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Wednesday 11 November 2009

भोर हुए तेरी याद चली आती है /

भोर आखँ खुलते तेरी याद चली आती है ,

बाँहों में भरकर सिने से लगाती है ,

दिल को प्यास जीवन को आस दिए जाती है ,

भोर हुए तेरी याद चली आती है /

पल भर को जो हुआ अकेला ,

तेरे भावों ने आ मुझको घेरा ,

धड़कन को अहसास वो देते ,

गम को विश्वास वो देते ,

रातों में बिस्तर पे जब लेटा ,

तेरी बातों का होता सबेरा ,

नयनो में सपने आते हैं ,

तन मन पुलकित हो जाते हैं ,

भोर हुयी फिर यादें आती हैं ,

वो मेरी तन्हाई भर जाती हैं ,

कैसे तुझसे दूर मै जाऊं ,

कैसे मन मन्दिर फुसलाऊं,

भोर हुए तेरी यादें आती हैं ,

वो मेरी तन्हाई भर जाती हैं /

Monday 9 November 2009

आखें प्यासी है क्यूँ नीद नही आती /

मेरे लम्हों की बेकरारी नही जाती ,

आखें प्यासी है क्यूँ नीद नही आती ;

जब्त अरमां दिल को बेकरार नही करते ,

भूल जायुं तुझको क्यूँ ऐसी बीमारी नही आती /

है शांत शमा कैसे मै जानू ,

दिल में उलझन चंचल धड़कन ;

मन से खामोशी नही जाती ,

आखें प्यासी हैं क्यूँ नीद नही आती ?

तू गैर की बाँहों में ऐतबार है मुझको ,

तेरी जिंदगी उससे है इकरार है मुझको ;

तू है नही मेरी ये कैसे मै मानू ,

मेरे रग रग से बहते खूं से तेरी खुसबू नही जाती ;

आखें प्यासी है क्यूँ नीद नही आती /

Saturday 7 November 2009

पर वो पल कितने प्यारे औ कितने अच्छे थे/

विस्तृत आकाश विदित है ;

मन का भावः विदित है ;

अहसास कहाँ कब सीमा जाने ,

दिल का विश्वास विदित है /

झिल-मिल तारों से ,आस करे क्या ?

सागर की लहरों से , प्यास करे क्या ?

रातों के ख्वाबों का मंतव्य समझ लेते ;

जागी आखों के सपने ,करे क्या ?

तू गैर नही है ;

तुझको मुझसे बैर नही है ;

मेरी तन्हाई से क्या रिश्ता तेरा ?

मेरी आगोस में होने का अब दौर नही है /

तेरे वादे क्या सच्चे थे ;

तेरे अहसास सभी कच्चे थे ;

बदन से मिलते बदन की यादें ;

क्या ले के बैठें अब उसको ;

पर वो पल कितने प्यारे औ कितने अच्छे थे/

नई दुनिया तुने बसाई है ;

मेरी यादों की अर्थी सजाई है ;

मेरे होने का अहसास ना हो ;

तुने अपने दिल की कब्र बनाई है /

Wednesday 28 October 2009

तेरे पास आ उसे कैसे पराया कर लूँ ?

तुझे जरूरत ना पड़ती थी कहने की ,

तेरे अहसासों पे अमल कर देता था मै;

तेरी आखों में बुने सपनों को ,

अपने भावों से सजों देता था मै ;

तेरी राहों के काटें चुनता ,

तेरी मधुभासों में खोया रहता था मै ;

तेरी खुशियों को तुझसे ज्यादा सजोता ,

तेरे आंसुओं को अपनी आखों से रो लेता था मै ;

इन यादों से कैसे किनारा कर लूँ ,

गर तुझसे मोहब्बत एक गलती थी ;

उसे तोड़ कर गलती कैसे दोबारा कर लूँ ?

तेरी खुशियाँ अब भी मुझे प्यारी हैं ,

तुझे मिल के उन्हें कैसे गवांरा कर लूँ ;

तेरा आभास अब भी मेरे धड़कनों में शामिल है ,

तेरे पास आ उसे कैसे पराया कर लूँ ?

Monday 26 October 2009

इक चाहत है ख़ुद से जुदा होने की ;

इक चाहत है ख़ुद से जुदा होने की ;

मोहब्बत में खुदा होने की ;

जी ना सके संग तेरे क्या हुआ ;

तमन्ना है तेरे इश्क में फ़ना होने की ;

मेरे अहसास अपने दिल में तू समेट ना सकी ;

मेरी दुरी को मोहब्बत में लपेट ना सकी ;

क्या कहूँ तेरे अरमां औ तेरी जरूरतों को ;

कैसे तू प्यार के जज्बे को सहेज ना सकी ?

तू गर्वित है अपने हालात पे ;

अपनी सफलता और बड़ती आगाज पे ;

क्या कहूँ मोहब्बत तेरी बिखरती जवानी पे ;

कैसे वो मेरी आखों में आंसुओं को रोक ना सकी ?

Thursday 22 October 2009

गुम हूँ कहीं ,खोया हूँ कहीं ;

गुम हूँ कहीं ,खोया हूँ कहीं ;

हूँ उसकी तलाश में ,

निकला हूँ कहीं ,पहुँचा हूँ कहीं ;

मदहोश नही हूँ , बेहोश नही हूँ ;

उलझा हूँ तेरी सोच में ;

अफ़सोस नही हूँ , सरफ़रोश नही हूँ ;

ढुढता हूँ ख्वाबों में , भटकता हूँ राहों में ;

नीद आये हुए वर्षों ;

सोया कहीं हूँ , जागा कहीं हूँ ;

तेरा अहसास नही हूँ , तेरा आकाश नही हूँ ;

हूँ हवा में शामिल ;

तेरा आभाष नही हूँ ,तेरी साँस नही हूँ ;

होयुं कोहरे में शामिल ऐसा खामोश नही हूँ /

Wednesday 21 October 2009

नाराज मत हो ,प्यार कर ,अंहकार मत हो /

मोहब्बत की दूरियों पे ,अपनी मजबूरियों पे ;

नाराज मत हो ,विश्वास कर ,इंकार मत हो /

तकलीफों की मुस्कराहट पे ,मुसीबतों की आहटों पे ;

नाराज मत हो ,विचार कर , तकरार मत हो /

आंसुओं की कोशिश पे ,भावों की कशिश पे ;

नाराज मत हो ,स्वीकार कर ,दुस्वार मत हो /

अपनो के तानो पे ,रिश्तों के बानो पे ;

नाराज मत हो , ख़याल कर उदास मत हो /

प्यार के धोखे पे ; मोहब्बत की उलझनों पे ;

नाराज मत हो , इश्क कर ,बदहवास मत हो /

नसीब की डोरियों पे ,तिरस्कार की बोलियों पे ;

नाराज मत हो ,सम्मान कर , अविश्वास मत हो /

बिखरे सपनों पे , छुटे अपनो पे ;

नाराज मत हो ,आगाज कर , इतिहास मत हो ;

सपने खिल जायेंगे , अपने मिल जायेंगे ;

प्यार भर भावों में ;सहजता ला मुलाकातों में ;

नम्र कर सोचों को ;सब्र भर बातों में ;

हारी बाजी जीतेगा तू ,अहसास ला मुलाकातों में ;

व्यवहार में स्वार्थ मत ला , मन में दुराव मत ला ;

नाराज मत हो ,प्यार कर ,अंहकार मत हो /

Monday 19 October 2009

लूट लूट लूट ,

लूट लूट लूट ,
लूट रहा है हर कोई जो सकता है लूट ;
लूट लूट लूट ;
नेता लुटे है वादों से ;
अफसर लुटे हैं इरादों से ;
पत्रकार लूटता है शब्दों से ;
कवी लूटता है अर्थों से ;
अपने लुटे है जज्बों से ;
रिश्तेदार लूटता है कर्मों से ;
लूट लूट लूट ;
लूट रहा है हर कोई जो सकता है लूट ;
समाज लूटता है दिखावे से ;
सम्बन्ध लूटता है भावों से ;
दोस्तों ने यारी से लूटा ;
चालाकों ने तीमारदारी से लूटा ;
प्यार लूटता है अरमानो से ;
परिवार लूटता है अहसानों से ;
किस किस से कब तक है बचना ;
ये कैसा है है जीवन अपना ;
आ ख़ुद को लूटें इच्छावों से ;
भगवन को लुटे कामनावों से ;
लूट लूट लूट ,
लूट रहा है हर कोई जो सकता है लूट ;

Tuesday 13 October 2009

महसूस कर हवा में मिलेंगी सदायें मेरी ;

महसूस कर हवा में मिलेंगी सदायें मेरी ;

आसमान से बरसती दुआएं मेरी ;

दूर रहने पे भी मेरे अहसास तेरी तन्हाई छू जायेंगें ;

बातों में तेरे मुंह से मेरे अलफाज निकल आयेंगें ;

सहेज लो चाहे जितना अपने मन अपनी नई जिंदगानी में ;

बिना मेरा जिक्र कहाँ रंग आएगा तेरी कहानी में ;

तू कहता है नही जरुरत अब मेरी मोहब्बत औ उसके इरादों की ;

नही परवा मेरे इश्क और मेरे हालातों की ;

तेरी अवहेलना ने आखों को इक हँसी सी नमी दी है ;

मेरे दिल को सबमे प्यार बांटने की जमीं दी है ;

सुक्रगुजर हूँ तेरा और तेरी इनायतों का ;

मेरी भावनाओं ,आकान्छाओं को अपनी दुश्मनी दी है ;

आईने में देखा जरा नजर भर के ख़ुद को ;

मेरी मोहब्बत के अहसासों ने तुझे क़यामत की खूबसूरती दी है /

झांक सकते हो तो झाँकों अपने ह्रदय के बंद हिस्सों में ;

मैंने कभी तुझे जिंदगी भर की खुशी दी है /

Saturday 10 October 2009

कैसे मैं अभिप्राय को बदलूं ?

बात नही करते तो क्या हम भूल गए ,

पैगाम नही कहते तो क्या सम्बन्ध छुट गए ;

तुझे खुशियाँ मेरी रास ना आई ,

तो गम के रिश्ते क्या टूट गए ;

भावों को तुने बदला ,

तो क्या मेरे अरमान सूख गए /

धरती ने नियती नही बदली ,

आसमान ने सीरत नही बदली ;

हवा ने बदला नही बहना,

सांसों ने बदला नही चलना ;

मै कैसे अपने प्यार को बदलूं ,

कैसे जीवन के आधार को बदलूं ;

हट नही ये सच्चाई है ,

तेरा प्यार मेरी खुदाई है ;

कैसे मैं भगवान को बदलूं ,

कैसे मै जज्बात को बदलूं ;

मै तुच्छ सही पर ये भी सच है ;

तेरी मोहब्बत मेरा रब है ;

रब की कैसे चाह मै बदलूं ,

कैसे मैं अभिप्राय को बदलूं ?

Monday 5 October 2009

तेरी तलाश है मुझे तू ही नही मिलता,

तेरी तलाश है मुझे तू ही नही मिलता,
तू गुजरा जिस राह पे,
वो जमीं नही मिलती, वो आसमान नही मिलता ;
तेरे बनाये जहाँ का ,कुछ नामोनिशान नही मिलता /
हवा में तेरी पहचान ढूंढे हैं ,फूलों में तेरी शान ढूंढे हैं ;
जो इन्सान बनाये तुने वो इन्सान ढूंढे हैं ;
कहीं झलक नही मिलती ,कहीं अहसास नही मिलता ;
जो चला हो तेरी राहों में ,वो इन्सान नही मिलता /
भावः दिल में बहुतेरों के हैं ,
श्रद्धा और आस चकेरों के हैं ;
महिमा का गान करे कितने ही ,
तेरी दया द्रिस्टी से सामर्थ्य चितेरों के हैं ;
तेरी राह चला ,तेरी बात धुना ;
ऐसे को आखें ढूंढे हैं ,
ऐसा परमार्थ नही मिलता ;
जो इन्सान बनाये तुने ,ह्रदय उन इंसानों को ढूंढे है ;
तेरी तलाश हो जिसको ऐसा स्वाभाव नही मिलता ;
तू गुजरा जिस राह से ,
वही जमीं नही मिलती वही आसमान नही मिलता ;
तेरे बनाये जहाँ कोई नामोनिशान नही मिलता /

Friday 2 October 2009

शुन्यता है खालीपन है और है अभाव आनंद का ;

शुन्यता है खालीपन है और है अभाव आनंद का ;
नही रहता मन प्यासा किसी प्यार का ;
नही तड़पता तन तेरे अभाव पे ;
हर्षित नही है ह्रदय तेरे जिक्र पे ;
द्रवित नही है दिल तेरे कुफ्र पे ;
शुन्यता है खालीपन है और है अभाव आनंद का ;
जिंदगी इक सहजता बन गई है अब तो ;
इक रस्मो रिवाज की कवायद रह गई है अब तो ;
उस्फुर्ती नही रही तुझसे मिलने की ;
प्यार रहा गया है इक सजावट अब तो ;
शुन्यता है खालीपन है और है अभाव आनंद का ;
तेरे ना मिलने की बात से उदासी नही है ;
तेरी मोहब्बत और चाहतों से बानगी नही है ;
जिंदगी जा रही है इक रह पे जैसे भी ;
उन राहों में दिलचस्पी और दुराव नही है ;
शुन्यता है खालीपन है और है अभाव आनंद का ;
गम नही है , तकलीफ नही है ,वक्त से रंजिश भी नही है ;
मोहब्बत नही , इश्क नही और कोई कशिश भी नही है ;
शुन्यता है खालीपन है और है अभाव आनंद का ;
पास नही है तू दूर नही है ;
आभास तो है अहसास नही है ;
सुलझी नही पर वो उलझी नही है ;
तू गैर तो बन न पाई पर मेरी भी नही है ;
विस्वास तो है पर आस नही है ;
तू बाँहों में है उनके पर उसमे खोयी भी नही है ;
शुन्यता है खालीपन है और है अभाव आनंद का ;

Tuesday 29 September 2009

मेरी जुदाई को और जुदा कैसे करोगे तुम /

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तेरी खुशियों की सीढी दिल के टुकडों से सजाई थी ,
तेरी सफलता की दुआ अपनी असफलता से चुरायी थी ;
तुझे और क्या दूँ जो तेरा मन नही भरता ,
तेरी मुस्कानों की राह अपने आंसूं से बनाई थी /
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मेरी असफलता को और असफल कैसे करोगे तुम ,
मेरी तन्हाई को और तनहा कैसे करोगे तुम ;
तेरी खुशियाँ जुड़ीं हैं मेरी बरबादियों से ,
मेरी जुदाई को और जुदा कैसे करोगे तुम /
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Sunday 27 September 2009

सब्र कर कुछ दिन

मुस्कराहटें ,खुशी की आहटें और सुहासित ये शमा ;
खिला दिन ,महका बदन तेरी नजरों ने मोहित किया ;
भटक रहे अरमान ,तेरे इजहारे मोहब्बत ने हर्षित किया ;
तेरे अनछुए ओठों का पहला ये आभास ,
मेरा मन तेरी खुसबू में डूबा हुआ ;
शरमाते सकुचाते बाँहों में तेरा आना ;
मेरा तन उमंगों से पुलकित हुआ ;

सब्र कर अभी कुछ दिन, बड़ने दे प्यास ;
उफनने दे ये कशिश ,कर कुछ और प्रयास ;
कयास लगाने दे उन पलों के हर्ष का ;
महकती सांसों और बदन से बदन के स्पर्श का ;
मदहोशी Align Rightरा आने दे ,बड़ने दे जजबातों को ;
सब्र कर कुछ दिन ,अभी बड़ने दे मुलाकातों को ;
फिर होगा जो अवश्यमभावी है ;
मेरे दिल को तू बहुत भायी है ;
पुरानी यादों से किनारा तो जरा कर लूँ ;
अपने जख्मी दिल के भावों को जरा सिल लूँ ;
उनके बेवफाई के सितम को जरा पिने दे ;
फिर चोट खा सके इतना तो जख्मो को जरा भरने दे ;

कल तू भी अपनी राहों पे बड़ जाएगा ,पर तकलीफ जरा कम होगी ;
पहले की तरह हर बात पे ,आखें तो ना नम होगी ;
आशाएं नही पाली है तो तकलीफ भी न होगी ;
तेरी मंजिल से पहले का एक पड़ाव ही हूँ मैं ;
सब्र कर इक धोखा खाया इन्सान भी हूँ मैं ;

Thursday 24 September 2009

केशों से ढलकता पानी है ;


केशों से ढलकता पानी है ;


रिमझिम बरसते मौसम की अजब रवानी है ;


महकते फुल हैं ,मदहोशी का शमा है ;


भीगा बदन ,गहरी सांसें अरमां जवां है ;


झिझकती काया है ,उफनते जजबातों की माया है ;


कामनाएं फैला रही हैं अपने अधिकारों को ;


संस्कार की रीतियाँ रोक रही है भावनावों को ;


मन उलझा हुआ है , तन बहका हुआ है ;


डर रह रह के उभर आता है सीमाएं टूट न जायें ;


अरमां आगे बडाते हैं ये लम्हा छुट न जाए ;


स्वर्गिक अनुभूति है पर ज़माने की भी कुछ रीती है ;


प्रिती प्यासी है ख़ुद पे बस कहाँ बाकी है ;


झिझक ,तड़प ,प्यास ,विस्वास ,खुशियाँ और उदाशी हैं ;


आंनद बिखरा पूरे माहोल में है ;


वो सिमटा मेरे आगोस में है ;


मन झूमा तन आह्लादित है ;


बिजलियाँ कौंध रही मनो उल्लासित हैं ;


ह्रदय में द्विक संगीत सा बज रहा है कुछ ;


प्यार की जीत है , बंधन और दूरी झूट है ;


प्यार भी इक पूजा है ,इसके बिना जीवन अजूबा है ;


मिलन भी एक सच है , इश्क भी इक रब है ;


अरमान विजीत है , मन हर्षित है ;


धरती महक रही भीनी खुसबू से ;


पेडों की हरियाली अदभुत है ;


एक अनोखी अनुभूति है छाई ;


वो अब भी है मेरे बाँहों में समाई /


क्या उत्सव है ,क्या है ये लम्हा ;


सांसों का सांसों में मिलना ;


रुक जा वक्त अनमोल ये लम्हा ;


क्या सच है ये ; या है इक सपना /

Saturday 19 September 2009

आस्था की चुनौतियाँ हैं ;

आस्था की चुनौतियाँ हैं ;
बिखरी संस्कृतियाँ हैं ;
अवमाननावों की संकुचित राजनीती है ;
तड़पती इंसानो की स्मृति है ;
धर्मान्धता तर्क की आहुति बनी है ;
सज्जनता मौन की वाहक बनी है ;
क्यूँ न मरे हम तुम इस महफ़िल में ;
चिल्लाहट ,तोड़ फोड़ ,खून खराबा ,
सच्चाई की मानक बनी हैं /

Friday 18 September 2009

आज कल वो खिलखिलाते बहुत है ;

नजरों में नशा है ,
माहोल बेवफा है ;
अब सिने से लग भी जावो ;
आज कल तड़पाते बहुत है /
मन कहीं ठहर ना जाए ;
तन कहीं संभल ना जाए ;
फुल खिले हैं ,पक्षियों की कलवरे हैं;
आ बाँहों में समां सांसों को महका ;
वक्त का कर न भरोसा ;
आज कल आजमाते बहुत हैं ;
आज कल वो खिलखिलाते बहुत है ;
सपने में भी मुस्कराते बहुत हैं ;
जब से बेवफाई का दामन है पकड़ा ;
वो गुनगुनाते बहुत हैं /

Tuesday 15 September 2009

कैसे तुझे अपना मानू ?

किन जज्बातों को मानू ;

किन अरमानो को जानू ;

क्या नही बदला तुझमे ;

जो तुझे अपना मानू ?

क्या भावों में सत है ;

क्या आखों में तप है ;

क्या बाकी है तुझमे ;

जो तुझे अपना जानू ?

कब यादों को तुने साधा ;

मेरी यादों से है तू भागा;

भुला रोई आखों के वादे भी ;

कैसे तुझे अपना मानू ?

Sunday 13 September 2009

अक्स आखों से दिल में उतर गया ;

अक्स आखों से दिल में उतर गया ;

आंसू दिल का आखों से गुजर गया ;

तेरी अदावत का लुत्फ़ भी ले लेते लेकिन ;

न जाने क्यूँ तेरा दिल बाँहों में पिघल गया ;

तू गैर की है यकीं है मुझे ;

मुझे देख के तेरा आंसू निकल गया ;

तेरी मोहब्बत से गुरेज करूँ कैसे ;

मेरे पास आते ही तेरा अरमां मचल गया ;

क्या करूँ अपने भावों का मै ;

मेरा हर लम्हा तुझमे सिमट गया /

चाँदनी रातों में अँधियारा लगता है ;

चाँदनी रातों में अँधियारा लगता है ;
जागते सपनों में तू हमारा लगता है ;
सोयी आखों में तू आता नही ;
ग़मों का तू उजियारा लगता है /