Thursday 30 April 2009

हिन्दी पत्रिका -पंचशील शोध समीक्षा

मेरी हमेशा यह कोशिस होती है की अपने इस ब्लॉग के माध्यम से मैं समय -समय पर आप लोगो को हिन्दी की किसी नई पत्रिका से अवगत करा सकूं ।
ऐसी ही एक पत्रिका है पंचशील शोध समीक्षा । इस पत्रिका के माध्यम से आप देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों मे हिन्दी मे हो रहे शोध कार्यो की संछिप्त जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
इस पत्रिका का प्रकाशन पंचशील प्रकाशन ,जयपुर की तरफ़ से होता है । इसकी अपनी वेबसाईट इस प्रकार है -
www.panchsheelprakashan.com
e mail-info@panchsheelprakashan.com
phon no-0141-2315072,2314172

इसकी एक प्रति का मूल्य ७५ रुपये है । वार्षिक ३०० रुपए है .अधिक जानकारी के लिये निम्नलिखित पते पर संपर्क किया जा सकता है -----
पंचशील शोध समीक्षा
पंचशील प्रकाशन ,
फ़िल्म कालोनी,चौडा रास्ता
जयपुर -३०२००३

चंद शब्दों की कहानी नही होती

चंद शब्दों की कहानी नहीं होती ;
कुछ पलों की जवानी नहीं होती /
जिंदगी तो यूँ भी गुजर जायेगी लेकिन ;
बिना मोहब्बत के जिंदगानी जिंदगानी नहीं होती /
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आज फिर तमन्नावों ने पंख फैलाये हैं ,
आज फिर खवाबों ने तेरी झलक पाए हैं ;
महफ़िल सजाई है अपनी तन्हाई की ,
आज फिर यादों ने बेवफाई की है ;
आज गुरेज कैसे करते हया से तेरी दूरी का ,
ये रास्ते तो हमने ही तुम्हें दिखाएँ हैं /

Wednesday 29 April 2009

वर्ण

Varna (वर्ण varṇa) is a Sanskrit term derived from the root vrn meaning "to choose from".One of the foremost Rishi in Rigveda is Vishwamitra, who was a King and Kshatriya by birth. Vyasa was of mixed birth between Parasara, a Brahmin and Sathyavathi (a Soodra, fisher woman). Maharishi Matanga was from the Matanga Bhil tribe but was raised as a Brahmana. Hence to attribute inherited class system to Hindu scriptures is without substance

फ़िर जा के इजहार हुआ-----------------------------------------

पहले तो तकरार हुआ
फ़िर जा के इजहार हुआ ।

चोरी-छिपे जो शुरू हुआ था,
अब तो वह अखबार हुआ ।

जिससे डरते थे हम दोनों,
वही तो आख़िर कार हुआ ।

मेरी मोहबत्त की बातो से,
रुसवा पूरा परिवार हुआ ।

अब तक जो मेरा था केवल,
उस दिल पे तेरा अधिकार हुआ ।

life

I was just pondering over my life and the people whom I love and care about,.One thing which is certain, almost, that more you care about someone the better are the chance of you being hurt.I think its true for most of us.It is fate of most of the people that he/she must feel the pain of dejection or unfulfilled desires and wishes from the person he cares most or loves most.It always happens the person who gave you lots of love and care gets pain and sorrow from us.. There are very few people in the world who don`t go through this. Everyone try to believe that he the lucky one.I want to believe this too. Hope God will be kind to me as he always has been.and to every person I love and care.

बरबादियों का आलम यूँ है, कोई आंसू बहता कोई खूं है /

बरबादियों का आलम यूँ है,कोई आंसू बहता कोई खूं है ;
मोहब्बत में बरबादियों का दस्तूर तो पुराना है ,
कहीं जफा करती है , कहीं वफ़ा करती है ;
बरबादियों का आलम यूँ है,कोई आंसू बहता कोई खूं है ;
ना गुरेज था मुझको तेरी जफावों से ,
दिल हो जाता था चाक तेरी निगाहों से ;
बावजूद तेरी बेवफ़ाइआ , तेरा हर नाज हम सह लेते ;
खंजर सिने में मेरे तेरा ,फिर भी हम हंस लेते ;
पीठ में खंजर ,वो भी गैरों के हाथों से ,
हैरान थे तेरी सोच पे , तेरे इरादों पे ;
शुक्रिया ,तेरे हंसते चेहरे ने मौत आसान कर दी ;
मेरी डूबती सांसे औ तेरा खिलखिलाना ,
तेरी महकती सांसों ने वो महफ़िल खुशनुमा कर दी ;
हुस्न तेरा ये जलवा भी, मैंने देखा है ;
तेरी उस खिलखिलाहट में भी , एक आंसू का कतरा देखा है ;
बरबादियों का आलम यूँ है,कोई आंसू बहता कोई खूं है /
Vinay

Tuesday 28 April 2009

ख्यालों में भी ख्याल से डर लगता है /

खयालो में भी ख्याल से डर लगता है ,
अजीब वक़्त है ,इन्सान को इन्सान से डर लगता है ;
रास्ते में कौनसा धर्म टकरा जाये ,क्या पहन के निकले डर लगता है ;
सरकारी नौकरी में आरक्छन से कौनसा मातहत, बॉस बन जाये डर लगता है ;
क्या बतायुं किस प्रदेश से आया हूँ कौन कह दे मेरे प्रेदश से निकल जा डर लगता है ;
सांप्रदायिक करार दिया जायुं ; कैसे जायुं मंदिर डर लगता है ;
खयालो में भी ख्याल से डर लगता है ,
अजीब वक़्त है ,इन्सान को इन्सान से डर लगता है /

Monday 27 April 2009

चीत्कारता समाचार

प्रताडित तःथ्यों और पीड़ित शब्दों से बने ,आज के समाचारों की चिल्लाहट से हम सब सराबोर हैं ;

इन समाचार कथन के टी। वी के अत्याचार से से भावाभोर हैं/

Breaking News शब्द सही नही लगता ,इन समाचारों की व्याख्या का ;

चीत्कारता समाचार ज्यादा उचित शब्द है इन टी। वी। के समाचारों के व्यभिचार का/

वैसे उचित प्रतीत होती है ,इन समचारों को हमारे सर पर मारने की विधी ,

आखिर हमारे आचार विचार और कर्मों की सीमा ही है इनकी परिधी /

ये समाचार आज के आईने हैं ,थोडा बड़ा और नाटकीय भले प्रस्तुति है इनकी ,

स्वार्थ ने उसकाया, फायदा दलालों और सरकारी बाबुओं ने उठाया है ;

हम सबसे और सरकारी बाबुओं से फायदा उठाये वो नेता कहलाया है /

हमारा स्वार्थ छोटा है ,परिपेछ्य छोटा है ,बाबु का दायरा बड़ा स्वार्थ बड़ा चडा है ,

नेता का इरादा दोनों से बना और विशाल है ;

हम , सरकारी बाबु और नेता अभी एक आइना कम था ;अभी भी भ्रस्टाचार थोडा नम था /

ये समाचार पत्रों और टी। वी। के समाचार के पत्रकार इन सबसे एक कदम आगे हैं ;

किसी का हाथ थामे किसी को पुचकारे किसी को धमकाए हैं ;

कभी नेता का हाथ कभी जनता का दामन कभी बाबुओं के साथ ,ये सभी के दुलारें हैं /

ये तीनो की भ्रष्टतम स्थिति यही संभाले हैं ;तभी जनतंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाते हैं \

इनके कर्मों से खुद को दुत्कारती इनकी आत्मा चित्कारती रहती है ;

तभी कहता हूँ ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं चित्कारती आत्मा का समाचार ;

ब्रेकिंग खुच बचा नहीं ,चिल्लाती अंतरात्मा का समाचार ;चीत्कारता समाचार ही होना चाहिए /

विनय

Sunday 26 April 2009

उनसे ही मासूम उनके बहाने है ----------------------------------

उनसे ही मासूम उनके बहाने हैं ।
क्या करे उन्ही के दीवाने हैं ।

जो मिले वही रास्ता बताये ,
हम सचमुच कितने अनजाने हैं ।

एक साथ एक घर मे रहनेवाले भी,
एक-दूसरे से कितने बेगाने हैं ।

जंहा मिला रास्ता वंही चल पडे,
पहले से तय नही हमारे ठिकाने हैं ।

ये बाजारवाद का नया युग है,
यंहा रिश्ते सिर्फ़ भुनाने हैं ।

बार -बार उन्ही से मिला रहा है ---------------------------

वह बहुत याद आ रहा है ।
अपने पास बुला रहा है ।

हर पल खयालो मे आकर ,
गम जुदाई का बढ़ा रहा है ।

उसके हाथ मे है मेरी डोर ,
जैसे चाहे वैसे नचा रहा है ।


मैने तो मना किया था लेकिन,
शाकी जाम पे जाम पिला रहा है ।


मिलने पर अब पहचानता नही,
वह इस तरह मुझे जला रहा है ।


कुछ रब ने ठान रक्खी है शायद ,
बार-बार उन्ही से मिला रहा है ।

कभी वो न मेरी थी ,कभी मैं न दूजा था

कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
सुबह जब नीद खुलती तो बाँहों में रहती थी ;रात जब सोता तो निगाहों में रहती थी /
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;
बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
दिन निकालता है रात ढलती है , उसके बदन की खुसबू मन में बसी रहती है ;
कभी आँखें दिखाती थी ,कभी निगाहें मिलाती थी ;
कभी वो मुस्कराती थी ,कभी खिलखिलाती थी ;
कभी वो शरमा के आती थी ,कभी वो तन के जाती थी ;
नजदीक आती कुछ इस अदा से, दिल चाक हो ,
उसके सिने की मासूम सी हलचल , या खुदा इंसाफ हो जाये ;
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
दिन रात मेरी यादों में बसा रहता है ;उसकी यादों से मेरा कोई रिश्ता न था /
सुबह जब नीद खुलती तो बाँहों में रहती थी ;रात जब सोता तो निगाहों में रहती थी /
सांसें महकती थी ,तूफान उठता था ;बाँहों के दरम्यान सारा जहान होता था ;
कभी सिने से लग जाती ,कभी बर्फ की मानिंद पिघल जाती थी /
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /
सुबह जब नीद खुलती तो बाँहों में रहती थी ;रात जब सोता तो निगाहों में रहती थी /
कभी वो न मेरी थी ,कभी मै न दूजा था ;बरसों रहा साथ ,कभी मेरा न था /ViNAY