Sunday 29 November 2009

मेरी इक बात पे इक बात वो बोला ,[२]

मेरी इक बात पे इक बात वो बोला ,

क्या बात थी वो जो बात वो बोला !

न जजबात हों काबू तो न कोई बात बोलो तुम ;

जो हो अनिश्चित तो न तकरार बोलो तुम ;

मेरी इक बात पे इक बात वो बोला ,
क्या बात थी वो जो बात वो बोला !

भावों की हो उलझन तो न इकरार बोलो तुम ;

गुस्सा भी गर आए तो मुस्कराके बोलो तुम ;

मेरी इक बात पे इक बात वो बोला ,

क्या बात थी वो जो बात वो बोला !

इक बात पे मेरी इक बात वो बोला ,

इक बात पे मेरी इक बात वो बोला ,
क्या बात थी वो जो बात वो बोला !
न हर इक बात बोलो तुम ,
न कोई राज खोलो तुम ;
मगर हो कोई इक खास ,
जिसे हर बात बोलो तुम ;
इक बात पे मेरी इक बात वो बोला ,
क्या बात थी वो जो बात वो बोला !

Saturday 21 November 2009

जो तू स्वीकार ना कर सकी वो तेरा अतीत हूँ /

अज्ञात हूँ,अधातु हूँ ,अनियमित हूँ,अपरिमित हूँ ;
जिसे तू न सहेज सकी वो तेरी ही असहमति हूँ /

अनुकम्पा हूँ,अनुसंशा हूँ ,अस्वीकार्य हूँ,अपरिहार्य हूँ ;
जिसे ना तू जीत सकी वो तेरा अहंकार हूँ /

आचरण हूँ ,आवरण हूँ ,अकारण हूँ, असाधारण हूँ ;
जिससे तू ना बच सकी वो तेरा ही अनुकरण हूँ /
अर्ध्य हूँ ,अवध्य हूँ ,अमूर्त हूँ ,अवधूत हूँ ;
जिसे तू ना समझ सकी वो तेरी ही अनुभूति हूँ /
आमंत्रित हूँ ,अनियंत्रित हूँ ,अविरक्त ,अशक्त हूँ ;
जिसे तू ना कह सकी वो तेरी अभिव्यक्ति हूँ /
अधीर हूँ ,आखिर हूँ ,अकांछा हूँ ,अपेछा हूँ ;
जिसे तू ना त्याज सकी वो तेरी अनिच्छा हूँ /
अमान्य हूँ ,अवमान्य हूँ ,अरीती हूँ ,अप्रिती हूँ ;
जो तू स्वीकार ना कर सकी वो तेरा अतीत हूँ /

Monday 16 November 2009

दिल से निकल पलकों पे सजा लिया तुने /

१ मेरी बाँहों की चाह तुझे अब भी होगी यूँ ही कभी ;
मैं भी अपनो की निगाहों में होता था यूँ ही कभी ;
आज किसी और की आगोश में तुझे सुख मिलाता है ;
तेरी बाँहों में मैं भी खिलता था यूँ ही कभी /

2 दिल से निकल पलकों पे सजा लिया तुने ,
मुझसे वफ़ा ना करते मेरी वफ़ा को क्यूँ सजा दिया तुने /

3 तेरी बेवफाई से शिकायत कैसी ,
कभी मैंने भी बेवफाई की होगी ;
गम तो सिर्फ़ इतना है मेरे सच को छोड़ ;
तुने झूठों की सफाई दी होगी /

4 दिल से निकल पलकों पे सजा लिया तुने ,
मुझसे वफ़ा ना करते मेरी वफ़ा को क्यूँ सजा दिया तुने /

Sunday 15 November 2009

अज्ञात की तलाश है ,अज्ञान का ही वास है ;

अज्ञात की तलाश है ,
अज्ञान का ही वास है ;
खुदा कहूँ ईश्वर कहूँ आज कल God का रिवाज है ;
धर्म पे है वाद अब भी ,भाषा का विवाद अब भी ;
भूख तो बिखरी पड़ी है ,आस तो उघडी खडी है;
अज्ञात की तलाश है ,अज्ञान का ही वास है ;
रोजी पे लड़ते हैं हम छेत्र के नाम पे ,
घर में दुबक जातें हैं कुछ उद्दंडों के काम पे ;
गाँधी को लड़ाते हैं हम, कभी भगत कभी आजाद से ;
कभी आम्बेडकर को बनाते हैं खुदा जाती के नाम से /
अज्ञात की तलाश है ,अज्ञान का ही वास है ;
कर्ण है महान क्यूंकि सच का साथ ना दे सका ,
अर्जुन ना चडा जुबान पे क्यूंकि वो बुरा ना हो सका ;
अहंकारी ,असंयमित हम खुद हैं कमियां दूजे की ढूंढ़ रहे ,
जो ना हुआ देश का वो कब किसी का हो सका /
अज्ञात की तलाश है ,अज्ञान का ही वास है ;

Saturday 14 November 2009

मेरी मोहब्बत को मेरी कमजोरी ना समझ /

मेरी मोहब्बत को मेरी कमजोरी ना समझ ,

मेरी चाहत को मेरी खुदगर्जी ना समझ ,

मेरी अंदाजे बेफिक्री को बेवफाई ना समझ ;

मेरे आखों के आंसू को दुहाई न समझ /

कब चाहा की तेरे आखों में आंसू आए ;

मेरे इश्क को मेरी गुस्ताखी ना समझ ;

तेरी मुस्कराहट के लिए ख़ुद को मिटा दू मैं ;

मेरे जजबातों को बेकाफी ना समझ ;

मेरी नाराजगी को भले तू ना वाजिब माने ;

मेरे प्यार को व्यर्थ की नुमाइश ना समझ /

भले तेरे रिश्ते का मुझे तू साहिल ना बना ,

मैं इश्क ना निभा पायूँगा ऐसा काहिल ना समझ ;

मेरे जीने की वजह मेरे दिल की दुआ तू है ;

मेरी मोहब्बत को तू नाकाबिल ना समझ /

Friday 13 November 2009

चलो इक बार फिर से अपनी दुनिया बसा ले हम ,

चलो इक बार फिर से अपनी दुनिया बसा ले हम ,
मेरी बातों को तुम समझो तेरी राहों को मै जानू ;
मेरे भावों को तुम जानो तेरे सपनों को मै मानू ;
मेरे अरमाँ को तुम जिओं तेरी सोचों को मै मानू '
चलो इक बार फिर से अपनी दुनिया बसा ले हम ,
खो के इक-दूजे में अपने ख्वाबों को सच कर ले हम ;
दुनिया को ना भूलें मगर ख़ुद को ना तोडे हम ,
रिश्तों को तो जोडें मगर ख़ुद का ना छोडे हम ;
चलो इक बार फिर से अपनी दुनिया बसा ले हम ,
प्यार छिपा है जो हम दोनों के सीने में ;
क्यूँ उसे इक दूजे पे ना वारें हम ;
खुशियाँ गर मिलती हैं हमें बातों मुलाकातों में ,
क्यूँ न करें बातें क्यूँ ना करें मुलाकातें हम ;
कीमत तो देनी पड़ती है हर खुशी की जीवन में ,
जीवन का करेंगे क्या जिसमे न होंगे इक दूजे के संग हम ;
चलो इक बार फिर से अपनी दुनिया बसा ले हम ,
कुछ पल ख़ुद भी जी लें आ इक दूजे को बाँहों में भर लें हम ;
चलो इक बार फिर से अपनी दुनिया बसा ले हम ,

Thursday 12 November 2009

कभी पल मुस्कराया करते थे ,

कभी पल मुस्कराया करते थे ,

कभी क्षण गुनगुनाया करते थे ,

होते थे जब भी तुम कहीं आस पास ;

वो लम्हे खिलखिलाया करते थे /

सामने बैठ तुम कॉलेज की बातें किया करती थी ,

मेरी धडकनों के अंदाज बदल जाया करते थे ;

अपनी सहेलियों की शरारतें बता जब इठलाते थे तुम ,

मेरे अहसास नही दुनिया बसाया करते थे ;

तेरी हँसी का एक शमा बना होता था ,

हम तेरे खुबसूरत चेहरे को निहारा करते थे ;

जब कभी आहत होती किसी के बात पे तू ,

तेरी उदासी को तेरे सिने से चुराया करते थे ;

जब तेरा दिल भर आता अपनो के कारण कभी ,

तेरे ग़मों को अपने ह्रदय में छुपाया करते थे ;

हर रोज सुबह नहा के तेरे निकालने का इंतजार हम करते ,

तुझे देख हर रोज नए सपने बनाया करते थे ;

भोर हुए आखं मलते जब तुम सामने मेरे आते ,

कैसे हम एक दूजे की सिने से लगाया करते थे ;

मन्दिर जब भी गए संग तेरे हम,

तेरी खुशियाँ मांग तेरे मांग में सिंदूर भरा करते थे ;

कभी पल मुस्कराया करते थे ,
कभी क्षण गुनगुनाया करते थे ,
होते थे जब भी तुम कहीं आस पास ;
वो लम्हे खिलखिलाया करते थे /