Wednesday 24 June 2009
अब तुझसे क्यूँ है मिलना ?
क्यूँ भावो का फिर से खिलना ?
राहों में तुमने राह बदल दी ,
भावों में अभिप्राय बदल दी ;
रिश्तों की कठिनाई से भागी ,
कब अपनी सच्चाई पे जागी ;
उन लम्हों से फिर क्यूँ है जुड़ना ;
क्यूँ आधे जजबातों से मिलना ;
तुझको दिल की झंकार न भायी ;
तेरे प्यार की खुसबू मुरझाई ,
खोयी थी तू अपने ही सुख में ;
खोयी थी पैसों के बंधन में ;
तुजे चाहिए था इक रुतबा ,
प्यार नही अंहकार का जज्बा ;
गले लगाता था जिसको मैं ;
उनसे हाथ milaane क्यूँ है मिलना ;
फिर मिलके क्यूँ है टूटना /
उन होठों पे पुकार न होगी ;
वछों को सिने की दरकार न होगी ;
न मिलन की aah मन में ,
na bahon ki chah tan me ;
nayan न ढूंढेंगे नयनो को ;
भावों में पुकार न होगी ;
पत्थर से क्या बयां करूँगा ;
कोयले को कैसे गले का हार करूँगा ?
क्यूँ मिलाने kअ व्यवहार करूँ मै ;
क्यूँ ख़ुद पे अत्याचार करूँ मै ?
Sunday 21 June 2009
जिंदगी की मेहरबानियाँ याद हैं /
वो हँसी शाम फिर न आएगी ;
वो चहकते दिन तू कैसे भुलाएगी ?
सदियाँ लगी थी दिल को करीब लाने में ;
एक पल में उसे कैसे भुलाएगी ?
वो नजरों से नजरें मिलाना याद है ;
तेरा यूँ ही चिडाना याद है ;
मेरे हाथों में तेरा हाथ याद है ;
तेरा शरमा के मुस्कराना याद है ;
आवाजों की खनक ,
सांसों की महक ;
तुझे बस यूँ ही देखना ;
अदा से तेरा अधखुली पलकों का खोलना ;
तेरा दौड़ कर सिने से लगना याद है ;
सांसों का सांसों से महकना याद है ;
आज भी तेरा डोली से जाना याद है ;
कितनी तड़प ,जब्त करते आंसू ,
औ मुस्कराना याद है ;
कितना अकेलापन माहौल की सनसनाहट ,
औ एक कोने में ख़ुद से आंसू छुपाना याद है ;
कितने ही जख्म खाए जिंदगी की राहों में ,
पर कोई गम न था ;
उन जख्मों को बहुतों ने कुरेदा ,
पर दर्द न था ;
लोंगों का खिल्ली उडाना याद है ;
मेरा आखें चुराना याद है ;
आखों के बहते आंसू औ मुस्कराना याद है ;
शिकवा किस की ,
गिला किसका ;
जिंदगी की मेहरबानियों पे तड़पना याद है ;
bhuke पेट दिन है गुजरे ,
खाली पेट रातें ;
जिंदगी याद है मुझे तेरी हर सौगातें ;
अपनो से अपनी हालत पे दबना याद है ;
चंद दिनों की खुशियाँ देकर ,
तेरा बरसों तडपाना याद है ;
जिंदगी तेरी मेहरबानियाँ याद है ;
अपनो की भीड़ में सालों गुजारी तनहाईयाँ याद है /
Friday 19 June 2009
वो तेरा अतीत हूँ /
अंत हूँ ,अनन्त हूँ ;
आकर्षण हूँ , आमंत्रण हूँ ;
जो तू वश में ना कर सकी ,
वो तेरा अत्यंतर हूँ /
अरस्तु हूँ , अगस्त्य हूँ ;
अनुगामी हूँ , अभ्यस्त हूँ ;
जो तू ना पढ़ सकी ;
वो तेरा ही अर्थ हूँ /
अमूर्त हूँ , अभिभूत हूँ ;
अविरक्त हूँ , अभिव्यक्ति हूँ ;
जिसे ना तू जीत सकी ,
वो तेरी आशक्ति हूँ /
आगाज हूँ , आवाज हूँ ;
आस हूँ , अनायास हूँ ;
जिसे ना तू मिटा सकी ;
वो तेरा अहसास हूँ /
अभिज्ञान हूँ , अभिमान हूँ ;
आकार हूँ , अविकार हूँ ;
जो तू न संभाल सकी ,
वो तेरा अधिकार हूँ /
अमान्य हूँ , अवमान्य हूँ ;
अरीती हूँ , अप्रिती हूँ ;
जो स्वीकार ना कर सकी ,
वो तेरा अतीत हूँ /
Thursday 18 June 2009
वो तेरा अतीत हूँ /
अनिभिज्ञ हूँ , अवरुद्ध हूँ ;
अदृश्य हूँ , अदृष्ट हूँ ;
अभीष्ट नही जो तुझे ;
वो तेरा अधिष्ट हूँ /
अनुरोध हूँ , अवरोध हूँ ;
अज्ञान हूँ , अनजान हूँ ;
जो पुरा ना हो सका ,
वो तेरा अरमान हूँ /
अप्राय हूँ , अभिप्राय हूँ ;
आवेश हूँ , अवशेष हूँ ;
मन में तेरे छुपा हुआ ,
उलझनो का आक्रोष हूँ /
अमान्य हूँ , अवमान्य हूँ ;
अरीती हूँ , अप्रिती हूँ ;
जो स्वीकार ना कर सकी ,
वो तेरा अतीत हूँ /
Wednesday 17 June 2009
तेरा मुझसे क्या रिश्ता था
मेरा तुझसे क्या रिश्ता है ;
सब रिश्ता भूल गया /
याद हैं बस आखों के आंसू ;
सारा किस्सा भूल गया /
रातें आखों में कटी ;
रातों का अँधियारा भूल गया /
राहों में उलझा हूँ दिन भर ;
घर का रास्ता भूल गया /
बातों में उनके बिरहा होता था ,
आखों में मदिरालय ;
बहकूँ कैसे यार मेरे ;
मदहोशी ही भूल गया /
यूं . जी .सी का अत्याचार
अब सुनने मे आ रहा है की फ़िर से M.PHIL की मान्यता ख़त्म होने जा रही है । अब कोई इनसे यह पूछे की आप के आदेश के बाद जिन लोगो ने M।PHIL किया या कर रहे हैं अब उनका क्या होगा ?
UGC वालो इसका क्या जवाब दोगे ?
गम नही दूरियों का
वक्त की मजबूरियों का ;
जब मिलन की आग हो ,
जलते बदन में एक प्यास हो ;
मन में एक मीठा भास हो /
सुनी रातें अहसास बडाती हैं ;
तेरा आभास दिखाती हैं ;
उगता सूरज एक विस्वास दिलाता है ;
मन अपना ही कयास लगाता है ;
जब दिल बेकरार हो ;
अलग मजा है मजबूरियों का ;
अगर बेइंतहा प्यार हो ;
उदासियों में भी आस हो /
Tuesday 16 June 2009
पहली मुलाक़ात -----------------------
जो होनी थी ,वही छोड़ सब बात हुई ।
जो परी ख्वाबो मे आती रही अब तक,
उसके पहलू मे ही आज रात हुई ।
यूँ तो चोरी दोनों का कुछ-ना -कुछ हुआ पर,
खुश हैं दोनों ही,अजीब वारदात हुई .
Monday 15 June 2009
तुम आओगे शहर में , मै न होऊँगा /
मैं ना होऊँगा ;
न उलझन तुम्हें होगी ,
ना मै रोऊँगा /
कुछ यादें टटोलेंगी,
कुछ पल कचोटेंगे ;
अपनो का साथ होगा ,
हँसी का कारोबार होगा ;
न होगी झिझक मन में ,
जब मै ना होऊँगा ;
खुशियों से भरी सुबहें होंगी ,
भावों से खिली रात ;
न होगी टीस मन में ,
ना होगी इच्छाओं की आस ;
न मचलेंगे सपने तेरे ,
ना बडेगी मेरी प्यास ;
तुम आओगे शहर में ,
मैं ना होऊँगा ;
न उलझन तुम्हें होगी ,
ना मै रोऊँगा /
वो आए शहर में ,
हमें अनजान रख के चल दिए ;
समझते हैं हाले दिल तेरा ए हँसी ,
किसके साथ आए औ क्यूँकर चल दिए ;
आदतें जाती नही है ,
राहें बदल जाती हैं ;
बदन पिघलाते थे ,
दिल सुलगा के चल दिए /
वो शहर में आए ,
हमें अनजान रख के चल दिए /
Sunday 14 June 2009
वह प्यार को ----------------------
रुमाल अपना मेरे पास छोड़ देता है ।
जात-पात ऊँच-नीच की गागर को ,
अक्सर कोई कन्हाई फोड़ देता है ।
हर एक नई मुलाकात के साथ ,
वह नया रिश्ता जोड़ देता है ।
तेवर बगावती हैं इसके बडे ,
मोहबत्त हर रिवाज को तोड़ देता है ।
-
अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...
-
मै बार -बार university grant commission के उस फैसले के ख़िलाफ़ आवाज उठा रहा हूँ ,जिसमे वे एक बार M.PHIL/Ph.D वालो को योग्य तो कभी अयोग्य बता...